विचार / लेख
-रमेश अनुपम
महान जीनियस और विश्व प्रसिद्ध भाषाविद हरिनाथ डे का जन्म 12 अगस्त सन् 1877 को बंगाल के चौबीस परगना जिले के आडियादह नामक गांव में हुआ था। आडियादह गांव श्रीमती एलोकेशी डे का मायका था।
श्रीमती एलोकेशी डे प्रसव के लिए अपने मायका आई हुई थी। हरिनाथ डे के जन्म के पश्चात जब वह 6 माह का था, राय बहादुर भूतनाथ डे उन्हें अपने साथ रायपुर ले आए थे। उसी यात्रा में उनके अभिन्न मित्र विश्वनाथ दत्त और उनका पूरा परिवार भी नागपुर से बैलगाडिय़ों से रायपुर आया था।
हरिनाथ डे को बचपन से ही श्रीमती एलोकेशी डे बांग्ला वर्णमाला से परिचित करवाने लगी थीं।
हरिनाथ डे दो तीन वर्ष की उम्र से ही कुशाग्र बुद्धि का था। वह अपनी मां द्वारा सिखाए गए बांग्ला वर्णमाला को तुरंत याद कर लेता था। वह सीखे हुए वर्णमाला को घर की दीवारों पर, दरवाजे पर कोयला से लिख भी देता था। उन्ही दिनों विश्वनाथ दत्त का परिवार भी डे भवन में ही रुका हुआ था।
श्रीमती एलोकेशी डे एक विदुषी महिला थी। वह बांग्ला भाषा के साथ ही अंग्रेजी, हिंदी तथा मराठी भाषा की भी अच्छी जानकार थी। हरिनाथ डे के पांच वर्ष के हो जाने पर प्राथमिक शिक्षा के लिए उसे मिशन स्कूल में दाखिल करवाया गया।
प्राइमरी स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए गवर्नमेंट स्कूल में भर्ती करवाया गया।
इसी समय की एक घटना है। हरिनाथ डे का एक मित्र था नाटू जो उसी की क्लास में पढ़ता था। नाटू पढ़ाई-लिखाई में होशियार था जबकि हरिनाथ डे पढ़ाई-लिखाई में बहुत कमजोर था।
एक दिन वह किसी काम से नाटू के घर गया था। नाटू के पिता भी उस दिन घर पर थे, वे हरिनाथ डे को देखते ही क्रोधित हो उठे। उन्होंने हरिनाथ डे को न केवल भविष्य में अपने घर पर आने के लिए मना किया वरन् अपने पुत्र से भी उसे अलग हो जाने के लिए कहा। हरिनाथ डे को पूरी क्लास में पढ़ाई में सबसे अधिक कमजोर विद्यार्थी माना जाता था। इसलिए नाटू के पिता नहीं चाहते थे कि हरिनाथ डे के साथ उसका बुद्धिमान पुत्र दोस्ती रखे।
मिडिल स्कूल में आने के बाद पता नहीं क्यों हरिनाथ डे का मन पढ़ाई में न लगकर अन्य विषयों में ज्यादा लगता था। वह स्कूल से भागकर बगीचे में बैठा रहता था। उस दिन हरिनाथ डे नाटू के घर से अपमान का घूंट पीकर लौटा था।
घर आकर उसने सारी बातें सच-सच अपने पिता भूतनाथ डे को बता दी। पिता भी जानते थे कि हरिनाथ डे की रिपोर्ट स्कूल में कोई बहुत अच्छी नहीं है। स्कूल के एक-दो शिक्षक भी उन्हें यह बता चुके थे। बालक हरिनाथ डे के लिए यह बेहद मर्मांतक घटना थी, उसने कभी सोचा नहीं था कि नाटू के पिता उसे इस तरह से अपमानित करेंगे।
पिता को लगा कि यही समय है जब हरिनाथ डे को शिक्षा के महत्व के बारे में बताया जाए। लोहा जब गर्म हो जाता है तभी उसे कोई आकार दिया जा सकता है, लोहा एकदम गर्म था ,इसलिए बिना देर किए भूतनाथ डे ने अपने बेटे को प्यार से समझाया।
उसने अपने बेटे से कहा कि तुम्हें जो कुछ भी पढऩे-लिखने के लिए चाहिए, वह सब मैं तुम्हें लाकर दूंगा। इस तरह भूतनाथ डे उसे रायपुर में प्रसिद्ध पारसी की दुकान में ले जाते और हर तरह की किताबें दिलवाते। पिता और मां के प्रेम तथा प्रेरणा के फलस्वरूप बालक हरिनाथ डे का मन पढऩे-लिखने में लगने लगा। अब हरिनाथ डे पहले वाला मंद बुद्धि का हरिनाथ डे नहीं रहा,अब वह पूरी तरह से बदल चुका था।
मिडिल स्कूल में पढ़ते-पढ़ते हरिनाथ डे का संपर्क एक ईसाई मिशनरी के फॉदर से हुआ। उस फॉदर ने बालक हरिनाथ डे की प्रतिभा को भांप लिया था सो उसने हरिनाथ डे को बाइबिल का हिंदी में अनुवाद करने के लिए कहा। बालक हरिनाथ डे ने कुछ ही दिनों में बाइबिल का हिंदी अनुवाद करके उसे सौंप दिया था।
सन् 1890 में हरिनाथ डे ने मिडिल स्कूल की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। मिडिल स्कूल में सर्वाधिक अंकों से परीक्षा पास करने पर आगे पढऩे के लिए उन्हें सरकार की ओर से स्कॉलरशिप प्रदान की गई। आगे की पढ़ाई के लिए हरिनाथ डे को कोलकाता भेजा गया।
सन 1891 में हरिनाथ डे का एंट्रेंस क्लास में दाखिला कोलकाता के सुप्रसिद्ध स्कूल सेंट जेवियर्स में करवाया गया। सन 1892 में हरिनाथ डे ने एंट्रेंस क्लास की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। एंट्रेंस की परीक्षा पास करने के बाद हरिनाथ डे ने सन 1893 में सेंट जेवियर्स कॉलेज में प्रवेश लिया जहां से वे सन् 1894 में एफ.ए. की परीक्षा फस्र्ट डिवीजन से पास की।
सन् 1895 में 18 वर्ष में उनका विवाह कोलकाता के नंदलाल बसु की सुकन्या शरत शोभा देवी के साथ संपन्न हुआ।
(शेष अगले रविवार)