विचार / लेख

राहुल सांकृत्यायन और जबलपुर
06-Apr-2024 1:49 PM
राहुल सांकृत्यायन और जबलपुर

अपूर्व गर्ग

जबलपुर से भी राहुल सांकृत्यायन का गहरा सम्बन्ध रहा। वही संबंध जो एक घुमक्कड़ का अपनी प्रिय जगहों से होता है।

कोलंबस और वास्को द गामा  से अलग किस्म की घुमक्कड़ी कर राहुल सांकृत्यायन ने देश ही नहीं दुनिया को भी नापा।

घुमक्कड़ महापंडित ने  तिब्बत से लेकर श्रीलंका और लंदन से लेकर ईरान, जापान, रूस ही नहीं देश के चप्पे -चप्पे का भ्रमण कर बार-बार दोहराया-

‘सैर कर दुनिया की ग़ाफि़ल जि़ंदगानी फिर कहाँ

जि़ंदगी गर कुछ रही तो ये जवानी फिर कहाँ ’

राहुल जी ने दुनिया-देश घुमते हुए जगह -जगह बसेरे बनाये ।

पन्दहा, आज़मगढ़ के बाद कोलकाता रहे , बनारस में  रहे, आगरा-लाहौर में पढ़े ,बिहार उनकी कर्मभूमि रहा, ‘किन्नर प्रदेश मे’ जिए, कालिंपोंग  में किराये पर रहे और अंकक महत्वपूर्ण पुस्तकें लिखीं, मसूरी में बंग्ला खरीदा, कुछ साल रहे और ये लेखन की दृष्टि से उनका महत्वपूर्ण पड़ाव रहा, दार्जलिंग में रहे और यहीं  अंतिम सांस ली।

राहुल सांकृत्यायन का घुमक्कड़ शास्त्र सिर्फ यात्रा वृत्तांत  नहीं है बल्कि भूगोल के साथ  साहित्य, इतिहास, दर्शन, संस्कृति के ग्रन्थ हैं ।

हर शहर और देश पर उनकी कृतियाँ कालजयी हैं ।

हर शहर उनके लिए एक अलग पड़ाव रहा। हर नए शहर के साथ उनकी यादें अलग रहीं।

इनमें जबलपुर का भी विशिष्ट स्थान है ।

जबलपुर सुभद्रा कुमारी चौहान, हरिशंकर परसाई, मुक्तिबोध रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’  ज्ञानरंजन जैसे साहित्यकारों-कवियों का शहर रहा तो इस शहर में  राहुल जी छात्र जीवन से महापंडित बनने तक बार-बार आये जिसका जिक्र नहीं होता ।

जबलपुर वो शहर है जहाँ से महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने 1917  के आस-पास वेद मध्यमा परीक्षा दी और प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की ।

राहुल जी के मित्र हरदत्त जिन्होंने जबलपुर में अपना और राहुल जी का फॉर्म भरा था, जिन्हें पढ़ाया भी राहुल जी करते ,वो भी  प्रथम  श्रेणी से पास हुए   ।जबलपुर की परीक्षा के  लिए राहुल जी ने मीठी पाव रोटी बनाने की कोशिश की थी जो बनाते -बनाते पराठा बन गया था ।

वैसे इससे पहले राहुल जी लम्बे वक्त के लिए जबलपुर आये थे जिसकी कहानी दिलचस्प है ।

1915 में आगरा के आर्यसमाजी विद्यालय पंडित भोजदत्त के मुसाफिर विद्यालय में संस्कृत की शिक्षा के लिए गए राहुल जी की

शिक्षा प्रगति और विद्वता देखते हुए विद्यालय की तरफ से दूसरे शहरों में  संस्कार और व्याख्यान देने के लिए बाहर भेजा जाने लगा ।

सितम्बर 1915 में विद्यालय के डायरेक्टर डॉ लक्ष्मीदत्त और पंडित धर्मदत्त को जबलपुर से मुसलमानों के साथ शास्त्रार्थ करने का निमंत्रण मिला। छात्र होते हुए भी राहुल जी  शास्त्रार्थियों में गिने जाते और संस्कृत के प्रमाणों को जुटाने में  मदद करते इसलिए वो भी इनके साथ जबलपुर आये।

इन्हें जबलपुर के हितकारिणी हाई स्कूल के मकान में ठहराया गया था।

जबलपुर के इस दिलचस्प आर्यसमाज और मुस्लिम शास्त्रार्थ के मध्यस्थ थे वहां के किसी मिशनरी कॉलेज के प्रिंसिपल। राहुल जी ने आगे लिखा है  ‘चारों तरफ खुली जगह में विराट हिन्दू-मुस्लिम जनता शास्त्रार्थ सुनने के लिए बैठी थी। रात के अँधेरे को दूर करने के लिए लालटेनों का काफी इंतजाम था। वक्ताओं को बारी-बारी से बोलना था। समय पूरा होते ही मध्यस्थ घंटी बजा देते।  शास्त्रार्थ का प्रभाव सभी जनता पर एक सा कैसे पड़ता जबकि उनकी सहानुभूतियाँ पहले से ही बँटी हुई थीं।’

दो दिनों तक ये शास्त्रार्थ जबलपुर में चला। इसके बाद राहुल जी तांगे से भेड़ाघाट गए।

जबलपुर शास्त्रार्थ पर उन्होंने कहा था कि अब से उस समय के लोग ज़्यादा विचार सहिष्णु थे।

तीसरी बार राहुल जी आज़ादी के तुरंत बाद जबलपुर आये। 17  अगस्त  1947  को रूस से भारत लौटने के बाद उन्होंने ‘देश का चक्कर’ लगाया।

  हावड़ा, कटक, बालासोर होते हुए वर्धा पहुंचे और वर्धा से गोंदिया फिर छोटी लाइन से 3  अक्टूबर 1947 को पहुंचे जबलपुर।

* 2  अक्टूबर 1947  को जबलपुर के किसी ठेकेदार मल्होत्राजी के नेपियर टाउन निवास में रुके थे ।

* 3  अक्टूबर 1947  को महाकोशल विद्यालय के छात्रों को सम्बोधित किया।

* 4  अक्टूबर को श्री कृष्णा दस जी ,आनंद जी साथी नकवी के साथ भेड़ाघाट गए और भेड़ाघाट और कलचुरी काल की मूर्तियों पर पर एक संक्षिप्त टिप्पणी भी उन्होंने दर्ज की।

शाम उन्होंने जबलपुर की सार्वजानिक सभा को संबोधित किया।

* 5  अक्टूबर 1947  को जबलपुर से जालों जाने के लिए स्टेशन पहुंचे और विभाजन के बाद उड़ रही अफवाहों से भागते लोगों को देखा और इसका पूरा विवरण उन्होंने लिखा ।

जबलपुर शहरनामा के लिए एक महत्वपूर्ण पन्ना होगा राहुल सांकृत्यायन का इस  शहर में बार -बार प्रवास ।

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