विचार / लेख

यात्रियों से रूठती रेल
09-Dec-2023 10:24 PM
यात्रियों से रूठती रेल

-विवेकानंद माथने

भारत सरकार धीरे-धीरे गरीबों को रेल से बाहर करने या उनके लिये अलग से रेल चलाने की योजना पर काम कर रही है। ट्रेन में यात्रियों की भीड़ कम करने के लिये साधारण और स्लीपर कोच की संख्या कम करके आम यात्रियों को रेल में यात्रा करने से रोकने का प्रयास होता दिख रहा है। अब आम यात्रियों को एसी का महंगा टिकट खरीदकर ही सफर करना पड़ेगा।

भारतीय रेल में नये बदलावों के तहत मेल, एक्सप्रेस, सुपरफ़ास्ट आदि सभी लंबी दूरी की यात्री ट्रेनों में जनरल और स्लीपर क्लास के कोच कम करके एसी कोच की संख्या बढाई जा रही है। जनरल कोच की संख्या दो तक सीमित की जा रही है, स्लीपर के चार से अधिक कोच कम किये जा रहे हैं और उनकी जगह एसी-3 के चार से अधिक कोच और एसी-2 के एक या दो कोच बढाये जा रहे हैं। नई हाई स्पीड ट्रेनों में केवल एसी कोच की ही व्यवस्था बनाई जा रही है।

यात्री ट्रेनों में एसी-1, एसी-2, एसी-3, स्लीपर क्लास और जनरल क्लास मिलाकर 22 या 24 डिब्बे होते हैं। सामान्यत: जनरल के तीन, स्लीपर के सात, एसी-3 के छह, एसी-2 के दो, एसी-1 का एक, इंजन, गार्ड और पेंट्री कार, कुल 22 डिब्बे होते हैं। उसकी जगह अब जनरल के दो, स्लीपर के दो, एसी-3 के 10, एसी-2 के 4, एसी-1 का एक और इंजिन, गार्ड और पेंट्री कार, कुल 22 डिब्बे रहेंगे।

जनरल कोच में 103 और स्लीपर में 72 सीटें होती हैं। इन डिब्बों में हमेशा क्षमता से ज्यादा भीड़ होती है। स्लीपर कोच में कई यात्री नीचे सोकर सफर करते हैं और जनरल कोच में क्षमता से डेढ़-दो गुना अधिक यात्री सफर करते हैं। एक ट्रेन में 1300 के आसपास सीटें होती हैं, लेकिन अधिकतर ट्रेनों में 3-400 ज्यादा यात्री सफर करते हैं।
एक ट्रेन में जनरल का एक और स्लीपर के पांच कोच कम करके एसी के कोच बढाने का मतलब है कि एक ट्रेन में जनरल के 103 और स्लीपर क्लास के 360, ऐसे कम-से-कम 463 यात्रियों को एसी में सफर करने के लिये मजबूर किया जा रहा है। इससे मजदूर, किसान और विद्यार्थियो को रेलयात्रा मुश्किल हो रही है।

इस बदलाव से यात्रियों की कितनी लूट हो रही है इसका अनुमान लगाने पर बड़ी तस्वीर उभरती है। एसी-3 का किराया स्लीपर क्लास से लगभग ढाई गुना से अधिक होता है और जनरल क्लास से लगभग पांच गुना अधिक होता है। अगर स्लीपर का टिकट 400 रुपये है तो एसी-3 का टिकट 1000 रुपये से अधिक होता है। एक यात्री को 12 घंटे के सफर के लिये 600 रुपये अधिक देने होंगे। एक ट्रेन में 360 स्लीपर कोच यात्रियों को हर दिन कुल दो लाख 16 हजार रुपये ज्यादा देने होंगे और जनरल कोच के यात्रियों को कम-से-कम 82 हजार रुपये ज्यादा देने होंगे।

जाहिर है, एक ट्रेन में जनरल और स्लीपर के कोच की संख्या कम करके कम-से-कम 463 यात्रियों को रेल में यात्रा करने से रोका जा रहा है या महंगा टिकट लेकर सफर करने के लिये मजबूर किया जा रहा है। ऐसे यात्रियों से कुल मिलाकर तीन लाख रुपयों से ज्यादा किराया वसूला जा रहा है। इसके अलावा ‘तत्काल,’ ‘प्रीमियम तत्काल,’ ‘डायनेमिक’ और ‘फ्लेक्सी’ टिकटों के नाम पर भी यात्रियों पर आर्थिक बोझा डाला जा रहा है।

प्रश्न एक ट्रेन का नहीं है। उपलब्ध जानकारी के अनुसार भारत में रोजाना 13,452 यात्री ट्रेनें चलती हैं और 2.4 करोड़ यात्री सफर करते हैं। अगर इस तरह का बदलाव केवल 10 प्रतिशत ट्रेनों में मानकर हिसाब किया जाए तो यात्रियों को हर रोज लगभग 40.4 करोड़ रुपये और हर साल लगभग 14 हजार 730 करोड़ रुपये ज्यादा देने होंगे। प्रत्यक्ष में यह आंकडा अनुमान से कहीं अधिक हो सकता है।

यह रेल विभाग द्वारा आम यात्रियों की लूट है जिसकी सही जानकारी रेल मंत्रालय ही दे सकता है। उसके अनुसार वित्त-वर्ष 2022-23 में उसने 2.40 लाख करोड़ रुपये का रिकॉर्ड राजस्व कमाया है जो पिछले वर्ष से लगभग 49 हजार करोड रुपये अधिक है। केवल यात्रियों से 63,300 करोड़ रुपए का रिकार्ड राजस्व कमाया है जो पिछले वर्ष से लगभग 24,086 करोड़ रुपये से अधिक है।

भारत सरकार ने कुछ साल पहले रेल सुधार की बड़ी-बड़ी घोषणाऐं की थीं। ट्रेन की भीड़, ट्रेन की देरी, ट्रेन की गंदगी, पीने का अस्वच्छ पानी आदि समस्याओं को दूर करके सबको कंफर्म रिजर्वेशन, वेटिंग यात्रियों के लिये दूसरी स्वतंत्र ट्रेन की व्यवस्था, ट्रेन समय पर चलाना, ट्रेन में सफाई आदि के आश्वासन दिये थे, लेकिन इनमें कोई सुधार नहीं हुआ, बल्कि समस्याऐं और यात्रियों की दिक्कतें अधिक बढ गई।

वरिष्ठ नागरिकों की रियायतें खत्म कर दी गई हैं। लंबी दूरी की ट्रेन में टिकट की मांग बढऩे पर ‘डायनेमिक’ या ‘फ्लेक्सी’ किराया लगाकर टिकटों की कीमत बढ़ाई गई है। स्टेशन की भीड़ नियंत्रित करने के नाम पर त्यौहारों पर प्लेटफॉर्म टिकट बढ़ाये जाते हैं। बोतलबंद पानी की बिक्री बढ़ाने के लिये रेल्वे स्टेशन पर नल कम किये गये हैं। स्टेशनों पर उच्चश्रेणी प्रतीक्षालय में रुकने के लिये भी किराया वसूला जाता है। सामान्य यात्रियों के लिये स्वच्छ खाना उपलब्ध कराने के लिये कोई कदम नहीं उठाये गये।

भारतीय रेल में सुधार केवल अमीरों के लिये होते दिख रहे हैं। नये रेल ट्रैक बनाये जा रहे हैं। ‘राजधानी,’ ‘शताब्दी,’ ‘दुरंतो,’ ‘वंदेभारत’ जैसी हाईस्पीड ट्रेनों की संख्या बढ़ाई जा रही है जिनमें केवल एसी कोच ही होंगे। उनका किराया भी ज्यादा होगा। 

अब मेल, एक्स्प्रेस, सुपरफास्ट ट्रेन में साधारण यात्रियों के लिये कोई स्थान नहीं होगा। उनकी दिक्कतें बढऩे पर रेल विभाग अलग से साधारण ट्रेन चलाने की बात कर रहा है। अगर ऐसा होता है तो यात्रियों की लूट के साथ-साथ यह समाज में आर्थिक और सामाजिक आधार पर भेदभाव करना होगा।

भारतीय रेल्वे सुधार के नाम पर आम लोगों को लूटकर अमीरों को सुविधाऐं पहुंचा रही है। स्पष्ट है, सरकार देश के गरीबों को रेल में सफर करने से रोकना चाहती है या उन्हें रेल से बाहर करना चाहती है। अब वह रेल में भी अमीरों और गरीबों में भेदभाव करना चाहती है। सरकार भले ही इंकार करे, लेकिन वह रेल को निजी हाथों में सौपने की दिशा में आगे बढ़ रही है। (सप्रेस)

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