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अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस भारत की महिलाएं क्या समृद्ध और सशक्त हो रही हैं?
08-Mar-2024 1:41 PM
अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस  भारत की महिलाएं क्या समृद्ध और सशक्त हो रही हैं?

 ऋत्विक दत्ता

हम साल 2024 में हैं। कई क्षेत्रों में महिलाओं की प्रगति के बावजूद ये सवाल कायम है कि स्वास्थ्य, कार्यस्थल, कारोबार और राजनीति में महिलाओं की मौजूदा स्थिति क्या है?

पिछले वक्त की तुलना में भारत की महिलाएं प्रगति कर पा रही हैं या नहीं, ये जानने और हमने उभरते हुए ट्रेंड को समझने के लिए भारत सरकार के डेटा का विश्लेषण किया।

अगर हम अलग-अलग क्षेत्रों में महिलाओं के प्रतिनिधित्व की बात करें तो भारत सरकार के डेटा से ये पता चलता है कि पिछले कुछ सालों की तुलना में इसमें सुधार हुआ है।

हालांकि, विश्लेषक मानते हैं कि अगर करीब से इस पर नजर रखी जाए तो अभी भी सुधार की गुंजाइश है।

हमने कुछ क्षेत्रों में महिलाओं की मौजूदगी की समीक्षा की ताकि विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के प्रतनिधित्व को समझा जा सके।

श्रमशक्ति में महिलाएं

सरकार नियमित समय पर श्रमिकों का सर्वे कराती है। इसके डेटा से ये पता चलता है कि श्रमशक्ति में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ा है।

साल 2017-18 में श्रमिकों में महिलाओं की हिस्सेदारी 23.3 प्रतिशत थी जो साल 2020-21 में बढक़र 32.5 प्रतिशत हो गई है।

भारत में श्रमिक महिलाओं की संख्या बढ़ी है लेकिन ये चुनौतियों के बीच एक उम्मीद की तरह ही नजऱ आती है।

बढ़ी हुई संख्या के बावजूद, हज़ारों महिलाएं ऐसी हैं, जिन्होंने कोविड के दौरान और बाद में काम छोड़ दिया। आबादी के अनुपात में पुरुषों की बराबरी में पहुंचने के लिए महिला श्रमिक अब भी संघर्ष कर रही हैं।

आंबेडकर यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर दीपा सिन्हा असंगठित क्षेत्र में श्रमिकों से जुड़े सटीक डेटा की कमी को रेखांकित करते हुए कहती हैं कि इसी वजह से श्रमिकों के लैंगिग अनुपात को समझना और भी जटिल हो जाता है।

शिक्षा पूरी करने के बावजूद बच्चों को जन्म देने, मातृत्व अवकाश और बराबर वेतन जैसी चुनौतियों की वजह से कर्मचारियों में महिलाओं की मौजूदगी अब भी चुनौतीपूर्ण बनी हुई है।

डॉ. सिन्हा ज़ोर देकर कहती हैं, ‘बहुत सी महिलाएं या तो अपनी मर्जी से या फिर दबाव में शिक्षा और काम छोड़ देती हैं और इसी वजह से नेतृत्व वालों पदों पर उनका प्रतिनिधित्व और कम हो जाता है।’

वो कहती हैं कि निर्णय लेने वालों पदों में बदलाव रातोरात नहीं हो पाएगा लेकिन कार्यस्थलों पर लैंगिक बराबरी के साथ बेहतर और सुरक्षित माहौल बनाना ज़्यादा महत्वपूर्ण है।

एसटीईएम में पुरुषों से आगे निकली महिलाएं

उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वे के सबसे ताज़ा डेटा से पता चला है कि शैक्षणिक वर्ष 2020-21 में भारत में 29 लाख से अधिक महिलाओं ने एसटीईएम (विज्ञान, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और गणित) विषयों में दाखिला लिया है। ये संख्या पुरुषों से अधिक है। इसी दौरान 26 लाख पुरुषों ने इन विषयों में दाखिला लिया।

2016-17 में एसटीईएम विषयों में दाखिले के मामले में महिलाएं पुरुषों से पीछे थीं। हालांकि साल 2017-18 में इन विषयों में महिलाओं की संख्या बढ़ी और अगले ही साल यानी 2018-19 में महिलाओं ने इन विषयों में दाखिला लेने के मामले में पुरुषों को पीछे छोड़ दिया।

ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट के मुताबिक भारत में कुल एसटीईएम कर्मचारियों में महिलाएं 27 प्रतिशत हैं। हालांकि अब भी पुरुषों और महिलाओं के वेतन में गैर बराबरी बहुत ज़्यादा है।

लैंगिग वेतन असामनता के मामले में भारत 146 देशों की सूची में 127वें नंबर पर है।

प्रोफेसर दीपा सिन्हा कहती हैं कि एसटीईएम विषयों में लैब तक पहुंच और प्रयोग करना बेहद अहम होता है।

दीपा सिन्हा ज़ोर देकर कहती हैं कि ऐसे संसाधनों तक महिलाओं की पहुंच इस क्षेत्र में महिलाओं की प्रगति को बनाये रखती है।

इस सेक्टर में देर रात तक कार्यस्थलों पर सुरक्षा चिंताओं पर ध्यान दिया जाना चाहिए और नीति निर्माताओं को और अधिक जि़म्मेदार होना चाहिए।

संसद में प्रतिनिधित्व

भारतीय संसद के निचले सदन लोकसभा में साल 1999 में 48 महिला सदस्य थीं जिनकी तादाद साल 2019 में बढक़र 78 पहुंच गई। इसके बाद हुए कुछ स्थानीय चुनावों और उपचुनावों की वजह से ये संख्या और भी बढ़ गई है।

राज्यसभा में भी ऐसा ही ट्रेंड देखने को मिल रहा है। राज्यसभा के लिए नामित होने वाली महिलाओं की संख्या साल 2012 में 9.8 प्रतिशत से बढक़र साल 2021 में 12.4 प्रतिशत तक पहुंच गई।

हालांकि इससे राजनीति में महिलाओं का प्रतिनिधित्व भले ही बढ़ता हुआ दिख रहा है लेकिन पुरुषों की तुलना में ये भी भी बहुत कम ही है।

इकोनॉमिक फ़ोरम की जेंडर पे गैप रिपोर्ट के मुताबिक़ महिलाओं के राजनीतिक सशक्तीकरण के मामले में भारत 146 देशों की सूची में 56वें नंबर पर है।

ग़ौरतलब है कि बांग्लादेश ने महिलाओं के राजनीतिक सशक्तीकरण में भारत को पीछे छोड़ते हुए शीर्ष दस देशों में स्थान हासिल किया है।

बिजनेस स्टैंडर्ड की कंसल्टिंग एडिटर और वरिष्ठ पत्रकार राधिका सामाशेषन कहती हैं कि देश में हुए पहले चुनाव से लेकर अब तक राजनीति में महिलाओं की मौजूदगी में इजाफा हुआ है हालांकि अब भी भारत में महिलाओं को अपनी आबादी के हिसाब से संसद में प्रतिनिधित्व नहीं मिला है।

रामाशेषन कहती हैं कि ये सिर्फ किसी एक राजनीतिक दल तक ही सीमित नहीं हैं। साथ ही, महिला आरक्षण विधेयक अब भी क़ानून नहीं बना है और इसी वजह से राजनीतिक दलों में अभी ये लागू नहीं हो सका है।

स्वास्थ्य

नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे के ताजा डेटा के मुताबिक़ भारत में अब 18 प्रतिशत महिलाओं का बीएमआई (बॉडी मास इंडेक्स ) अभी कम है। हालांकि साल 2015-16 में ये 22.9 प्रतिशत था।

हालांकि, कम वजऩ वाली महिलाओं की संख्या भले ही कम हुई है लेकिन मोटापा पुरुषों के मुकाबले में महिलाओं में अधिक प्रचलित है। सर्वे से पता चलता है कि भारत में 24 प्रतिशत महिलाएं मोटापे का शिकार हैं जबकि पुरुषों में ये संख्या 22.9 प्रतिशत है।

पोषण से जुड़ी चिंताओं के साथ-साथ, डेटा से पता चलता है कि महिलाओं के सभी आयु वर्गों में एनीमिया लगातार बढ़ रहा है।

 

भारत में 15-49 आयु वर्ग की 57।2 प्रतिशत महिलाएं एनीमिक हैं, ये साल 2015-16 में 53.2 प्रतिशत था। इसी आयु वर्ग की गर्भवती महिलाओं में आयरन की कमी दिखाई देती है।

सेंटर फॉर सोशल मेडिसिन एंड कम्यूनिटी हेल्थ से जुड़ी डॉ। स्वाति एचआईवी फिज़़ीशियन हैं। डॉ। स्वाति कहती हैं कि चिकित्सा शिक्षा को सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से कुछ स्वास्थ्य मुद्दों को देखने में अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है।

भारत जैसे देश में जहां खाद्य ज़रूरतें पूरा करने के मामले में पुरुषों को प्राथमिकता दी जाती है, एनीमिया पोषण की कमी और गऱीबी की वजह से भी होता है। इसकी वजह से महिलाएं सभी ज़रूरी पोषक तत्व हासिल नहीं कर पाती हैं और एनीमिया और कुपोषण की शिकार महिलाओं की तादाद बढ़ जाती है। (bbc.com/hindi)

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