विचार / लेख
-जगदीश्वर चतुर्वेदी
मुरारी बापू और बाबा रामदेव में बुनियादी अंतर है। मोरारी बापू कथा कहते हैं।कथा के बहाने व्यापार नहीं करते। वे जो कथा कहते हैं उसका पारिश्रमिक लेते हैं। अपनी रचनाओं को बेचते हैं, यह उनका एक परंपरागत बुद्धिजीवी के नाते सही काम है। लेकिन बाबा रामदेव तो योग के बहाने औषधी उद्योग चला रहे हैं। योग को राजनीतिक प्रचार का मंच और माध्यम के रूप में इस्तेमाल कर रहे हैं। संतई में राजनीतिक घालमेल यानी साम्प्रदायिक विचारधारा का प्रचार- प्रसार कर रहे हैं। जबकि मुरारी बापू सीधे परंपरागत पाठ और सम-सामयिक उदात्त जीवन मूल्यों की बातें कहते हैं।
सामान्य तौर पर हमारे बौद्धिक जगत का भारतीय ज्ञान और आख्यान परंपरा से कम संबंध है और उनको वह कम जानता है। मोरारी बापू जैसे संतों का महत्व यह नहीं है कि उनके पास कितना बड़ा एम्पायर है, कितनी दौलत है, कितने राजनेता उनकी चरण वंदना करते हैं। ये चीजें गौण महत्व की हैं। काम की बात है आज के आम आदमी के लिए सटीक संदेश। मुरारी बापू ने एक कथा में महात्मा बुद्ध के हवाले से कहा - ‘कभी किसी के प्रभाव में नहीं जीना, अपने प्रभाव में जीना। सत्य जहाँ से मिले ले लो, पर किसी से प्रभावित नहीं होना।’
मुरारी बापू की कथा में अनेक ऐसी बातें आती हैं जो समानतावादी और विवेकपूर्ण विमर्श को बढ़ावा देती हैं। कायदे से मोरारी बापू को मास कल्चर के अंग के रूप में पढ़ें, वे मास कल्चर के अंग के रूप में भारतीय पाठ बना रहे हैं। मुरारी बापू का मानना है विवेक चार प्रकार से मिलता है-
1) एक मांगने से मिलता है। फिऱ वो कृपा करे तो।
2) मंथन से मिलता है। खुद के चिंतन से।
3) सत्संग करने से।
4) हमारा गुरु बिन बोले हमें विवेक प्रदान करता है।
मुरारी बापू ने बाबा कयामुद्दीन द्वारा 325 वर्ष पूर्व भारतीय वेदांत और कुरान का समन्वय करते हुए लिखी गई पुस्तक ‘नूर-ए-रोशन’ का लोकार्पण करते हुए कहा कि देश में लोकसभा, राज्यसभा और विधानसभा की तर्ज पर एक 'सद्भावना सभा' भी होना चाहिए। जहाँ देश के बुद्धिजीवी, संत और विद्वान बैठकर देश की समस्याओं पर चिंतन कर सके।
मुरारी बापू ने कुँअर बाराबँकी के शेर में अपनी बात यों कही-
न हारा है इश्क़ न दुनिया थकी है,
दिया जल रहा है और हवा चल रही है।
वो जहाँ भी रहेगा रोशनी फैलाएगा,
चिरागों का कोई मकाँ नहीं होता।
तसबी छोड़ दी मैंने इस खयाल से,
गिनकर नाम क्या लेना, वो तो बेहिसाब देता है।
मुरारी बापू ने भी अपने उद्बोधन में एक घटना सुनाते हुए कहा कि बरसों पहले जब मैं ऋषिकेश में अकेला रहता था और प्रतिदिन यज्ञ करता था तो यज्ञ समाप्त होने के बाद देर रात एक बजे गंगा नदी पार कर एक सूफी फकीर बाद यज्ञ की वेदी पर आता था। ये सिलसिला सात दिन तक चलता रहा। एक दिन मैंने उससे पूछा कि तुम इतनी रात को यज्ञ की वेदी के पास आकर क्यों बैठते हो, तो उसने कहा, मैं एक मुसलमान फकीर हूँ और कहीं मेरी वजह से हिन्दू लोग नाराज नहीं हो जाए इसलिए रात के अंधेरे में आकर इस पवित्र अग्नि के पास आकर बैठता हूँ। मुरारी बापू ने कहा कि इसके बाद हम दोनों देर रात को अकेले ही चुपचाप यज्ञ की वेदी पर बैठे रहते थे, कभी हमने कोई बात नहीं की, मगर ऐसा लगता है कि उस सूफी फकीर ने मुझ पर अपनी सारी करुणा बरसा दी और मैं आज तक उसमें भीगा हुआ हूँ।
मुझे मुरारी बापू की निम्नलिखित तीन बातें पसंद हैं- वे कहते हैं-
हमारे देश में तीन वस्तु आदमी को आदर के साथ मिलनी चाहिए :
- आगम/ शिक्षण: सबको शिक्षा मिलनी चाहिए।
- सबको अन्न मिलना चाहिए; कोई आदमी भूखा नहीं रहना चाहिए, बच्चे तो खासतौर पर।
- आदमी को आदर के साथ आरोग्य प्राप्त होना चाहिए।