विचार / लेख
-कनुप्रिया
सुबह-सुबह उदयपुर के सफर को निकली तो एक आवाज़ कानों में पड़ी कहीं से, भीमसेन जोशी और लता मंगेशकर का भजन ‘बाजे रे मुरलिया’, दोनों प्रिय गायक, प्रिय आवाजें, मन बंध गया, फिर तो रास्ता इन्हें सुनते निकलना ही था।
भजनों का उद्देश्य जरूर इंसान के भीतर संसार की निस्सारता का भाव जागृत करना रहा होगा, ईश्वर और उसके नाम तो उसके अवलम्ब हैं, साधन हैं, साध्य नहीं। और यह भाव जगने के लिये नास्तिक और आस्तिक के खाँचे में बंटना जरूरी नहीं।
लाउडस्पीकर पर फिल्मी गानों की धुन और सतही शब्दों के साथ बजते भजन वह भाव नहीं जगाते। ऐसा लगता है मानो ख़ुद को बड़ा धार्मिक साबित करने की होड़ चल रही हो। शोर में शांति का भाव कैसे हो सकता है।
इसलिये बाइको और गाडिय़ों पर केसरिया झंडी लगाए जय श्री राम उद्घोष करते लोग हिंदू तो हो सकते हैं मगर आस्तिक नहीं। वो सत्ता के समर्थक और वाहक तो हो सकते हैं मगर ईश्वर भक्त नहीं।
तुलसीदास जी ने कहा भय बिन प्रीत न होई, वही भय प्रीत करवा रहा है, वरना जिसका यकीन सचमुच ईश्वर में हो उसे भय कैसा।
कभी कभी लगता जो राम सच मे लोगों के रास्ते मे आकर खड़े हो जाएँ और कहें कि मुझे ऐसे मंदिर नहीं चाहिए जो मेरे नहीं किसी सत्ता के गर्भ गृह हों, तो उन्हें भी रास्ते से हटा दिया जाए कि हमे आपकी नहीं महज आपके नाम की ज़रूरत है, कृपया यहाँ से प्रस्थान कीजिये।
मुझे वह नास्तिक कई गुना किसी सतगुणी ईश्वरीय प्रतीक के नज़दीक लगता है जो उसमें यक़ीन न करते हुए भी प्रकृति, पर्यावरण, व जीवों को बचाने निकल पड़ता है, बजाय मंदिर में खड़े उस धार्मिक के जिसका मन उस वक्त भी आने लालच और स्वार्थ की सिद्धि पूर्ति में ही लगा हो, जिन्हें अपनी तीर्थयात्राओं के लिये हिमालय नष्ट किये जाने से भी गुरेज नहीं, उन्हें ईश्वर की यात्रा इतनी सुगम चाहिये कि वो उसके लिये तनिक कष्ट तक नहीं उठाना चाहते।
कहते हैं, भगवान भाव में बसते हैं, मैं अक्सर धार्मिक लोगों के समूहों से डर जाती हूँ, उनके भीतर धार्मिक होने का अहंकार ईश्वर के कद से भी बड़ा नजऱ आता है, वो इस अहंकार की ख़ातिर किसी को भी नष्ट करने से पीछे नहीं हटते।
इसलिये मैं नास्तिक आस्तिक के झगड़े में पड़ती ही नहीं क्योंकि मेरा मानना है कि इस दुनिया में एक भी व्यक्ति आस्तिक नहीं, एक भी नहीं, अगर लोगों को सच मे ईश्वर के होने पर यकीन होता तो किसी आडंबर और पाखंड की ज़रूरत ही नहीं होती और कम से कम वो उसके नाम पर एक दूसरे का गला तो नहीं ही काटते।