विचार / लेख
विष्णु नागर
एक शायर हुआ करते थे-शौक बहराइची।उनका एक शेर बहुत मशहूर है। लोग, शेर को तो बहुत जानते हैं मगर शौक बहराइची को लगभग नहीं। वह 1964 में इंतकाल फरमा गए थे, इसलिए उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि लोग उन्हें नहीं ,उनके एक शेर को जानते हैं और बहुत अधिक जानते हैं।यह शेर एक मुहावरा बन चुका है-
बर्बाद गुलिस्तां करने को
बस एक ही उल्लू काफी था
हर शाख पे उल्लू बैठा है
अंजाम ए गुलिस्तां क्या होगा।
हर शाख पे उल्लू उनके समय तक बैठ चुके थे मगर गुलिस्तां बचा हुआ था।डर था कि ये
बर्बाद हो जाएगा और समय के साथ उनका डर सच साबित हुआ।वे भविष्यदृष्टा साबित हुए।
तब इतने सारे उल्लूओं के बावजूद पाकगुलिस्तां बचा हुआ था क्योंकि तब शौक बहराइची जैसे शायर थे, आलादर्जे के इंटेलेक्चुअल, राइटर-पेंटर, फिल्म बनानेवाले, भविष्य के बारे में फिक्रमंद कलाकार हुआ करते थे। नेता, तब नेता हुआ करते थे, इंवेट मैनेजर नहीं, इसलिए एक शायर की चेतावनी के बाद कड़ा एक्शन लिया गया। गुलिस्तां बच गया, हालांकि उल्लू कभी अपने मकसद को भूले नहीं।वे आते-जाते रहे।मौके की ताक में बैठे रहे।हर शाख पर बैठे, गुलिस्तां को थोड़ा -थोड़ा बर्बाद करते रहे, पूरा उजाडऩे के अवसर का धीरज से इंतजार करते रहे! और उनका सुनहरा वक्त भी आ गया, उनके अच्छे दिन भी आ गए। उल्लुओं ने पूरा गुलिस्तां बर्बाद करके दिखा दिया। इतना ज्यादा बर्बाद किया कि स्यापा करने के लिए भी कुछ नहीं छोड़ा।न लोग ऐसे बचे थे कि कुछ कर सकें,उल्लुओं से इतना तक कह सकें कि महाराज अब तो आप अपना काम कर चुके न!अब तो खुश हैं न,तो अब पधार जाइए, चाहें तो हमसे धन्यवाद भी लेते जाइए। बर्बाद गुलिस्तां की हर शाख पर बैठ कर भी अब तुम्हें मिलेगा क्या?बाबाजी का ठुल्लू?
उल्लू चुप रहे, बैठे रहे!उल्लुओं ने कोई जवाब नहीं दिया।
पता चला कि वे यहां इसलिए बैठे हैं कि अपनी इस उपलब्धि पर गर्व कर सकें।यह कह सकें - गर्व से कहो , हम उल्लू हैं।दुनिया को दिखा सकें कि यह गुलिस्तां हमने उजाड़ा है, यह ऐतिहासिक और महान काम हमने किया है।हम बहादुर हैं, हम जैसा बहादुर पिछले सत्तर सालों में कोई नहीं हुआ!हमें सम्मान दो, इज्जत दो।अपना भविष्य हमें सौंप दो!
शायर तो कह गया था कि एक ही उल्लू पूरे गुलिस्तां को बर्बाद करने के लिए काफी है मगर यहां तो अनगिनत थे।हर शाख पर बैठे थे। सब एक से बढक़र एक थे! अकेला बेचारा बर्बाद कर करके थक जाएगा , यह सोचकर इन सबने मिलकर ठानी थी कि अकेले पर बोझ बहुत न पड़ जाए, इसे हम-सब मिलकर हल्का करना चाहिए। असली मकसद यह था कि बर्बादी का सारा श्रेय एक अकेला उल्लू लूट न ले जाए, वह बोम न मारे कि गुलिस्तां उजाडऩे का यह काम, अकेले उसने किया है!
वे इसलिए भी बैठे रहे कि उन्हें शंका थी कि गुलिस्तां को फिर से गुलिस्तां बनाने को आतुर बहुत से लोग आसपास दिखाई दे रहे हैं।वे गुलिस्तां को फिर से गुलिस्तां बनाने के लिए बैठे हैं, बैठे रहे , इंतजार करते रहे।उल्लुओं की एकता के आगे उनकी एक न चली!