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ईरान के पास क्या इसराइल से बदला लेने की क्षमता है?
04-Apr-2024 3:35 PM
ईरान के पास क्या इसराइल से बदला लेने की क्षमता है?

बरन अब्बासी

ईरान ने कहा है कि सीरिया की राजधानी दमिश्क में उसके वाणिज्यिक दूतावास पर इसराइल के कथित हमले का वह जवाब देगा।

सीरिया में ईरान के राजदूत ने कहा है कि उस हमले में इस्लामिक रिवॉल्युशनरी गार्ड्स कोर (आईआरजीसी) के सात और सीरिया के छह नागरिक सहित कुल 13 लोग मारे गए हैं।

मारे गए लोगों में ब्रिगेडियर जनरल मोहम्मद रजा जाहेदी भी थे। वे आईआरजीसी की विदेशी शाखा ‘कुद्स फोर्स’ के एक अहम व्यक्ति थे।

इसराइल ने अभी तक इस हमले पर कोई टिप्पणी नहीं की है, लेकिन ईरान और सीरिया ने उस हमले के लिए इसराइल को दोषी ठहराया है।

लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में इंटरनेशनल रिलेशंस के प्रोफेसर फवाज गेर्जेस ने कहा, ‘यह न केवल ईरान बल्कि रिवॉल्युशनरी गार्ड्स कोर फोर्स के शीर्ष नेतृत्व पर भी हमला था।

इससे कुद्स फोर्स को बड़ा नुकसान हुआ, जो लेबनान में हिज़बुल्लाह और सीरिया के साथ समन्वय और हथियार और तकनीक ट्रांसफर के लिए बड़ा धक्का है।’

ईरान के वरिष्ठ अधिकारियों ने इस हमले की नाराजग़ी भरी आलोचना की और इसराइल के खिलाफ जवाबी कार्रवाई की धमकी दी।

ईरान के सर्वोच्च नेता आयातुल्लाह अली ख़ामेनेई ने चेतावनी देते हुए कहा, ‘हम उन्हें यह अपराध करने और ऐसी कार्रवाई करने पर पछताने को मजबूर करेंगे।’

ईरान के राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी ने इस हमले को ‘अमानवीय, आक्रामक और घृणित काम’ बताया और कहा कि इसका जवाब दिया जाएगा।

साल 1979 में ईरान की इस्लामिक क्रांति ने पश्चिम को चुनौती देने वाले नेतृत्व को सत्ता में आने का मौका दिया और तभी से ईरानी नेता इसराइल को मिटाने की बात करते रहे हैं।

ईरान, इसराइल के अस्तित्व को स्वीकार नहीं करता है और उसका कहना है कि इसराइल ने मुसलमानों की ज़मीन पर अवैध कब्जा कर रखा है।

दूसरी तरफ, इसराइल भी ईरान को एक खतरे के तौर पर देखता है। उसने हमेशा ही ये कहा है कि ईरान के पास परमाणु हथियार नहीं होने चाहिए।

ईरान और इसराइल की सीमाएं एक-दूसरे से नहीं लगतीं। लेकिन इसराइल के पड़ोसी देशों जैसे लेबनान, सीरिया और फिलस्तीन में ईरान का प्रभाव साफ दिखता है।

सीरिया के विदेश मंत्री से फोन पर बात करते हुए ईरानी विदेश मंत्री हुसैन अमीर-अब्दुल्लाहियन ने इस हमले को सभी अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारियों और समझौतों का उल्लंघन करार दिया।

उन्होंने इसके लिए सीधे इसराइल पर उंगली उठाई। ईरान के विदेश मंत्रालय की वेबसाइट पर हुसैन अमीर-अब्दुल्लाहियान ने कहा कि इसराइली प्रधानमंत्री बिन्यामिन नेतन्याहू ‘पूरी तरह से अपना मानसिक संतुलन खो चुके हैं’।

जानकारों ने बीबीसी को बताया है कि इन बयानों से जाहिर है कि गजा युद्ध के बीच इसराइल और ईरान के सहयोगियों के बीच हिंसा की आशंका और बढ़ गई है। हालांकि ईरान की जवाबी कार्रवाई का दायरा सीमित रह सकता है।

पश्चिम एशिया मामलों के जानकार अली सद्रजादेह कहते हैं, ‘ईरान अपनी सैन्य क्षमता और आर्थिक-राजनीतिक स्थिति को देखते हुए इसराइल के साथ बड़ा टकराव लेने में अक्षम है। लेकिन घरेलू राजनीति के लिए इसे जवाब देना होगा। अपने क्षेत्रीय सहयोगियों के बीच इसे अपनी प्रतिष्ठा की भी रक्षा करनी होगी।’

यही राय फवाज गेर्जेस की भी है। वे मानते हैं कि इसराइल के खिलाफ ईरान सीधा जवाबी कार्रवाई नहीं करेगा।

वे कहते हैं, ‘इसराइल ने भले ईरान को अपमानित किया और उसने ईरान की नाक में दम कर दिया।’

गेर्जेस का कहना है कि ईरान के ‘रणनीतिक धैर्य‘ रखने की संभावना है, क्योंकि वो इससे कहीं अधिक बड़े लक्ष्य ‘परमाणु बम बनाने’ को प्राथमिकता देगा।

वे कहते हैं, ‘वो ताकत इक_ा कर रहा है। वो यूरेनियम को संवर्धित कर रहा है और आगे बढ़ रहा है। ईरान के लिए बड़ा प्राइज 50 बैलिस्टिक मिसाइलें भेजकर 100 इसराइली लोगों को मारना नहीं, बल्कि इसराइल और अमेरिका के खिलाफ भी ‘स्ट्रैटिजिक डिटरेंस’ कायम करना है।’

गजा युद्ध के बाद से ही सीरिया, इराक, लेबनान और यमन में इसराइल के खिलाफ ईरान समर्थित लड़ाकों के मिसाइल और ड्रोन हमले बढ़ गए हैं। लेकिन ऐसा लगता है कि वे अपने हमले सीमित रखना चाहते हैं, ताकि इसराइल से पूर्ण युद्ध न हो।

सद्रजादेह कहते हैं, ‘ईरान की प्रॉक्सी ताकतों द्वारा इसराइली राजनयिक मिशन के खिलाफ हमले की कल्पना करना भी मुश्किल है, लेकिन लाल सागर और अदन की खाड़ी में इसराइल या अमेरिका से जुड़े जहाजों के खिलाफ ईरान समर्थक हूती विद्रोहियों के मौजूदा हमलों के जारी रहने की बहुत संभावना है।’

लेकिन क्या ईरान समर्थित हिजबुल्लाह लड़ाके दमिश्क हमले का जवाब देंगे?

हिजबुल्लाह भारी हथियारों से लैस दुनिया के सबसे बड़े गैर-सरकारी सैन्य बलों में से एक है।

अनुमान के अनुसार, इस संगठन में 20 से 50 हज़ार लड़ाके कार्यरत हैं और सीरिया के गृह युद्ध में भागीदारी निभाने के कारण ये अच्छी तरह से प्रशिक्षित और मज़बूत हैं।

सेंटर फॉर स्ट्रैटिजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज थिंक-टैंक के अनुसार, इस संगठन के पास लगभग 1.30 लाख रॉकेट और मिसाइलों का विशाल भंडार है।

हालांकि बीबीसी ने जिन जानकारों से बात की, उनके अनुसार यह संगठन इसराइल के खिलाफ कोई बड़ा अभियान शुरू करेगा, इसकी संभावना कम ही है।

फवाज गेर्जेस कहते हैं, ‘हिजबुल्लाह वास्तव में इसराइल के जाल में नहीं फंसना चाहता, क्योंकि उन्हें अहसास है कि बिन्यामिन नेतन्याहू और उनकी युद्ध कैबिनेट लड़ाई का विस्तार करने की ख़ूब कोशिश कर रहे हैं। नेतन्याहू का राजनीतिक भविष्य गजा में युद्ध जारी रहने और उत्तरी मोर्चे पर हिजबुल्लाह और ईरान के साथ इसका विस्तार होने पर निर्भर करता है।’

अली सद्रजादेह का मानना है कि ईरान इसराइल केसाथ युद्ध का जोखिम उठाने के बजाय ‘प्रतीकात्मक’ जवाब ही देगा।

ईरान ने जनवरी 2020 में अमेरिकी ड्रोन हमले में आईआरजीसी के टॉप कमांडर क़ासिम सुलेमानी के मारे जाने के बाद उसके जवाब में बग़दाद के अल असद एयरपोर्ट को निशाना बनाया था।

सद्रजादेह ने आठ जनवरी, 2020 को इराक़ के अल असद हवाई अड्डे पर ईरान की ओर से हुए बैलिस्टिक मिसाइल हमले का जि़क्र करते हुए कहा, ‘ईरान ने अपने सबसे अहम सैन्य कमांडर क़ासिम सुलेमानी की हत्या के जवाब में प्रतीकात्मक हमले ही किए थे।’

ईरान ने उस हत्या का ‘गंभीर बदला’ लेने का वादा किया था। लेकिन ईरान के जवाबी हमले में हवाई पट्टी पर तैनात कोई भी अमेरिकी सैनिक नहीं मारा गया। ऐसी ख़बरें मिलीं कि उस हमले के बारे में अमेरिकी सेना को पहले से ही चेतावनी दे दी गई थी।

फवाज गेर्गेस का मानना है कि दमिश्क स्थित ईरानी वाणिज्यिक दूतावास पर हुआ हमला दुनिया के सामने ईरान की रक्षा ताकत को कमजोर दिखाने और ईरान के सुरक्षा तंत्र की कमर तोडऩे के लिए किया गया।

वर्जीनिया टेक स्कूल ऑफ पब्लिक एंड इंटरनेशनल अफेयर्स में पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन के रिसर्चर यूसुफ अजीजी का मानना है कि ईरान की सत्ता में बैठे लोगों के बीच एक संघर्ष चल रहा है।

एक पक्ष कहता होगा कि इसराइल को रोकने के लिए ईरान को परमाणु शक्ति के रूप में स्थापित करना चाहिए। वहीं दूसरा पक्ष अधिक आक्रामक और उग्र होगा, जो इसराइल और उसके सैन्य प्रतिष्ठानों पर सीधे हमले का सुझाव देंगे।

लेकिन बीबीसी से उन्होंने कहा कि सरकारी मीडिया और सोशल मीडिया के विश्लेषण से पता चलता है कि ‘रणनीतिक धैर्य’ बनाए रखने के समर्थकों का पलड़ा भारी रहने की संभावना है।

ऐसे में सवाल उठता है कि ईरान के लोगों के लिए दूसरे कौन से रास्ते खुले हैं?

इसराइली इंस्टीट्यूट फॉर साइबर पॉलिसी स्टडीज के ताल पॉवेल ने बीबीसी को बताया, ‘हम इस बात से इनकार नहीं कर सकते कि ईरान शायद इसराइल से बदला लेने के लिए साइबरस्पेस का उपयोग कर सकता है।’

उन्होंने कहा, ‘हम जानते हैं कि पिछले डेढ़ दशक के दौरान ईरान और इसराइल के बीच गुप्त साइबर युद्ध चल रहा है। इसलिए ये इसका केवल एक और स्टेज हो सकता है।’

यह ईरान पर निर्भर करेगा - और विशेष रूप से ईरान के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नासिर कनानी कहते हैं कि होने वाली कार्रवाई ईरान पर ख़ासकर इसके सर्वोच्च नेता पर निर्भर करेगा।

उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा, ‘ईरान के पास जवाब देने का अधिकार सुरक्षित है। जवाब देने के तरीके और हमला करने वालों की सजा का फैसला ईरान ही करेगा।’

ईरान ने पिछले कुछ सालों में तकनीकी क्षेत्र में तरक्की की है, उसके पास अब एडवांस ड्रोन से लेकर लंबी दूरी वाली मिसाइलें तक हैं। उसके पास वो हथियार हैं, जिनके बलबूते वह इसराइल का सामना कर सकता है। लेकिन फिर भी वह इससे बचना चाहेगा।

हथियार इसराइल के पास भी हैं। लेकिन इसराइल के पास अमेरिका का साथ है। कहीं भी जंग छिड़ी तो इसराइल को अमेरिका का साथ मिलेगा और ये इसराइल के लिए बढ़त की तरह है। ऐसी स्थिति में मुझे नहीं लगता कि ईरान कभी भी इसराइल के साथ सीधी जंग में उतरना चाहेगा। (bbc.com/hindi)

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