विचार / लेख
चैतन्य नागर
ग़ालिब का एक मशहूर शेर है: क्यों न चीखूँ के याद करते हैं, मेरी आवाज़ गर नहीं आती। ग़ालिब इसलिए चीखने के हिमायती थे क्योंकि उनकी आवाज़ न सुनाई दे तो माशूका याद करने लगती थी। इसलिए मशहूर शायर, उस्तादों के उस्ताद, मिर्जा ग़ालिब सोचते थे कि यही बेहतर है कि वह चीखते रहें। उन्हें बर्दाश्त नहीं था कि उनकी माशूका उन्हें याद करे, उन्हें ढूंढें और परेशान हो कि भला ग़ालिब की आवाज़ क्यों नहीं आ रही।
नॉर्वे के पेंटर एडवर्ड मुंच ने भी चीख ‘बनाई’। कैनवस पर। उनकी स्क्रीम (चीख) नाम की पेंटिंग 2012 में एक करोड़ बीस लाख डॉलर में बिकी। उनकी ‘चीख’ पश्चिमी सभ्यता की चीख है। एक हताश, कुंठित, आक्रोश और क्रोध से भरी मानवता की चीख। पेंटिंग में एक लडक़ी पुल पर खडी है और चीख रही है। समूची मानवता की तरफ से चीख रही है। संगीत में भी कुछ ऐसी विधाएं हैं जिनमें चीखें अधिक और संगीत कम होती हैं। अक्सर युवा पीढी को यह पसंद आता है। हेवी मेटल ऐसा ही संगीत है जिसके लाखों किशोर दीवाने हैं। यदि कोशिश करके सुन सकें और कुछ समझ सकें तो देखिएगा कभी। इस विधा में गायक की आवाज़ और संगीत चीखने में एक दूसरे को मात देने की कोशिश करते हैं। कोई किसी को मात दे या नहीं, हमारे जैसे श्रोता तो बुरी तरह पराजित हो जाते हैं इस तरह के संगीत को समझने में ही।
चीख का अपना मनोविज्ञान है और न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी में प्रो डेविड पोपेल ने इसका अध्ययन भी किया है। उन्होंने कई तरह की चीखों का संकलन किया है और सामान्य बातचीत की तुलना में मस्तिष्क पर चीख की ध्वनि के असर की जांच की है। मस्तिष्क सामान्य ध्वनि और चीख का प्रसंस्करण या प्रोसेसिंग अलग अलग तरीके से करता है। मस्तिष्क उसे अपने उसी इलाके में प्रोसेस करता है जिसमे वह भय को प्रोसेस करता है। उसके लिए चीख भय का प्रतीक होती है। क्योंकि शुरू से ही इंसान आम तौर पर भय की वजह से चीखता आया है। भय के अलावा और भी भावनाएं हैं जिनके असर में इंसान चीखता है। वह दर्द, आनंद, आश्चर्य, किसी आसन्न खतरे और कभी-कभी अंतरंगता के क्षणों में भी चीखता है! इंसान के जीवित होने का सबसे पहला सबूत होती है चीख। जैसे ही बच्चा पैदा होता है, सबसे पहले वह चीखता है। न चीखे तो डॉक्टर और माता-पिता दोनों परेशान होते हैं। कोशिश करते हैं कि वह जल्दी से जल्दी चीख कर अपने जीवित और स्वस्थ रहने का सबूत दे। गौर से देखें तो पता चलेगा कि एक चीख शरीर के विभिन्न हिस्सों और मस्तिष्क की अलग-अलग इलाकों के बहुत ही अनुशासित मिले-जुले ऑर्केस्ट्रा से जन्म लेती है। बहुत कुछ छिपा होता है इसमें। भले ही इसका प्रतिनिधित्व करने वाला शब्द नन्हा सा हो। गलती करने वाले अक्सर पकडे जाने के डर से खूब चिल्लाते हैं। बंगला भाषा में एक कहावत भी है: ‘चोरेर मायेर बोड़ो गॉला’, यानी चोर की मां बहुत तेज चीखती है, यह साबित करने के लिए कि उसके बेटे ने चोरी नहीं की है! इंसानों के अलावा पशुओं में भी चीखना सामान्य बात है। बन्दर के एक बच्चे को पकड़ कर देखें। उनका पूरा कुनबा आपको घेर कर चीखने लगेगा। ऐसा ही कौवे भी करते हैं। गलती से आप किसी कौवे को पिंजरे में बंद करने में सफल हो गए, तो उनकी समूची दुनिया आपको घेर कर इतना कांव कांव करेगी कि आपका जीना हराम हो जायेगा।
इंसान चीखते समय अजीबो-गरीब चेहरे भी बनाते हैं। चेहरे की कई मांसपेशियां चीखने के काम में लगती हैं और आपको यह जान कर ताज्जुब होगा कि ये मांसपेशियां दुनिया के हर इंसान के पास नहीं होतीं। चीखते समय कुछ लोगों के गले की नसें तन जाती हैं। उन्हें देख कर लगता है कि उन्हें कितनी तकलीफ हो रही होगी इतनी ज़ोर से चीखने में। पर ऐसा उनके लिए स्वाभाविक होता है। अपनी बातें कहने के लिए और दूर तक पहुँचाने के लिए उन्हें चीखना जरूरी लगता है। वे खुद तकलीफ में हों भी तो दूसरों को तकलीफ में डालने के लिए अपनी तकलीफ को या तो भुला देते हैं या उसे झेल जाते हैं।
अब आप सोच सकते हैं कि चीख के बारे में इतना अधिक क्यों कहा जा रहा है। कल ही लोक सभा से एक विख्यात महिला सांसद का निष्कासन हुआ है। उन्हें चीखते देख आप भी चीखने की कला और विज्ञानं के बारे में जानने के लिए बहुत उत्सुक हो सकते हैं। मोहुआ मोइत्रा जिस राजनीतिक पार्टी से संबंधित हैं उसकी प्रमुख नेत्री भी चीखने की कला में माहिर हैं। महुआ ने इस कला को और ऊंचे स्तर तक ले जाने में कामयाबी हासिल की है। जब वह चीखती हैं तो उनके गले की नसें बुरी तरह तन जाती हैं और यदि आप गौर करें तो जैसे उनके होंठ, आँखे और आवाज़ सभी एक साथ परन्तु अलग अलग दिशा में चीखते हैं। ऐसा लगता है कि मोहुआ समूचे ब्रह्माण्ड को संबोधित कर रही हैं और पञ्च तत्व, जड़-चेतन सभी तक अपनी ध्वनि को पहुँचाना चाहती हैं। सभी से भाजपा की शिकायत कर रही हैं और गुहार कर रही हैं कि कोई तो उनकी सुने।
टीएमसी नेत्री चीखते समय बहुत क्रोध में दिखती हैं। स्वयं को दुर्गा और काली भी बताने लगती हैं मानों दानवों की सेना को भयभीत कर देना चाहती हों। आम तौर पर महिलाओं से उनके उम्र पूछना तहजीब के खिलाफ माना जाता है, पर मोहतरमा तो गुस्से में अपनी उम्र खुद ही बता देती हैं। नेताओं में अकेली मोहुआ मोइत्रा ही नहीं चीखतीं, ऐसे कई नेता हैं जो सोचते हैं कि धीमी आवाज़ में बोलना कोई बोलना ही नहीं। पता नहीं वे अपने घरों में अपने बीवी, पति या बच्चों से कैसे बातें करते होंगे। क्योंकि आदत तो बन गई है चिल्लाने की। ऐसे में चीख का कोई स्विच तो होता नहीं कि जब चाहे ऑफ या ऑन कर दें। कुछ नेता तो ऐसे हैं कि वह मुंह सिल कर रखें तो भी उनकी चीख सुनाई देती है। उनकी मौजूदगी ही एक चीख है।
चीखने-चिल्लाने से यह साबित नहीं होता कि आप सच बोल रहे हैं। न ही अंग्रेजी में चीखने से आपका सही होना साबित होता है। ठीक है, यह भी साबित नहीं होता कि आप गलत या झूठ बोल रहे हैं। सवाल सिर्फ यही है कि आप जो कुछ भी कहना चाहते हैं वह संजीदगी के साथ कह सकते हैं। आवाज़ धीमी कर सकते हैं। हो सकता है चीखना आपकी आदत हो। तेज़ आवाज़ के जरिये आप अपनी पॉवर दर्शाना चाहते हों। पर इससे आप मज़ाक का पात्र भी बन जाते हैं। देर-सवेर लोग आपको चीखने वाले इंसान के रूप में पहचानने लगते हैं। कई राजनेताओं को यह सीखना चाहते। नेता एक टीचर भी होता है। लोग उनका अनुकरण भी करते हैं। रोल मॉडल होते हैं कई लोगों के लिए।