विचार / लेख
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दिलनवाज पाशा
नई दिल्ली में ‘इंडिया’ गठबंधन की बैठक में किसी नेता को आधिकारिक रूप से प्रधानमंत्री का चेहरा नहीं घोषित किया गया।
मगर आम आदमी पार्टी के सांसद राघव चड्ढा ने मीडिया से कहा- ममता बनर्जी ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े के नाम को प्रस्तावित किया और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने इस नाम का समर्थन किया।
‘इंडिया’ गठबंधन के दो बड़े नेताओं की तरफ़ से मल्लिकार्जुन खडग़े का नाम आगे करने के बाद ये सवाल उठ रहा है कि क्या मल्लिकार्जुन खडग़े प्रधानमंत्री पद के लिए नरेंद्र मोदी के चेहरे को चुनौती दे पाएंगे?
ये सवाल भी है कि क्या 'इंडिया' गठबंधन और कांग्रेस को मल्लिकार्जुन खडग़े का नाम स्वीकार होगा।
82 साल के मल्लिकार्जुन खडग़े एक दलित नेता हैं और पिछले 55 सालों से भारत की राजनीति में सक्रिय हैं।
खडग़े के बारे में कुछ बातें
साधारण परिवार से आने वाले खडग़े मूलरूप से कर्नाटक के हैं
1969 में गुलबर्गा शहर में कांग्रेस समिति के अध्यक्ष बने थे
कर्नाटक में लंबे समय तक विधायक रहे और दो बार सांसद भी चुने गए
पिछले सात-आठ साल से दिल्ली की राजनीति में ही सक्रिय हैं
लंबे राजनीतिक सफर में सिर्फ एक बार 2019 के लोकसभा चुनाव में हार मिली
2021 से खडग़े राज्यसभा में विपक्ष के नेता भी हैं
इंडिया गठबंधन का दलित कार्ड?
भारतीय लोकतंत्र के अभी तक के इतिहास में कोई दलित नेता प्रधानमंत्री पद तक नहीं पहुंचा है। ऐसे में विश्लेषक मान रहे हैं कि खडग़े का नाम आगे करके विपक्ष ने दलित कार्ड खेला है।
भारत में आबादी का जातिगत आंकड़ा नहीं है, हालांकि अनुमानों के मुताबिक भारत में कऱीब 25 फीसदी दलित हैं।
खडग़े नाम आगे करने की वजह के बारे में वरिष्ठ पत्रकार विजय त्रिवेदी कहते हैं, ''मल्लिकार्जुन खडग़े दलित नेता हैं। मौजूदा राजनीति में मोदी एनडीए की तरफ से एक ओबीसी चेहरा हैं, इंडिया गठबंधन की तरफ़ से नीतीश कुमार एक ओबीसी चेहरा हो सकते थे लेकिन इंडिया गठबंधन को समझ में आया है कि नीतीश कुमार के लिए ओबीसी चेहरे के रूप में मोदी का मुक़ाबला करना आसान नहीं होगा, इसलिए अब एक नया दलित कार्ड खेला गया है क्योंकि अभी तक भारत में कोई दलित प्रधानमंत्री नहीं बना है। खडग़े को चेहरा घोषित करके इंडिया गठबंधन चुनावों को रोचक बना सकता है।’
वहीं वरिष्ठ पत्रकार हेमंत अत्री मानते हैं कि मल्लिकार्जुन खडग़े का नाम आगे करके इंडिया गठबंधन ने आगामी लोकसभा चुनाव को रोचक और बीजेपी के लिए चुनौतीपूर्ण बना दिया है।
हेमंत अत्री कहते हैं, ‘मल्लिकार्जुन खडग़े देश के बड़े दलित नेता हैं। भारतीय राजनीति में अभी तक कोई दलित प्रधानमंत्री नहीं हुआ है। देश में दलितों की बड़ी आबादी है। अगर इन समीकरणों को ध्यान में रखकर देखा जाए तो मल्लिकार्जुन खडग़े आगामी चुनाव को रोचक बना सकते हैं। ’
आंकड़े क्या कहते हैं
भारत में दलित आरक्षण वाली 84 सीटें
बीजेपी के पास हैं 46 सीटें
इन सीटों पर 40 प्रतिशत वोट बीजेपी को मिला
कांग्रेस के पास इन 84 में से सिफऱ् 5 सीटें हैं
यूपी में दलितों के लिए 17 सीटें आरक्षित
इनमें से बीजेपी के पास 15 सीटें, बीएसपी के पास दो, कांग्रेस के पास कोई सीट नहीं
ऐसे में सवाल उठता है कि अगर मल्लिकार्जुन खडग़े को इंडिया गठबंधन विपक्ष का चेहरा बना भी लेते हैं तो क्या दलित वोट इंडिया गठबंधन के साथ जाएगा?
विजय त्रिवेदी कहते हैं, ‘बीजेपी इससे पहले ही रामनाथ कोविंद को राष्ट्रपति बनाकर दलित कार्ड खेल चुकी है और इसका बड़ा फायदा उठा चुकी है। ओबीसी के बाद दलित वोटर भी बीजेपी के साथ बड़ी तादाद में जुड़े हैं। ज़मीनी स्तर पर आज कांग्रेस बहुत कमज़ोर है। विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को ज़रूर दलितों का भी वोट मिला है, लेकिन बीजेपी की तुलना में इस समीकरण में कांग्रेस अभी बहुत कमज़ोर है। सिर्फ खडग़े को चेहरा बनाकर मोदी का मुक़ाबला नहीं किया जा सकता। ये कोई तुरुप का इक्का नहीं होगा, बस लड़ाई रोचक हो जाएगी।’
त्रिवेदी कहते हैं, ‘इंडिया गठबंधन मोदी के ख़िलाफ़ चेहरा और मुद्दे तलाश रहा है और अभी तक गठबंधन को कोई बड़ी कामयाबी नहीं मिली है।’
इंडिया गठबंधन की अंदरूनी राजनीति
इंडिया गठबंधन में कई बड़े नेता हैं जो स्वयं में क्षत्रप हैं और अपने आप को गठबंधन के अगुआ के रूप में देख रहे हैं।
ऐसे नेताओं के बीच किसी ऐसे नेता का नाम आगे करना जो सबके स्वीकार्य हो, गठबंधन के लिए एक चुनौती हो सकता था।
हालांकि विश्लेषक मानते हैं कि गठबंधन के भीतर कई नेता गांधी परिवार या राहुल गांधी के साथ इतने सहज नहीं हो सकते जितने वो मल्लिकार्जुन खडग़े के साथ हो सकते हैं।
विजय त्रिवेदी कहते हैं, ‘ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल गांधी परिवार से एक दूरी बनाये रखना चाहते हैं, वो राहुल गांधी को अपने नेता की तरह नहीं पेश करना चाहते इसलिए भी मल्लिकार्जुन खडग़े का नाम एक नया रास्ता था। यानी इस लड़ाई में राहुल गांधी नहीं होंगे। ऐसा करके इंडिया गठबंधन की अंदरूनी राजनीति को साझा गया है।’
कांग्रेस का एक बड़ा वर्ग राहुल गांधी को आगामी चुनावों में प्रधानमंत्री चेहरे के रूप में पेश कर रहा था। हालांकि राहुल गांधी ने कभी स्वयं ऐसा नहीं किया।
लेकिन राहुल गांधी के चेहरे पर सभी दलों को मनाना कांग्रेस के लिए आसान नहीं होता।
हालांकि हेमंत अत्री राहुल गांधी की जगह खडग़े को आगे करने का एक और कारण बताते हैं, ‘एक रणनीति के तहत खडग़े को आगे किया गया है। एक कारण ये भी है कि राहुल गांधी कभी भी अल्पमत की सरकार का नेतृत्व नहीं करेंगे। राहुल ने सार्वजनिक रूप से ये नहीं कहा है लेकिन ये स्पष्ट है। जब भी राहुल गांधी कभी किसी रैली में रहते हैं तो विपक्ष के नेताओं में गांधी परिवार के नेतृत्व को स्वीकार करने को लेकर एक खास तरह की हिचक रहती है। कांग्रेस सबसे बड़ा विपक्षी दल है, इसमें कोई शक नहीं है लेकिन राहुल समूचे विपक्ष को स्वीकार्य नहीं हैं।’
लेकिन ये सवाल भी है कि क्या इंडिया गठबंधन इस नाम पर सहमत होगा या नहीं होगा, कांग्रेस सहमत होगी या नहीं होगी।
इंडिया गठबंधन की एक बैठक में जब खडग़े बोल रहे थे तब लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार चले गए थे।
हेमंत अत्री कहते हैं, ‘खडग़े पर कांग्रेस के भीतर भी कोई आपत्ति नहीं होगी। गठबंधन में नीतीश कुमार और लालू यादव को कुछ आपत्ति हो सकती है क्योंकि अगर नीतीश कुमार को चेहरा घोषित किया जाता तो बिहार में लालू परिवार से मुख्यमंत्री बनने का रास्ता साफ़ हो जाता। हालांकि अगर इस स्थिति को हटा दें तो खडग़े के नाम से किसी को आपत्ति नहीं होगी।’
क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चुनौती दे पाएंगे?
कऱीब दस साल से भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस समय भारतीय राजनीति में सबसे बड़ा चेहरा हैं। हालिया विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ा।
बीजेपी ने मध्य प्रदेश में अपनी सरकार बचाई और छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस को सत्ता से बाहर किया। इन तीनों ही राज्यों में चुनाव मोदी के नाम पर लड़ा गया। मध्य प्रदेश में तो नारा तक दिया गया- ‘एमपी के मन में मोदी, मोदी के मन में एमपी’।
यही नहीं बिना किसी विरोध के बीजेपी ने इन तीनों ही राज्यों में तीन नए नेताओं को मुख्यमंत्री बनाया।
मौजूदा भारतीय राजनीति में पीएम मोदी के व्यक्तित्व को बड़ी आबादी पसंद करती है। कुछ उन्हें ‘विश्व गुरु’ के रूप में देखते हैं। ऐसे में क्या खडग़े मोदी को चुनौती दे पाएंगे?
विजय त्रिवेदी कहते हैं, ‘मौजूदा परिस्थितियों में ये नहीं लगता कि मल्लिकार्जुन खडग़े मोदी को मज़बूत चुनौती दे पाएंगे। मोदी एक लोकप्रिय नेता हैं। बीजेपी के पास 40 प्रतिशत के करीब वोट हैं। ओबीसी के 80 से अधिक सांसद बीजेपी के पास हैं, उनकी सरकार में कई ओबीसी मंत्री हैं। वो देश का सबसे बड़ा ओबीसी चेहरा हैं।’
नरेंद्र मोदी ने अपने आप को भारत में एक गरीब और चाय बनाने वाले के रूप में पेश किया था और इसी से राष्ट्रीय स्तर पर अपना चुनाव अभियान शुरू किया था।
क्या खडग़े अपनी इस तरह की छवि गढ़ पाएंगे?
हेमंत अत्री कहते हैं, ‘खडग़े कभी इस तरह की बात नहीं करते हैं लेकिन सबको पता है कि उनकी पृष्ठभूमि क्या है। उनकी सादगी और सरलता को सब जनते हैं। उनमें कोई अहंकार नहीं है। वहीं मोदी ने जो शुरू में अपना रूप पेश किया था और अब जो वो हैं वो बिलकुल विपरीत हैं। ऐसी सूरत में खडग़े एक बिलकुल सटीक व्यक्ति हैं नरेंद्र मोदी को चुनौती देने के लिए। खडग़े पर किसी तरह का कोई आरोप नहीं है।’
कुछ लोगों का ये भी मानना है कि पीएम मोदी की जो ‘लार्जर दैन लाइफ़’ यानी विराट छवि है उसके पीछे मीडिया और मार्केटिंग भी है।
हेमंत अत्री कहते हैं, ‘नेता और उसका कद विज्ञापन और मार्केटिंग से नहीं बनता हैं। मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद अपनी इमेज बनाने पर बहुत खर्च किया है। दुनिया में शायद ही कोई नेता होगा जिसने अपनी ऐसी छवि गढ़ी हो। मीडिया ने मोदी को स्थापित किया है।’
वो बोले, ''अगर इस नजरिए से देखें तो कोई भी नेता मोदी का मुकाबला नहीं कर पाएगा। लेकिन भारत लोकतंत्र है। भारत में नेता जनता के बीच से निकलकर आते हैं, जिस तरह से मोदी इसी देश में जनता के बीच से निकलकर आए हैं, वैसे ही खडग़े हैं, देश उन्हें भी पसंद कर सकता है। लेकिन ये भी सच है कि भारत की बड़ी आबादी आज नरेंद्र मोदी के व्यक्तित्व से अभिभूत है। ऐसे में खडग़े के लिए उन्हें चुनौती देना आसान नहीं होगा।’ (bbc.com)