विचार / लेख
कनुप्रिया
वक्त की धुरी में देखा जाए तो हर नया दिन नया साल ही है, जो सुबह सूरज उगते ही शुरू हो जाता है। हम हर रोज़ उस नए दिन को जीते हैं। कैलेंडर में बस तारीखें बदलती हैं।
मगर फिर भी गया साल जीवन सफऱ का एक मार्क होता है, मील का पत्थर, हम अपने सफऱ को उन सालों से याद करते हैं।
23 में बहुत कुछ हुआ जीवन में, हर साल ही होता है, मगर गए साल में सीखा क्या?
वही जो सदियों से कहा जाता रहा है, और अब हर बीतते साल पहले से ज़्यादा उस सत्य का आभास होता है।
कि जो है अब है, अभी है, आज है, वही सच है, जो बीत गया वो बीत गया, लौटेगा नहीं, लौट ही नहीं सकता, और जो कल आएगा वो भी आज बनकर ही आएगा। बीते का अनुभव आज साथ रहता है, और आने वाले समय के निर्णय भी आज लिए जाते हैं। इसलिये जो कुछ ज़रूरी है वो आज ही है।
जो आज हैं वो कल साथ होंगे या नहीं पता नहीं, जो नहीं हैं क्या पता कल साथ हों। कुछ निश्चित नहीं। और फिर ख़ुद हम ही कल होंगे या नहीं पता नहीं। कितने ही लोग आज मिलते हैं हँसते हुए, अगले दिन उनकी ख़बर मिलती है। हैरानी होती है कि कल तो यहीं थे, सब कुछ था, परिवार, सम्पत्ति, ख़ुशियाँ, दु:ख, लो अब नहीं रहे। ये कितना अजीब है। एक जीवन जो समूची दुनिया लेकर चलता है, पल भर में ख़त्म। बस याद बाक़ी है। (यूँ मृत्यु भी राहत ही है, अगर मृत्यु न होती तो जीवन का होना व्यर्थ हो जाता, उसका कुछ मतलब ही न रहता।)
तो इस वक़्त अगर हम कुछ कह रहे हैं, कुछ कर रहे हैं, अपने स्वास्थ्य का खय़ाल रख रहे हैं, अपने अपनों का खय़ाल रख रहे हैं, ख़ुश हैं, या रो रहे हैं, प्रेम में हैं या नफऱत में हैं, काम कर रहे हैं या मनोरंजन सब इस वक़्त में हैं, इस वक़्त के बाद वो याद की सूची में दाखि़ल हो जाएगा। और कल सम्भवत: हम समूचे उस सूची में शामिल हो जाएंगे और अगर नहीं भी होंगे तो भी हमें तो पता नहीं चलेगा।
इसलिये ये वक़्त जो हम से होकर गुजर रहा है, यही सच है। इस वक़्त के साथ रहा जाए। ये फिर कभी नहीं आएगा।
ये बात जो हमेशा यूँ ही कही सुनी जाती है , जब इसका ज़बरदस्त अहसास होता है, तो लगता है ये इतनी मामूली भी नहीं।