विचार / लेख
डॉ. आर.के. पालीवाल
हमारे राजनीतिक दल और उनके हाई कमान सत्ता हासिल करने के लिए तरह तरह के शॉर्ट कट अपनाते हैं। जिसका शॉर्ट कट सबसे आकर्षक होता है वह बाजी मार लेता है।
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के अप्रत्याशित नतीजे बहुत दिनों तक चुनाव विश्लेषकों को स्पष्ट निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए परेशान करते रहेंगे क्योंकि यहां लंबी एंटी इनकंबेंसी थी, सडक़ जैसे बुनियादी इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास की हालत दयनीय थी, दल बदल कराकर अनैतिक तरीके से सत्ता हथियाई गई थी। यही कारण था कि भाजपा ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के चेहरे को आगे नहीं बढ़ाया था। इन सब विषम परिस्थितियों के बावजूद भाजपा को प्रचंड बहुमत हासिल होना आश्चर्यजनक है।भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस भले ही विरोधाभासी दावे कर अपनी पीठ थपथपाते हुए या दूसरे को नीचा दिखाने के लिए अपनी जीत और हार के बारे में कुछ भी कहें लेकिन सच्चाई यह ही है कि अब चुनाव जनता के जरूरी जमीनी मुद्दों यथा सडक़, पानी, बिजली, रोजग़ार, शिक्षा और स्वास्थ्य आदि सुविधाओं को लेकर नहीं लड़े और जीते जाते अपितु सत्ता हासिल करने के लिए विभिन्न भावनात्मक मुद्दों पर जनता के खास वर्गों को लामबंद किया जाता है। धर्म, जाति, भाषा और क्षेत्रीय संस्कृति चार ऐसे बड़े मुद्दे हैं जिनके साथ धन का मिश्रण जनता में हवाई लहर बना देता है। विभिन्न भावनात्मक मुद्दों को अलग अलग या विभिन्न मिश्रण के साथ राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दलों द्वारा समय समय पर अपनाकर सत्ता हासिल करने के पूर्व के भी कई उदाहरण हैं, मसलन क्षेत्रीय अस्मिता और भाषा को लेकर तृणमूल कांग्रेस, शिवसेना, टी आर एस और तमिलनाडू में डी एम के और ए आई ए डी एम के आदि, अनुसूचित जातियों के दम पर बहुजन समाज पार्टी, एम वाई मिश्रण से समाजवादी पार्टी और राजद इसी तरह अपने अपने राज्यों में सत्ता के शीर्ष तक पहुंचे हैं। भारतीय जनता पार्टी अब सरेआम हिंदुत्व को आगे बढ़ाने में पहले जैसा संकोच नहीं करतीं और खुलकर राम मंदिर और धार्मिक लोक का ढिंढोरा पीटती है। इसी तरह कांग्रेस पर अल्पसंख्यकों के तुष्टिकरण के आरोप लगते रहे हैं।
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव के नतीजे भी यही प्रारंभिक संकेत दे रहे हैं कि भाजपा के प्रचंड बहुमत के लिए धर्म (हिंदुत्व) और धन का मिश्रण अत्यंत कारगर साबित हुआ है। जहां तक धन का प्रश्न है उसमें कई स्रोतों से जनता को धन पहुंचा है। सबसे ज्यादा लाडली बहनों के खातों में हर महीने सरकारी धन जमा होना अन्य सभी मुद्दों पर भारी पड़ा है। भाजपा का हर महिला के खाते में छत्तीस हजार रूपए प्रतिवर्ष जमा करने का वादा खुद में इतना आकर्षक है कि उसके सामने तमाम रेवडिय़ां बौनी दिखाई देती हैं।भारतीय जनता पार्टी के पास कॉरपोरेट चंदे का धन भी कांग्रेस और अन्य राजनीतिक दलों की तुलना में कई गुणा है जिसके सहारे दल के रुप में बड़ा खर्च संभव था।अमीर उम्मीदवारों का निजी काला धन भी लगातार लम्बे समय तक सत्ता में रहने के कारण भाजपा के उम्मीदवारों के पास होना स्वाभाविक है।धन के ये तीन बड़े स्रोत काफी मतदाताओं के ईमान डिगाने में सक्षम हैं। सत्ता हासिल करने के लिए धन बल का प्रयोग हमारे लोकतंत्र के शैशव काल से चल रहा है। ऐसा लगता है कि इन चुनावों में उसने धर्म के साथ मिलकर जबरदस्त काम किया है।
धर्म और धन का भाजपाई गठजोड़ निश्चित रूप से राजस्थान और छत्तीसगढ में भी प्रभावी रहा है, हालाकि वहां कांग्रेस की आपसी कलह के कारण भी भाजपा विजयी हुई है। एक तरफ जहां भाजपा का धर्म और धन का मारक गठजोड़ बेहद सफ़ल रहा है वहीं कांग्रेस ने पिछड़ी जातियों को लुभाने का दांव चला था। आनन फानन में चले इस दांव ने कांग्रेस को लाभ के बजाय हानि पहुंचाई है। पिछड़ी जातियों ने तो कांग्रेस को ज्यादा अहमियत नहीं दी उल्टे सवर्ण समाज कांग्रेस से दूर छिटक गया जो उसका परंपरागत वोट बैंक था। उम्मीद की जा सकती है कि भाजपा लोकसभा चुनाव में धर्म और धन के गठजोड़ को जारी रखेगी और कांग्रेस ने कुछ नया दांव नहीं चला तो भाजपा आसानी से सत्ता की हैट्रिक पूरी करेगी।