विचार / लेख

क्या नए साल में कम होगा राज्यपालों और राज्य सरकारों का टकराव, कैसे हैं राज्यों में हालात?
04-Jan-2024 3:58 PM
क्या नए साल में कम होगा राज्यपालों और राज्य सरकारों का टकराव, कैसे हैं राज्यों में हालात?

CV LENIN

 इमरान कुरैशी

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले दिनों राज्य की विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों को राज्यपालों द्वारा दबाए रखने को भले ही ‘आग से खेलने वाला’ और इसे ‘चिंता का विषय’ बताया हो लेकिन हालत ये है कि कई राज्यों में सरकारों के फैसले पर राज्यपाल अनुमति नहीं देते और वे सालों-साल तक कानून नहीं बन पाते।

ऐसे ही टकरावों पर अलग अलग राज्यों में क्या है स्थिति बता रहे हैं बीबीसी के सहयोगी पत्रकार।

सडक़ पर उतरे केरल के राज्यपाल

ऐसा लगता है कि राज्यों के राज्यपालों के बीच एक अनुचित प्रतिस्पर्धा विकसित हो रही है। एक के बाद एक प्रोटोकॉल उल्लंघन की घटनाएं सामने आ रही हैं।

राज्यपाल ऐसे कदम उठा रहे हैं जो देश ने पहले कभी नहीं देखा है।

एक अभूतपूर्व कदम उठाते हुए केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने प्रोटोकॉल के सभी मानदंडों को तोड़ दिया।

वे कोझिकोड की सडक़ों पर अकेले चले और एक दुकानदार द्वारा पेश किए गए कोझिकोडन हलवे का स्वाद चखा।

सादे कपड़ों में पुलिसकर्मी उन्हें किसी भी अप्रिय घटना से बचाने के लिए उनके साथ चल रहे थे।

कोझिकोड में राज्यपाल का विरोध

ये उस समय हुआ है जब दो दिन पहले स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) के कार्यकर्ता ‘गो बैक-गो बैक’ के नारे लगा रहे थे।

उन्होंने बैनर लगा रखे थे, जिन पर लिखा था, ‘मिस्टर चांसलर, आपका यहां स्वागत नहीं है।’

इसके ठीक 12 महीने पहले, उनके समकक्ष तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि ने कुछ ऐसा किया जो भारतीय विधायिका के इतिहास में किसी दूसरे राज्यपाल ने नहीं किया था।

वह विधानसभा में अपने पारंपरिक संबोधन को बीच में छोडक़र चले गए थे, क्योंकि सत्तारूढ द्रमुक के सदस्यों ने उनके उस भाषण को नहीं पढऩे का विरोध किया, जिसे राज्य कैबिनेट ने संविधान के मुताबिक मंजूरी दी थी।

एक राज्यपाल राज्य के प्रमुख के तौर पर नए साल के पहले दिन जब विधानमंडल की बैठक होती है तो अपने संबोधन में सरकार को ‘मेरी सरकार’ बताता है।

एक राज्यपाल को जैसा कि संविधान इजाजत देता है या जैसा सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि निश्चित रूप से, मुख्यमंत्री या सरकार की सलाह के मुताबिक काम करना होता है।

तमिलनाडु के राज्यपाल ने तोड़ी परंपरा?

लेकिन राज्यपाल रवि ने विधानसभा के बाहर अपनी सरकार, इस मामले में द्रमुक सरकार की आलोचना कर स्थापिक परंपरा को तोड़ दिया। इसी तरह की प्रतिस्पर्धात्मक भावना से राज्यपाल आरिफ़ मोहम्मद ख़ान केरल की वामपंथी लोकतांत्रिक मोर्चा सरकार की आलोचना भी करते रहे हैं।

चेन्नई स्थित राजनीतिक विश्लेषक एन सत्यमूर्ति ने बीबीसी हिंदी से कहा, ‘राजभवन के भीतर राजनीति हमेशा चलती रहती थी, जो पुराने समय के मशहूर ‘आया राम, गया राम’ में परिलक्षित होती है। लेकिन कोई भी राज्यपाल अपनी ही सरकार की आलोचना करने की सीमा तक नहीं गया।’

उन्होंने कहा, ‘वर्तमान राज्यपाल वैचारिक और विवादास्पद मुद्दों पर बोलने लगे हैं।’

पूर्व कुलपति और राजनीतिक टिप्पणीकार प्रोफेसर जे प्रभाष तिरुवनंतपुरम में रहते हैं। उन्होंने बीबीसी हिंदी से कहा, ‘एक नागरिक के रूप में, हम राज्यपाल के पद पर बैठे व्यक्ति से कुछ मर्यादा की उम्मीद करते हैं। ऐसी कार्रवाइयों से हो यह रहा है कि विश्वविद्यालयों का नियमित कामकाज बुरी तरह प्रभावित हो रहा है। अभी 15 विश्वविद्यालयों में से करीब नौ में पूर्णकालिक कुलपति नहीं हैं।’

राज्यपाल रवि और राज्यपाल खान दोनों के मामले में, विश्वविद्यालयों पर नियंत्रण को लेकर संबंधित राज्य सरकारों के साथ उनका टकराव शुरू हो गया है। राज्यपालों ने कुलाधिपति के रूप में विश्वविद्यालयों के मामलों में हस्तक्षेप करने का प्रयास किया है। सामान्य परिस्थितियों में कुलाधिपति राज्य सरकारों की सिफारिशों को मंजूरी देते हैं।

उनके कार्यों या निष्क्रियताओं ने संबंधित सरकारों को कुलपतियों की नियुक्तियों में कुलाधिपति की शक्तियों पर अंकुश लगाने के लिए कानून बनाने के लिए प्रेरित किया है। राज्यपाल खान की ओर से नौ कुलपतियों से इस्तीफा मांगने के बाद केरल सरकार ने यह कानून पेश किया।

लेकिन दोनों राज्यपालों ने विधानसभाओं की ओर से पारित कानूनों के बारे में कुछ नहीं किया। तमिलनाडु और केरल सरकारों के सुप्रीम कोर्ट जाने के बाद कुछ हलचल हुई। सुप्रीम कोर्ट की तीन सदस्यीय पीठ को संविधान पढक़र यह कहना पड़ा कि राज्यपालों के पास ‘इसे स्वीकार करने, इसे वापस करने या इसे राष्ट्रपति को भेजने’ के अलावा कोई और विकल्प नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट ने राज्यपाल रवि को मुख्यमंत्री एमके स्टालिन को चाय पर आमंत्रित करने और मुद्दों पर चर्चा करने के लिए कहा जिसके बाद दोनों की मुलाकात भी हुई। हालांकि इस मुलाकात के बाद तमिलनाडु के मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बॉडी लैंग्वेज़ से ऐसा लग रहा था कि दोनों ही सुलह को लेकर उदासीन हैं।

मुख्यमंत्री और राज्यपाल में जुबानी जंग

राज्यपाल खान के कामकाज और बयानों की वजह से मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन के साथ जुबानी जंग छिड़ी हुई है।

राज्यपाल ने एसएफआई को ‘अपराधी’ कहा है। इस पर मुख्यमंत्री ने गंभीर आपत्ति जताई है। उन्होंने कहा है कि उनकी सरकार को केंद्र से उन्हें वापस बुलाने के लिए कहेगी।

प्रोफेसर प्रभाष कहते हैं, ‘लोग सरकार को जिम्मेदार ठहराएंगे, भले ही हर कोई जानता है कि यहां राज्यपाल का एक एजेंडा है।’

सत्यमूर्ति कहते हैं, ‘यहीं तक नहीं है, तेलंगाना की राज्यपाल तमिलसाई सुंदरराजन अपने गृह राज्य के दौरे पर आती हैं। वे एक द्रमुक मंत्री की आलोचना करती हैं। वो यह भूल जाती हैं कि अब वो राज्यपाल हैं। वो किसी राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी पर हमला नहीं कर सकतीं हैं।’

सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश रोहिंटन नरीमन ने पिछले हफ्ते एशियाटिक सोसाइटी से कहा था कि राज्यपालों का इस तरह का काम राज्य की सभी विधायी गतिविधियों को ठप कर देता है।

कितने विधेयक लंबित हैं पश्चिम बंगाल में

प्रभाकर मणि तिवारी, कोलकाता

पश्चिम बंगाल में राजभवन और राज्य सचिवालय के बीच टकराव का इतिहास यूं तो बहुत लंबा रहा है। लेकिन खासकर तत्कालीन राज्यपाल जगदीप धनखड़ के कार्यभार संभालने के बाद जिस तेजी से यह टकराव चरम पर पहुंचा, उसकी दूसरी कोई मिसाल नहीं मिलती।

उस दौरान सरकार और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सार्वजनिक हित वाले विधेयकों को मंजूरी नहीं देने का आरोप लगाती रही थी।

इनमें सबसे अहम था जून 2022 में पारित एक विधेयक को लेकर है। इसमें राज्य सरकार की ओर से संचालित विश्वविद्यालयों के चांसलर के रूप में राज्यपाल की जगह मुख्यमंत्री को नियुक्त करने का प्रावधान है। लेकिन जगदीप धनखड़ ने महीनों उसे लंबित रखा और आखिर उपराष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनने के कारण उनके अपने पद से इस्तीफा देने तक यह जस का तस पड़ा रहा।

धनखड़ की जगह सीवी आनंद बोस के नए राज्यपाल बनने के बाद भी तमाम विधेयकों पर सरकार और राज्यपाल में गतिरोध जारी है। हालांकि राजभवन की ओर से बीते सप्ताह जारी एक बयान में कहा गया है कि राज्यपाल के पास कोई विधेयक लंबित नहीं है। सिवाय उन विधेयकों के जिनके बारे में राज्य सरकार से स्पष्टीकरण की जरूरत है या जो अदालत में विचाराधीन हैं।

राज्यपाल के पास लंबित हैं सात विधेयक

इसमें कहा गया है कि विश्वविद्यालय मामलों से संबंधित सात अन्य विधेयक न्यायालय में विचाराधीन हैं। बयान के मुताबिक, विधानसभा अध्यक्ष की टिप्पणी के बाद राजभवन में एक समीक्षा बैठक आयोजित की गई।

बनर्जी ने कहा था कि 2011 से कुल 22 विधेयक राजभवन में मंजूरी का इंतजार कर रहे हैं। उन्होंने कहा था, ‘2011 से 2016 तक तीन विधेयक, 2016 से 2021 तक चार और 2021 से अब तक 15 विधेयक अनसुलझे हैं। इनमें से छह विधेयक वर्तमान में सीवी आनंद बोस के विचाराधीन हैं।’

इससे पहले मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने आरोप लगाया था कि राज्यपाल ने कई विधेयकों को रोक रखा है। उनका आरोप था, राज्यपाल आनंद बोस राज्य प्रशासन को पंगु बनाने का प्रयास कर रहे हैं। मुख्यमंत्री ने कहा था कि इसके खिलाफ जरूरत पड़ी तो वे राजभवन के समक्ष धरने पर बैठेगीं।।

बिहार: राजभवन से सामंजस्य बना लेती है नीतीश सरकार

सीटू तिवारी

बिहार में राज्यपाल राजेंद्र विश्वनाथ आर्लेकर ने इसी साल फरवरी में पद संभाला था। इसके पांच महीने के भीतर ही राज्य सरकार से राजभवन की तनातनी शुरू हो गई थी। ये तनातनी शिक्षा विभाग से संबंधित फैसलों को लेकर थी। सबसे पहले 25 जुलाई 2023 को राज्यपाल सचिवालय ने एक पत्र जारी किया। इसके मुताबिक राज्य के सभी विश्वविद्यालयों में स्नातक स्तरीय पाठ्यक्रम में सत्र 2023 -24 के लिए च्वाइस बेस्ड क्रेडिट सिस्टम और सेमेस्टर सिस्टम लागू होगा।

25 जुलाई को जारी इस आदेश से पहले ही शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव केके पाठक ने राजभवन सचिवालय को पत्र लिखकर चार वर्षीय पाठ्यक्रम पर फिर से विचार करने का अनुरोध किया था। खुद राज्य के शिक्षा मंत्री चंद्रशेखर ने इस पर एतराज जताते हुए कहा था, ''राज्य के पास संसाधन नहीं हैं। अभी तीन साल का ग्रेजुएशन पांच साल में पूरा हो रहा है, ऐसे में जब चार साल का ग्रेजुएश होगा तो वो सात साल में पूरा होगा।’

राज्यपाल और राज्य सरकार आमने सामने

जुलाई के बाद अगस्त के पहले सप्ताह में राजभवन ने विश्वविद्दालयों में कुलपति की नियुक्ति के लिए विज्ञापन जारी किया। इस बीच शिक्षा विभाग ने बाबा साहब भीमराव आंबेडकर बिहार विश्वविद्यालय मुजफ्फरपुर के कुलपति और प्रति कुलपति के वेतन पर रोक लगाते हुए उनके वित्तीय अधिकार पर रोक लगा दी।

राजभवन ने जब इस रोक को हटाने का आदेश दिया तो शिक्षा विभाग के सचिव वैद्यनाथ यादव ने राजभवन को लिखे पत्र में स्पष्ट कहा कि राज्य सरकार विश्वविद्यालयों को सालाना 4000 करोड़ रुपये देती है, ऐसे में शिक्षा विभाग को विश्वविद्यालयों को उनकी जिम्मेदारी बताने और पूछने का पूरा अधिकार है।

राजभवन के कुलपति की नियुक्ति पर निकले विज्ञापन के बाद 22 अगस्त को शिक्षा विभाग ने भी कुलपति की नियुक्ति का विज्ञापन जारी किया। इसके बाद टकराव की स्थिति बढ़ी तो 23 अगस्त को खुद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राजभवन जाकर राज्यपाल से मुलाकात की। नीतीश कुमार ने राजभवन और सरकार की तकरार पर पत्रकारों से कहा था, ‘सब कुछ ठीक-ठाक है और किसी तरह की तकरार नहीं है।’

राजभवन ने भी इस मुलाकात के बाद कहा, ‘इस मुलाकात में उच्च शिक्षा और विश्वविद्यालयों से संबंधित विषयों पर सम्मानपूर्ण विमर्श किया।’ (bbc.com)

(बाकी कल के अंक में)

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news