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प्रवासी मजदूरों के बच्चे और उनके शैक्षणिक विकास का प्रश्न
02-Mar-2024 2:02 PM
प्रवासी मजदूरों के बच्चे और उनके शैक्षणिक विकास का प्रश्न

 छोटू सिंह रावत

बच्चों के स्वास्थ्य एवं पोषण की स्थिति को सुधारने के लिए सरकार कई सालों से प्रयासरत है. बच्चों और महिलाओं के स्वास्थ्य का बेहतर विकास हो इसके लिए केंद्र से लेकर सभी राज्य सरकारों ने अपने अपने स्तर से कई तरह की योजनाएं चला रखी हैं. इसके अतिरिक्त कई स्वयंसेवी संस्थाएं भी इस दिशा में सक्रिय रूप से काम कर रही हैं. इन सबका उद्देश्य गरीब और वंचित मज़दूरों और उनके परिवारों को समाज की मुख्यधारा से जोडऩा है. लेकिन इतने प्रयासों के बावजूद भी सबसे अधिक असंगठित क्षेत्रों में काम करने वाले प्रवासी मज़दूर और इनके बच्चे सरकारी सेवाओं से वंचित नजऱ आते हैं. जिन्हें इससे जोडऩे के लिए कई गैर सरकारी संस्थाएं प्रमुख भूमिका निभा रही हैं. देश के अन्य राज्यों की तरह राजस्थान में भी यह स्थिति स्पष्ट नजऱ आती है।

राजस्थान के अजमेर और भीलवाड़ा सहित पूरे राज्य में लगभग 3500 से अधिक ईट भट्टे संचालित हैं. जिन पर छत्तीसगढ़, बिहार, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, झारखंड, मध्यप्रदेश और राजस्थान के ही सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों से लगभग 1 लाख श्रमिक प्रति वर्ष काम की तलाश में आते हैं. यह मज़दूर 8 से 9 माह तक परिवार सहित इन ईंट भट्टों पर काम करने के लिए आते हैं. इनमें बड़ी संख्या महिलाओं, किशोरियों और बच्चों की होती है. जहां सुविधाएं नाममात्र की होती है. वहीं बच्चों के शारीरिक और मानसिक विकास के लिए भी कोई सुविधा नहीं होती है. लेकिन इसके बावजूद आर्थिक तंगी मजदूरों को परिवार सहित इन क्षेत्रों में काम करने पर मजबूर कर देता है। यहां काम करने वाले अधिकतर मजदूर चूंकि अन्य राज्यों के प्रवासी होते हैं, ऐसे में वह सरकार की किसी भी योजनाओं का लाभ उठाने से वंचित रह जाते हैं। जिसका प्रभाव काम करने वाली महिलाओं और उनके बच्चों के सर्वांगीण विकास पर पड़ता है।

इस संबंध में सेंटर फॉर लेबर रिसर्च एंड एक्शन, अजमेर की जिला समन्वयक आशा वर्मा बताती हैं कि "ईट भट्टो पर लाखों प्रवासी श्रमिक और उनके बच्चे हैं, जिन्हें स्वास्थ्य और महिला बाल विकास विभाग की सेवाएं मिलनी चाहिए, लेकिन जमीनी स्तर पर ऐसा नहीं होता है। 0 से 5 साल के बच्चों में पोषण की स्थिति देखें तो सबसे ज्यादा समस्या भी इन प्रवासी श्रमिकों के बच्चों में है। जिनमें सही समय पर टीकाकरण, खानपान और पोषणयुक्त आहार नहीं मिलने के कारण कुपोषण दर ज्यादा बढऩे का खतरा रहता है। वहीं ईट भट्टो पर महिलाओं और किशोरियों की स्वास्थ्य स्थिति देखें तो यह भी चिंताजनक स्थिति में नजर आता है, क्योंकि इन जगहों पर इनके लिए शौचालय और स्नानघर की उचित व्यवस्था नहीं होती है। ऐसे में खुले में शौच इसके स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। इसके अतिरिक्त माहवारी के समय सेनेटरी नैपकिन की पर्याप्त व्यवस्था नहीं होने के कारण भी यह महिलाएं और किशोरियां कई प्रकार की स्वास्थ्य समस्याओं से जूझती रहती हैं।’

आशा वर्मा के अनुसार इन प्रवासी मजदूरों के बच्चों और महिलाओं में स्वास्थ्य की स्थिति को बेहतर बनाने के लिए संस्था पिछले तीन साल से अजमेर और भीलवाड़ा क्षेत्र के 20 ईट भट्टो पर बालवाड़ी केन्द्र संचालित कर रही है, जिसमें 0 से 6 साल के 620 बच्चों को नामांकित किया गया है। जिन्हें सूखा व गर्म पोषाहार दिया जा रहा है।

जो बच्चे कुपोषण की श्रेणी में आते हैं उन्हें न केवल कुपोषण उपचार केंद्र में दिखाया जाता है बल्कि संस्था की ओर से उनके साथ विशेष काम किया जाता है। उन्होंने बताया कि पिछले तीन सालों में परिवार के साथ ईट भट्टो पर रहने वाले कुपोषित बच्चों की स्थिति देखें तो इसमें काफी सुधार आया है। अब तक करीब 100 से ज्यादा बच्चों को इन बालवाड़ी केंद्र के माध्यम से कुपोषण से मुक्त स्वस्थ शिशु बनाया गया है। इसके अतिरिक्त समय समय पर उन बच्चों और गर्भवती महिलाओं का सम्पूर्ण टीकाकरण करवाने में भी पहल की गई है। इसके अतिरिक्त इन बालवाड़ी केंद्रों पर बच्चों के साथ लर्निंग गतिविधियां भी की जाती हैं ताकि उनमें शिक्षा के प्रति लगन बनी रहे। इसके लिए हर माह बच्चो की ग्रोथ मॉनिटरिंग भी की जाती है।

ऐसे में प्रश्न उठता है कि क्या ईट भट्टों पर काम करने वाले प्रवासी मजदूरों के बच्चों पर शिक्षा का अधिकार कानून लागू नहीं होता है? हालांकि सरकार का हमेशा प्रयास रहता है कि बच्चों की शिक्षा की स्थिति में सुधार हो. इसके लिए सरकार हमेशा नई नई योजनाएं भी लेकर आती है, ताकि कोई भी बच्चा शिक्षा से छूटे नहीं. इसके लिए देश में शिक्षा का अधिकार कानून भी लागू किया गया. लेकिन इसके बावजूद अधिकतर प्रवासी मजदूरों के बच्चे इस अधिकार से वंचित रह जाते हैं। आशा वर्मा के अनुसार इस दिशा में काम कर रही सीएलआरए और उसकी जैसी अन्य गैर सरकारी संस्थाएं इस इसमें बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। जिनकी ओर से हर साल शिक्षा विभाग को इन बच्चों को स्थानीय स्कूल से जोडऩे के लिए सूची उपलब्ध करवाई जाती है।

हालांकि अभी तक इन बच्चो का शिक्षा से जुड़ाव हो इसके लिए विभाग की ओर से कोई ढांचा तैयार नही हुआ है। यही कारण है कि यह प्रवासी बच्चे पढऩे और खेलने कूदने की उम्र में माता-पिता के साथ दिहाड़ी मजदूर बन रहे हैं। आशा वर्मा के अनुसार इन प्रवासी बच्चों के पास कोई दस्तावेज नहीं होने और अपने गृह नगर से बीच में ही स्कूल छोडक़र पलायन करने के कारण कार्यस्थल के आसपास के सरकारी स्कूल उन्हें प्रवेश देने में आनाकानी करते हैं। जबकि शिक्षा का अधिकार कानून में बिना किसी दस्तावेज के सभी बच्चो का स्कूल में प्रवेश होने की बात कही गई है. लेकिन जागरूकता की कमी के कारण यह सरकारी स्कूल उन्हें बिना दस्तावेज़ के प्रवेश देने से इंकार कर देते हैं। यह शिक्षा का अधिकार कानून का सरासर उल्लंघन है।

आशा वर्मा बताती हैं कि ने बताया कि तीन सालों में अजमेर और भीलवाड़ा जिला के 20 ईट भट्टो पर करीब 1800 प्रवासी बच्चे इस प्रकार के बालवाड़ी केंद्रों पर नामांकित हुए हैं. जो एक बड़ी उपलब्धि है. वास्तव में, राजस्थान में किसी भी ईट भट्टे पर सरकार की ओर से आंगनबाड़ी केन्द्र नहीं होने के कारण लाखों बच्चों का बाल्यावस्था में जो विकास होना चाहिए इन मूलभूत अधिकारों से यह सभी प्रवासी बच्चे वंचित रह जाते हैं. जिससे उनका शारीरिक और मानसिक विकास बाधित हो जाता है. ऐसे में सरकार को इस प्रकार की नीति, योजनाएं और ढांचा तैयार करनी चाहिए जिससे प्रवास होने वाले बच्चे भी शिक्षा जैसे मूल अधिकार से वंचित न हो सकें. (चरखा फीचर)

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