विचार / लेख
डॉ. आर.के. पालीवाल
वर्तमान केंद्र सरकार को सर्वोच्च न्यायालय से विगत कुछ वर्षों में वैसे तो एक के बाद एक कई झटके मिले हैं लेकिन हाल ही में सबसे बड़ा झटका केंद्र सरकार की इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को असंवैधानिक ठहराने से लगा है। शायद इसीलिए उत्तर प्रदेश के संभल में कल्कि मंदिर की आधारशिला रखते हुए प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में सर्वोच्च न्यायालय पर अप्रत्यक्ष रुप से तीखा कटाक्ष किया है कि आजकल ऐसा माहौल है कि यदि सुदामा का भगवान कृष्ण को चावल की पोटली देते वीडियो आ जाए तो किसी की पी आई एल पर सर्वोच्च न्यायालय इसे भ्रष्टाचार का मामला बता सकता है। इस हल्के बयान में सर्वोच्च न्यायालय को घसीटने का कोई औचित्य नहीं है।दरअसल वर्तमान केन्द्र सरकार को कांग्रेस सहित इंडिया गठबंधन में इक_ा हुआ समूचा विपक्ष तो कोई खास चुनौती नहीं दे पा रहा है लेकिन सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इलेक्टोरल बॉन्ड योजना पर दिया फैसला परेशानी में डालने वाला साबित हो सकता है। 2024 के लोकसभा चुनाव जैसे जैसे नजदीक आते जा रहे हैं भारतीय जनता पार्टी पूरे जोरशोर से अपने गठबंधन के लिए चार सौ सीटों के आंकड़े के लिए हर संभव प्रयास कर रही है। इलेक्टोरल बॉन्ड योजना भी सरकार की ऐसी ही योजना है जिसके माध्यम से भारतीय जनता पार्टी ने विपक्ष से बहुत ज्यादा चुनावी फंड जुटाया है। सर्वोच्च न्यायालय की संवैधानिक पीठ ने लगभग पांच साल बाद यह फैसला सुनाया है कि केन्द्र सरकार द्वारा शुरु की गई इलेक्टोरल बॉन्ड योजना असंवैधानिक है। विपक्षी दलों के साथ साथ बहुत सी समाजसेवी संस्थाओं और प्रबुद्ध नागरिकों द्वारा इस योजना का विरोध किया जा रहा था जबकि भारतीय जनता पार्टी और उसकी केन्द्र सरकार इस योजना को ऐतिहासिक बताकर खुद अपनी पीठ थपथपा रही थी। हालांकि केन्द्र सरकार इस योजना को चुनाव प्रक्रिया में काले धन के उपयोग को रोकने का कारगर उपाय बता रही थी और यह तर्क दे रही थी कि कंपनियों द्वारा इलेक्टोरल बॉन्ड चैक द्वारा खरीदे जाएंगे इसलिए चुनाव में काले धन का लेन देन कम हो जाएगा। विपक्ष और योजना के विरोध में खड़े लोग सबसे ज्यादा इस योजना की अपारदर्शिता और सत्ताधारी दल द्वारा दुरुपयोग की संभावना से चिंतित थे। उनका मानना था कि इस योजना में दानदाता कंपनियों के नाम गुप्त रहने से सरकार कंपनियों को अपने ही दल को ज्यादा चंदा देने के लिए बाध्य कर सकती है और उन्हें जांच एजेंसियों से डरा धमकाकर अवैध वसूली भी कर सकती है और नई नीतियों द्वारा उन्हें लाभ पहुंचाने का लालच देकर भी धन वसूली कर सकती है जो एक तरह से घूसखोरी की श्रेणी में आता है। इसके अलावा केंद्र में सत्ताधारी दल दानदाता कंपनियों पर यह दबाव भी डाल सकता है कि वे विरोधी दलों को चंदा न दें।
इलेक्टोरल बॉन्ड योजना के दुरुपयोग के बारे में जिस तरह की संभावनाएं सर्वोच्च न्यायालय के सामने लंबित याचिकाओं में बताई गई थी सर्वोच्च न्यायालय ने उन्हें सही माना है। इसका एक दस्तावेजी प्रमाण यह भी है कि इस योजना के आने के बाद से कंपनियों द्वारा लगभग साठ प्रतिशत दान अकेले भारतीय जनता पार्टी को ही दिया गया है। सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी माना है कि दानदाताओं के नाम गुप्त रखना जनता से सूचना छिपाना है जबकि चुनावी प्रक्रिया और उसमें भी राजनीतिक दलों को मिलने वाला चंदा पूर्णत: पारदर्शी होना चाहिए। यही कारण है कि सर्वोच्च न्यायालय ने स्टेट बैंक ऑफ इंडिया को निर्देशित किया है कि वह तय समय सीमा में इन बॉन्ड की पूरी जानकारी केन्द्रीय चुनाव आयोग को उपलब्ध कराए ताकि केंद्रीय चुनाव आयोग इस जानकारी को जनता को उपलब्ध करा सके। हालांकि कुछ प्रबुद्ध जन यह चिंता जता रहे हैं कि केंद्र सरकार इस फैसले को निष्क्रिय करने के लिए अध्यादेश ला सकती है। यदि ऐसा हुआ तो चुनावी वर्ष में विपक्ष इस मुद्दे पर भारतीय जनता पार्टी को घेर सकता है। सरकार के लिए यह फैसला निश्चित रूप से नुकसान दायक है।प्रधानमंत्री के बयान को इस परिपेक्ष्य में भी देखने की आवश्यकता है।