विचार / लेख

80-90 बरस के हो गए तो क्या?
06-Mar-2024 4:37 PM
80-90 बरस के हो गए तो क्या?

अपूर्व गर्ग

यमराज आते हैं और अक्सर अकेले भी लौटते हैं। आजकल की सुपरस्पेशलिटी ब्रीड मरीजों को मरने नहीं देती ये और बात है आजकल की बेरहम दुनिया जीने नहीं देना चाहती।

दुनिया बदल चुकी है पर 80-90+के लोगों को बदलकर इस बदलाव को समझना चाहिए।

आप इतनी जल्दी ‘टाटा बाई बाई’ नहीं कर पाएंगे । बेहतर है 100+ की तैयारी भी रखें।

आज का विज्ञान आपको सिर्फ डायबिटीज, हार्ट, बीपी, न्यूरो, कैंसर आदि। इत्यादि की वजह से रुखसत होने नहीं देगा।

आज का विज्ञान आपको बूढ़ा होने भी नहीं देता। विटामिन ई-सी- डी, मिनरल्स, ट्रेस एलिमेंट्स, एंटी ऑक्सीडेंट्स की बहार के साथ ही नए नए एंटी ऐजिंग ऐसे -ऐसे सप्लीमेंट्स हैं जो चेहरे को चमकाए रखेंगे और हसरतों की रौशनी बुझने नहीं देंगे तब तक जब तक नियमित आप अपनी बैटरी रिचार्ज करते रहेंगे।

वो दिन ढल गए जब रामू काका साठ बरस के बूढ़े हुआ करते आज के काका तो 60 के बाद नए सिरे से बॉडी को शेप दे रहे, कभी जिम में झांकिए!

आज 103 बरस के यावर अब्बास साहब जश्न -ए-रेख़्ता का चिराग लंदन में जिस तरह जलाते दीखते हैं। सबकी उम्मीदों के चिराग़ जलने लगते हैं। ये वही शानदार पत्रकार यावर अब्बास साहब हैं जिन्होंने 100 बरस की उम्र में ब्याह कर दुनिया को बताया कि जब तक है जान जीते रहो। बुझो मत।

एक यावर अब्बास साहब ही नहीं हैं और भी दुनिया में सुखऩ-वर बहुत अच्छे। जरा देखिये तो।

याद करिये कैसे कोलकाता के मनोहर आइच 104 बरस की उम्र तक डम्बल बेंच प्रेस करते रहें थे।

कैसे वडोदरा में हुए टूर्नामेंट की 100 मीटर की दौड़ में हरियाणा की 105 वर्षीय रामाबाई ने अकेले दौड़ कर मैडल जीता।

कल्पा, हिमाचल प्रदेश के श्याम सरन नेगी 105 बरस की उम्र में भी अपना वोट डालकर लोकतंत्र को महकाया, उनकी यादें महकती रहेंगी।

हाल ही में साढ़े 100 के हो चुके डॉक्टर रामदरश मिश्र को साहित्यिक कार्यक्रम में तने हुए और खिंचती सेल्फियों के बीच मुस्कुराते देखा ।

आज अकेले ये रामदरश मिश्र जी की तस्वीर नहीं है बल्कि ये आज की दुनिया की वो तस्वीर है जो बिल्कुल बदल चुकी।

दुनिया बदल चुकी, जीवन बदल चुका पर नहीं बदले तो इस देश के लोगों के चींटी की तरह की रेंगती सोच और कछुए की तरह रेंगते विचार!

जागो भाई , घर की खिडक़ी और दिमाग पर लदे हुए सुस्त विचारों के पर्दे हटाओ।

और देखिये।

कितनी सुंदर तस्वीरें सामने हैं।

अपने थके-हारे, निराश, अवसाद में डूबे ,मौत की आहट से घबराये, बूढ़े-जर्जर शरीर नहीं। सुन्न दिमाग पर पड़े कुहासे और हताशा के पर्दे को उठा कर आशा की इन किरणों को भीतर आने दीजिये।

देखिये, ये किरणें कितनी उम्मीद से भरी हैं।

देखिये, इनमें जिजीविषा की आशा कैसे मचल रही है।

देखिये, ये कितनी उत्साहवर्धक, प्रेरणादायी, ऊर्जा-विटामिन और प्रोटीन से भरपूर तस्वीरें हैं, खबरें हैं।

अगर बूढ़ा न होने की ख़्वाहिश रखते हैं ,अगर सौ बरस के उस पार भी उत्साह से जीने की तमन्ना है तो ज्ञान-विज्ञान आपके साथ है ।विज्ञान दिन -प्रतिदिन नयी रौशनी ला रहा। आप भी अपनी उमीदों के चिराग बुझने मत दीजिये।

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