विचार / लेख

आदत के गुलाम
25-Dec-2023 3:51 PM
आदत के गुलाम

अब नीचे देखिए एक ही सडक़ के एक ही समय आमने सामने से खींचे चित्र हैं लेकिन लगता है कि दो अलग जगह के चित्र है।

-सच्चिदानंद जोशी

रोज की तरह आज भी जब मैं अपनी साइकिल लेकर कॉलोनी की सडक़ का चक्कर लगाने निकला तो मन में ख्याल आया कि क्यों न आज सीधी तरफ से चक्कर लगाया जाए। सीधा यानी क्लॉक वाइस। रोज मैं साइकिल से कॉलोनी की घुमावदार सडक़ के तीन-चार चक्कर लगाता हूं। घर से निकलते ही बाईं तरफ को साइकिल मोड़ लेता हूं और फिर बाईं ओर से ही चक्कर लगा लेता हूं यानी एंटी क्लॉक वाइस। मेरा ये बताने का उद्देश्य कतई नहीं कि आप मुझे फिटनेस फ्रीक समझें। फिर भी अगर आप ऐसा समझ लेंगे तो मैं तो ऐसा चाहता ही हूं।

आज जब साइकिल दाहिनी ओर मोड़ी और सडक़ पर घूमने लगा तो ऐसा लगने लगा मानो किसी दूसरी जगह आ गया हूं। कॉलोनी वही, रास्ता वही, साइकिल भी वही, आने-जाने वाले भी ज्यादातर वही और साइकिल चलाने वाला मैं भी वही। लेकिन ऐसा लगा कि किसी नई जगह पर आ गया हूं। जहां मुझे रोज ढलान मिलती थी वहां चढ़ाई आ गई। जहां चढ़ाई थी वहां साइकिल सरपट दौडऩे लगी। जहां गड्ढे थे वहां सडक़ चिकनी थी और जहां सडक़ ठीक ठाक थी वहां गड्ढे हो रहे थे। ये भी समझ में आया कि बाई ओर से घूमने में सभी मोड़ आसान थे और अब हर बार मुडऩे के पहले दो-तीन बार पीछे देखना पड़ रहा है। रोज जिन लोगों के चेहरे देख-देखकर ऊब गया था आज उनकी पीठें ही नजर आ रही थीं। सबसे मजेदार बात तो ये कि अब तक रोज जिन लोगों की पीठ ही देखता था आज उनके चेहरे नजर आ रहे थे। ये बात और है कि कुछ चेहरे देखकर लगा कि अब तक जो भ्रम बना हुआ था वही अच्छा था। हो सकता है कि बहुतों को मेरे चेहरे के दीदार भी पहली बार ही हुए हों और वे भी मेरी ही तरह भ्रम निराश की स्थिति में हों। जो लोग रोज सुबह सैर पर उसी रास्ते जाते हैं वे इस बात को अच्छी तरह समझ जाएंगे।

हम अपनी रोज की जिंदगी में अपनी ही बनाई आदतों के इतने गुलाम हो जाते हैं कि उसमें जरा भी बदल हो जाए तो हम अस्वस्थ हो जाते हैं। हम कहते जरूर हैं कि हम रूटीन से ऊब गए हैं और हमें चेंज चाहिए लेकिन सही सुकून हमें रूटीन में ही मिलता है। रूटीन और चेंज की परिभाषाएं गढ़ते-गढ़ते ही जिंदगी बीत जाती है उस पर अमल करने का या तो मौका नहीं मिलता या हौसला नहीं होता।

हमारे पड़ोसी ने रोज की चिक चिक से झुंझलाकर चेंज के लिए शिमला जाने का प्रोग्राम बनाया। इतनी सर्दी में शिमला? ‘मैंने पूछा तो मुस्कुराकर बोले’ वही तो मजा है। गर्मी में तो सभी जाते हैं। हम सर्दियों में जाएंगे और अकेले बड़े सुकून से शिमला का आनंद लेंगे।’

कुछ दिन बीत जाने के बाद सोचा उनकी शिमला यात्रा का हाल तो जान लें। ‘कैसी रही ट्रिप और कैसा रहा आपका चेंज’ मैंने पूछा तो वे एकदम फट पड़े ‘क्या खाक चेंज होगा। ऐसा लगा मानो कनॉट प्लेस में ही घूम रहे हैं। इतनी भीड़ कि पूछो मत। काहे का सुकून और काहे की शांति।’

‘तो फिर अब आपके चेंज का क्या होगा।’ मैने मासूमियत से पूछा।

‘अब चार दिन छुट्टी लेकर घर ही बैठूंगा। जो चाहे खाऊंगा, जैसा चाहे पहनूंगा, किताबें पढ़ूंगा, संगीत सुनूंगा और बस इतना ही करूंगा। इससे अच्छा चेंज और क्या होगा।’
समझ में आ गया कि चेंज के लिए कहीं जाना और बड़े कार्यक्रम बनाना जरूरी नहीं है। अपनी ही बनाई आदतों से छुटकारा पाने की कोशिश करें तो छोटी-छोटी चीजें भी चेंज ला सकती हैं।

इसलिए ट्रेनिंग प्रोग्राम में अक्सर प्रतिभागियों से रोज अपनी जगह बदलकर बैठने का आग्रह होता है। आग्रह ये भी होता है कि कल जिसके साथ बैठे थे आज उसके साथ न बैठें। इसमें जड़ता नहीं आती और चेंज की मनोवृत्ति बनी रहती है।

जिन लोगों ने कक्षा में शैतानी की है और जगह बदलकर बैठने की सजा अपनी टीचर या मास्टर साहब (अपने तो भैय्या वही थे) से पाई है उन्हें अनुभव होगा कि जब टीचर आपकी सीट बदल देते हैं तो आपको कैसा लगता है नई सीट पर बैठ कर, ‘अरे ये कैसा अजीब दिख रहा है। इस मोहल्ले में तो पंखे की हवा भी नहीं आती। साथ बैठा लडक़ा कितनी बांस मार रहा है। इधर कैसे बोर्ड ठीक से दिखता नहीं’, जैसे अनेकों विचार मन में आते हैं। आपकी कक्षा वही है लेकिन आपकी सीट बदलने से आपको लगता है कि आप एक नई कक्षा में आ गए हैं।

ये प्रयोग आप आज भी कर सकते हैं, इसके लिए सजा देने वाले टीचर की जरूरत नहीं है। आप डायनिंग टेबल पर अपनी रोज बैठने वाली जगह बदलकर ही देख लें, खाने को देखने की आपकी दृष्टि बदल जाएगी, स्वाद बदल जाएगा, शायद आप रोज से कुछ ज्यादा खाना खा लें।

कुछ नया या अलग करने के लिए हर बार कुछ बड़ा या खर्चीला करने की जरूरत नहीं है थोड़ा बदलाव भी आपको बदलाव का आनंद दे सकता है। अब ये भी तो एक बदलाव ही है कि रोज की तरह मोबाइल उठाकर उस पर व्हाट्सएप के फॉरवर्डेड मैसेज या फेसबुक पर रील देखने की बजाय आप यह रचना पढ़ रहे हैं। इससे भी ज्यादा घटनापूर्ण बदलाव चाहिए तो रोज की सैर का समय बदलकर थोड़ा पहले या थोड़ा बाद के समय में चले जाइए। आपको सब कुछ बदला हुआ लगेगा। लोग बदले हुए मिलेंगे, माहौल बदला हुआ मिलेगा, लगेगा कि आप एक नई जगह में घूम रहे हैं। इतना भी नही करना है तो पतलून, सलवार, पायजामा, या प्लाजो के जिस पायचे में रोज पहले पैर डालते हैं, आज उसके उलट दूसरे पायचे में डालकर देखिए आपको बदलाव की एक अलग ही अनुभूति होगी और साथ ही आदत की गुलामी से मुक्ति का सुखद अहसास भी।

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