विचार / लेख
सलमान रावी
बुधवार को मध्य प्रदेश में मोहन यादव की बतौर मुख्यमंत्री ताजपोशी हो गई और सबसे लंबे कार्यकाल वाले मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान की विदाई। लगभग 18 सालों के बाद उनके कार्यकाल का ये अंत था।
हालांकि 2018 में वो इस पद से तब हटे थे, जब कांग्रेस की सरकार बनी थी, लेकिन 2020 में उन्होंने फिर से बागडोर संभाल ली थी।
शपथ ग्रहण समारोह के अगले दिन यानी गुरुवार को शिवराज सिंह चौहान ही चर्चा का विषय बने रहे। कारण था, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर उनका बायो।
पहले उसपर लिखा था, ‘मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री’। लेकिन गुरुवार को उन्होंने उसे बदल दिया। अब उनके बायो में लिखा है ‘भाई और मामा’ ‘मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री’।
शपथ ग्रहण समारोह से एक दिन पहले उन्होंने कार्यकर्ताओं से बात करते हुए कबीर के भजन का एक अंश पढ़ कर सुनाया और कहा, ‘जस की तस धर दीन्ही चदरिया’।
जानकार कहते हैं कि वो ये कहना चाह रहे होंगे कि जिस तरह से उन्हें राज काज मिला था, उसी तरह उन्होंने उसे लौटा भी दिया।
मगर सबसे ज़्यादा चर्चा में उनका वो बयान आया जो उन्होंने विदाई से पहले मुख्यमंत्री आवास में आयोजित अपनी आखिरी प्रेस वार्ता के दौरान दिया था।
पत्रकारों द्वारा उनसे पूछा गया था कि ‘जब मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के सभी दिग्गज दिल्ली के चक्कर काट रहे थे और वहां पर जमे रहे ऐसे में उनके दिल्ली न जाने को क्या समझा जाए?
इस पर उनका जवाब था, ‘अपने लिए कुछ मांगने जाने से बेहतर मैं मरना पसंद करूंगा। वह मेरा काम नहीं है। इसलिए मैंने कहा था, मैं दिल्ली नहीं जाऊंगा।’
‘राजनीतिक अज्ञातवास’ की दस्तक
उससे भी पहले यानी परिणामों के अगले दिन वो राघोगढ़ में कार्यकर्ताओं और मतदाताओं की एक सभा को संबोधित कर रहे थे।
तब उन्होंने जो कहा था उससे साफ़ हो गया था कि उन्हें ‘राजनीतिक अज्ञातवास’ की दस्तक सुनाई देने लगी है।
उन्होंने कहा था, ‘मामा और भैया से बड़ा कोई पद नहीं है। मेरे भांजे-भांजियों, मुझे लगता है हर एक को कैसे मैं सीने से लगाऊं। माथा चूमूँ। उनको प्यार करूँ और उनकी जि़ंदगी कैसे बेहतर बना पाऊं।’
‘24 घंटे केवल एक ही सोच दिमाग़ में रहती है। ये अपना परिवार है। मामा और भैया का जो पद है, वो दुनिया में किसी भी पद से बड़ा पद है, इससे बड़ा पद कोई नहीं है।’
राजनीतिक ढलान का वक्त?
बात इस साल 21 अगस्त की है, जब बीजेपी के वरिष्ठ नेता और गृह मंत्री अमित शाह भोपाल के दौरे पर आए हुए थे। इस दौरान उन्होंने शिवराज सरकार का ‘रिपोर्ट कार्ड’ भी जारी किया।
इस आयोजन के दौरान पत्रकारों से हुई बातचीत में जब उनसे पूछा गया कि आगामी विधानसभा चुनावों में भारतीय जनता पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री का चेहरा कौन होगा?
अमित शाह ने इसके जवाब में जो कहा उसके बाद से ही अटकलें लगाई जाने लगीं कि क्या शिवराज सिंह चौहान की राजनीति अब ढलान पर है?
अमित शाह ने कहा था, ‘शिवराज जी अभी मुख्यमंत्री हैं ही। चुनाव के बाद मुख्यमंत्री कौन होगा, ये पार्टी का काम है और पार्टी ही तय करेगी।’
बस यहीं से संकेत मिलने लगे थे कि भारतीय जनता पार्टी मध्य प्रदेश में अब तक के सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहने वाले शिवराज सिंह चौहान का विकल्प ढूंढ रही है।
वरिष्ठ पत्रकार रवि दूबे मानते हैं कि उम्मीदवारों की पहले की तीन सूचियों में शिवराज सिंह चौहान का नाम नहीं आया था।
उनका नाम चौथी लिस्ट में आया और उन्हें अपने गृह क्षेत्र बुधनी से उम्मीदवार बनाया गया था।
प्रचार के दौरान वो अपने द्वारा महिलाओं को केंद्रित कर शुरू की गई योजना को लेकर ज़ोर शोर से प्रचार में लग गए थे।
पोस्टरों से गायब चौहान
वरिष्ठ पत्रकार रवि दूबे कहते हैं, ‘उनको भी संकेत मिलने लगे थे कि उन्हें बेशक आखरी क्षणों में उम्मीदवार बनाया गया हो, लेकिन वो मुख्यमंत्री तो किसी क़ीमत पर दोबारा नहीं बनेंगे।’
‘इसलिए अपनी सभाओं में वो लोगों और ख़ास तौर पर उन्हें सुनने आईं, उनके चुनावी क्षेत्र की महिलाओं से सवाल पूछते थे, ‘मैं चुनाव लड़ूं या नहीं लड़ूं? या मैं मुख्यमंत्री फिर से बनूँ या नहीं?’
दूबे कहते हैं, ‘एक बार तो बुधनी विधानसभा क्षेत्र की एक सभा में वो भावुक हो गए और उन्होंने कहा- मैं चला जाऊंगा तो बहुत याद आऊँगा।’
दूबे की तरह कुछ एक राजनीतिक विश्लेषकों को लगता है कि शिवराज सिंह चौहान को ऐसा नहीं कहना चाहिए था।
लेकिन जो घटना भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के संज्ञान में आई, वो थी 13 दिसम्बर को आयोजित शपथ ग्रहण समारोह की, जिसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा के अलावा कई भाजपा शासित राज्यों के मुख्यमंत्री मौजूद थे।
इस समारोह में जब शिवराज सिंह चौहान आए तो उनके समर्थकों ने ‘मामा मामा’ के नारे लगाने शुरू कर दिए।
इसका असर मध्य प्रदेश में अधिकांश जगहों में देखने को मिलने लगा है, जब शिवराज सिंह चौहान का नाम और चेहरा भाजपा के पोस्टरों से ग़ायब हो गया।
कुछ पोस्टरों में प्रदेश के हारे हुए गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा की तस्वीरें हैं। लेकिन चौहान की नहीं।
उतावलापन या इंतज़ार
‘दैनिक सांध्य प्रकाश’ के सम्पादक संजय सक्सेना को लगता है कि शिवराज सिंह चौहान ने अगर उतावलापन प्रकट किया तो ये उनके राजनीतिक भविष्य के लिए एक अड़चन के रूप में भी आ सकता है।
इसलिए वो मानते हैं कि सबसे बेहतर यही होगा कि वो कुछ समय के लिए नियति से समझौता कर लें और संगठन के फैसले का इंतज़ार करें कि उन्हें क्या जि़म्मेदारी सौंपी जा रही है।
उनका कहना है, ‘उनके सलाहकारों को भी चाहिए कि वो कुछ दिन अवकाश ले लें और अनावश्यक सलाह न दें या उनकी तरफ़ से सोशल मीडिया पर अनावश्यक पोस्ट ना डालें। ये दौर उनके लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि इसी समय तय हो जाएगा कि उनका भविष्य क्या होने वाला है।’
मगर कई वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक ऐसे हैं जिन्हें लगता है कि शिवराज सिंह चौहान को बड़ी जि़म्मेदारी दी जा सकती है।
इनमे से एक हैं रमेश शर्मा जिन्होंने सत्तर के दशक से अविभाजित मध्य प्रदेश में पत्रकारिता की है। शर्मा ने भाजपा के कई बड़े नेताओं का शीर्ष काल भी देखा है और उनका ढलान भी।
शिवराज सिंह के लिए दो संभावनाएं
रमेश शर्मा दो संभावनाओं की चर्चा करते हुए कहते हैं कि या तो शिवराज सिंह चौहान को केंद्रीय मंत्रिमंडल में जगह मिल सकती है क्योंकि अभी तीन से चार केंद्रीय मंत्रियों के इस्तीफ़े भी हो चुके हैं।
इनमें मध्य प्रदेश के ही कद्दावर नेता और केंद्रीय कृषि मंत्री रहे नरेंद्र सिंह तोमर हैं जिन्हें अब विधानसभा का अध्यक्ष बनाया गया है। हालांकि केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा को उनके मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया है, मगर संभावना है कि ये मंत्रालय शिवराज को देकर उन्हें केंद्र की राजनीति में बुलाया जा सकता है।
शर्मा के अनुसार, ‘कुछ बड़े नेता जैसे कैलाश विजयवर्गीय बेशक इसे नकारते हों लेकिन छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भारतीय जनता पार्टी ने इन्हीं के जैसी योजनाओं को अपने घोषणा पत्र में शामिल किया है।’
‘जैसे छत्तीसगढ़ में ‘महतारी वंदना योजना’ और राजस्थान में ‘माता वंदना योजना।’ इन योजनाओं का अनुसरण मध्य प्रदेश में शिवराज सिंह चौहान द्वारा शुरू की गई योजनाओं से किया गया है।’
वो कहते हैं कि हो सकता है कि लोकसभा के चुनावों के लिए उनकी ऐसी भूमिका तय की जाए ताकि वो राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में लोकसभा की सीटें जीतने के लिए अपने हिसाब से लोगों के बीच जाएं।
‘उमा भारती से अलग हैं शिवराज’
जहां तक बात शिवराज सिंह की आखऱी पत्रकार वार्ता में उनके बयान को लेकर उठे सवाल की है तो विश्लेषक कहते हैं कि मीडिया में सिफऱ् उसका छोटा हिस्सा ही वायरल हुआ जबकि उन्होंने आगे भी काफ़ी कुछ कहा था। जैसे उन्होंने कहा, ‘मैं आज साफ़ कर रहा हूँ कि एक साधारण कार्यकर्ता को 18 साल मुख्यमंत्री बनाकर रखा भारतीय जनता पार्टी ने। पार्टी ने सब कुछ दिया। अब मुझे भारतीय जनता पार्टी को देने का वक़्त आ गया है।’
रमेश शर्मा कहते हैं कि जो बाद के दिनों में पार्टी ने उम्मीदवारों की सूची जारी की थी उसमें ज़्यादातर उम्मीदवारों के नाम शिवराज सिंह चौहान ने ही तय किये थे।
इसलिए उनका मानना है कि शिवराज अब भी महत्वपूर्ण भूमिका में ही रहेंगे और उनका हश्र वैसा नहीं होगा जैसा उमा भारती का हुआ था।
वरिष्ठ पत्रकार रवि दूबे कहते हैं कि उमा भारती की ग़लती ये थी कि उन्होंने ख़ुद को संगठन से ऊंचा समझा था और बग़ावत के तेवर ही अपने रखे थे।
उन्होंने अलग पार्टी ‘भारतीय जनशक्ति पार्टी’ बना ली थी, लेकिन उन्हें वापस भाजपा में लौटना पड़ा।
दूबे के अनुसार, ‘लेकिन शिवराज सिंह चौहान का व्यक्तित्व ठीक उलट हैं। वो अपने आपको सहज और विनम्र व्यक्तित्व वाले नेता के रूप में ही प्रस्तुत करते आए हैं और लोकप्रिय भी हैं।
‘इसलिए उन्हें किनारे बैठाने की कोई ज़रूरत भी पार्टी को नहीं होगी। उन्होंने अपनी उपयोगिता बनायी रखी है।’(bbc.com/hindi)