विचार / लेख
-प्राण चड्ढा
कभी घड़ियाल कम थे अब चंबल में मगर-घड़ियाल है लेकिन नदी में रेत बजरी का जिस पैमाने में मशीनी उत्खनन हो रहा है वह चिन्तनीय है। कोई चालीस साल हुए मध्यप्रदेश के सीएम अर्जुन सिंह ने एक सम्भाग के पत्रकारों को दूसरे सम्भाग भेजा जाता था ताकि सम्पूर्ण मप्र की समस्याओं और संस्कृति से पत्रकार वाफिक हो सकें। इस योजना के तहत छतीसग़ढ़ के पत्रकारों को चंबल सम्भाग भेजा गया। इसमें छतीसग़ढ़ के पत्रकारों के जत्थे में रायपुर के सुनील कुमार, देशबंधु रायपुर, बिलासपुर से लोकस्वर से मैँ और बिलासपुर टाइम्स से राजू तिवारी भी शामिल थे। लंबे समय के दौरान बाकी पत्रकारों के नाम विस्मृत हो गए हैं। पर बहुत कुछ याद है,जिसपर समय की गर्त पड़ गई थी पर जब इस माह चंबल नदी को देखने का अवसर उसी जगह पर मिला तो अतीत की बाते याद आ गई।
जगह है मुरैना और धौलपुर को जोड़ने वाला विशाल पुल, यह तब कुछ बचे घड़ियालों को बचाने के लिए परियोजना की शुरुवात हुई थी।उनके अंडों को चुनकर लाया जाता उंनको 'इनक्यूबेटर'में हैच किया जाता और बेबी घड़ियालों को कुछ बड़ा होने पर चम्बल नदी में छोड़ा जाता। यह के बड़ी लगन और मेहनत से घड़ियाल बचने टीम वर्क को देखा और समझ गया। छतीसग़ढ़ से जनसम्पर्क अधिकारी श्री वर्मा हमे लेकर गए थे और व्यास जी हमारी जिज्ञासा दूर करते। घड़ियाल परियोजना में आज भी जारी है।
हम पत्रकारों का दल मुरैना के रेस्ट हाउस में रुका था । सन 1980 के आसपास की बात है। तब इंडियन एक्सप्रेस के पत्रकार अश्वनी शिरीन ने चम्बल पर धौलपुर से औरत खरीदी साबित कर दिया कि धौलपुर में यह सब होता है। अश्वनी उसे मोल ले कर मुरैना में इस रेस्ट हाउस में कुछ समय रुके थे। बाद इस घटना पर 'कमला' नाम की फ़िल्म बनी थी। नायक से मार्क जुबेर।
मुरैना में हम पत्रकारों से मिलने कलेक्टर संदीप खन्ना आये। उन्होंने पूछे सवालों का जवाब दिया,इस इलाके में गन कल्चर है, पहली पसन्द गन है। गन मिली तो सम्पति भैस खरीद लेते हैं, फिर विवाह कर लेते हैं।
चम्बल के मुरैना और धौलपुर के बीच पुल में चम्बल प्रदूषण का तब नमोनिशान नहीं था। और न ही रेत बजरी उत्खनन का आज जैसा आलम कभी बनेगा, यह सोच भी ना था। चम्बल के बेटे बागी बन बीहड़ में कूद जाते। मोहर सिंह, मलकाम सिंह, मुस्तकीम, सबके किस्से रविवार में पढ़े जाते।
पर आज माँ चम्बल की दशा ठीक नहीं। घड़ियाल और मगर मुरैना से धौलपुर जाते वक्त लेफ्ट में है और राइट साइड में रेत उत्खन की कोई परियोजना चल रही हो। विशाल मशीनों से उत्खनन और ट्रैक्टरों से बड़ी मात्रा में परिवहन में करते हैं। हां नदी धौलपुर की तरफ और रेत बजरी खनन. पश्चिम की की तरफ चम्बल सफारी।
चम्बल के पानी की राजस्थान में भारतपुर में केवलादेव नेशनल पार्क को भी सप्लाई होती है। यह विश्व धरोहर है जहां वन्य जीवों और प्रवासी परिंदों की हर साल बहुत बड़ी संख्या में शीतकाल व्यतीत कर आते हैं। भरतपुर में भी चम्बल का पानी नागरिकों तक पेयजल के रूप में पहुंचता है। चंबल नदी में हो रहे उत्खनन की खबरें प्रिंट मीडिया की सुर्खियां बनती है। किंतु यह उत्खनन नहीं थम रहा। जिसका बुरा असर नदी कि सेहत पर पड़ना तय है। एक अर्जुन सिंह की सरकार ने चम्बल में लुप्त होते घड़ियाल की वापसी में योगदान दिया दूसरी तरफ शिवराज सिंह की मौजूदा सरकार चम्बल नदी में हो रहे खिलवाड़ को रोक नही पा रही है।