विचार / लेख

भारतीय लोकतंत्र के आकाश पर तेजी से उभरता स्वार्थी सत्ता वर्ग
07-Dec-2023 2:21 PM
भारतीय लोकतंत्र के आकाश पर तेजी से उभरता स्वार्थी सत्ता वर्ग

  डॉ. आर.के. पालीवाल

जैसे जैसे आज़ादी के बाद हमारी राजनीति सेवा की पटरी से उतरकर विकृत होकर सत्ता की मेवा के प्रति आसक्त होती गई वैसे वैसे सत्ता के लिए साम दाम दण्ड भेद कुछ भी कर गुजरने वाला एक ऐसा स्वार्थी वर्ग तैयार हो गया जिसे आज का सर्व शक्तिमान ब्राहमण या सवर्ण वर्ग कह सकते हैं। यही आज का राज वर्ग है। सहूलियत के लिए इसे सत्ता वर्ग या शोषक वर्ग कह सकते हैं। संख्या बल में यह वर्ग भले ही अल्प संख्यक दिखता है लेकिन धनबल, बाहुबल और शक्ति बल में यह आम जनता से सहस्त्र गुणा है। यही वर्ग जनता के लिए कानून बनाता है और यही वर्ग कानून के राज और शासन के कामकाज को पूरी तरह नियंत्रित करता है। नौकरशाही और उद्योगपति तक इस वर्ग की कठपुतली की तरह काम करते हैं। प्रिंट मीडिया अपने अधिकांश पन्ने इसी वर्ग के लिए काले करता है और इलेक्ट्रोनिक मीडिया का अधिकांश प्राइम टाइम इसी वर्ग के इर्दगिर्द गुजरता है। बड़े बड़े फि़ल्म और खेलों के सितारे, महानायक और भगवान इसी वर्ग के सामने नतमस्तक होते हैं।

वैसे तो देश के किसी भी हिस्से में इस वर्ग के प्रभुत्व को देखा जा सकता है। उदाहरण के तोर पर तेलंगाना के वर्तमान परिदृश्य  से इसे सहजता से समझा जा सकता है।नए राज्य तेलंगाना के बनने से लेकर हाल तक सत्ता पर अजगर की तरह काबिज रहे के चंद्रशेखर राव इस राज्य की सत्ता के पहले राजा थे। उनकी कार्यशैली  पुराने जमाने के अंहकारी राजाओं जैसी थी और उनकी राजनीति में विचारधारा का कोई महत्त्व नहीं है। सिर्फ सत्ता ही उनकी एकमात्र विचारधारा है। यही उनका धर्म है और यही उनकी जाति है। उन्होंने सत्ता वर्ग में प्रवेश तत्कालीन कांग्रेस की ड्रेस पहनकर किया था। उसके बाद सत्ता का पेंडुलम तेलगु देशम पार्टी की तरफ झुकता देखकर उन्होंने उसी का झंडा पकड़ लिया था और बाद में उसे भी धकियाकर सत्ता के शीर्ष तक पहुंचने के लिए तेलंगाना राष्ट्र समिति का गठन कर नई पार्टी बना ली थी। अपने पूरे जीवन में दल बदलते हुए उनकी नजऱ हमेशा तेलंगाना के शीर्ष पद पर रही।

इधर उनकी नजऱ उनकी पुरानी पार्टी टी डी पी प्रमुख चंद्रबाबू नायडू की तरह दिल्ली की शीर्ष गद्दी की तरफ बढऩे लगी थी लेकिन उसके पहले ही उनकी जमीन खिसकने से उनके हाथ से चंद्र बाबू नायडू की तरह राज्य की कुर्सी भी चली गई। कमोबेश यही स्थिति तेलंगाना के मुख्यमंत्री की कुर्सी के नए दावेदार प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष रेवंथ रेड्डी की है। उन्होंने सत्ता का पहला पाठ भारतीय जनता पार्टी की छात्र शाखा ए बी वी पी में सीखा था। उसके बाद उनकी इंट्रनशिप भी के चंद्रशेखर राव की टी आर एस और चंदबाबू नायडू की टी डी पी में हुई।

कालांतर में कांग्रेस की तरफ ज्यादा हरी घास देखकर उन्होंने कांग्रेस के पाले में छलांग लगाना बेहतर समझा। जहां तक विचारधारा का प्रश्न है उन्होंने हर राजनीतिक घाट का पानी पीकर यह साबित किया है कि वे सिर्फ और सिर्फ सत्ता वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हैं चाहे उसमें बने रहने के लिए कितने ही दल बदलने पड़ें।

के चंद्रशेखर राव और रेवंथ रेड्डी जैसे लाखों करोड़ों युवा और वरिष्ठ नेता हैं जो पीढ़ी दर पीढ़ी सत्ता वर्ग से नाभिनाल संबद्ध हैं। यह संख्या आज़ादी के बाद से लगातार बढ रही है। अभी इसकी कुल संख्या भले ही सवर्ण समाज की तरह आबादी का एक या दो प्रतिशत ही होगी लेकिन इसके बिना सत्ता और शासन का पत्ता नहीं हिल सकता। इस वर्ग के लिए दार्शनिक लुकाच ने काफी पहले कहा है कि सत्तावर्ग  की कामयाबी का राज यह है कि वह अपनी सोच को सर्वहारा में प्रतिष्ठित करने में कामयाब हो जाता है।

सत्ता वर्ग हमारे समाज का सबसे चालाक वर्ग बन गया है जिसकी तुलना किसी अन्य वर्ग से असंभव है। इस वर्ग में राजाओं सी शानो शौकत है, पूंजीवादियों सी धन संपत्ति की अथाह लालसा है, सवर्णों जैसा अहंकार है और अफसरों जैसी हेकड़ी है। दुर्भाग्य से इस वर्ग के अधिकांश सदस्यों में नैतिक मूल्यों और विचारधारा के प्रति कोई संवेदनशीलता नहीं है। सत्ता और सिर्फ सत्ता ही इनका एकमात्र ध्येय है चाहे इसके लिए अपने गुरुओं, वरिष्ठों, परिजनों और मित्रों के साथ विश्वासघात करना पड़े या लोकतंत्र और संवैधानिक सिद्धांतों को तार तार करना पड़े। सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने के लिए इस वर्ग के लोक किसी भी हद तक जा सकते हैं। संविधान और लोकतंत्र को इस सत्ता वर्ग से ही सबसे बड़ा खतरा है।

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