बिलासपुर
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
करगी रोड (कोटा), 25 मार्च। मारवाड़ी अग्रवाल समाज की महिलाओं के द्वारा गणगौर की पूजा बड़े धूमधाम से 16 दिन मनाने के बाद शुक्रवार शाम को स्थानीय बंधुवा तलाब में विसर्जन किया।
राजस्थान का प्रसिद्ध त्यौहार है गणगौर। राजस्थानी परंपरा के लोक उत्सव में राजस्थान के महिलाएं पूरे हिंदुस्तान में कोने-कोने बसे हुए हैं, और यह मारवाड़ी समाज के महिलाओं के लिए प्रमुख लोक पर्व का त्यौहार है। होली के दूसरे दिन से यह त्यौहार पूजा पाठ की परंपरा 16 दिनों तक चलती है।
कुंवारी लड़कियां एवं महिलाओं का त्यौहार है। विवाहिता एवं कुमारी सभी वर्ग की महिलाएं गणगौर का पूजा करती है। गणगौर शब्द भगवान शिव और पार्वती के नाम से बना है। गण याने भगवान शिव और गौर यानी पार्वती इसलिए शिव पार्वती की पूजा के रूप में इस त्यौहार को बड़ी धूम-धाम से राजस्थानी महिलाएं मनाती है, एवं होली के दूसरे दिन से 16 दिनों तक लड़कियां प्रतिदिन प्रात: काल ईश्वर गणगौर की पूजा करती हैं।
जिस कन्या की शादी हो जाती है, वह शादी के प्रथम वर्ष अपने पीहर जाकर गणगौर की पूजा करती है। इस कारण से सुहाग का पर्व भी कहा जाता है, और चैत्र शुक्ल तृतीया को राजा हिमाचल की पुत्री गौरी का विवाह शंकर भगवान के साथ हुआ था, उसी के याद में यह त्यौहार मनाया जाता है।
गणगौर की पूजा पाठ करने के बाद दोपहर को गणगौर को कुएं या बावड़ी से पानी लाकर पिलाया जाता है। पानी पिलाने के बाद गणगौर को गेहूं चने से बनी घूघरी का प्रसाद लगाकर सब को बांटा जाता है, और फिर लड़कियां गीत गाती हैं, तत्पश्चात 17वें दिन गणगौर का विधि विधान पूजा पाठ कर संध्याकालीन गाजे-बाजे के साथ गीत गाते हुए स्थानीय तलाब में भक्ति भाव से विसर्जन किया गया, जिसमें समस्त मारवाड़ी समाज की महिलाएं एवं बच्चे शामिल होते हैं।