विचार / लेख
-मुकुल सरल
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने सोशल मीडिया पर अपने जातिवादी पोस्ट को डिलीट कर माफ़ी मांगी है और कहा कि उनकी टीम ने भगवत गीता के श्लोक का ग़लत अनुवाद कर दिया। लेकिन मेरा उनसे पूछना है कि फिर सही अनुवाद क्या है। सही अनुवाद पोस्ट कीजिए।
वे ऐसा नहीं करेंगे, क्योंकि इसका सही अनुवाद यही है।
दरअस्ल 26 दिसंबर को हिमंत बिस्व सरमा ने ‘एक्स’ और फेसबुक जैसे अपने सोशल मीडिया हैंडल पर एवी पोस्ट अपलोड किया था और दावा किया था कि यह गीता के 18 वें अध्याय का 44 वां संन्यास योग श्लोक से है।
उस एनीमेटेड वीडियो में कहा गया था, ‘‘कृषि कार्य, गो-पालन एवं वाणिज्य वैश्यों का आदतन एवं स्वाभाविक कर्तव्य है तथा तीन वर्णों-- ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य की सेवा करना शूद्रों का स्वाभाविक कर्तव्य है।’’
सरमा ने यह भी कहा था, ‘‘भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं ही वैश्यों और शूद्रों के स्वाभाविक कर्तव्यों के प्रकारों की व्याख्या की है।’’
उनके इस पोस्ट से बड़ा राजनीतिक विवाद खड़ा हो गया। और अब उन्होंने उसे डिलीट कर कहा कि उनकी टीम सें ग़लत अनुवाद हो गया। ये भी झूठ ही है। गोया उनकी टीम गीता के श्लोकों का अनुवाद करती हो। अरे भाई यही तो गीता के श्लोक का अर्थ है, जिसे उनकी टीम ने कॉपी पेस्ट कर दिया। लेकिन इस बार सरमा जी को लगा अरे इससे तो राजनीतिक नुक़सान हो सकता है तो कहा कि ग़लत अनुवाद हो गया। तो हम उनसे आग्रह करेंगे कि वह सही अनुवाद पोस्ट करें।
जिसके पास भी भगवत गीता हो वो उसे खोलकर पढ़ ले इस श्लोक को जिसकी विवेचना बड़े बड़े विद्वानों ने की है। इसे ही तो हम सदियों से पढ़ते आ रहे हैं, पढ़ाते आ रहे हैं। मनुस्मृति भी यही कहती है। यही तो ब्राह्मणवाद है। लेकिन मुझे हैरत है कि किसी को कोई फक़ऱ् नहीं पड़ता। अब अगर राजनीतिक मजबूरी न हो तो सरमा जी पीछे हटने वाले नहीं थे।