राजपथ - जनपथ
अपनी पार्टी से तिरछे-तिरछे- 1
महात्मा गांधी की 150वीं जयंती के मौके पर विधानसभा के विशेष सत्र में ड्रेस कोड में न आकर पूर्व मंत्री अमितेश शुक्ल ने पार्टी हाईकमान की नाराजगी मोल ले ली है। सदन में सत्ता और विपक्ष के सदस्य एक जैसे ही पोशाक पहनकर आए थे। अमितेश ने विशेष पोशाक तो सिलवाई थी, लेकिन पहनकर नहीं आए। बाकी सदस्यों की तरह अमितेश की पोशाक का खर्च भी शायद विधानसभा ने ही उठाया था। उन्हें सादे कपड़ों में देखकर विपक्षी सदस्यों ने काफी चुटकी ली। खास बात यह है कि विधानसभा अध्यक्ष डॉ. चरणदास महंत की पहल पर गांधी जयंती को यादगार बनाने के लिए पहली बार देश के किसी राज्य में विशेष सत्र बुलाया गया, इसकी राष्ट्रीय स्तर पर सराहना हो रही है। ऐसे मौके पर अमितेश के असंयमित व्यवहार ने पार्टी नेताओं को नाराज कर दिया। वे सदन में बोलने का मौका नहीं मिलने पर एक बार बहिर्गमन भी कर गए। सुनते हैं कि अमितेश के तौर-तरीकों से प्रदेश प्रभारी पीएल पुनिया और विधानसभा अध्यक्ष डॉ. महंत भी नाखुश बताए जाते हैं, जो कि अब तक उनके प्रति विशेष सद्भावना रखते रहे हैं।
जोगी परिवार नामौजूद
दो दिनी विशेष सत्र में जोगी दंपत्ति की गैर मौजूदगी भी चर्चा में रही। चर्चा है कि अजीत जोगी, फर्जी जाति प्रमाण पत्र प्रकरण की कानूनी लड़ाई में व्यस्त थे, तो डॉ. रेणु जोगी, अपने पुत्र अमित जोगी के जेल में होने के कारण परेशान चल रही थीं। हालांकि एक महीने जेल में रहने के बाद अमित को जमानत मिल गई, लेकिन तब तक सत्र का समापन हो चुका था।
अपनी पार्टी से तिरछे-तिरछे-2
प्रदेश भाजपा ने यह फैसला तो ले लिया है कि कांग्रेस के साथ भाजपा नेता किसी भी टीवी डिबेट अथवा अन्य संवाद में शामिल नहीं होंगे। मगर, पार्टी के नेता इसकी परवाह नहीं कर रहे हैं। पार्टी के इस फरमान की पार्टी-प्रवक्ता श्रीचंद सुंदरानी ने धज्जियां उड़ा दी। दो दिन पहले उन्होंने गोदड़ीधाम के एक कार्यक्रम में सीएम भूपेश बघेल का न सिर्फ स्वागत किया बल्कि उन्होंने साथ फोटो खिंचवाने का आग्रह किया। मुख्यमंत्री ने भी हंसकर उनके साथ फोटो खिंचवाया, साथ ही सुंदरानी पर चुटकी भी ली कि फोटो दिल्ली भेज देना...। मगर, सुंदरानी इससे बेपरवाह रहे और पूरे कार्यक्रम में सीएम के आगे-पीछे होते रहे और उनके साथ मजाक करते दिखे।
राम के रूप अनेक
पिछले दिनों छत्तीसगढ़ में गांधी पर चर्चा होते-होते गोडसे और सावरकर से होते हुए राम पर पहुंच गई। अब राम तो हर किस्म की परिस्थिति में इस तरह इस्तेमाल किए जाते हैं कि कण-कण में राम की बात सही लगती है। कृषि मंत्री रविन्द्र चौबे के राम और भाजपा के राम का फर्क बहस का सामान बन गया, और कांग्रेस, भाजपा के लोग कुछ इस तरह एक-दूसरे पर टूट पड़े कि तुम्हारा राम मेरे राम से अधिक उजला कैसे? राम की भक्ति किसी डिटर्जेंट की झकास सफेदी जैसी हो गई, और लोग अपने किस्म के, अपनी पसंद के राम के गुणगान में लग गए। लोगों को हिन्दी कहावत-मुहावरे का कोष या लोकोक्ति कोष देखना चाहिए कि राम का कितनी तरह का इस्तेमाल भाषा में होता है। पहली मुलाकात पर राम-राम से लेकर गोली खाने के बाद की बिदाई के हे राम तक, राम के अनगिनत रूप हैं। रामचरित मानस राम के व्यक्तित्व के सैकड़ों पहलू अलग-अलग घटनाओं में इस तरह बताता है कि मानो किसी हीरे के सैकड़ों पहलू हों। अब जो जिधर से देखे उसे राम वैसे ही दिखते हैं, और छत्तीसगढ़ में जहां हत्यारा गोडसे गोडसेजी हो गया है, वहां पर तो हर व्यक्तित्व के एक से अधिक पहलू दिखाई पड़ रहे हैं। भाजपा के सबसे दिग्गज विधायकों में से एक, और संसदीय कार्य मंत्री रहे हुए अजय चंद्राकर ने किसी चूक के तहत गोडसेजी नहीं कहा था, यह उनका सोचा-समझा बयान था, और इस बयान पर रामनाम की कौन सी कहावत या कौन से मुहावरे को ठीक समझा जाए, यह सोचकर देखें। ([email protected])
व्यापारियों के लिए सुनहरा मौका
सोशल मीडिया ने लोगों का हास्यबोध और व्यंग्यबोध बड़ा बढ़ा दिया है। अब पेशेवर व्यंग्यकार या व्यंग्यचित्रकार ही यह काम नहीं करते हैं, सभी लोग करते हैं। अब बिना तम्बाकू और बिना सुपारी वाला एक ऐसा मुखवास बाजार में आया जिसका नाम जीएसटी है। अब यह शब्द लोगों की जिंदगी को मुश्किल बनाने वाला, लोगों को तबाह करने वाला साबित हुआ है, लेकिन यह शब्द प्रचलन में तो खूब है, इसलिए जीएसटी नाम के माऊथ फ्रेशनर को गजब स्वादिष्ट टकाटक कहा गया है। लोगों ने इसकी तस्वीरों के साथ लिखना चालू कर दिया है कि व्यापारियों के लिए यह एक सुनहरा मौका है, पहले जीएसटी ने उन्हें खाया, अब वे जीएसटी को खा सकते हैं।
एक तो शुक्रगुजार मिला...
नंबर प्लेट से छेडख़ानी करना हिन्दुस्तान में बाहुबल का प्रदर्शन है। किसी ओहदे की ताकत, किसी धर्म या जाति की ताकत, या महज ढेर सारे पैसे की ताकत से लोग नंबर प्लेट पर छेडख़ानी करते हैं। लेकिन कुछ लोग ताकत के बजाय अपनी कमजोरी बताने के लिए भी नंबर प्लेट का इस्तेमाल करते हैं, जैसे एक नंबर प्लेट की तस्वीरें सोशल मीडिया पर तैर रही हैं- ससुराल से सहायता प्राप्त।
लोग इस ईमानदारी की तारीफ भी कर रहे हैं कि आमतौर पर तो लोग पाया हुआ छुपा लेते हैं और उजागर नहीं करते हैं कि उसमें किसी का योगदान भी है। लेकिन ऐसी नंबर प्लेट वाले लोग कम से कम इतनी ईमानदारी तो दिखा रहे हैं कि यह दहेज में मिली गाड़ी है। ([email protected])
विरोधी से बाद में, अपनों से पहले...
चित्रकोट उपचुनाव में कांग्रेस और भाजपा के बीच कांटे की टक्कर देखने को मिल सकती है। दोनों ही दलों के प्रत्याशियों को भीतरघात का सामना करना पड़ सकता है। हालांकि इससे निपटने के लिए दोनों ही दलों के रणनीतिकार मेहनत कर रहे हैं। सुनते हैं कि कांग्रेस के एक निर्वाचित जनप्रतिनिधि को साफ तौर पर बता दिया गया है कि यदि किसी तरह की गड़बड़ी हुई, तो उनका पार्टी में कोई भविष्य नहीं रह जाएगा।
चर्चा है कि उक्त नेता मौजूदा कांग्रेस प्रत्याशी के नाम पर सहमत नहीं थे। चेतावनी के बावजूद पार्टी के कुछ नेता चुनाव में भीतरघात की संभावना से इंकार नहीं कर रहे हैं। कुछ इसी तरह की आशंका भाजपा के रणनीतिकारों को भी है। दरअसल, भाजपा प्रत्याशी लच्छूराम कश्यप का स्थानीय बड़े नेताओं से मतभेद रहा है। चुनाव संचालक केदार कश्यप से भी उनके मधुर संबंध नहीं रहे हैं। बस्तर ग्रामीण के जिला अध्यक्ष बैदूराम कश्यप से तो उनका छत्तीस का आंकड़ा रहा है। दंतेवाड़ा में बुरी हार से पार्टी के कार्यकर्ता वैसे ही पस्त हैं। प्रदेश में सरकार भी नहीं है। ऐसे में भाजपा के रणनीतिकारों को एकजुटता के लिए ही काफी मेहनत करनी पड़ रही है।
टिकट त्रिपुरा से तय होगी?
भाजपा में महापौर-पार्षद टिकट के लिए दावेदार बड़े नेताओं के आगे-पीछे हो रहे हैं। पूर्व केन्द्रीय मंत्री रमेश बैस के राज्यपाल बन जाने से भाजपा की गुटीय राजनीति में एक बड़ा बदलाव आया है। बैस विशेषकर रायपुर संभाग में अपने समर्थकों को टिकट दिलाने के लिए हर संभव कोशिश करते थे। बैस के राज्यपाल बनने के बाद ऐसे लोगों ने उम्मीद नहीं छोड़ी है। एक पार्षद ने अभी से ऐलान कर दिया है कि उनकी टिकट त्रिपुरा से तय होगी। पिछले दिनों पार्टी की बैठक में बैनर-पोस्टर में अन्य नेताओं के साथ बैसजी की तस्वीर होने पर कांग्रेस ने आपत्ति की थी। भाजपा नेताओं को इसका अंदेशा भी था, लेकिन बैसजी के ही कार्यालय के कुछ लोगों ने उनकी तस्वीर हटाने से रोक दिया। अब देखना है संवैधानिक पद पर रहते बैसजी अपने करीबियों की किस तरह मदद कर पाते हैं।
गांधी और गोडसेजी का हफ्ता
छत्तीसगढ़ विधानसभा के इस विशेष गांधी सत्र ने जाने कितने बरसों के बाद गांधी को इस तरह बहस के बीच लाकर खड़ा कर दिया। और पन्द्रह बरसों के भाजपा राज के बाद प्रदेश में आई कांग्रेस सरकार ने अपनी पहली गांधी जयंती का मौका नहीं चूका, और समय-समय पर भाजपा के लोगों के गांधी के खिलाफ कही बातों के पोस्टर बनवाए, और गोडसे की जो तारीफ सार्वजनिक रूप से की गई थी, उसके भी पोस्टर बनवाए। ऐसे में जाहिर था कि भाजपा की तरफ से राजधानी रायपुर के मेयर का चुनाव लडऩे के एक महत्वाकांक्षी भाजपा नेता संजय श्रीवास्तव इन पोस्टरों का विरोध करने पहुंचे, और कुछ पोस्टरों को फाड़कर फोटोग्राफरों को मौका भी दिया। कांग्रेस का मकसद पूरा हो गया क्योंकि उसे इन पोस्टरों को चर्चा में लाना था जो कि सच थे, लेकिन कड़वा सच थे।
विधानसभा के भीतर एक सबसे चौकन्ना विधायक, भाजपा के लंबे समय तक मंत्री रहे अजय चंद्राकर ने जिस अंदाज में गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को गोडसेजी कहा, उससे भी कांग्रेस का मकसद पूरा हो गया।
लेकिन कांग्रेस और भाजपा के गांधी और गोडसे को लेकर जो भी मकसद हों, उनसे अलग आम जनता यह देखकर हक्का-बक्का थी कि छत्तीसगढ़ के बड़े-बड़े भाजपा नेता इस मौके पर भी गांधी की आलोचना करने से अपने आपको नहीं रोक पाए, और गांधी से उनके वक्त के उनके साथी नेताओं की असहमति गिनाने में लगे रहे। जाहिर है कि आम लोगों के बीच भाजपा के नेताओं ने ऐसा करके अपनी साख खासी खोई, और खेलों की जुबान में गोडसेजी जैसा सेल्फ गोल कर लिया।
लेकिन गांधी जयंती के भी बाद, और विधानसभा के गांधी सत्र के भी बाद आज गांधी की चली राह पर चलकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अगुवाई में कांग्रेस पार्टी धमतरी जिले के कंडेल से रायपुर तक की पदयात्रा कर रही है, और यह पूरा हफ्ता गांधीमय हो गया है। गांधी जिन्हें पसंद हों, और जिन्हें नापसंद हों, वे इस हफ्ते की अलग-अलग बातों को छांटकर खुश हो सकते हैं। लेकिन कुछ लोगों के लिए फिक्र वाली भी एक खबर है। गांधी की अस्थियों का कलश चोरी हो जाने का समाचार आया है, और जिन लोगों को फिल्म गांधी बनाने वाले रिचर्ड एटनबरो की बनाई एक दूसरी फिल्म, जुरासिक पार्क, याद हो, वे लोग सोच सकते हैं कि गांधी की अस्थियों से अगर एक गांधी खड़ा किया जा सका तो क्या होगा? खासकर सत्ता में बैठे लोगों के लिए गांधी को झेलना बड़ा मुश्किल पड़ेगा, उतनी सादगी, और उतनी किफायत से जीना हो, तो लोग मुश्किल चुनाव लड़कर सत्ता पर आने की कोशिश ही क्यों करेंगे?
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भाजपा खुद सुधरने में लगी...
दंतेवाड़ा में करारी हार के बाद भाजपा चित्रकोट उपचुनाव एकजुट होकर लडऩे की कोशिश कर रही है। दंतेवाड़ा में एक तरह से पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह और उनके करीबी नेता ही चुनाव प्रचार की कमान संभाले हुए थे, जिसके नतीजे अच्छे नहीं रहे हैं। राज्यसभा सदस्य रामविचार नेताम सहित अन्य दिग्गज नेताओं ने दूरियां बना ली थी। ये सभी पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह से नाराज बताए जा रहे हैं। उन्होंने दंतेवाड़ा चुनाव के माहौल के बीच ही अंतागढ़ के मंतूराम पवार के भाजपा प्रवेश के खिलाफ बहुत कड़ा बयान दिया था जो कि मंतूराम को भाजपा लाने वाले लोगों पर खुला और सीधा हमला था। वे भाजपा के राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति मोर्चे के अध्यक्ष भी हैं, इसलिए आदिवासियों के मुद्दों पर उनकी ऐसी खुली-खुली और खरी-खरी बातें पार्टी के खिलाफ गईं।
सुनते हैं कि पार्टी अब असंतुष्टों को भी साधने की कोशिश कर रही है। महामंत्री (संगठन) पवन साय ने खुद रामविचार नेताम से बात की है और उन्हें चित्रकोट से पार्टी प्रत्याशी लच्छूराम कश्यप के नामांकन दाखिले के मौके पर मौजूद रहने का आग्रह किया। नेताम ने उनकी बात मान ली है। चूंकि चित्रकोट में चुनाव संचालन की जिम्मेदारी नारायण चंदेल को दी गई है, जो कि पूर्व सीएम के विरोधी खेमे से जुड़ेे हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि असंतुष्ट नेता भी उनके साथ जुड़ेंगे। कुल मिलाकर दंतेवाड़ा से सबक सीखकर पार्टी चित्रकोट में एकजुटता से चुनाव लड़ेगी, यह संकेत मिल रहा है।
इस बीच आज चित्रकूट के लिए जगदलपुर में नामांकन के लिए इक_ा हुए भाजपा के भीतर के पक्ष-विपक्ष के नेताओं की जो तस्वीर सामने आई है, उनमें उनके चेहरे पार्टी का हौसला बढ़ाते नहीं दिख रहे हैं।
हनीट्रैप के दौर में...
अब यह सही और गंभीर बात है या किसी ने मजाक में ऐसा पर्चा बांटना शुरू किया है, जो भी हो आज का वक्त कुछ ऐसा ही हो गया है कि प्रेमसंबंधों और देहसंबंधों में लोगों को सावधानी बरतने की जरूरत है। लोगों को याद होगा कि कुछ बरस पहले तक गुजरात में शादी से परे के औरत-मर्द के संबंधों के लिए इसी किस्म का एक मैत्रीकरार होता था जिसमें एक निर्धारित समय के लिए आदमी-औरत साथ रहते थे, और फिर बिना किसी दावे के अलग हो जाते थे, उनका एक-दूसरे पर किसी तरह का दावा नहीं बचता था। अब वैसे ही एक दूसरे पर्चे के दर्शन हो रहे हैं। लेकिन जैसा कि हर कानूनी कागजात में होता है, इसके लिए गवाह कैसे रखे जाएंगे? उतना राजदार किसको बनाया जाएगा? ([email protected])
राजनीतिक हड़बड़ाहट...
नान घोटाले की एसआईटी जांच से पिछली सरकार में प्रभावशाली रहे नेता-अफसर हड़बड़ाए हुए हैं। पिछले दिनों प्रकरण के आरोपी एसएस भट्ट के बयान के बाद तो खंडन-मंडन के लिए पूरी भाजपा सामने आ गई। उनकी हड़बड़ाहट का अंदाजा इस बात से लगाया जा रहा है कि सोशल मीडिया में खबर उड़ी कि भट्ट के धारा-164 के आवेदन को जिला अदालत ने खारिज कर दिया है, भाजपा ने सीएम भूपेश बघेल का इस्तीफा तक मांग लिया। पूर्व सीएम रमन सिंह ने तो एक कदम आगे जाकर सीबीआई जांच की मांग कर दी। जबकि वस्तु स्थिति यह है कि भट्ट ने अब तक धारा-164 का बयान देनेे के लिए अदालत में आवेदन तक नहीं लगाया है।
कुछ इसी तरह की हड़बड़ाहट हाईकोर्ट में भी बहस के दौरान देखने को मिली। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विक्रम उसेंडी ने सीबीआई जांच की मांग को लेकर हस्तक्षेप याचिका दायर की है। सुनवाई के दौरान सीबीआई के वकील ने कहा कि कोर्ट ऑर्डर करती है, तो प्रकरण की जांच के लिए सीबीआई तैयार है। इस पर जज ने पूछा कि क्या आपने लिखित में जवाब दिया है? वकील ने कहा कि जवाब जमा नहीं हुआ है। इस पर जज ने कहा कि जनहित याचिकाओं पर सुनवाई चार साल से चल रही है, लेकिन सीबीआई को नोटिस का जवाब देने के लिए समय तक नहीं मिला। जज की टिप्पणी से सीबीआई के वकील खामोश होकर रह गए।
गुंडागर्दी और पुलिस
छत्तीसगढ़ में एक तरफ ट्रैफिक पुलिस सड़क-चौराहों पर छोटे-छोटे दुपहिए वालों को बिना हेल्मेट पकड़कर जुर्माना कर रही है, दूसरी तरफ इसी प्रदेश में पुलिस के सामने ही सत्ता और राजनीति से जुड़े हुए लोगों की बड़ी-बड़ी गाडिय़ां बिना नंबरप्लेट, शीशों पर काली फिल्म लगाए, पूरी तरह गैरकानूनी सायरन बजाते हुए अंधाधुंध दौड़ती हैं, और अगर पुलिस जरा भी हौसला दिखाती तो ये मिनटों के भीतर किसी न किसी चौराहे पर धरी गई होतीं, और अदालत से इन्हें दसियों हजार का जुर्माना हुआ होता। अब जब सत्ता और विपक्ष की ताकत वाले लोगों की ऐसी गुंडागर्दी पर पुलिस कुछ नहीं करती, तो आम लोगों के मन में न सिर्फ कानून के लिए, बल्कि पुलिस के लिए भी भरपूर हिकारत खड़ी हो जाती है। जिन लोगों पर सबसे बड़ा जुर्माना लगना चाहिए, एबुंलेंस, दमकल, या पुलिस की गाड़ी जैसे सायरन बजाने पर जिनकी गिरफ्तारी होनी चाहिए, उनको छुआ भी नहीं जाता तो लोग सोशल मीडिया पर ऐसी तस्वीरें पोस्ट करने लगते हैं जो कि पुलिस के लिए एक आईना होना चाहिए। लोगों को याद पड़ता है कि एक वक्त देश की राजधानी दिल्ली में देश की पहली महिला आईपीएस किरण बेदी ने प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की कार का चालान कर दिया था, तो इंदिरा ने उन्हें बुलाकर अपने साथ खाना खिलाया था। अबके नेताओं को भी उससे कुछ सीखना चाहिए।
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दंतेवाड़ा में छप्पर फाड़कर...
दंतेवाड़ा में कांग्रेस की उम्मीद के विपरीत भारी जीत ने भाजपा नेताओं को हिलाकर रख दिया है। भाजपा को शहरी इलाके दंतेवाड़ा, किरंदुल, गीदम, बड़े बचेली और बारसूर में बड़ी उम्मीदें थीं। लेकिन दंतेवाड़ा और किरंदुल को छोड़कर बाकी जगह भाजपा पिछड़ गई। कांग्रेस प्रत्याशी को साढ़े 11 हजार मतों से जीत मिली। जो कि पिछले 40 सालों में किसी भी पार्टी की सबसे बड़ी जीत है। आमतौर पर यहां त्रिकोणीय संघर्ष की स्थिति रहती थी और कोई भी प्रत्याशी अधिकतम 10 हजार वोट से ज्यादा अंतर से नहीं जीत पाता था।
सुनते हैं कि प्रदेश भाजपा पदाधिकारियों की बैठक में करारी हार का असर दिखा और तकरीबन सभी पदाधिकारी खामोश होकर वक्ताओं की बात सुनते रहे। किसी ने अपनी तरफ से कोई राय नहीं दी। अलबत्ता लंच ब्रेक के दौरान आपसी चर्चा में पार्टी पदाधिकारी यह कहते सुने गए कि बृजमोहन अग्रवाल को प्रभार दिया गया होता, तो नतीजा कुछ अलग होता। ये अलग बात है कि खुद बृजमोहन अग्रवाल ने पारिवारिक व्यस्तता के चलते संचालन करने का प्रस्ताव ठुकरा दिया था। पूर्व सीएम रमन सिंह हार के बाद अपनी प्रतिक्रिया में यह जरूर कहा कि दंतेवाड़ा में हार का बदला चित्रकोट में लेंगे। मगर पार्टी के प्रमुख रणनीतिकारों को चित्रकोट में कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही है। बस्तर के एक पूर्व विधायक ने अभी से पार्टी के कुछ नेताओं को कह दिया है कि चित्रकोट में हार का अंतर दंतेवाड़ा से ज्यादा होगा। क्योंकि दंतेवाड़ा में तो पार्टी के पास सौम्य-शिक्षित महिला प्रत्याशी थी और साथ ही साथ पति की नक्सल हत्या के कारण सहानुभूति की लहर की उम्मीद थी जो कि नहीं चल पाई। चित्रकोट तो कांग्रेस की सीट रही है, जिसे छीनना किसी चमत्कार से कम नहीं होगा। खैर, जितनी मुंह, उतनी बातें।
हनीट्रैप के जांच अफसर...
मध्यप्रदेश के चर्चित हनीटै्रप प्रकरण की जांच कर रही एसआईटी के मुखिया संजीव शमी का छत्तीसगढ़ से नाता रहा है। 93 बैच के आईपीएस शमी अपने कैरियर के प्रारंभिक दिनों में बस्तर में पदस्थ रहे हैं। प्रशिक्षु पुलिस अफसर के रूप में वे चारामा में काम कर चुके हैं। उनकी सख्त कार्यशैली को आज भी लोग याद करते हैं। इस प्रकरण में छत्तीसगढ़ के अफसरों, पूर्व मंत्रियों की भी संलिप्तता की चर्चा है। मगर इन सब पर छत्तीसगढ़ पुलिस की चुप्पी लोगों को चौंका रही है। उम्मीद की जा रही थी कि यहां से भी एक टीम भोपाल पतासाजी के लिए भेजी जाएगी। लेकिन पीएचक्यू ने खामोशी ओढ़ ली है। चर्चा तो यह भी है कि पुलिस के कुछ अफसर भी हनी ट्रैप के शिकार हो सकते हैं। एक अफसर के कई बार के छत्तीसगढ़ के ही एक जिले के प्रवास को भी इसी नजरिए से देखा जा रहा है। इन सबके बावजूद प्रकरण को दबाना मुश्किल है। क्योंकि मध्यप्रदेश सरकार इसमें पूरी रूचि ले रही है और सच जल्द ही सामने आने की उम्मीद है। ([email protected])
हनी ट्रैप का एक असर...
छत्तीसगढ़ के पुलिस मुख्यालय में एक बड़े आईपीएस अफसर टेबिल पर चाय के गर्म पानी के साथ शक्कर और शहद दोनों का इंतजाम रखते थे, जिसे जो पसंद हो। पिछले चार दिनों से भोपाल के हनी ट्रैप के समाचार देख-देखकर उन्होंने शहद की बोतल हटवा दी, जिसे मिलाना हो शक्कर ही मिलाए।
हनी ट्रैप का दूसरा असर...
मध्यप्रदेश पुलिस ने दिल्ली इलाके में एक मकान किराए से ले रखा था जिसे साइबर जांच की जरूरत बताया गया था। अब सरकार उसे खाली कर रही है कि प्रदेश से इतने दूर ऐसे फ्लैट की जरूरत क्या है। ऐसी भी चर्चा है कि मध्यप्रदेश में पकड़ाए हनी ट्रैप की शहद की बोतलें गाजियाबाद के इस मकान में आती-जाती रहती थीं।
इधर छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में बीते कई बरसों में इंटेलीजेंस विभाग के कुछ अफसरों ने सेफ हाऊस के नाम पर मकान किराए से ले रखे थे, उन्हें लेकर भी अब यह चर्चा है कि वहां की वीडियोग्राफी कौन और किसके लिए करवाते थे, आज वह किसके पास है, और किस-किसके पल्लू ऐसी हार्डडिस्क में दबे हुए हैं?
हनीट्रैप का तीसरा असर...
भोपाल के हनीट्रैप में जब्त डायरियां सामने आईं तो हिसाब-किताब देखकर पुलिस भी हक्का-बक्का रह गई। छत्तीसगढ़ के कुछ लोगों ने इस डायरी के मुताबिक किस्तों में भुगतान किया, जो कि अभी जारी ही है, कुछ ने इन दोनों प्रदेशों से बाहर जाकर भुगतान किया, और अलग-अलग रेट से भुगतान किया। दिक्कत यह आ रही है कि नामों के संक्षिप्त अक्षरों, इनीशियल्स, से जिन नामों का अंदाज बैठ रहा है, वे एक से अधिक भी हो रहे हैं। पिछली सरकार के एक मंत्री, और एक बड़े अफसर, दोनों के नामों के इनीशियल्स एक से हैं, और इनमें से एक खूब भड़के हुए हैं कि दूसरे की वजह से उनका नाम बदनाम हो रहा है। बाकी भी बहुत से ऐसे संक्षिप्त नामों की उसी तरह संदर्भ सहित व्याख्या हो रही है, जिस तरह स्कूल में हिन्दी के पर्चे में होती थी। लोग अपने नामों वाले संक्षिप्त नाम को गलत बताते हुए यह भी कह रहे हैं कि इन्हीं दो अक्षरों से तो देश के सबसे महान व्यक्ति का नाम भी बनता है, तो क्या उसे भी इसमें गिन लोगे?
हनीट्रैप का चौथा असर...
फिलहाल छत्तीसगढ़ के राज्य सचिवालय, पुलिस मुख्यालय में आने-जाने वालों के नाम के रजिस्टरों की जांच हो सकती है कि कुछ खास तारीखों पर कुछ लोगों के भीतर जाने के पास किस मंत्री या अफसर की तरफ से बनवाए गए थे, या रजिस्टर में किससे मिलने का जिक्र था। जांच अफसरों को मोबाइल फोन के कॉल डिटेल्स के साथ फोन की लोकेशन से फोन मालकिनों की लोकेशन का अंदाज लग रहा है। और ऐसे रजिस्टरों की जिंदगी पर खतरा मंडराना बताया जा रहा है।
तब वे मांग रहे थे सीबीआई, अब ये...
प्रदेश भाजपा के मुखिया विक्रम उसेंडी भी नान घोटाले की लड़ाई में कूद पड़े हैं। उन्होंने हाईकोर्ट में याचिका दायर कर कहा है कि इस प्रकरण में रमन सरकार को बदनाम करने की कोशिश हो रही है और इसकी निष्पक्ष जांच के लिए प्रकरण सीबीआई को सौंप देना चाहिए। इस प्रकरण पर एसआईटी जांच रूकवाने के लिए भाजपा विधायक दल के मुखिया धरमलाल कौशिक पहले ही कोर्ट की शरण में गए हैं। पार्टी के कई बड़े नेता दबी जुबान में जनहित के विषयों को छोड़कर जांच रूकवाने के लिए कोर्ट जाने के फैसले को गलत ठहरा रहे हैं।
सुनते हैं कि खुद उसेंडी भी आनाकानी कर रहे थे। पर हल्ला है कि कुछ बड़े नेताओं, और एक बड़े राष्ट्रीय नेता के कहने पर हाईकोर्ट में हस्तक्षेप याचिका दायर की। उसेंडी की तरफ से पैरवी के लिए सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष विकास सिंह आए थे। विकास सिंह, अमन सिंह के भी वकील हैं। प्रकरण पर सुनवाई तीन तारीख को होगी। दिलचस्प बात यह है कि पिछली सरकार में नान घोटाले का खुलासा होने के बाद सीबीआई अथवा कोर्ट की निगरानी में एसआईटी जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट में चार जनहित याचिका दायर हुई थीं।
ये याचिकाएं हमर संगवारी, वीरेन्द्र पाण्डेय, वकील सुदीप श्रीवास्तव और एक अन्य द्वारा दायर की गई थीं। तब रमन सरकार ने सीबीआई अथवा कोर्ट की निगरानी में एसआईटी जांच के खिलाफ थी और कोर्ट में अपना पक्ष मजबूती से रखने के लिए नामी-गिरामी वकील खड़े किए थे। याचिकाकर्ताओं की तरफ से कपिल सिब्बल, प्रशांत भूषण और विवेक तन्खा व संजय हेगड़े पैरवी कर रहे थे, तो सरकार ने भी हरीश साल्वे, मुकुल रोहतगी और रविन्द्र श्रीवास्तव को खड़ा किया था। तब सरकार को बड़ी राहत मिली थी और प्रकरण को सुनवाई के लिए हाईकोर्ट भेज दिया गया। तब से अब तक इस हाईप्रोफाइल प्रकरण को लेकर तलवारें खिंची हुई हैं। प्रकरण का आखिर क्या होगा, यह कोई नहीं जानता, लेकिन जिस तरह दिग्गज वकील दोनों पक्षों की पैरवी के लिए आ रहे हैं, उससे लोगों में उत्सुकता बनी हुई है। ([email protected])
शांत करने की कोशिशें...
सत्ता हाथ से जाने के बाद भाजपा के कई बड़े कारोबारी नेता सरकार के रणनीतिकारों से मेलजोल बढ़ा रहे हैं। कुछ को तो सफलता भी मिल गई है और वे बड़े बंगले के करीब आ गए हैं। इनमें पिछली सरकार में संवैधानिक पद पर रहे एक नेता का नाम प्रमुखता से लिया जा रहा है। ये भाजपा नेता अब दूसरों के लिए संकटमोचक साबित हो रहे हैं।
सुनते हैं कि नेताजी ने सीएम और पूर्व सीएम के बीच खटास को दूर करने का बीड़ा उठाया है। पूर्व सीएम और उनका परिवार कई तरह की जांच के घेरे में है। अदालत से एक जांच से राहत मिलती है, तो दूसरा प्रकरण सामने आ जाता है। कुल मिलाकर जांच से पूर्व सीएम-परिवार परेशान बताए जाते हैं। हालांकि भाजपा नेता को अब तक अपनी मुहिम में सफलता नहीं मिल पाई है। मगर वे कोशिश में जुटे हैं। उनके इस काम में अपने समधी का भी पूरा सहयोग मिल रहा है।
भाजपा का हाल यह है कि दो-तीन विधायकों को छोड़ दें, तो बाकी सब सीएम के मुरीद हैं। सरगुजा और बिलासपुर संभाग के भाजपा नेता तो सरकार के एक मंत्री के करीब आ चुके हैं। उन्हें मंत्रीजी से कारोबारी संरक्षण मिल रहा है। भाजपा नेताओं में सत्ता के करीब आने की बेचैनी की खबर पार्टी हाईकमान को भी है। एक-दो को बुलाकर समझाइश भी दी जा चुकी है, फिर भी कोई असर नहीं दिख रहा है। चर्चा है कि पार्टी संगठन, निकाय और पंचायत चुनाव के जरिए नए चेहरों को आगे लाने की कोशिश भी कर सकती है। देखना है आगे-आगे होता है क्या...।
छत्तीसगढ़ के शहदखोर...
मध्यप्रदेश के हनी ट्रैप के तार छत्तीसगढ़ से जुड़े होने की बात सामने आ रही है। इनमें एक आईएएस, एक आईपीएस और एक आईएफएस के साथ-साथ एक पूर्व मंत्री का नाम प्रमुखता से लिया जा रहा है। जिस आईएएस का नाम हनी ट्रैप में होने की चर्चा है, वह अपने सीनियर अफसरों से बदजुबानी के लिए कुख्यात रहा है। साथ ही पिछली सरकार में पॉवरफुल भी रहा। आईपीएस अफसर की रंगरेलियों के किस्से तो प्रशासनिक और राजनीतिक हल्कों में चर्चा का विषय रहा है। पूर्व गृहमंत्री ने तो सीएम को पहले ही उक्त आईपीएस अफसर की करतूतों से अवगत करा दिया था। जिस आईएफएस का नाम चर्चा में है, वह हमेशा खबरों में ही रहा है। वैसे तो आधा दर्जन आईएफएस अफसरों के नाम लिए जा रहे हैं, लेकिन ये अफसर हैदराबाद और अन्य जगह ही जाना ज्यादा पसंद करते रहे हैं। फिलहाल, लोग नए-नए नाम गिनाकर चुटकियां ले रहे हैं, जितने मुंह उतनी बातें। जिसको-जिसको जिससे हिसाब चुकता करना है, वे उस नाम का संभावित रिश्ता गिनाते हुए भोपाल की तस्वीरें और वीडियो आगे बढ़ा रहे हैं। कल सुबह एक मंत्री का नाम शुरू हुआ था, और रात होते-होते बात तीन नामों तक पहुंच गई। अब सेक्स की चर्चा ही ऐसी होती है कि टी-शर्ट के धागे की तरह, अगर खिंच गई, तो फिर खिंचती ही चली जाती है।
मठ की जमीन का धंधा
रावणभाठा के निकट अंतरराज्यीय बस स्टैण्ड का निर्माण पूर्णता की ओर है। यह बस स्टैण्ड दूधाधारी मठ की जमीन पर बना है। बस स्टैण्ड शुरू तो नहीं हुआ है, लेकिन यहां दुकान हथियाने का खेल शुरू हो गया है। सुनते हैं कि कुछ लोगों ने खुद को मठ का करीबी बताकर दुकान दिलाने के नाम पर कईयों से पैसे भी ले लिए हैं। यह भी विश्वास दिलाया जा रहा है कि दुकान आबंटन में मठ का पूरा हस्तक्षेप रहेगा।
मठ के मुखिया महंत रामसुंदर दास हैं, जो कि सत्ताधारी दल से जुड़े हैं और दो बार विधायक भी रह चुके हैं। महंतजी खुद दुकान आबंटन में रूचि लेंगे या नहीं, यह साफ नहीं है। मगर उनके नाम का दुरूपयोग होने की चर्चा है। कहा तो यह भी जा रहा है कि देर सबेर आबंटन के बाद एक बड़े गिरोह का पर्दाफाश हो सकता है।
मठों की जमीन की लूटपाट कोई नई बात नहीं है। कांगे्रस और भाजपा दोनों पार्टियों के कई बड़े-बड़े नेता सरकार या अदालत के कुछ गड़बड़ आदेश जुटाकर धर्म के नाम की संपत्ति पर कब्जा करने, खरीदने, और बेचने के धंधे में लंबे समय से लगे हुए हैं। कई मठों के मठाधीश भी अपनी पसंद की औरतों को जमीनों से उपकृत करने का लंबा इतिहास बना चुके हैं, और एक मठ के महंत तो ऐसी ही औरतबाजी के मामले में एक कत्ल करवा बैठे थे, जिससे बचने के लिए उस वक्त के एक मुख्यमंत्री के कहे लंबा-चौड़ा दान करके जानबख्शी पाई थी। इसलिए कहने के लिए तो यह कहा जाता है कि चोर का माल चंडाल खाए, लेकिन हकीकत यह रही है कि मठ का माल बदमाश खाए।
सेक्स के तार भोपाल से रायपुर तक...
मध्यप्रदेश के इंदौर-भोपाल में सेक्स के जाल में फंसाकर नेताओं, अफसरों, और कारोबारियों से करोड़ों की ब्लैकमेलिंग के मामले में भोपाल से रायपुर तक खलबली मची हुई है। सौ के करीब वीडियो मिले हैं, और पुलिस उनमें चेहरों की शिनाख्त करने में लगी हुई है। सेक्स रैकेट चलाने वाली महिलाओं के टेलीफोन कॉल डिटेल्स में मध्यप्रदेश-छत्तीसगढ़ के जिन लोगों के नंबर मिले हैं, उन्हें देखा जा रहा है, और भोपाल की होटलों में ठहरने वाले छत्तीसगढ़ के इन लोगों की जानकारी जुटाई जा रही है। वहां जांच कर रहे अफसर इन नंबरों की लोकेशन और भोपाल की इन सुंदरियों के फोन की लोकेशन मिलाकर भी देख रही है कि कब-कब ये लोग साथ में रहे। इस बीच जो नाम हवा में तैर रहे हैं, उनके मुताबिक छत्तीसगढ़ के एक आईएएस का नाम भी आ रहा है, एक आईपीएस और एक आईएफएस का नाम भी आया है। पिछली भाजपा सरकार के एक मंत्री का भी वीडियो मिलना बताया जा रहा है। अब जांच का दायरा छत्तीसगढ़ में इस हद तक पहुंच सकता है कि इन बड़े अफसरों और मंत्रियों से इन महिलाओं ने नगद के अलावा और कौन से काम करवाए हैं।
मध्यप्रदेश से यह खबर भी मिली है कि वहां ई-टेंडरिंग में जो हजारों करोड़ का घोटाला हुआ है, उसमें भी प्रभाव डालने के लिए इन वीडियो का इस्तेमाल हुआ था। अब एक सवाल यह उठता है कि छत्तीसगढ़ में भी चिप्स में ऐसा टेंडर घोटाला हुआ है जो कि अफसरों की भागीदारी से ही हो पाया था। अब साबित कुछ हो या न हो, कम से कम जांच की आंच तो वहां तक पहुंच ही सकती है। रायपुर में कल पूरा दिन मंत्रालय और पीएचक्यू में अफसरों के जत्थे बैठकर नामों की अटकलें लगाते रहे, और ऐसे ही कई पुराने मामले भी चर्चा में रहे जिन दिनों वीडियो क्लिप की तकनीक इतनी आसान नहीं थी। लेकिन हर जगह बिना पुख्ता जानकारी के महज अटकलों से नाम छांटे जा रहे थे, जो कि खबरों में मिले संकेतों से परे अपनी-अपनी भावना के हिसाब से अधिक थे।
इस बीच छत्तीसगढ़ के सरकारी दफ्तरों में महिलाओं के साथ बदसलूकी और उनके यौन शोषण की कुछ पुरानी और कुछ नई कहानियां सिर उठा रही हैं। ([email protected])
दंतेवाड़ा में तस्वीर साफ नहीं
दंतेवाड़ा में पिछले विधानसभा के बराबर ही 61 फीसदी के आसपास मतदान हुआ। मतदान के दौरान कहीं भी अप्रिय वारदात नहीं हुई। अब चुनाव परिणाम को लेकर अटकलें लगाई जा रही है। भाजपा को इस सीट पर कब्जा बरकरार रहने की उम्मीद है। वजह यह है कि दंतेवाड़ा, बचेली, किरंदुल और गीदम के नगरीय इलाकों में भाजपा के पक्ष में माहौल था। कुल मिलाकर इन इलाकों में भाजपा से ज्यादा, उम्मीदवार ओजस्वी मंडावी के पक्ष में सहानुभूति देखने को मिली। मगर ग्रामीण इलाकों में अच्छी खासी पोलिंग हुई है, जिससे कांग्रेस उम्मीद से है। इससे परे अंदरूनी इलाकों के वोटर सीपीआई के पक्ष में रहे हैं, जो कि इस बार कुछ हद तक बिखरते नजर आए। इससे भी कुछ हद तक कांग्रेस को फायदे की उम्मीद है।
भाजपा की रणनीति को भांपकर कांग्रेस ने आखिरी चार दिनों में जमकर मेहनत की और सीएम भूपेश बघेल की सभा-रोड शो हुआ। इन सबके चलते कांग्रेस, भाजपा से सीट छीनने की उम्मीद लगाए बैठी है। मतदान के दो दिन पहले नक्सलियों ने ग्रामीणों की बैठक लेकर कुछ फरमान सुनाए थे, इसके बाद नक्सल प्रभाव के ग्रामीणों का रूझान किधर रहा, इसको लेकर कयास ही लगाए जा रहे हैं। कुल मिलाकर कांग्रेस और भाजपा के अपने-अपने दावे हैं। ऐसे में हार-जीत का अंतर कम मतों से होने का अनुमान लगाया जा रहा है।
कांगे्रस के एक बड़े नेता ने मतदान के सारे आंकड़े देखने के बाद कहा कि इस चुनाव अभियान में शुरूआत में कांगे्रस बहुत पीछे थी, और जैसे-जैसे प्रचार आगे बढ़ा कांगे्रस बढ़ती गई, लेकिन वे भी यह नहीं कह पा रहे थे कि कांगे्रस जीत की लकीर पार कर चुकी है।
भूपेश के दिमाग की टोह नहीं
छत्तीसगढ़ का सचिवालय हो या कोई और सरकारी दफ्तर, हर जगह लोगों के कामकाज में एक सावधानी दिख रही है, और बातचीत में एक सतर्कता। लोगों को यह तय नहीं है कि भूपेश बघेल सरकार अगली ट्रांसफर लिस्ट में किसे कहां करेगी। और तो और मुख्य सचिव किसे बनाया जाएगा, इसे लेकर भी आधा दर्जन अलग-अलग अटकलें चल रही हैं। लोग एन. बैजेंद्र कुमार की राज्य वापिसी से लेकर अजय सिंह की सचिवालय वापिसी तक की सोच रहे हैं, लेकिन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल हैं कि उनके दिमाग की टोह उनके मंत्रियों के पास भी नहीं है। उनका सचिवालय भी कोई जानकारी नहीं बता पाता कि क्या होने जा रहा है। यह मामला पिछली सरकार के मुख्यमंत्री-सचिवालय से एकदम अलग इसलिए है कि उसमें सीएम के करीबी अफसर फैसले लेने के लिए जाने जाते थे, और उनसे बातचीत से आने वाले कई फैसलों का अंदाज लग जाता था। लेकिन उस वक्त भी कुछ फैसले लोगों को चौंकाने वाले थे, मुख्य सचिव जॉय ओमेन को वक्त के पहले हटाना, डीजीपी विश्वरंजन को पल भर में हटा देना, या कई लोगों को समय के पहले प्रमोशन देना।
एक खबर से खलबली
अब राज्य नए मुख्य सचिव की अटकलों से गुजर रहा है, और दिल्ली से आई हुई एक खबर से भी सरकार में कुछ खलबली है। यह खबर कहती है कि केंद्र सरकार एक नई नीति लागू कर रही है जिसके मुताबिक साठ बरस की उम्र या 33 बरस की नौकरी, जो भी पहले पूरी हो, उस वक्त रिटायर कर दिया जाएगा। इसमें सबसे अधिक नुकसान में वे लोग रहेंगे जो कि कम उम्र में नौकरी में आते हैं, और 60 बरस के पहले ही 33 बरस की नौकरी हो जाती है। अब इस चर्चा को करते हुए पुलिस अमले के लोग डीजीपी डीएम अवस्थी की तरफ देखने लगते हैं जो कि ऐसे किसी नियम के आने पर 2020 में रिटायर हो सकते हैं, ऐसा पुलिस के कुछ अफसरों का आंकड़ा कहता है। सबसे कम उम्र में आईएएस बनने वाले बाबूलाल अग्रवाल अब ऐसे किसी नियम-कायदे से परे हो चुके हैं क्योंकि उनके अपने कामों ने उनका जो हाल किया है, उसके बाद सरकारी सेवा का कोई भी नियम उनका भला नहीं कर सकता।
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अपने-अपने सहारे...
जाति प्रमाणपत्र फर्जी करार देने के बाद जोगी पिता-पुत्र भूपेश सरकार से बेहद खफा हैं। अमित जेल में हैं, इसलिए वे कुछ करने की स्थिति में नहीं हैं। लेकिन अजीत जोगी ने दंतेवाड़ा उपचुनाव में अपनी पूरी ताकत लगाई है। वे आखिरी के चार दिन दंतेवाड़ा और आसपास के इलाकों में सभा लेकर अपने प्रत्याशी को जिताने की अपील करते रहे। सुनते हैं कि उन्होंने उन स्थानों पर ज्यादा प्रचार किया, जहां कांग्रेस की स्थिति मजबूत मानी जाती रही है। मसलन, पालनार इलाके में ईसाई मतदाताओं की संख्या अच्छी खासी है और ये कांग्रेस के परंपरागत वोटर माने जाते हैं। यहां अजीत जोगी ने काफी समय बिताया। जोगी की मेहनत से भाजपा को कितना फायदा मिल पाता है, यह चुनाव नतीजे के बाद ही पता चल पाएगा। हालांकि भाजपा पिछले 15 बरसों की तरह इस बार भी जोगी से मदद मिलने की उम्मीद में है चाहे वह जोगी के कांगे्रस में रहते हुए घोषित या अघोषित मदद रही हो, या फिर अंतागढ़ नाम की मदद रही हो। अब सारी पार्टियां स्टिंग ऑपरेशनों को लेकर इतनी चौकन्नी हो गई हैं कि दंतेवाड़ा में दूसरा अंतागढ़ होने के आसार नहीं दिख रहे हैं, लेकिन इतना जरूर है कि भाजपा को जोगी का सहारा, और कांगे्रस को मंतूराम पवार का।
संजय की उम्मीद और अड़चन
आरडीए के पूर्व अध्यक्ष संजय श्रीवास्तव राजधानी रायपुर के महापौर टिकट के प्रमुख दावेदार हैं। वे पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह के करीबी माने जाते हैं और सौदान सिंह का वरदस्त तो है ही, मगर उन्हें टिकट मिलना आसान भी नहीं है। वजह यह है कि पंडरी में आरडीए की एक जमीन बेचने के मामले में उन पर आंच आ सकती है। हालांकि यह भी कहा जा रहा है कि जमीन बेचने से पहले आरडीए अध्यक्ष की हैसियत से उन्होंने कानूनी सलाह ली थी। लेकिन जानकार मानते हैं कि यह उनके लिए मुश्किल पैदा कर सकता है। वैसे भी सरकार इससे जुड़ी फाइलें खंगाल रही है। कार्रवाई में दिक्कत यह है कि जिसने जमीन खरीदी है, वह कांग्रेस के एक पूर्व विधायक का बेटा है। इस पूरे प्रकरण पर कांग्रेस से ज्यादा भाजपा के लोग संजय के लिए दिक्कत खड़ी कर सकते हैं। कांगे्रस के इस पूर्व विधायक ने इस मामले में जाकर आरडीए के विभागीय मंत्री मोहम्मद अकबर से भी मुलाकात की और अनुरोध किया कि इस मामले को निपटा दिया जाए, लेकिन डेढ-दो सौ करोड़ दाम की इस जमीन की कानूनी दिक्कत को निपटाना बिना बड़ी बदनामी के होना नहीं था, इसलिए अकबर ने हाथ जोड़ लिए।
संजय को लेकर नाराजगी यह है कि पिछले कई चुनावों में वे रायपुर उत्तर से टिकट के मजबूत दावेदार रहे हैं। इसके अलावा लोकसभा चुनाव में भी टिकट मांगी थी। टिकट नहीं मिलने पर वे पलायन कर गए। यानी वे राजनांदगांव और कवर्धा में चुनाव प्रचार के लिए निकल जाते रहे है। अब सारे विरोधी उनके लिए अभी से लामबंद हो रहे हैं।
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मामलों का ढेर
राजस्व मंडल में प्रकरणों का अंबार लग गया है। वैसे तो यहां चेयरमैन अजय सिंह हैं, लेकिन कोई और सदस्य नहीं होने से राजस्व प्रकरणों की सुनवाई टल रही है। सुनते हैं कि अजय सिंह ने कह दिया है कि वे सिर्फ रायपुर के प्रकरणों को ही सुनेंगे। बिलासपुर और बस्तर संभाग के प्रकरणों की सुनवाई नहीं हो रही है। अजय सिंह से पहले केडीपी राव और रेणु पिल्ले यहां पदस्थ थे। दोनों का काम बंटा हुआ था और राजस्व प्रकरणों की सुनवाई लगातार हो रही थी। अब अजय सिंह का साथ देने के लिए कोई दूसरा सदस्य नहीं है, तो सुनवाई के लिए तारीख पर तारीख बढ़ती जा रही है।
बाकी क्या असामान्य हैं?
चुनाव और स्कूल-कॉलेज के दाखिले की खबरें आती हैं, या सरकारी नौकरी की बात आती है तो तुरंत आरक्षण की बात भी आ जाती है। आरक्षण के कई किस्म के तबके हैं, एसटी, एससी, ओबीसी, जनरल-ईडब्ल्यूएस, फ्रीडम फाईटर, विकलांग, वगैरह-वगैरह।
लेकिन इसका एक शब्द परेशान करता है, सामान्य श्रेणी। अब जनरल केटेगरी के लिए इस्तेमाल होने वाला यह शब्द बिना कुछ कहे हुए एक ऐसी धारणा पैदा करता है कि सामान्य से परे के बाकी तबके कुछ असामान्य हैं। अंगे्रजी के जनरल शब्द का यह अनुवाद सही नहीं है और इसके बारे में कुछ करने की जरूरत है। भाषा की बात करें तो दुनिया के हर लोकतंत्र में भाषा के कई शब्द वहां के समाज में फैली हुई और प्रचलित बेइंसाफी के मुताबिक बने हुए रहते हैं। हिन्दी में किसी जानवर को नरभक्षी कहा जाता है, मानो नारी खाने के लायक भी न हो। इसी को उर्दू में आदमखोर कहा जाता है, यानी केवल मर्द खाने वाला जानवर। और अंगे्रजी में भी ऐसे जानवर के लिए मैनईटर शब्द ही है, मानो उसे वूमेन खाना पसंद न हो।
भाषा से जुड़े कहावत और मुहावरे भी ऐसी ही सामाजिक बेइंसाफी से भरे हुए होते हैं जो कि दलित-आदिवासी, कमजोर, बीमार, महिला, गरीब, विकलांग के खिलाफ होते हैं। लोगों को भाषा की बेइंसाफी पर चर्चा करनी चाहिए और उसे सुधारने पर जोर देना चाहिए।
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एमपी का सेक्सकांड, और छत्तीसगढ़
भोपाल-इंदौर में ताकतवर नेताओं, अफसरों, और कारोबारियों को रूपजाल में फंसाकर, उनके सेक्स-वीडियो बनाकर ब्लैकमेल करने से जो मामला सामने आया, उसमें अब एक नया और अधिक खतरनाक पहलू जुड़ गया है, मंत्रियों-विधायकों को फंसाकर सरकार गिराने का। इसकी हकीकत तो जांच के बाद सुबूतों से सामने आएगी, लेकिन जिस अंदाज में वहां ऐसी लड़कियों और औरतों का शिकंजा सत्ता और बाजार के बड़े लोगों पर जकड़ा हुआ था, वह हैरान करता है। इतने पेशेवर अंदाज में ब्लैकमेलरों का गिरोह काम कर रहा था, और उसके इतने सुबूत भी सामने आने की खबर है।
इधर ऐन इसी वक्त छत्तीसगढ़ में एक न्यूज पोर्टल ने बाजार में एक भाजपा नेता की ब्लूफिल्म मौजूद होने की बात लिखी है। इस नेता के बारे में इशारा किया गया है कि यह रायपुर संसदीय सीट के तहत विधायक रह चुका है, और एक निगम में अध्यक्ष भी रह चुका है। इशारे-इशारे में कई और बातें लिखी गई हैं जिनसे भाजपा के अपने लोगों का अंदाज अपने दो लोगों तक केन्द्रित हो गया है। लेकिन यह बात महज चर्चा भी हो सकती है, और सौ फीसदी सही भी हो सकती है। ऐसी चर्चा लोगों की उत्सुकता बढ़ा देती है, और खासकर हिन्दुस्तानी लोगों की उत्सुकता जिनके निजी जीवन सेक्स-वंचित किस्म के अधिक रहते हैं, और जो दूसरों की असली या गढ़ी हुई सेक्स-जिंदगी की हर अफवाह पढ़ लेना चाहते हैं।
फिलहाल मध्यप्रदेश में चल रहे हंगामे की वजह से छत्तीसगढ़ में भी हवा में कुछ सनसनी है, और यह सेक्स-वीडियो अफवाह जितने महत्व के लायक है, उससे अधिक महत्व पा रही है। इस एक खबर, या चर्चा, या अफवाह का बस्तर में चल रहे विधानसभा चुनाव से कोई लेना-देना नहीं लगता है क्योंकि इसमें सारा जिक्र रायपुर संसदीय सीट के ही किसी भूतपूर्व विधायक, भूतपूर्व निगम अध्यक्ष को लेकर है, जिसमें बस्तर के मतदाताओं की कोई दिलचस्पी नहीं हो सकती, वे लोग एक अधिक प्राकृतिक जीवन जीते हैं, और उन्हें अपनी जिंदगी में ऐसी सनसनी की कोई जरूरत नहीं रहती है।
छत्तीसगढ़ का मैदानी इलाका हर कुछ महीनों में ऐसी किसी सेक्स चर्चा से घिर जाता है जिसके चलते अधिकतर आबादी को जिंदगी में कुछ रस आने लगता है। अब कुछ लोगों का यह भी मानना है कि छत्तीसगढ़ में कुछ पेशेवर स्टिंग ऑपरेटर गिरफ्तार हो जाने के बाद, उनके कम्प्यूटर, हार्डडिस्क जब्त हो जाने के बाद आने वाला वक्त ऐसे कई वीडियो देख सकता है। ([email protected])
भाजपा के आदिवासी नेता रमन से खफा
मंतूराम पवार के खुलासे के बाद भाजपा के दिग्गज आदिवासी नेता रमन सिंह से खफा चल रहे हैं। राज्यसभा सदस्य रामविचार नेताम तो किसी का नाम लिए बिना खुले तौर पर अपनी नाराजगी जाहिर कर चुके हैं। असंतुष्ट आदिवासी नेता पुलिसिया कार्रवाई के पक्षधर हैं। कई नेता तो सीएम भूपेश बघेल के संपर्क में भी बताए जाते हैं।
सुनते हैं कि पार्टी हाईकमान को यहां के आदिवासी नेताओं की नाराजगी का अहसास भी है। कुछ समय पहले प्रदेश भाजपा प्रभारी ने एक प्रमुख आदिवासी नेता को समझाइश भी दी थी कि वे कांगे्रसी सीएम से मेल-जोल न रखें। आदिवासी नेता ने उन्हें दो टूक कह दिया कि क्षेत्र के विकास के लिए सीएम से मिलना-जुलना होता है। और आगे भी सीएम से मिलते रहेंगे। पार्टी चाहे तो उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई कर सकती है। आदिवासी नेता के तेवर से हड़बड़ाए प्रदेश प्रभारी खामोश रह गए। छत्तीसगढ़ के एक और बड़े आदिवासी नेता, राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष, नंदकुमार साय भी राज्य बनने के समय से रमन सिंह से कुछ अलग-अलग चलते रहे हैं, और पिछले बरसों में कई बार वे उनकी खुली आलोचना भी कर चुके हैं। उनके भी भूपेश बघेल से अच्छे संबंध हैं। कुल मिलाकर भाजपा के सारे रमन-विरोधी अपने अलग-अलग कारणों से भूपेश के करीबी हैं, और इनमें बृजमोहन अग्रवाल तो सबसे आगे हैं ही जो कि अब तक अपने मंत्री-बंगले में रखे गए हैं, और जो भूपेश के साथ मंच पर घरोबा दिखने-दिखाने में कोई परहेज नहीं करते। ([email protected])
जुर्माना लगाना हो तो 'अमेरिका' से तुलना करेंगे,
कोई 'विकास' की बात पूछे तो कहते है कि
हम 'पाकिस्तान' से बेहतर हैं
हैसियत और उम्मीद से अच्छी पत्नी मिल जाने पर....आदमी? में बर्तन धोने के इच्छा स्वत: जागृत हो जाती हैं.....
धृतराष्ट्र-आगे क्या दिख रहा है संजय...?
संजय-आगे चौराहे पे चेकिंग चल रही है महाराज...
धृतराष्ट्र-रथ मोड़ लो वरना चालान भरने में राज-पाठ बिक जाएगा...
आपके गांव में अचानक कोई व्यक्ति मीठा बोलने लगे,, समाज सेवा करने लगे, *तो समझ जाओ सरपंच की दावेदारी चल रही है...
वो दिन भी क्या दिन थे जब सिनेमा हॉल के मैनेजर? गेटकीपर और टिकिट बांटने वालों से पहचान भी बहुत बड़ी बात हुआ करती थी
वकील- आपके पति कैसे मरे?
महिला- जहर खाकर।
वकील- फिर इनके शरीर पर चोट के निशान कैसे?
महिला- खाने से मना कर रहे थे।
शराबी से सब कुछ गिर कर टूट-फूट सकता है, बस बोतल नहीं...
लड़की वाले- कितना कमा लेता है अपना गोलू...?
पापा-जी अपना चालान ख़ुद ही भर लेता है।
लड़की वाले-लीजिए मुँह मीठा कीजिए
अगर चालान की रकम बढ़ाने से दुर्घटना में कमी आ सकती है तो फिर किसानों की फसल का मूल्य बढ़ाकर होने वाली आत्महत्या में भी कमी आ सकती है।
एक चालान की कीमत
तुम क्या जानो मोदी बाबू
स्कुटी की आधी कीमत होती है
चालान
छात्रों का आत्मसमर्पण होता है
चालान
राजस्थान में कटा 1,41,700 का चालान ट्रक के पीछे लिखा था हर हर मोदी
एसएचओ साहब ने बिजली विभाग के जेई का किया 10000 का चालान,
जेई साहब ने थाने में छापा मारा बिजली चोरी में किया 80000 का जुर्माना।
मुझे इस नए मोटर वाहन नियम 2019 में सिर्फ एक चीज बहुत अच्छी लगी की इसमें कोई आरक्षण नहीं है सबका बराबर चालान काटा जा रहा है.
पुलिस-चालान काटना पड़ेगा, नाम बताओ
आदमी- याज्ञवल्क्यदास रामानुज त्रिचीपल्ली मोक्षगुंडक्कम मुथुस्वामी !
पुलिस- आज छोड़ देता हूं, आगे से हेलमेट लगाना।
अब दिल्ली में ढाई लाख रुपल्ली का चालान कटा
वाह गडकरी जी वाह
इतना बड़ा नियम बनाने की क्या जरूरत थी जब पैसा लूटना था सीधे डकैती डलवा देते लोगों के घरों में।
रीयल एस्टेट क्षेत्र की मदद के लिए सरकार के कदमों से निराश-क्रेडाई
छत्तीसगढ़ भवन की हवा बदली
दिल्ली में छत्तीसगढ़ सरकार के भवन में अब छत्तीसगढ़ की महक आने लगी है। वहां दो भवन हैं इनमें से एक राज्य बंटवारे में मिला था। जबकि दूसरा छत्तीसगढ़ सदन का निर्माण पिछली सरकार ने किया। राज्य गठन के बाद पहली बार छत्तीसगढ़ भवन में छत्तीसगढ़ की संस्कृति, खान-पान और कलाकृतियों की झलक देखने को मिल रही है। इससे पहले तक छत्तीसगढ़ भवन का उपयोग रेस्ट हाऊस की तरह होता रहा है। मगर, भूपेश सरकार के आने के बाद आंध्र और अन्य राज्यों की तरह छत्तीसगढ़ भवन में भी लोग छत्तीसगढ़ को जानने के लिए आने लगे हैं।
भूपेश सरकार की मंशा के मुताबिक आवासीय आयुक्त श्रीमती डॉ. मनिन्दर कौर द्विवेदी ने यहां की व्यवस्था सुधारने के लिए खूब मेहनत की। उनके प्रयासों का प्रतिफल यह रहा कि दिल्ली में छत्तीसगढ़ी खाने के शौकीन अब छत्तीसगढ़ भवन की तरफ रूख करने लगे हैं। भवन में देवभोग के चावल, छत्तीसगढ़ी हस्तशिल्प और कोसा के वस्त्र भी खरीद सकते हैं। कुल मिलाकर यह अब काफी लुभाने लगा है। यह सब आसान भी नहीं था।
पिछली सरकार ने संजय अवस्थी जैसे विवादित अफसरों की पोस्टिंग कर रखी थी, जो कि एक जूनियर अधिकारी होने के बावजूद आयुक्त से ज्यादा पॉवरफुल थे। सरकार विरोधियों पर नजर रखना उनका प्रमुख काम होकर रह गया था। पिछली सरकार के दो मंत्रियों ने तो संजय अवस्थी को अपने कमरे में बुलाकर जमकर गाली-गलौज की थी। फिर भी अवस्थी का जलवा कम नहीं हुआ था। सरकार बदलने के बाद कामकाज में अनियमितता की शिकायत के बाद उन्हें निलंबित कर वहां से हटाया गया। इसके बाद अब छत्तीसगढ़ भवन की कार्यसंस्कृति काफी बदली है।
चिन्मयानंद के जांच अफसर यहीं के...
कानून की छात्रा के साथ दुराचार के मामले में फंसे पूर्व केन्द्रीय मंत्री स्वामी चिन्मयानंद की जांच यूपी पुलिस की एसआईटी कर रही है। एसआईटी के मुखिया नवीन अरोड़ा हैं, जो कि भारतीय पुलिस सेवा के 98 बैच के अफसर हैं। अरोड़ा बिलासपुर के रहने वाले हैं और आईएएस अफसर अनिल टुटेजा के चचेरे भाई हैं। अरोड़ा यूपी में आधा दर्जन जिलों के एसपी रह चुके हैं। उनकी साख काफी अच्छी है। एसआईटी टीम में फोरेंसिक, सर्विलांस और कानून विशेषज्ञ शामिल हैं। जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ रही है। पूर्व गृह राज्यमंत्री पर फंदा कस रहा है। वह दिन दूर नहीं, जब चिन्मयानंद की हालत आसाराम जैसी हो जाएगी। आसाराम तो सीधे-सीधे किसी राजनीतिक दल से जुड़ा हुआ नहीं था लेकिन चिन्मयानंद तो केंद्र सरकार में भाजपा का मंत्री रह चुका है और उसी हैसियत से छत्तीसगढ़ कई बार आ भी चुका है। चिन्मयानंद गृह राज्य मंत्री था जिस मंत्रालय का जिम्मा कानून के बनाए रखने का होता है। उस मंत्रालय की शपथ लेने वाला ऐसे बलात्कार के आरोपों से घिरा है जिसके चालीस से अधिक वीडियो बाजार में हैं, और गूगल पर उत्साही हिंदुस्तानी चिन्मयानंद के नाम के साथ वीडियो लिखकर सर्च करते हुए थक नहीं रहे हैं। पिछले एक हफ्ते में चिन्मयानंद हिंदुस्तान में सबसे अधिक लोकप्रिय पोर्नो हीरो बन चुका है। आगे-आगे देखें होता है क्या।
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पीएचक्यू फेरबदल के इंतजार में...
पीएचक्यू में जल्द ही एक बड़ा फेरबदल हो सकता है। अभी तक एएन उपाध्याय के रिटायर होने के बाद पुलिस हाउसिंग कॉर्पोरेशन में नई पोस्टिंग नहीं हुई है। कुछ और जगहों पर फेरबदल की तैयारी है। मसलन, परिवहन में लेन-देन की शिकायतों से विभागीय मंत्री नाखुश बताए जाते हैं। इस विभाग में जिस तरह से कुछ लोगों के निलंबन खत्म हुए, उन्हें लेकर भी चल रही चर्चा से विभाग की ऊपर तक साख चौपट हो रही है, और वैसी नोटशीटें बाजार में तैर भी रही हैं। ऐसे में यहां भी उच्च स्तर पर बदलाव हो सकता है। सुनते हैं कि एडीजी स्तर के अफसर अशोक जुनेजा, पवन देव और हिमांशु गुप्ता को अहम जिम्मेदारी दी जा सकती है। चर्चा तो यह भी है कि सरकार के पास विकल्प सीमित है। ऐसे में उन अफसरों को भी महत्व मिल सकता है जो पिछली सरकार में पावरफुल रहे हैं। जिन जगहों पर फेरबदल की चर्चा है उनमें एसीबी-ईओडब्ल्यू, इंटेलीजेंस, दुर्ग आईजी रेंज जैसी कुछ कुर्सियां हैं, और इन्हें लेकर आधा दर्जन नाम चल रहे हैं। इस बीच लोग इस पर भी हैरान हैं कि दीपांशु काबरा को खाली बैठे नौ महीने हो रहे हैं, और सरकार के दिमाग में उन्हें लेकर क्या है?
अपने ही जाल में भाजपा..
नान घोटाले में भाजपा अपने ही जाल में फंसती दिख रही है। पार्टी आरोपी चिंतामणि चंद्राकर के बचाव में आ खड़ी हुई। श्रीचंद सुंदरानी सहित अन्य नेताओं ने प्रेस कॉफ्रेंस लेकर चंद्राकर पर दबाव डालकर बयान लेने का आरोप मढ़ दिया। इस प्रेस कॉफ्रेंस से पार्टी के ही कई नेता असहमत हैं। दिलचस्प बात यह है कि पिछली सरकार में नान घोटाला उजागर हुआ था और मैडम सीएम और सीएम सर के नाम से लेन-देन के दस्तावेज सार्वजनिक हुए थे तब एसीबी-ईओडब्ल्यू के उस समय के मुखिया मुकेश गुप्ता को सफाई देनी पड़ी कि मैडम सीएम का आशय चिंतामणि चंद्राकर मैडम है। मगर, न तो चिंतामणि और न ही उनकी पत्नी के खिलाफ कोई कार्रवाई की गई।
चिंतामणि चंद्राकर को मुकेश गुप्ता का करीबी माना जाता है। वह पहले भिलाई में, और फिर नान में एक छोटा सा अधिकारी था, लेकिन उसके बावजूद मुकेश गुप्ता के परिजनों द्वारा संचालित एमजीएम अस्पताल का ट्रस्टी भी है। इस ट्रस्ट में नामी गिरामी उद्योगपति-कारोबारी लोग हैं। इन सबके बीच में एक मामूली से एकाउंटेट चिंतामणि चंद्राकर को ट्रस्ट में जगह मिलना, उनके संबंधों को दिखाने के लिए पर्याप्त है। घोटाला जब सामने आया था, तो भाजपा के कई नेता उस समय यह कहते रहे कि चिंतामणि चंद्राकर, भूपेश बघेल के रिश्तेदार हैं। अब जब चिंतामणि के खिलाफ कार्रवाई हो रही है, तो पार्टी के नेता बचाव में आ गए हैं। मगर, पार्टी का असंतुष्ट खेमा इस पर भी जुटा है कि आखिर सीएम मैडम-सर कौन हैं, यह सच सामने आना चाहिए।
किरदार बदला, तो नजरिया भी?
लंबे समय तक विपक्ष में रही छत्तीसगढ़ की कांग्रेस पार्टी ने पिछले पन्द्रह बरसों में भाजपा सरकार के खिलाफ जितने मुद्दे उठाए थे, उनमें से कई मुद्दे अब उसका मुंह चिढ़ाते हैं। जैसे बस्तर में पुलिस ज्यादती को लेकर कांग्रेस ने जितनी बातें कही थीं, आज पुलिस पर उसी किस्म की ज्यादती के आरोप लग रहे हैं। बस्तर में एक समय काम करने वाले एक सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार पर नक्सलियों का हिमायती होने के आरोप लगते थे। उस समय की पुलिस ने वहां उनका जीना हराम कर दिया था, और उन्हें बस्तर से खदेडक़र ही दम लिया था। लेकिन अपने को गांधीवादी कहने वाले हिमांशु कुमार छत्तीसगढ़ के बाहर रहते हुए भी बस्तर के मुद्दों को उठाते हैं। उन्होंने अभी फेसबुक पर लिखा है- कल रात पोदिया और उसके साथी को पुलिस ने गोली से उड़ा दिया। यह दोनों आदिवासी युवा छत्तीसगढ़ के बैलाडीला में अडाणी का विरोध कर रहे थे। इससे पहले इनके साथी गुड्डी को भी पुलिस ने गोली से उड़ा दिया था। गुड्डी ने अडाणी के लोगों द्वारा पेड़ काटना बंद करवा दिया था। अडाणी ने बैलाडीला की नंदराज पहाड़ी पर दो हजार पेड़ काट डाले थे। गुड्डी ने पेड़ काटने वाले लोगों को वहां से भगा दिया था। इसके बाद पुलिस ने जाकर गुड्डी को गोली से उड़ा दिया। सोनी सोरी जब दंतेवाड़ा के एसपी अभिषेक पल्लव से मिलने गईं तभी अभिषेक पल्लव ने कह दिया था कि मैं गुड्डी के साथी पोदिया को गोली से उड़ा दूंगा।
‘सोनी सोरी ने फ्रंटलाइन की महिला पत्रकार को पहले ही बता दिया था कि एसपी अब पोदिया की हत्या करेगा और कल रात एसपी ने पोदिया को गोली से उड़वा दिया जो आदिवासी आपके बच्चों की सांसें बचाने के लिए इस देश के जंगलों को बचा रहे हैं। बड़े पूंजीपतियों से पैसा लेकर पुलिस अधिकारी उन आदिवासियों को गोली से उड़ा रही है। आपको बताया जा रहा है कि यही विकास है, लेकिन इसमें तो सिर्फ अडाणी का विकास होगा।’
‘बस्तर के आदिवासी मारे जाएंगे और आपके बच्चे बिना ऑक्सीजन के तापमान बढऩे से मारे जाएंगे लेकिन खेल देखिए आप आदिवासी के मरने पर आवाज नहीं उठाएंगे और आप अडाणी के पक्ष में बोलेंगे पुलिस की जय जयकार करेंगे। आप अपने बच्चे का गला खुद घोटेंगे और इसे विकास तथा राष्ट्रवाद से जोडक़र पुलिस और अडाणी की जय बोलते रहेंगे। आदिवासियों ने सोनी सोरी और बेला भाटिया को गांव बुलाया है। वे लोग पोदिया और उसके साथी की मौत की हत्या की एफआईआर कराने की कोशिश करेंगे।’
‘हम जानते हैं पुलिस एफआईआर. नहीं करेगी इस मामले को कोर्ट में ले जाया जाएगा लेकिन बहुत सारे मामले पहले भी कोर्ट में ले जाए गए। न्याय तो वहां से भी नहीं मिला। इस समय आदिवासी ही खतरे में नहीं है। आप भी खतरे में है। आपका लोकतंत्र संविधान विकास सब खतरे में है लेकिन आप समझ नहीं रहे हैं।’
दूसरी तरफ छत्तीसगढ़ के खदान इलाकों के जंगलों को बचाने के लिए, वहां बसे लोगों के हक के लिए लडऩे वाले एक सामाजिक कार्यकर्ता आलोक शुक्ला ने आज सुबह ही फेसबुक पर लिखा है कि छत्तीसगढ़ में कोयला खदानों का काम करने वाले अडाणी के बारे में जानकारी मांगने पर यह सरकार भी सूचना आयोग के आदेश के बाद भी जानकारी नहीं दे रही है जबकि चुनाव के पहले छत्तीसगढ़ में राहुल गांधी ने एक कार्यक्रम में कहा था कि वे इसे औद्योगिकीकरण नहीं मानते बल्कि यह लूट है। राहुल गांधी के ऐसे बयान के बाद सरकार को आज जानकारी सार्वजनिक करनी चाहिए, कार्रवाई करनी चाहिए।
इस तरह की कई पोस्ट सोशल मीडिया पर वर्तमान सरकार के बारे में भी लिखी जा रही है, और सामाजिक आंदोलनकारी यह सोचकर हैरान हैं कि पन्द्रह बरस तक इनके साथ रहे कांग्रेस नेता भी अब सरकार की तरह बर्ताव कर रहे हैं।
हम साथ-साथ हैं...
एसआईटी नान घोटाले की जांच कर रही है। यह मामला बेहद उलझा हुआ है। कौन-किससे मिला हुआ है, यह समझना कठिन हो रहा है। एसआईटी ने निलंबित डीजी मुकेश गुप्ता, नान के एकाउंटेट चिंतामणि चंद्राकर सहित कई और के खिलाफ कार्रवाई की है। चर्चा तो यह भी है कि सबका एक-दूसरे से कनेक्शन है। यह भी संयोग है कि सबके वकील एक ही हैं।
मसलन, मुकेश गुप्ता का जिला कोर्ट में प्रकरण अमीन खान देख रहे हैं। गुप्ता, अमीन के साथ ही एसआईटी के समक्ष हाजिर हुए थे। अमीन खान, चिंतामणि चंद्राकर की पैरवी कर रहे हैं। अमीन खान ने मुकेश गुप्ता के करीबी डीएसपी आरके दुबे की भी हाईकोर्ट में पैरवी की थी। यह भी दिलचस्प है कि सुप्रीम कोर्ट के नामी वकील महेश जेठमलानी, मुकेश गुप्ता की हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में पैरवी कर रहे हैं। जेठमलानी, नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक द्वारा नान घोटाले की एसआईटी जांच के खिलाफ दायर याचिका की भी पैरवी कर रहे हैं। ऐसे में यह समझना मुश्किल नहीं है कि ये सभी साथ-साथ हैं...।
राजभवन को क्यों कोंचा जा रहा है?
छत्तीसगढ़ की नई राज्यपाल सुश्री अनुसुईया उईके राज्य की पहली राजनीतिक राज्यपाल हैं, और इनके पहले सारे राज्यपाल अफसर की जिंदगी से निकलकर आए हुए थे। आमतौर पर माना जाता है कि केंद्र के विरोधी दल की सरकार वाले राज्य में राज्यपाल को दिक्कत खड़ी करने के लिए भेजा जाता है, लेकिन दो-तीन ऐसे सार्वजनिक कार्यक्रम हुए जिनमें राज्यपाल ने मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की खुलकर तारीफ की, और राज्य सरकार के कार्यक्रमों को केंद्र की एक बैठक में बहुत अच्छी तरह पेश भी किया।
लेकिन राज्य सरकार के अफसरों के बर्ताव से राजभवन कुछ हक्का-बक्का है। जब राज्यपाल के नाम से एक फर्जी चिट्ठी छत्तीसगढ़ के कुछ लोगों को भेजी गई, तो इस अखबार 'छत्तीसगढ़' में उसकी खबर छपी। खबर के साथ राज्यपाल का उस बारे में लंबा बयान भी छपा, जिसमें उन्होंने कहा था कि वे इसकी पुलिस रिपोर्ट करने जा रही हैं। इसके बाद जब राजभवन के सचिव की ओर से पुलिस के नाम शिकायत बनाई गई और राजभवन के एक बड़े अफसर एक बड़े पुलिस अफसर से जाकर मिले, तो उन्हें डांट खानी पड़ी कि पहले अखबार में छपवाओ और उसके बाद शिकायत लेकर आओ! खैर अखबार में खबर राजभवन ने नहीं छपवाई थी, और पुलिस के बड़े अफसरों को इतनी बुनियादी समझ रहनी चाहिए कि अखबार में छप जाने से किसी मामले के कानूनी पहलू पर कोई फर्क नहीं पड़ता है। रफाल विमान डील के कागजात दिल्ली के अखबार, द हिंदू, में छप जाने के बाद भी सुप्रीम कोर्ट ने उस पर आधारित जनहित याचिका मंजूर की थी, लेकिन जाहिर है कि हर अफसर हिंदू जैसे अखबार पढ़ते नहीं हैं।
लेकिन बात महज इतनी ही नहीं है। राज्यपाल के दिल्ली प्रवास पर राजभवन के अधिकारियों को वहां राज्य शासन के भवन में कमरा मिलने में दिक्कत हुई, और इसे सुनकर भी राज्यपाल हैरान हो गईं। राज्यपाल ने अपने रायगढ़ प्रवास के दौरान राजभवन में तैनात अपने एक एडीसी के घर जाना तय किया क्योंकि वह एडीसी वहीं का रहने वाला है। इसे लेकर सत्ता में बैठे कई-कई लोग इतने नाराज हुए, और उस अफसर तक तरह-तरह की चेतावनी भेजी गई कि राज्यपाल को अपने घर ले जाना ठीक नहीं है। अब अगर राज्यपाल खुद होकर अपने किसी मातहत के घर जाना चाहती हैं, तो मातहत भला क्या कहकर उसके लिए मना कर सकते हैं?
कुल मिलाकर सरकार में बैठे कई लोग बैठे-ठाले राज्यपाल को नाराज करने की कोशिश में लगे दिखते हैं क्योंकि इनमें से हर किसी को राजभवन के साथ शिष्टाचार का सलीका ठीक से मालूम है, और उसके बाद भी मुख्यमंत्री की जानकारी के बिना ऐसी छोटी-छोटी शिकायतों का मौका दिया जा रहा है।
अफसरों का क्या हो रहा है?
रायपुर शहर के बीच सैकड़ों करोड़ की लागत से बने एक्सपे्रस हाईवे का हाल बुरा दिख रहा है। विशेषज्ञों की जांच बताती है कि न सिर्फ सड़क खराब बनी है, बल्कि जो फ्लाईओवर या पुल बने हैं, उनकी दीवारें भी तिरछी हो रही हैं। साढ़े तीन सौ करोड़ का एक बड़ा हिस्सा खतरे में है। एक तरफ शहर के बीच बना स्काईवॉक गले की हड्डी बना हुआ है, और दूसरी ओर उससे दस गुना बड़ी यह दूसरी हड्डी गले में और खड़ी हो गई है। अब सवाल यह है कि जिन अफसरों ने इस पूरे दौर में नियमों के खिलाफ जाकर, विभागों की इजाजत के बिना स्काईवॉक बनवाया उनका क्या हो रहा है? क्या योजना बनाने की कार्रवाई भी ठेकेदार पर ही होगी? और दूसरी तरफ बेहद घटिया कंस्ट्रक्शन करने वाली कंपनी क्या महज जुर्माना पटाकर बच निकलेगी, या सरकार उससे और भी वसूली कर पाएगी? ठेकेदार का चाहे जो हो, सैकड़ों करोड़ के इस निर्माण में हर जगह जिम्मेदारी अफसरों की बनती थी, और किसी अफसर पर जिम्मेदारी तय होते दिख नहीं रही है।
राज्य में बड़े-बड़े घोटाले और बड़े-बड़े जुर्म नई सरकार निकाल रही है, लेकिन इनके होने के वक्त जिम्मेदारी जिन अफसरों पर थी उनमें से कौन-कौन कटघरे में हैं, और कौन-कौन पूरी तरह अनछुए हैं इसे लेकर राज्य के अफसरों में बड़ी सुगबुगाहट चल रही है। कुछ लोगों का कहना है कि रंगा और बिल्ला में से रंगा को सजा हो और बिल्ला मुस्कुराता रहे यह अटलजी के शब्दों में- यह बात ठीक नहीं है...।
कल जब एक आईएफएस अफसर को श्रद्धांजलि देने के लिए अरण्य भवन में अफसर जुटे तो वहां भी इसी बात को लेकर चर्चा चल रही थी कि छांट-छांटकर सजा, और छांट-छांटकर मजा से कुछ और लोग जीते जी ही मर रहे हैं।
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दामादों का दौर सदाबहार...
सत्ता के गलियारे में दामादों का दबदबा जगजाहिर है। सरल स्वभाव के रमन सिंह को अपने दामाद के कारनामों की वजह से बदनामी झेलनी पड़ रही है। मगर, मौजूदा सरकार में भी दामादों की हैसियत कम नहीं हुई है। बात एक कांग्रेस के बड़े पदाधिकारी के दामाद की हो रही है। सुनते हैं कि दामाद बाबू का भाजपा से तगड़ा कनेक्शन है। उनके पिता पिछली सरकार में संवैधानिक पद पर रहे हैं। पिता जब ऊंचे पद पर थे, तो सारा काम आसानी से हो जाता था।
नोटबंदी के दौरान तो रायपुर शहर के बाहरी इलाके में व्यावसायिक प्रोजेक्ट के जरिए करोड़ों रूपए बटोरे थे। चर्चा तो यह भी है कि उस दौरान गुढिय़ारी के व्यापारियों को शहर से बाहर कारोबार शिफ्ट करने के लिए दबाव सिर्फ इसलिए बनाया गया था, कि उनके व्यावसायिक प्रोजेक्ट को फायदा पहुंचे। खैर, पिता के सत्ता से हटने के बाद भी नेता पुत्र की हैसियत में कमी इसलिए नहीं आई है कि उनके ससुर कांग्रेस के बड़े पदाधिकारी हैं। भाजपाई पुत्र (अब कांग्रेसी दामाद) को अपने ससुर के प्रभाव के चलते अलग-अलग संस्थाओं में करोड़ों का काम मिला है। दामाद के रूतबे की राजनीतिक हल्कों में जमकर चर्चा है। आरटीआई कार्यकर्ता उचित शर्मा ने इस जुगलबंदी पर फेसबुक में लिखा है-सत्ता का अपना मूलस्वरूप कैपिटलिस्ट ही है, आये कोई भी चलाते पूंजीवादी ही हैं। @2समधी.कॉम...।
बोया पेड़ बबूल का तो...
अभी दो मामले ऐसे हुए जिनको लेकर छत्तीसगढ़ के लोगों के बीच एक पुरानी कहावत फिर से जोर पकड़ रही है कि बोया पेड़ बबूल का, तो आम कहां से होए। एक वक्त शिवशंकर भट्ट केन्द्रीय राज्यमंत्री रहे डॉ. रमन सिंह के निजी सहायक की हैसियत से काम करते थे। बाद में उन्हें भाजपा सांसद रमेश बैस ने लंबे समय तक अपना सहायक रखा। पूरी जिंदगी वे भाजपा के सत्तारूढ़ लोगों के साथ काम करते रहे, और उनके खुद के हलफिया बयान के मुताबिक वे भाजपा नेताओं को करोड़ों रूपए पहुंचाते भी रहे जो कि नागरिक आपूर्ति निगम, उर्फ नान, में जुटाए जाते थे। अब वे खुलकर भाजपा नेताओं के खिलाफ आ गए हैं, और डॉ. रमन सिंह के खिलाफ इससे अधिक मजबूत हलफनामा किसी और का अब तक आया नहीं था।
रामविचार के तीखे विचार, हे राम...
दूसरी तरफ अंतागढ़ में कांग्रेस उम्मीदवार रहे मंतूराम पवार को उनके हलफनामे के मुताबिक उस समय भाजपा नेताओं ने खरीदा, जोगी पिता-पुत्र ने इस सौदे को अंजाम दिलाया था। अब मंतूराम पवार एकदम से अदालती हलफनामे के साथ इन सारे लोगों के खिलाफ खुलकर बोल रहे हैं, और सबकी गिरफ्तारी का सामान भी बन रहे हैं। मंतूराम को लेकर छत्तीसगढ़ में एक वक्त आदिवासी मंत्री रहे, और अब राज्यसभा सांसद और भाजपा के राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति मोर्चा के अध्यक्ष रामविचार नेताम ने खुलकर मोर्चा खोला है। उन्होंने मंतूराम को गोद में बिठाने वाले उस वक्त के भाजपा नेताओं, और तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के बारे में बयान दिया है कि जिस धूमधड़ाके से मंतूराम की अगवानी हुई थी, उसने जमीनी स्तर के भाजपा कार्यकर्ताओं को उदास कर दिया था। नेताम ने कहा- ये कार्यकर्ता तब भी नरााज हुए जब उन्होंने मंत्री, मुख्यमंत्री, विधायक को कॉकस से घिरा देखा था। नेताम ने मंतूराम को भाजपा में लाने वाले उस वक्त के दिग्गज भाजपा नेताओं और मुख्यमंत्री के खिलाफ एक वीडियो इंटरव्यू में खुलकर कड़ी बातें कहीं। अब वे जिस तरह पार्टी के एक सर्वोच्च प्रकोष्ठ-पद पर हैं, और राज्यसभा में भी हैं, उनका यह रूख भाजपा के मंतूरामग्रस्त नेताओं के लिए परेशानी की एक वजह तो है ही।
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चंद्रयान-2 से प्रभावित आशिक...
टैलेंट की बात ना करो मैं तो घड़ी देखकर टाईम बता सकती हूँ...
अभी उठा तो देख रहा हूँ पत्नी सबसे पूछती घूम रही है कि फ्रीज से कद्दू कहाँ गायब हो गया?
जीवन में 3 बात किसी को नहीं बतानी,,,,,!
1)
2)
3)
नहीं बतानी मतलब नहीं बतानी,,,!
किसी को भी नहीं
यहाँ पिछले दो महीने से मेरी वाली से हमारा संपर्क टूटा पड़ा है
दलाल मीडिया ये सब नहीं बताएगा जी।
कोई ऐसी दिलफेंक लड़की जो अपना मोबाइल नंबर मेरे, मुंह पर फेंक के मारे और बोले -ले मर रात को बात करेंगे...
दहशते चालान कुछ इस कदर बढ़ गई है गालिब,
कि बैठते ही कमोड पर पहले सीट बेल्ट ढूंढते हैं...
आज मुझे एक ट्रैफिक हवलदार चिल्लाते हुए बोला। रुको हेलमेट नहीं है।
मैंने कहा दूर हो जा ब्रेक भी नहीं है...
मेरे पास हेलमेट है, लाईसेंस है, आर-सी है प्रदूषण पर्ची है। तुम्हारे पास क्या है?
बचपन में जब मेहमान घर आये तो लगता था, कब खा-पीकर जेब में हाथ डाले और बोले.. बेटा जरा इधर आना तो
काम्पटीशन इतना बढ़ गया है कि किसी को अपना दु:ख सुनाओ तो वो डबल सुना देता है ।
95 फीसदी बच्चे मामा के घर जाकर बिगड़ जाते हैं, हमारे विक्रम के साथ भी यही हुआ ...घरवालों से संपर्क ही नहीं कर रहा है।
24 डिब्बों की ट्रेन में सिर्फ दो ही जनरल डिब्बे आगे-पीछे लगाए जाते हैं। ऐसा इसलिए कि जब कहीं टक्कर हो, तो मरे गरीब ही...
प्यार अब अंधा नहीं है उसने इलाज करवा लिया, अब वो पैसा, गाड़ी, बंगला सब देखता है...
आराम आराम से हम अपनी संस्कृति खोते जा रहे हैं, आज मैंने एक बालक देखे, उसने आइसक्रीम कप का ढक्कन बिना चाटे ही फेंक दिया...
भट्ट ने बिठाया भट्ठा
नान घोटाले के आरोपी शिवशंकर भट्ट के कोर्ट के समक्ष धारा 164 के बयान से भाजपा बैकफुट पर आ गई है। भट्ट ने कई खुलासे किए हैं, जिन्हें खारिज करना मुश्किल है। यह बात किसी से छिपी नहीं है कि भाजपा के कई बड़े नेताओं से उनका याराना था। वे सबसे पहले सुभाष राव के करीब आए और फिर एक-एक कर पार्टी में संगठन में हावी नेताओं के नजदीकी बन गए। भट्ट, रमेश बैस और रमन सिंह के केन्द्रीय मंत्री रहते उनके स्टॉफ में रहे। ऐसे में उन्हें कांग्रेस से जुड़ा बताकर उनके आरोपों को खारिज नहीं किया जा सकता है।
इसका क्या जवाब होगा?
फिर यह भी याद रखने की जरूरत है कि भट्ट को पिछली भाजपा सरकार के पहले कार्यकाल में, 2006 में 20 हजार रुपये रिश्वत लेते पकड़ा गया था, और एसीबी ने मुकदमा चलाने के लिए सरकार से इजाजत मांगी। मंत्री ने फाईल महाधिवक्ता को भेज दी, और बरस दर बरस सोची-समझी रफ्तार से गुजरते चले गए। रमन सरकार के पहले कार्यकाल में पकड़ाया मामला, रमन सरकार के तीसरे कार्यकाल में जाकर, दस बरस बाद 2015 में अनुमति पा सका, और यह भी तब हुआ जब नागरिक आपूर्ति निगम के मामले में भट्ट वैसे भी घेरे में आ चुका था। अब रिश्वत लेते पकड़ाने के मामले में दस बरस इजाजत देने में लगाने के पीछे सरकार की नीयत क्या थी, इसे समझाने के बाद ही भट्ट की साख चौपट की जा सकती है।
अफरा-तफरी का स्थाई कारोबार
भट्ट ने एक बड़ा खुलासा कस्टम मिलिंग की नीति में बदलाव को लेकर किया है। वर्ष-2013 से पहले नीति थी कि राइस मिलर्स अग्रिम में चावल जमा करेंगे अथवा धान की कीमत की बैंक गारंटी देंगे। मगर, यह नीति बदल दी गई। इसमें बदलाव से राइस मिलरों को बड़ा फायदा हुआ। करीब डेढ़ सौ राइस मिलरों ने निर्धारित समय अवधि में चावल नहीं जमा कराया। वे इसका उपयोग खुद के व्यवसाय के लिए करते रहे। इसके बाद आए प्रमुख सचिव डॉ. आलोक शुक्ला ने जायज-नाजायज तरीकों का इस्तेमाल कर अधिकांश लोगों से किसी तरह चावल वसूली कर ली। ये अलग बात है कि वे भी नान से जुड़े एक मामले में फंसे हुए हैं। मगर, अभी भी 20-25 मिलर्स से वसूली नहीं हो पाई है। यह सब दस्तावेजी प्रमाण हैं और इसकी जांच हुई, तो पिछली सरकार के कई लोग मुश्किल में पड़ सकते हैं। छत्तीसगढ़ में मिलिंग के लिए धान लेकर उसकी अफरा-तफरी करना सत्तारूढ़ पार्टी के कारोबारियों के लिए एक पसंदीदा धंधा बन चुका है और धान की हर बाली इनके नाम जानती है, लेकिन सत्ता हांकते मंत्री-अफसर इस पर इतने बरसों में भी महज इन्हें बचाते दिखते रहे हैं।
स्मार्ट सिटी और विधायक
रायपुर को स्मार्ट सिटी बनाने का काम चल रहा है। इस परियोजना में अरबों फूंके जा चुके हैं। मगर, यहां के कार्यों-खर्चों को लेकर शहर के चारों विधायक उदासीन प्रतीत हो रहे हैं। कम से कम जिला स्तरीय सतर्कता-निगरानी समिति की बैठक से यह बात उभरकर सामने आई है। यह बैठक दो दिन पहले हुई थी और इस बैठक में सभी विधायकों को मौजूद रहना था। बैठक में स्मार्ट सिटी पर प्रमुख रूप से चर्चा होनी थी। मगर, बैठक के फोटो सेशन के बाद कुलदीप जुनेजा और विकास उपाध्याय उठकर चले गए। बाकी दोनों पूर्व मंत्री बृजमोहन अग्रवाल और सत्यनारायण शर्मा बैठक में आए ही नहीं।
चारों विधायकों की गैरमौजूदगी के बावजूद बैठक करीब पांच घंटे चली। बैठक की अध्यक्षता कर रहे सांसद सुनील सोनी ने कई गैरजरूरी खर्चों पर नाराजगी जताई। साइकिल ट्रैक-पेंटिंग के नाम पर करोड़ों फूंक दिए गए। उन्होंने पूछ लिया कि अंडरग्राउंड ड्रेनेज सिस्टम के बिना शहर को कैसे स्मार्ट बनाया जा सकता है? यह सुनकर स्मार्ट सिटी परियोजना से जुड़े अफसर खामोश रह गए। फिर उन्होंने आगे कहा कि अंडर ग्राउंड ड्रेनेज सिस्टम के लिए केन्द्र धनराशि देने के लिए तैयार है तुरंत इसका प्रस्ताव भेजने के लिए कहा। स्मार्ट सिटी का काम पिछले चार साल से चल रहा है, लेकिन इसकी बारीक समीक्षा पहली बार हुई है और वह भी शहर के चारों विधायकों की गैरमौजूदगी में हुई।
तू समझता है अगर फिजूल मुझे, तू करके हिम्मत जरा भूल मुझे।
मुझे तीन बार फेल होने के बाद पता चला था समबाहु और विषमबाहु राक्षसों के नहीं त्रिभुजों के नाम थे..
मेरा सम्पर्क भले ही तुमसे टूट गया है, किन्तु मैं तुम्हारे घर का चक्कर लगाता रहूंगा
उधर संसद, इधर विधानसभा
इधर छत्तीसगढ़ की राजधानी नया रायपुर में राज्य की पहली औपचारिक विधानसभा की इमारत बनने जा रही है, और उधर दिल्ली में संसद की नई इमारत का काम शुरू होना है। जब छत्तीसगढ़ राज्य बना तो विधानसभा का पहला सत्र तो राजकुमार कॉलेज के अहाते में एक शामियाने में हुआ था, और उसके बाद शहर में खाली पड़ी हुई केन्द्र सरकार की एक इमारत में विधानसभा लगी। जब विद्याचरण शुक्ल केन्द्रीय जल संसाधन मंत्री थे तब उन्होंने रायपुर में केन्द्र सरकार का जल संसाधन का एक संस्थान मंजूर करवाया था, और उसी इमारत में मामूली फेरबदल करके पिछले करीब 20 बरस से वहां विधानसभा चल रही है। अब नया रायपुर में जाहिर है कि जिस तरह हर इमारत कुछ अधिक ही आलीशान बन रही हैं, विधानसभा भी वैसी ही बनेगी। किफायत की सोच का सरकार में अधिक महत्व नहीं रहता, इसलिए अधिक से अधिक आलीशान बनाने की सोच न सिर्फ सरकार में रहती है, बल्कि जब बिलासपुर में हाईकोर्ट की इमारत बन रही थी, तब उस वक्त के जजों ने सरकार से अधिक से अधिक बजट मंजूर करवाया, और खर्च किया।
दूसरी तरफ संसद की नई इमारत के खिलाफ शरद यादव ने आज लिखा है कि 11 बार सांसद रहने के बाद मुझे यह कहना मेरी ड्यूटी लगती है कि संसद को नई इमारत की जरूरत नहीं है। इसी इमारत को मजबूत किया जा सकता है या इसमें सुधार हो सकता है। उन्होंने लिखा कि ये इमारतें दिल्ली के इस हिस्से में हिन्दुस्तान की विरासत और इतिहास हैं।
संसद की यह इमारत अंग्रेजों के वक्त बनी थी, और उनके फैसलों में किफायत की कोई जगह नहीं होती थी। लेकिन आजाद हिन्दुस्तान की सरकारों को इस गरीब देश के लोगों की रकम अपनी निजी रकम से भी अधिक कंजूसी से खर्चनी चाहिए।
नई बातें पुरानी यादें...
राजधानी रायपुर में आज इस बात को लेकर पिछले मंत्री राजेश मूणत कलेक्टर तक पहुंचे कि गणेश विसर्जन की झांकियों के अभिनंदन के लिए हर बरस की तरह इस बार उन्हें जगह नहीं दी जा रही है। इससे कुछ पुरानी यादें ताजा होती हैं जब महाकोशल कला वीथिका के संस्थापक कल्याण प्रसाद शर्मा विसर्जन झांकियों पर पुरस्कार रखते थे, और पत्रकारों को जज बनाकर रात भर एक पुरानी दुकान की चबूतरे पर बिठाते थे। वक्त के साथ-साथ गणेश विसर्जन शोरगुल और अंधाधुंध चीनी रौशनी का मामला हो गया है। उस वक्त शहर में एक संगीत समिति भी होती थी, जिसका नाम रायपुर संगीत समिति था, और उसमें तमाम गायक-संगीतकार स्थानीय लोग थे, और उनका कार्यक्रम सुनने के लिए लोग रात भर खड़े भी रहते थे। एक-दो आर्केस्ट्रा पार्टी नागपुर से भी बुलाई जाती थीं, और उन्हें सुनने भीड़ बड़ी भारी लगती थी। वक्त गुजर गया और पुराने लोगों के बीच ऐसी यादें बची हुई हैं। आज सबसे बड़े कारोबार वाले एमजी रोड पर एक मुकुंदलाल पेंटर हुआ करते थे, जो वहीं बैठकर मूर्तियां बनाते थे। उनकी बनाई प्रतिमाएं चूंकि अधिक खूबसूरत रहती थीं, इसलिए महंगे में बिकती थीं।
पत्रकारिता विवि बापू से दूर...
छत्तीसगढ़ सरकार गांधी के ग्राम स्वराज के फार्मूले पर काम कर रही है। गांधीजी के विकास को मॉडल को समझने और समझाने के लिए लगातार कार्यक्रम भी आयोजित किए जा रहे हैं। सूबे के मुखिया भूपेश बघेल भी ऐसे ही कार्यक्रम में शामिल होकर साफ संदेश दे रहे हैं कि उनकी सरकार बापू के बताए रास्ते पर चलने की कोशिश कर रही है। बापू की जयंती के मौके पर विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया जा रहा है। कुपोषण के खिलाफ राज्य सरकार 2 अक्टूबर से पूरे प्रदेश में अभियान चलाने वाली है। राज्य की कांग्रेस सरकार की मंशा एकदम साफ है, इसके बावजूद छत्तीसगढ़ के पत्रकारिता विवि में उलटी गंगा बह रही है। पिछले दिनों राजधानी के रविशंकर विवि में गांधी और आधुनिक भारत विषय पर सेमीनार का आयोजन किया गया। जिसमें सीएम भी शामिल थे, लेकिन इस कार्यक्रम में पत्रकारिता विवि के स्टूडेंट्स और शिक्षकों को जाने की इजाजत नहीं मिली। यहां उसी दिन शास्त्रीय संगीत का कार्यक्रम रखा गया था। विवि में इस बात की जमकर चर्चा है कि गांधी तो हमारे राष्ट्रपिता हैं। यह कोई राजनीतिक आयोजन भी नहीं था। ऐसे में कार्यक्रम से दूरी बनाने का कोई तर्क नहीं है। ऐसे में बड़ा सवाल यह कि अब तो छत्तीसगढ़ में सरकार बदल गई है फिर भी विवि में अभी भी पुरानी सरकार का राज चल रहा है। गर ऐसी चर्चाओं में दम है तब तो सरकार को गंभीरता से लेना चाहिए, क्योंकि अब गांधी बाबा के मार्ग पर चलना चाहते हैं, लेकिन दूसरी तरफ नई पीढ़ी को इससे वंचित करने का काम उनके नाक के नीचे विवि प्रशासन द्वारा किया जा रहा है।
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राशन के लिए महिला ही मुखिया
एपीएल कार्ड में भी मुखिया परिवार की महिला सदस्य रहेंगी। रमन सरकार के दूसरे कार्यकाल में महिलाओं के नाम पर राशन कार्ड बनाने का फैसला लिया गया था। इसका फायदा भी चुनाव में भाजपा को मिला और वह सरकार बनाने में कामयाब रही, मगर महिलाओं के नाम पर राशन कार्ड बनाने के फैसले से कई जनप्रतिनिधि असहमत भी रहे हैं। पाली तानाखार से विधायक रहे रामदयाल उइके ने तो विधानसभा में खुलकर इसका विरोध किया था।
उइके का तर्क था कि कई शादीशुदा महिलाएं अपने प्रेमी के साथ भाग जाती हैं या दूसरी शादी कर लेती है, तो परिवार के बाकी सदस्यों को काफी नुकसान उठाना पड़ता है। चूंकि राशन कार्ड महिला के नाम पर होता है इसलिए राशन भी उन्हें नहीं मिल पाता। उइके की इस दलील का विधानसभा में महिला सदस्यों ने प्रतिवाद भी किया और कहा कि उन्हें महिलाएं ही चुनाव में निपटाएंगी। हुआ भी ऐसा। रामदयाल उइके विधानसभा चुनाव में बुरी तरह निपट गए।
सोनी सोढ़ी से उम्मीदें
दंतेवाड़ा की आम आदमी पार्टी की नेत्री सोनी सोढ़ी चुनाव नहीं लड़ रही है। उन्हें जोगी कांग्रेस ने भी टिकट का ऑफर दिया था। सोनी सोढ़ी का दंतेवाड़ा के अंदरूनी इलाकों में अच्छा प्रभाव है। उन पर नक्सल समर्थक होने के आरोप भी लगते हैं। ऐसे में उपचुनाव में उनका समर्थन काफी मायने रखता है।
सुनते हैं कि सीपीआई के नेता उनसे समर्थन की आस में हैं। जबकि कांग्रेस प्रत्याशी देवती कर्मा, बीजापुर के विधायक विक्रम मंडावी को लेकर कुछ दिन पहले सोनी सोढ़ी से मिलने गई और चुनाव में समर्थन मांगा। सोनी सोढ़ी ने खुलकर समर्थन तो नहीं दिया है, लेकिन उनकी प्रतिक्रिया से कांग्रेस के स्थानीय नेता खुश हैं। उन्हें उम्मीद है कि सोनी सोढ़ी का कांग्रेस को समर्थन मिलेगा और इससे उन इलाकों में भी पार्टी को अच्छा समर्थन मिलेगा। जहां पिछले चुनाव में पार्टी पिछड़ गई थी।
अफवाह और हकीकत
दस दिन पहले ओडिशा के अखबारों और टीवी चैनलों पर अचानक यह खबर फैली कि ओडिशा छत्तीसगढ़ सीमा पर छत्तीसगढ़ के उदन्ती-सीतानदी अभ्यारण्य में एक शेरनी का शिकार हो गया है। खबर रफ्तार से फैली, और दोनों तरफ के वन विभाग के लोग ऐसी किसी शेरनी को जिंदा या मुर्दा ढूंढने में लग गए। छत्तीसगढ़ का वन विभाग इस तलाश में ओडिशा में भी घुसकर तीन किलोमीटर तक ढूंढ आया, लेकिन कोई हवा नहीं लगी। अभी दो दिन पहले छत्तीसगढ़ के इस अभ्यारण्य में लगे एक खुफिया कैमरे में यह शेरनी कैद हुई तो इस बात का सुबूत मिला कि वह जिंदा है और उसे कुछ नहीं हुआ है। आज हालत यह हो गई है कि हाथी या भालू कई जगह लोगों को जख्मी कर रहे हैं, या मार रहे हैं। उन्हें लेकर वन विभाग से इतनी दरयाफ्त नहीं हो रही है जितनी कि किसी जंगली जानवर के मरने से होती है। एक-एक चर्चा या अफवाह से भी वन विभाग के अधिकारी-कर्मचारी जंगलों में फंस जा रहे हैं, और अब तो उदन्ती-सीतानदी के जंगलों तक भी नक्सली पहुंच चुके हैं।
कड़क के मायने ?
अपने प्रशिक्षण के दौर में लोगों के साथ हिंसक बदसलूकी करने के आरोप में एक जगह से हटाए गए नौजवान आईपीएस अफसर उदय किरण को कोरबा में एडिशनल एसपी बनाया गया है। उनके मिजाज और उनके पिछले रिकॉर्ड को देखते हुए कोरबा में उनकी पोस्टिंग के कई तरह के मायने निकाले जा रहे हैं। कोरबा में सरकार कई तरह की कार्रवाई करना चाहती है, कर भी रही है, और ऐसे कड़क अफसर को वहां तैनात किया गया है। ([email protected])
ऑटोमोबाइल सेक्टर में मंदी है तो 10 लाख की गाड़ी एक लाख में बेच दो
किसान भी तो अपने 20 किलो के प्याज 20 किलो में बेच देते हैं
पत्नी को आपको कूटने का कोई भी बहाना चाहिए
वो इसलिए भी कूट सकती है
तुम्हारे पीने की वजह से विक्रम की लैंडिंग सही नहीं हुई
गर इश्क रहे तो इस शिद्दत से रहे
जुखाम मुझे हो और नाक तेरी बहे
केंद्र सरकार का बड़ा फैसला
1 जीबी रैम वाले मोबाइल वालों को
गरीबी रेखा से 10 फुट नीचे माना जायेगा
पर मुझे क्या मेरा 500 एमबी वाला है
तुम्हारे बिना एक दिन 24 घंटे के बराबर लगता है।
पत्नियाँ चाहती है पति उन पर मरे?
जब मरता है तो बोलती हैं कहीं और जाकर मरो ?
जब कहीं और जाकर मरता है तो बोलती है कहाँ मर गए थे...
इस शहर के लोगों में वफा ढूँढ रहे हो,
तुम जहर की शीशी में दवा ढूँढ रहे हो..!!
गजब है यह दुनिया! सड़कों पर गाडिय़ां ज्यादा नजर आए तो पर्यावरण खतरे में, कंपनियों से गाड़ी ज्यादा ना बिके तो व्यापार खतरे में...
अब आलोक शुक्ला ही रह गए...
नान घोटाले में फंसे अफसरों-कर्मियों में से प्रमुख सचिव डॉ. आलोक शुक्ला को छोड़कर सभी को कोर्ट से राहत मिल गई है। और तो और प्रकरण के मुख्य आरोपी एसएस भट्ट को भी जमानत मिल गई है। डॉ. शुक्ला का अग्रिम जमानत आवेदन हाईकोर्ट के समक्ष विचाराधीन है। सुनते हैं कि करीब तीन महीने पहले उन्होंने अग्रिम जमानत के लिए आवेदन लगाया था। जस्टिस एमएम श्रीवास्तव की एकल पीठ ने केस डायरी भी बुलाई थी। कोर्ट की ग्रीष्मकालीन छुट्टियों के बाद उनके जमानत आवेदन पर सुनवाई होनी थी, मगर जज ने सुनने से मना कर दिया।
अब उनके जमानत आवेदन पर अलग-अलग कारणों से सुनवाई में विलम्ब हो रहा है। उनका दुर्भाग्य यह है कि जमानत नहीं हो पाने के कारण पोस्टिंग नहीं हो पा रही है। भाप्रसे के 86 बैच के अफसर आलोक शुक्ला छत्तीसगढ़ कैडर के पहले अफसर हैं, जिन्हें पीडीएस में उल्लेखनीय कार्य के लिए प्रधानमंत्री अवार्ड मिला था। उनकी योग्यता-काबिलियत असंदिग्ध रही है। उन्होंने चुनाव आयोग में पोस्टिंग के दौरान अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया था, लेकिन घोटाले में नाम आते ही उनका कॅरियर तकरीबन चौपट हो गया। सबकुछ ठीक ठाक रहता तो वे कम से कम एसीएस हो चुके होते। अब तो अगले साल उनका रिटायरमेंट है। जबकि उनके बैचमेट सुनील कुजूर सीएस हैं। पिछले बरस उन्होंने अकेलेपन में गुजारे, स्कूल शिक्षा पर कुछ काम किया, और एक डॉक्टर होने के नाते उन्होंने कुछ जगहों पर मुफ्त में इलाज का प्रस्ताव भी रखा था। कुछ वक्त उन्होंने लिखने-पढऩे में भी गुजारा, लेकिन इस एक मामले ने उनकी तमाम सकारात्मक बातों को किनारे कर दिया।
इंसान का मिजाज ही ऐसा रहता है...
फूलों में सूरजमुखी के बारे में कहा जाता है कि वह सूरज को देखकर अपना रुख बदल लेता है, और इसीलिए उसे सूरजमुखी नाम दिया गया है। लेकिन इंसानों में भी ठीक ऐसी ही बात है। किसी विमान के घंटे दो घंटे लेट होने की खबर मीडिया में प्रमुखता से आ जाती है, लेकिन ट्रेन अगर दस घंटे लेट है, जिस पर दस-बीस गुना अधिक मुसाफिर सवार हैं, तो भी वह खबर नहीं बनती। विमान पर अधिक ताकतवर, अधिक दौलतमंद लोग चढ़ते हैं, इसलिए वह अधिक बड़ी खबर बना देता है। इसी तरह बड़े अफसरों या नेताओं की किसी कॉलोनी में हुई छोटी चोरी भी बड़ी खबर बनती है, और किसी आम कॉलोनी में हुई बड़ी चोरी भी छोटी खबर। इंसान का मिजाज ताकतवर को सलाम करने का रहता है, और मीडिया में जाने के बाद भी इंसानों में ऐसी इंसानियत तो बची ही रहती है। ([email protected])
एक बात बताओ, इश्क जब हद से गुजर जाता है, तो... जाता कहां है?
भगवान का दिया हुआ सबकुछ है लड़कियों के पास, बस मेरा मोबाइल नंबर नहीं है...
मैं चाहता हूं कि कोई लड़की मेरा मोबाइल नंबर लेके मुझे कॉल करे, और मुझसे धार्मिक बातें करे ताकि मैं सुधर जाऊं...
भला है, बुरा है, जैसा भी है, मेरा ब्वॉयफ्रेंड मेरा देवता है...
पता नहीं ऐसा बोलने वाली मुझे कब मिलेगी
एक साहब के घर रात को चोर आ गये, चोरों को डराने के लिए उन्होंने रिवाल्वर निकाली, चोर देखकर भाग गए..
थोड़ी देर बाद पुलिस आ गई, कहा तुम्हारे पास रिवाल्वर है? उन्होंने दिखाया और कहा साहब ये तो बच्चों का खिलौना है, चोरों को डराया था बस..
पुलिस चली गई....चोर फिर आ गये।
एक बात याद रखना, खाना खाने के पहले हेंडवॉश ना करना लेकिन खाना खाने के बाद हेंडवॉश जरूर करना मोबाइल पर दाग लग सकते हैं
अगला सीएस, जितने मुंह, उतनी बातें...
प्रदेश में अगले महीने शीर्ष स्तर पर ब्यूरोक्रेसी में बदलाव हो सकता है। मौजूदा सीएस सुनील कुजूर का 31 अक्टूबर को रिटायरमेंट है। वैसे तो चर्चा है कि सरकार ने उन्हें छह माह एक्सटेंशन देने के लिए केन्द्र को चिट्ठी लिखी है। उन्हें एक्सटेंशन मिलेगा या नहीं, यह तय नहीं है। केन्द्र सरकार सीधे तीन माह का एक्सटेंशन दे सकती है। इससे आगे तीन माह के एक्सटेंशन के लिए यूपीएससी की अनुमति जरूरी है।
फेरबदल की चर्चाओं के बीच यह खबर उड़ रही है कि रेवन्यू बोर्ड के चेयरमैन अजय सिंह को फिर सीएस बनाया जा सकता है। लेकिन उनका काम नई सरकार को पसंद नहीं आया था और उन्हें हटा दिया गया था। अब चर्चा यह है कि सुनील कुजूर को एक्सटेंशन नहीं मिला, तो क्या अजय सिंह को फिर से मुख्य धारा में लाया जा सकता है? अजय सिंह भी छत्तीसगढ़ के रहने वाले हैं। उनके एक भाई हाईकोर्ट में जज हैं। अजय सिंह वर्ष-2020 फरवरी में रिटायर होंगे। ऐसे में सीनियर अफसरों की कमी को देखते हुए सरकार उन्हें सीएस बना सकती है। बशर्ते फसल बीमा घोटाला कोई बड़ा मुद्दा न बन जाए, जिसकी जानकारी जारी होने से रोकने के लिए अजय सिंह ने अपनी जान को खतरा बताया था। अब इन नामों से परे एक ही बैच के दो नाम और हैं, चित्तरंजन खेतान, और आरपी मंडल। इन दोनों के आपसी संबंध अच्छे हैं, और बाकी नौकरशाही तो इन दोनों को अलग-अलग रहने पर अगला सीएस बनने की बधाई देते रहती है, इन दोनों ने अनुपम खेर के एक टीवी शो के मुताबिक, कुछ भी हो सकता है, मानते हुए मुस्कुराना और हँसना जारी रखा है। इन दोनों के सामने एक और एसीएस अमिताभ जैन का नाम भी सीएम के सामने रह सकता है।
मददगार बाकी हैं...
निलंबित डीजी मुकेश गुप्ता की अग्रिम जमानत हाईकोर्ट ने भले ही खारिज कर दी है, लेकिन उन्हें हर स्तर पर उन्हें मदद मिल रही है। गुप्ता रमन सरकार में बेहद ताकतवर रहे हैं। उन्होंने कईयों को उपकृत किया है। ऐसे में उनके अपने महकमे से बाहर भी लोग साथ खड़े दिखते हैं।
पुलिस महकमे का हाल यह रहा कि मिक्की मेहता प्रकरण की जांच में विलंब सिर्फ इसलिए हुआ कि जांच अफसर गिरधारी नायक को मिक्की मेहता की मर्ग रिपोर्ट नहीं मिल पा रही थी। सुनते हैं कि नायक ने पीएचक्यू को कई चिट्ठी लिखी, तब कहीं जाकर महीनेभर बाद उन्हें मर्ग रिपोर्ट मिल पाई। चर्चा तो यह भी है कि नायक ने सीएम को जांच में देरी की वजह भी विस्तार से बताई है।
मुकेश गुप्ता ने जिन दिनों उनकी एकतरफा चलती थी, बहुत से मातहत लोगों को उपकृत भी किया था, उन्हें मनचाही कुर्सी दिलवाई थी, और मनचाहे अधिकार भी। नतीजा यह है कि सरकार की तिरछी नजर के बावजूद पुलिस महकमे में उनके मददगार बाकी हैं। ([email protected])
कश्मीर में प्लॉट बाद
में ले लियो...
पहले हेलमेट खरीद लो!
वरना यहाँ का प्लॉट भी बिक जाएगा...
एक तो घोर मंदी, दूसरे तुम्हारे रिचार्ज का बोझ और अब स्कूटी के चालान का पहाड़... नहीं बनना तुम्हारा बाबू।
कल बहुत देर से दो लोग आपस में गाली गलौज कर रहे थे,
फिर मैंने वहां पहुंचकर उन्हें समझाया तब जाकर मारपीट शुरू हुई...
कान खोल कर सुन लो, मेरे पास गाड़ी है पर मैं चालान के डर से नहीं चला रहा हूँ, ऑटो का इस्तेमाल कर रहा हूँ।
लड़कों को चाहिए, जीरो फिगर वाली लड़की पर
लड़के खुद 11 महीने का प्रेग्नेंट पेट लेकर घूम रहे हैं
ऐसा कैसे चलेगा भाइयों
पाकिस्तान ने दावा किया है कि 2022 में पाक अंतरिक्ष में इंसान भेजेगा
मतलब चाँद पर आतंकवादी हमला होने में 3 साल बचे है केवल..!!
इसरो भाई टेंशन नहीं लेने का...
सभी का चांद ऐसे ही नखरे दिखाता है
बाद में मान जाता है
तू चांद है नखरे तो जरूर दिखायेगा ये भारत भी तेरा आशिक है लौटकर वापस जरूर आएगा
लड़की वाले- बेटा कितना कमा लेते हो?
लड़का-जी अपना चालान मैं खुद जमा कर सकता हूँ
लड़की वाले- तो फिर रिश्ता पक्का
गलती हो जाने पर सॉरी बोल देने से इंसान छोटा नहीं हो जाता
चाहे तो नापकर देख लेना....
चंद्रयान-2 की असफलता पर वो पाकिस्तानी भी मजाक बना रहे हैं जिनकी फटी सलवार को सिलने के लिए सुई-धागा भी चाइना से आता है...
बहुत सोचा पर एक बात मेरी समझ में नहीं आ रही है..?
कश्ती वहाँ डूबी कैसे जहाँ पानी कम था।
समझ नहीं आता मैंने फोन अपने लिए लिया है या चार्जर के लिए...
सड़के - नोकिया 1600 जैसी..
जुर्माने — आईफोन जैसे..
अंतागढ़ के विवाद का अंत ही नहीं...
अंतागढ़ प्रकरण एक बार फिर सुर्खियों में है। वजह यह है कि उस समय के कांग्रेस प्रत्याशी मंतूराम पवार ने कोर्ट में बयान देकर हलचल मचा दी है कि उन्होंने दबाव में नाम वापस लिया था। अब उन्होंने न सिर्फ इस प्रकरण में लेन-देन का खुलासा किया, बल्कि तत्कालीन सीएम रमन सिंह और अजीत जोगी को इसके पीछे का मुख्य सूत्रधार भी बता दिया। मंतूराम पवार के पलटी मार देने से रमन सिंह-भाजपा बचाव की मुद्रा में आ गए हैं।
मंतूराम पहले नाम वापसी के पीछे किसी तरह दबाव-प्रलोभन से इंकार करते रहे हैं। चर्चा है कि मंतूराम का कोर्ट में धारा-164 के तहत दर्ज बयान काफी हद तक सही है। आगे कोर्ट में उनका बयान टिकेगा या नहीं, यह अभी साफ नहीं है। वे पहले हाईकोर्ट में नाम वापसी प्रकरण में दबाव-प्रलोभन को झूठा करार देकर जमानत ले चुके हैं।
सुनते हैं कि प्रकरण की ठीक जांच हुई, तो एक महिला अफसर भी लपेटे में आ सकती हैं। हल्ला यह है कि रमन सचिवालय के लोगों ने नाम वापसी की पटकथा पहले से ही लिख ली थी। महिला अफसर के जरिए नाम वापस करा देर सवेर मंतूराम को अहम पद देने की योजना थी। पर इसी बीच प्रकरण में बेटे-दामाद की भी एंट्री हो गई। लेन-देन भी हो गया। चर्चा तो यह भी है कि दामाद अमेरिका से सभी लोगों के संपर्क में थे। अब अगर उस समय के फोन-कॉल की जांच हुई, तो बात आगे बढ़ सकती है। लेकिन इसके लिए फिर केन्द्र सरकार की मदद की जरूरत होगी, जो कि बदली परिस्थितियों में आसान नहीं दिख रहा है। ऐसे में इस मामले के ज्यादा किसी नतीजे तक पहुंचने की संभावना पता नहीं कितनी है।
चेंबर सीढ़ी चढऩे वाले पहले सीएम?
सीएम भूपेश बघेल ने चेम्बर भवन जाकर सबको चौंका दिया। वे पहले सीएम हैं, जिन्होंने प्रदेश के सबसे बड़े व्यापारी संगठन के भवन की सीढ़ी चढ़कर न सिर्फ व्यापारियों की समस्याएं सुनी, बल्कि कई घोषणाएं भी की। वैसे तो भाजपा व्यापारियों के ज्यादा करीब रही है, लेकिन पिछले 15 बरसों में न तो सीएम बल्कि कोई भी मंत्री भी चेम्बर दफ्तर नहीं गए।
व्यापारियों की नाराजगी भाजपा के मंत्री अमर अग्रवाल को लेकर ज्यादा रही हैं। वे जीएसटी आदि को लेकर सुझावों को अनदेखा कर देते थे। सीएम भूपेश बघेल के पास व्यापारियों ने एक अहम समस्या की ओर उनका ध्यान आकृष्ट कराया और कहा कि अकेले रायपुर नगर निगम की 5 सौ से अधिक दुकानें बनकर खाली पड़ी हैं। यह भी बताया गया कि पूरा पैसा देने के बाद भी 7 फीसदी किराया देना पड़ता है। सीएम हैरान रह गए। उन्होंने पूछ लिया कि पिछली सरकार में ये सब क्यों ठीक नहीं कराया। जवाब मिला कि पिछली सरकार के समक्ष भी ये बातें रखी गई थी तब सरकार ने कोई रूचि नहीं ली। सीएम ने कहा कि जल्द ही इस मामले में दिखवाएंगे। कुल मिलाकर सीएम ने अपनी साफगोई से व्यापारियों को फिलहाल तो खुश कर दिया है।
सैकड़ों करोड़ पड़े हैं, काम करवाने वाले नहीं
छत्तीसगढ़ सरकार के कई विभागों का हाल यह है कि केंद्र सरकार से आए हुए सैकड़ों करोड़ पड़े हुए हैं जिनका इस्तेमाल नहीं हो पा रहा है क्योंकि उन विभागों में इतने सारे काम करवाने के लिए तकनीकी अफसरों का ढांचा नहीं है। इनमें से एक आदिम जाति कल्याण विभाग है जहां किसी काबिल इंजीनियर की कमी से सैकड़ों करोड़ रुपये पड़े हुए हैं और मंजूर योजनाएं आगे ही नहीं बढ़ पा रही हैं। अभी मुख्यमंत्री ने आदिवासी इलाकों में ओबीसी छात्र-छात्राओं के लिए हॉस्टल बनाने की घोषणा भी कर दी है। घोषणा भी है, बजट भी है, लेकिन बनाने के लिए इंजीनियर नहीं हैं। दूसरे कई राज्यों में एक दूसरे विभाग के इंजीनियरों को लेकर निर्माण कार्य आगे बढ़ाने की परंपरा है, लेकिन छत्तीसगढ़ लीक पर चल रहा है। ऐसे ही नक्सल प्रभावित इलाकों में लोक निर्माण विभाग से कई ऐसी सड़कें बननी हैं जिनके लिए केंद्र सरकार के ग्रामीण विकास मंत्रालय से सैकड़ों करोड़ आकर पड़े हैं, लेकिन काम आगे नहीं बढ़ रहा है, बल्कि शुरू ही नहीं हो रहा है। ऐसी हालत में जब अगली बार केंद्र सरकार से किसी योजना के लिए बजट मांगा जाता है, तो वहां से जवाब मिलता है कि काम निपटाने की राज्य की क्षमता ही नहीं है।
दूसरी तरफ राज्य सरकार की कई ऐसी योजनाएं रहती हैं जिनके लिए बजट की कमी रहती है और उस वजह से वे काम नहीं हो पाते। एक ही इंसान की दो जेबें, एक लबालब, दूसरी खाली।
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सीधे मंत्री का बेकाबू विभाग
ट्रांसफर-पोस्टिंग के मामले में दो-चार मंत्रियों को छोड़ दें, तो ज्यादातर के निजी स्टाफ गंभीर शिकायतों के घेरे में आए हैं। सबसे ज्यादा विवादित स्कूल शिक्षा मंत्री डॉ. प्रेमसाय सिंह का स्टाफ रहा है। उनके स्टॉफ के खिलाफ तो कई विधायकों ने भी सीएम से शिकायत की है।
सुनते हैं कि प्रेमसाय ने शिकायतों को गंभीरता से लेते हुए स्टाफ के कुछ लोगों को बदल दिया है, लेकिन जिनके खिलाफ सबसे ज्यादा शिकायत है, उसे बदलने का हौसला नहीं दिखा पा रहे हैं। बात राजेश सिंह की हो रही है, जो कि स्कूल शिक्षा मंत्री बंगले में सबसे ज्यादा प्रभावशाली हैं।
चर्चा तो यह है कि तबादलों में उन्हीं की मर्जी चली है। राजेश सिंह सरगुजा के ही रहने वाले हैं और उन्हें टीएस सिंहदेव का वरदहस्त हासिल है। लोगों को उस वक्त बड़ी हैरानी हुई थी जब कांगे्रस के विधायक पे्रमसाय सिंह और मुख्यमंत्री दोनों पर नाराजगी के साथ चढ़ बैठे थे, और उसके बाद भी सिंहदेव ने मीडिया से बात करते हुए पूरी तरह पे्रमसाय सिंह का पक्ष लिया था, और कांगे्रस के विधायकों को गलत करार दिया था। नाजुक मौके पर इतने बड़े नेता का इतना बड़ा साथ मंत्री को एक तरीके से बचा ले गया।
ऐसे में सीधे-सरल प्रेमसाय सिंह उन्हें चाहकर भी नहीं बदल पा रहे हैं। मगर मंत्री के स्टाफ की मनमानी को सीएम हाउस ने गंभीरता से लिया है और लेन-देन में लिप्त अधिकारियों-कर्मचारियों की सूची तैयार हो रही है। संभव है कि कुछ को बाहर का रास्ता दिखाने के लिए कहा जा सकता है। पे्रमसाय सिंह को उनके कुछ शुभचिंतकों ने भाजपा के स्कूल शिक्षा मंत्री केदार कश्यप का चुनावी हाल गिनाते हुए सलाह दी है कि वे अपने आसपास के लोगों को बदलें, और विभाग को साफ-सुथरा करें।
अपनों की सुरक्षा चाहते हैं लोग...
छत्तीसगढ़ ने राज्य बनने के पहले से यह देखा हुआ है कि सरकार जब-जब लोगों को हेलमेट पहनाने के काम में लगती है, विपक्ष उसके खिलाफ खड़े हो जाता है, और इसे गैरजरूरी बताते हुए सड़कों पर विरोध करने लगता है। और फिर यह बात महज इस राज्य की नहीं है, अभी 2008 की एक कतरन सोशल मीडिया पर तैर रही है जिसमें महाराष्ट्र में देवेन्द्र फडनवीस हेलमेट अनिवार्य करने के खिलाफ सड़कों पर उग्र आंदोलन करने की चेतावनी दे रहे हैं। अब वह कतरन उनका मुंह चिढ़ा रही है। छत्तीसगढ़ में भाजपा विपक्ष में तो है, लेकिन हेलमेट का विरोध नहीं कर पा रही है क्योंकि नया ट्रैफिक कानून नरेन्द्र मोदी का लागू किया हुआ है, और बाकी देश की तरह छत्तीसगढ़ में भी उस पर अमल करवाने की बात अमित शाह ने की है। इसलिए इस राज्य में भाजपा चुप है, और जिस कांग्रेस सरकार को इस पर अमल करवाना है, वह पीछे हट रही है क्योंकि एक तो राजनीतिक रूप से मोदी सरकार के फैसले का विरोध करना है, दूसरी बात यह कि सत्तारूढ़ पार्टी को डरा दिया गया है कि नए ट्रैफिक नियम से, या सिर्फ हेलमेट अनिवार्य करने से भी आने वाले म्युनिसिपल चुनावों में जनता की नाराजगी झेलनी पड़ेगी।
सत्ता के साथ कई दिक्कतें रहती हैं, कई मोर्चों पर वह बददिमागी की हद तक दुस्साहसी हो जाती है, और कई मौकों पर वह बात-बात में भयभीत भी होने लगती है। किसी कड़े कानून को लागू करने के नाम से ही सत्ता को पसीना छूटने लगा है, इस तरह भाजपा को समर्थन या विरोध में से कुछ भी करने की नौबत नहीं आ रही, जो भी हो रहा है वह कांग्रेस और कांग्रेस सरकार के भीतर हो रहा है। पार्टी और सत्ता को डराने वाले लोगों को यह समझ नहीं पड़ रहा है कि आम घरों में लोग चाहते हैं कि उनके लोग बाहर निकलें तो हेलमेट लगाकर सुरक्षित होकर आएं-जाएं, वे हेलमेट के खिलाफ नहीं रहते हैं। सिर्फ कुछ बददिमाग लोग इसका विरोध करते हैं, सिर्फ राजनीति करने वाले कुछ लोग इसे बढ़ावा देते हैं, और अच्छे-भले नियम-कानून ताक पर धर दिए जाते हैं।
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