विचार / लेख

बच्चे की डिप्लोमेसी
01-Nov-2022 4:26 PM
बच्चे की डिप्लोमेसी

-विष्णु नागर
कुछ गुण- अवगुण व्यक्ति में नैसर्गिक रूप से होते हैं। इसका बहुत तीव्र एहसास मुझे अपने बड़े पोते के कारण हुआ। यह बात तब की है, जब जनाब तीन-चार साल के रहे होंगे। एक दिन हमारा पूरा परिवार- बड़ा बेटा, उसकी पत्नी, बड़ा पोता (तब छोटे पोते का जन्म नहीं हुआ था), पत्नी, मैं और हमारा छोटा बेटा- सब समुद्र की तरफ जा रहे थे। तब बेटे का परिवार एक फ्लैट में रहा करता था। हम सब लिफ्ट से नीचे उतर रहे थे। अचानक मेरे पोते जी ने कहा- 'दादाजी, आपके पास यह जो चटाई है, इसे आप दादी को दे दो।' हमने दे दी। तब उन्होंने कहा, 'और ये जो थैला है आपके पास, यह चाचा जी को दे दो।' वह भी दे दिया। मैं बहुत खुश हुआ कि इतना छोटा सा मेरा पोता, मेरा इतना ज्यादा ख्याल रख रहा है!

जैसे ही मैंने यह सब दिया, नीचे खड़े उन पोते जी ने कहा -'अब आप मुझे गोद में उठा लीजिए।' तो जनाब की यह डिप्लोमेसी थी, कूटनीति थी, जिसे हममें से कोई पहले समझ नहीं पाया था।

उनकी डिप्लोमेसी का यह अकेला उदाहरण नहीं है। इस घटना का गवाह मैं नहीं हूं मगर यह किस्सा उसकी मां ने सुनाया था और यह भी लगभग उसी समय का है। इनका पूरा परिवार, हमारी बहू के एक सहयोगी के घर भोजन पर आमंत्रित थे। बात होने लगी।किसी प्रसंग में शायद इन्हीं जनाब ने कहा कि ये अंकल मुझे बहुत अच्छे लगते हैं। उनकी एक विदेशी दोस्त उस समय आई हुई थीं। उससे ये सब पहले भी मिलते रहे थे। उन्होंने पूछा - 'और मैं, कैसी लगती हूं?' जाहिर है कि वह इसे उतनी पसंद नहीं थी, जितने कि वे अंकल या शायद पसंद नहीं थीं। अब यह बात कैसे कही जाए तो जनाब ने बड़ा कूटनीतिक जवाब दिया -'सारी दुनिया के लोग ही मुझे बहुत पसू हैं।' यह जवाब सुनकर सब बहुत देर तक आनंदित हुए -इनकी डिप्लोमेटिक सूझबूझ पर।

इनके ये कूटनीति दांवपेंच घर में भी खूब चलते रहते हैं। कभी-कभी इनका अपनी अम्मा से किसी बात पर झगड़ा हो जाता है। वह कोई चीज मांगता है या कुछ करने की इजाज़त अम्मा से चाहता है और मां किसी कारण से अनुमति देने से मना कर देती है।तो वह भी गरम जाता है और उसकी मां भी। दोनों में बोलचाल बंद हो जाती है। थोड़ी देर तक यह नाराज़गी चलती है। बातचीत बंद रहती है।कुछ ही देर में उसे समझ में आ जाता है कि यह ठीक नहीं हुआ। अम्मा ही तो घर में मेरी शक्ति का मुख्य स्रोत है।वह दो- चार दिन नाराज हो गई तो आगे के दिनों का खेल बिगड़ जाएगा।उसे जो भी चाहिए होगा, उसकी अनुमति तो मां ही देगी। वह तुरंत नाराज मां के गले में हाथ डालकर उनसे झूम जाता है। मां झिड़केगी तो भी बुरा नहीं मानता। बहुत मीठी-मीठी बातें करने लगता है। मां का गुस्सा भी नकली होता है तो थोड़ी देर में वह खुश हो जाती है।मामला हल हो जाता है।वह वायदा करवा लेता है कि उसकी यह मांग आज तो पूरी नहीं होगी मगर फला दिन होगी। इतना काफी है। वह सब भूल जाएगा मगर मां से जो वायदा उसने करवाया था, कभी नहीं भूलेगा।

हमारे छोटे पोते साहब वैसे तो अपने बड़े भाई के बड़े भारी मुरीद हैं मगर वह डिप्लोमेसी नहीं जानते। एकदम सीधी-सच्ची बात करते हैं। वह अपनी अदाओं से, अपनी हाजिरजवाबी से, शैतान हरकतों से, सबके दिल पर कब्जा जमाते हैं। जब भी उनकी दादी उनके पास होती है तो समझो, दादी का मोबाइल उनका अपना होता है। दादी कहीं भी छुपाकर रखें, वह ढूंढ लेते हैं। वापिस दिल्ली आने के कुछ दिन बाद उनकी दादी ने उनसे पूछा- 'क्या तुम्हें दादी की याद आती है? 'थोड़ी देर उसने सोचा,क्या वाकई आती है? फिर सीधा- सच्चा जवाब दिया- 'आपके मोबाइल की याद आती है दादी।'

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