राजपथ - जनपथ
जस्टिस मुल्ला याद आते हैं...
छत्तीसगढ़ में पुलिस का हाल यह है कि अलग-अलग आईजी रेंज, और अलग-अलग जिलों में संगठित भ्रष्टाचार देखने लायक है। एक आईजी ने अभी कुछ समय पहले 80 हजार रूपए का एक पिल्ला खरीदा है जिसके बारे में उनके मातहत बताते हैं कि इसका भुगतान एक नए बने जिले के पुलिस से किया गया था, और पिल्ले को लेने के लिए दो सिपाही राजधानी रायपुर की पुलिस लाईन से भेजे गए थे।
इसी तरह जिलों और आईजी रेंज में सारा महकमा जानता है कि साहब की तरफ से चोरी के कबाड़ की खरीद-बिक्री का ठेका किस अफसर को दिया गया है, कौन सा अफसर जुआ-सट्टा से वसूली-उगाही का इंचार्ज बनाया गया है, और कौन रेत की अवैध खुदाई के धंधे का इंचार्ज बनाया गया है। बिलासपुर और कोरबा के पूरे इलाके में कोयले का अवैध कारोबार करने वाले सारे लोगों को मालूम है कि उन्हें प्रति ट्रक पैसा किसे पहुंचाना है। पुलिस विभाग का यह संगठित भ्रष्टाचार देखकर इलाहाबाद हाईकोर्ट के एक वक्त के मशहूर जज, जस्टिस आनंद नारायण मुल्ला का वह विख्यात फैसला याद पड़ता है जिसमें उन्होंने लिखा था- 'मैं पूरी जिम्मेदारी के साथ यह कह रहा हूं कि पूरे भारत में एक भी ऐसा अपराधी गिरोह नहीं है जिसका जुर्म का रिकॉर्ड भारतीय पुलिस के संगठित जुर्म के आसपास भी फटक सकता हो।Ó
छत्तीसगढ़ में पुलिस के मुखिया चाहे बदल जाएं, फील्ड में अफसर चाहे बदल जाएं, लेकिन यह संगठित भ्रष्टाचार निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की नजरों के नीचे, और हो सकता है कि उनकी अनुमति, सहमति, और भागीदारी से चलता हो। पिछली रमन सरकार के समय के जिन पुलिस अफसरों पर आज कार्रवाई हो रही है, आज के पुलिस अफसर पांच बरस बाद ऐसी ही कार्रवाई के लिए फिट कैंडीडेट रहेंगे। कोयले के काले कारोबार में छत्तीसगढ़ में हर बरस दसियों हजार करोड़ की संगठित चोरी होती है, और बिलासपुर-सरगुजा के जानकार जानते-बताते हैं कि पुलिस की हिस्सेदारी के बिना एक टोकरा कोयला भी चोरी नहीं हो सकता।
पुलिस और प्रशासन के जानकार लोगों के बीच बैठें तो तुरंत ही यह पता लगने लगता है कि कौन सा अफसर किस भ्रष्टाचार में लगा हुआ है। अब 80 हजार का पिल्ला खरीदने वाले अफसर ने पुलिस कल्याण कोष से ढाई-तीन लाख रूपए के घरेलू सामान भी खरीद लिए, लेकिन इस कोष के इंचार्ज एसपी ने भुगतान से मना कर दिया, तो अब बाकी पुलिस वाले मिलकर दो नंबर के कोष से इसका भुगतान कर रहे हैं। इसके अलावा अफसर का भिलाई में मकान बन रहा है, और जाहिर है कि उसकी लागत जुटाने के लिए एक-एक करके पुराने विभागीय मामले खत्म किए जा रहे हैं, नए मामले दर्ज किए जा रहे हैं, और फिर उनको खत्म करके मकान की और लागत जुटाई जा रही है।
सुब्रमणियम से नाराजगी
कांग्रेस के कश्मीरी नेता छत्तीसगढ़ कैडर के आईएएस बीवीआर सुब्रमणियम से नाखुश चल रहे हैं। सुब्रमणियम वहां के मुख्यसचिव हैं। सुब्रमणियम करीब डेढ़ साल से जम्मू-कश्मीर का प्रशासन संभाल रहे हैं और केन्द्र सरकार उनके काम से खुश भी है। मगर, जम्मू-कश्मीर के पूर्व सीएम गुलाम नबी आजाद को लगता है कि सुब्रमणियम भाजपा के एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं।
सुनते हैं कि गुलाम नबी आजाद ने छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस के प्रभारी पीएल पुनिया को सुब्रमणियम को वापस छत्तीसगढ़ बुलाने की सलाह दी है। इस पर पुनिया ने आजाद से कहा कि उन्होंने सुब्रमणियम को लेकर अच्छा ही सुना है। वे डॉ. मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री रहते उनके सचिव रह चुके हैं। तब आजाद ने उनसे कहा कि वे जम्मू-कश्मीर में गैर भाजपाई नेताओं की नहीं सुन रहे हैं। चाहे तो छत्तीसगढ़ सरकार उन्हें अपने यहां का मुख्य सचिव बना सकती है। पुनिया ने इस पर छत्तीसगढ़ के सीएम भूपेश बघेल से चर्चा करने की बात कही है।
कई बार ऐसा हुआ जब राज्य सरकार ने अड़कर केन्द्र में पदस्थ अपने कैडर के अफसरों को वापस बुलाया है। तमिलनाडु की सीएम जयललिता ने पी शंकर को केन्द्र सरकार से लड़कर उन्हें वापस बुलाया था और मुख्य सचिव बनाया। हाल ही में राजस्थान की गहलोत सरकार ने यह तय किया है कि किसी भी अफसर को केन्द्र में नहीं भेजा जाएगा। यहां खुद सीएम भूपेश बघेल ने मौजूदा मुख्य सचिव सुनील कुजूर को एक्टेंशन देने की सिफारिश केन्द्र सरकार से की है, तो ऐसे में सुब्रमणियम को छत्तीसगढ़ बुलाए जाने की संभावना नहीं है। इस खबर से सुब्रमणियम के छत्तीसगढ़ के दो दूसरे बैचमैट सीके खेतान और आरपी मंडल के लिए अगला मुख्य सचिव बनने का मुकाबला थोड़ा सा हल्का हो सकता है।
देश में कानून दो अलग-अलग किस्म का लागू है। एक आम लोगों के लिए रहता है जिनकी हालत आम की चूसी हुई गुठली सरीखी रहती है। दूसरा कानून खास लोगों के लिए रहता है जिसमें यूपी के बीजेपी एमएलए सेंगर सरीखे लोग आते हैं जहां तक कानून के पहुंचने के पहले उनके विरोधियों को मौत आ जाती है।
छत्तीसगढ़ में भी ताकतवर लोगों को कानून छू नहीं पाता है। और यह ताकत जरूरी नहीं है कि सत्ता की ही हो, विपक्ष की भी अपनी ताकत होती है, और इसीलिए बहुत से लोग सत्ता या विपक्ष किसी की भी राजनीति में शामिल हो जाना चाहते हैं ताकि अफसरों पर रौब पड़ सके। अब ऐसा ही रौब एक विपक्षी दल के एक नेता का है जो कि फिल्मों से भी जुड़े हुए हैं। उनकी फिल्म में हीरोईन रह चुकी एक महिला ने पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराई है कि वे उसे टेलीफोन पर अश्लील संदेश भेज-भेजकर परेशान करते हैं, दोनों ही शादीशुदा हैं, लेकिन फिर भी नेताजी उसे अपने से शादी करने पर मजबूर करने की कोशिश कर रहे हैं, और इस अभिनेत्री की बहन को भी संदेश भेजकर, फोन पर धमकाकर परेशान कर रहे हैं। पुलिस में दर्ज रिपोर्ट में लिखाया गया है कि उसके साथ जबर्दस्ती करने की भी कोशिश की गई है। आईटी एक्ट और दूसरी गंभीर दफाओं में दर्ज इस मामले में पुलिस अदालत में जा चुकी है, लेकिन सब कुछ बड़ी धीमी रफ्तार से चल रहा है। हालत यह है कि मोबाइल फोन पर संदेश जैसे सुरक्षित सुबूतों के बाद भी मामला किसी किनारे पहुंच नहीं रहा है। राजनीति में रहने के फायदे बहुत होते हैं।
जंगल में तरक्की के रास्ते खुले...
सरकार ने पीसीसीएफ के दो और पद मंजूर करने के प्रस्ताव पर सहमति दे दी है। इसके बाद पीसीसीएफ के कुल 6 पद हो जाएंगे। कैबिनेट की मंजूरी के बाद जल्द ही केन्द्र को प्रस्ताव भेजा जाएगा। केन्द्र की मंजूरी के बाद अतिरिक्त पीसीसीएफ के पद पर आरबीपी सिन्हा और संजय शुक्ला को पदोन्नति मिल सकती है। हालांकि इसमें दो-तीन माह का समय लग सकता है।
पीसीसीएफ के दो अतिरिक्त पद की स्वीकृति दो साल के लिए मिली थी। यह समय सीमा 31 मार्च को खत्म हो गई थीं। इसके बाद सरकार ने दोबारा प्रस्ताव केन्द्र को नहीं भेजा। अतिरिक्त पद न होने से वर्ष-85 बैच के एपीसीएफ पीसी मिश्रा बिना पीसीसीएफ बने रिटायर हो गए। जबकि उन्हीं के बैच के अफसर राकेश चतुर्वेदी और कौशलेन्द्र सिंह वरिष्ठता क्रम में ऊपर होने के कारण पीसीसीएफ हो गए।
सुनते हैं कि सीएम भूपेश बघेल अतिरिक्त पद बढ़ाने के पक्ष में नहीं थे। उन्होंने इसके औचित्य को लेकर जवाब-तलब भी किया था, लेकिन बाद में विभागीय मंत्री मोहम्मद अकबर के कहने पर अनमने मन से इसकी मंजूरी दे दी। अब आरबीपी सिन्हा और संजय शुक्ला को इससे सीधा फायदा हो सकता है। अन्यथा उन्हें पदोन्नति के लिए कम से कम डेढ़ साल इंतजार और करना पड़ता।
कल आया, आज घर सम्हाल बैठा...
भाजयुमो के कई पदाधिकारी पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह से नाराज चल रहे हैं। पदाधिकारियों की नाराजगी इस बात को लेकर है कि पूर्व सीएम के कहने पर पूर्व कलेक्टर ओपी चौधरी को पार्टी कार्यक्रमों के मंच पर बिठाया जा रहा है और उन्हें एक तरह से उनके साथ अतिथि की तरह सम्मान दिया जा रहा है। जबकि वे विधानसभा चुनाव के जरा पहले ही पार्टी में आए हैं।
भाजयुमो नेताओं का यह भी कहना है कि रमन सिंह, ओपी चौधरी को भाजयुमो अध्यक्ष बनवा सकते हैं। मौजूदा अध्यक्ष विजय शर्मा, पूर्व सीएम के ही करीबी हैं और वे हर कार्यक्रम में योजनाबद्ध तरीके से सबसे पहले ओपी चौधरी को संबोधन के लिए आगे करते हैं। कुछ पदाधिकारियों ने इसकी शिकायत पार्टी के अन्य वरिष्ठ विधायकों से की है। उन्होंने कहा कि जिस तरह पूर्व सीएम की पसंद पर धरमलाल कौशिक को अंतिम क्षणों नेता प्रतिपक्ष बनाया गया था। उसी तरह चौधरी को भी भाजयुमो का अध्यक्ष बनाने की कोशिश हो सकती है, लेकिन इसका विरोध अभी से शुरू हो गया है।
आईएएस अफसर सोनमणि बोरा ने सोशल मीडिया में विदेश यात्रा से लौटने के बाद माना विमानतल में नेताओं जैसे स्वागत की तस्वीर पोस्ट की है। सचिव स्तर के अफसर सोनमणि अमेरिका अध्ययन यात्रा पर गए थे। वे सालभर बाद रविवार को लौटे हैं।
धर्म के नाम पर ही सही...
चाहे धार्मिक भावनाओं से क्यों न सही, कुछ लोग जानवरों के हित की बात करते हैं। अब अभी छत्तीसगढ़ में एक गौरक्षा संघ का बयान आया जिसमें बरसात में हाईवे पर गौमाता की दुर्घटना मौत रोकने के लिए पहल की बात की गई। इसके लिए आज 4 अगस्त को फे्रंडशिप डे पर गौमाता को बेस्टफें्रड बनाकर, रेडियम बेल्ट बांधकर उसे दुर्घटना से बचाया जाएगा। इस संगठन ने सरकार से भी अपील की है कि सड़कों पर बेघर छोड़ दिए गए सभी गौवंश को राजसात किया जाए, और उनके मालिकों पर कार्रवाई की जाए। अब यह बात चाहे महज गाय और गौवंश के लिए की गई हो, यह बाकी जानवरों को भी खतरे से बचाएगी और जानवरों की वजह से होने वाले सड़क हादसों को भी कम करेगी।
सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद अभी तक केवल गांवों में जानवरों के लिए बाड़े बन पाए हैं, लेकिन सड़कों से जानवरों को हटाना नहीं हो पाया है। जो लोग जानवर पालकर उन्हें सड़कों पर छोड़ देते हैं, उनके खिलाफ सचमुच ही कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए।
कहानियां झांसा देती हैं...
आज फे्रंडशिप डे पर बहुत से लोग कृष्ण और सुदामा को याद कर रहे हैं कि गरीब और अमीर के बीच भी दोस्ती कैसी गहरी हो सकती है। ऐसी बातों के झांसों में आकर आज अगर सचमुच ही सुदामा कृष्ण के घर चले जाए, तो शायद घर बैठे कृष्ण के किसी सेवक के मुंह से यह सुनने मिलेगा कि कृष्णजी सुबह से ही कहीं चले गए हैं।
([email protected])
एक वक्त कई किस्म की बीमारियों में डॉक्टर पेनिसिलिन का इंजेक्शन लगाते थे, और उनमें से अधिकतर तकलीफें काबू में आ जाती थी। उसके बाद इंटीबायोटिक का दौर आया, और पेनिसिलिन धीरे-धीरे बेअसर होने लगा। बाद में एंटीबायोटिक की अगली पीढ़ी आई और पिछली पीढ़ी बेअसर हो गई। धीरे-धीरे एंटीबायोटिक की कई पीढिय़ां आईं, और अब हालत यह है कि उसकी सबसे नई पीढ़ी भी बेअसर होने लगी है। और दुनिया भर में एंटीबायोटिक का असर खत्म होना एक बड़ी फिक्र की बात हो गई है।
इसी तरह पहले किसी सार्वजनिक इमारत की दीवार पर, सीढिय़ों के कोनों पर लिखा जाता था कि थूकना मना है। थूकने की स्वतंत्रता के हिमायती लोग ऐसे नोटिस पर से आनन-फानन मना शब्द को मिटा देते थे, और थूककर ही आगे बढ़ते थे। जब ऐसा लिखा हुआ बेअसर हो गया तो लोगों ने एक तरकीब निकाली कि सीढिय़ों के कोनों पर देवी-देवताओं की तस्वीरों वाले टाईल्स लगाने लगे, ताकि धर्मालु लोग वहां थूकने से परहेज करें। कुछ बरस तक तो इसका असर रहा, लेकिन अब धीरे-धीरे लोग ऐसे टाईल्स के ऊपर भी थूककर आगे बढऩे लगे, और देवी-देवता अपनी फिक्र करने में लगे हुए हैं कि कहां जाएं?
सुलग रहा सरगुजा
छत्तीसगढ़ में पुलिस हिरासत से भागकर आदिवासी युवक पंकज बेक के आत्महत्या मामले पर सरगुजा जिले की राजनीति गरमाई हुई है। इस पूरे मामले पर भाजपाईयों ने सरकार के खिलाफ न सिर्फ विरोध प्रदर्शन किया बल्कि केन्द्रीय मंत्री रेणुका सिंह उच्च स्तरीय जांच की मांग को लेकर केन्द्रीय गृहमंत्री अमित शाह से भी मिल आईं। पिछले छह महीने में पुलिस हिरासत में मौत के सात प्रकरण सामने आए हैं, लेकिन सरगुजा जैसा विरोध कहीं नहीं हुआ। सरगुजा में तो खुद रेणुका सिंह ने मोर्चा संभाल रखा था। सुनते हैं कि उन्होंने आदिवासी युवक की हिरासत में मौत के लिए आईजी केसी अग्रवाल को भी कड़ी फटकार लगाई और पूछ लिया कि यदि पंकज बेक , अग्रवाल होता तो पुलिस हिरासत में मारा जाता? रेणुका सिंह ने सरगुजा के भाजपाईयों को चार्ज कर दिया है, जो कि चुनाव के बाद पार्टी के कार्यक्रमों से दूरी बनाकर रखे हुए थे। एक दूसरी बात यह कि सरगुजा के तमाम सवर्ण भाजपाई रेणुका सिंह से तिरछे-तिरछे चलते थे, अब केंद्रीय मंत्री के इन तेवरों से उनकी भी बोलती बंद है।
([email protected])
चेम्बर के संरक्षक और विहिप नेता रमेश मोदी इन दिनों सपरिवार सैर सपाटे के लिए इंडोनेशिया के बाली गए हैं। वहां उन्होंने अपने गले में सांप लपेटकर तस्वीर पोस्ट की है। उनकी तस्वीरों पर कई लोग मजा ले रहे हैं। चेम्बर के एक सदस्य ने एक वॉट्सऐप गु्रप में पोस्ट इस तस्वीर के नीचे लिखा-ये हैं चेम्बर के संरक्षक, इनके आस्तीन में सांप साफ नजर आ रहा है। चेम्बर में इन दिनों पदाधिकारियों के बीच विवाद चल रहा है। इन सबके बीच रमेश मोदी पर कटाक्ष से नया बखेड़ा खड़ा होने के आसार दिख रहे हैं। मोदी से जुड़े लोग उनके लौटने का इंतजार कर रहे हैं।
न्यौता देना बाकी है...
छत्तीसगढ़ सरकार की एक सबसे महत्वाकांक्षी योजना नरवा, गरुवा, घुरवा, बारी पर काम तेजी से चल रहा है, और अब तक मनरेगा के तहत इधर-उधर बिना जरूरत के जो काम केवल मजदूरी देने के लिए करवाए जाते थे, उनकी बजाय अब जानवरों के लिए बैठने और खाने-पीने की जगह बनने की तस्वीरें दिख रही हैं। राज्य सरकार इसे उपलब्धि मानती है कि अपने किसी बजट और खर्च के बिना उसने केंद्र सरकार की रोजगार गारंटी की योजना, ग्रामीण विकास की योजना के मद से ही यह काम कर लिया है।
लेकिन राज्य भर में चारों तरफ से जो तस्वीरें आती हैं, वे बताती हैं कि सड़कों पर से जानवर घटे नहीं हैं, और शहर से लेकर गांवों तक हाल यही है। बारिश में जानवरों का डेरा सड़कों पर इसलिए भी बढ़ जाता है कि महज सड़कें ही सूखी और साफ रहती हैं और जानवर वैसी जगह पर ही बैठ पाते हैं। बाकी गीली जगहों पर मक्ख्यिां उनका जीना हराम कर देती हैं, अब ऐसे में जानवरों के लिए चारा-पानी और बैठने की जगह बनने के बावजूद सड़कों से उन्हें कैसे हटाया जाए यह एक बड़ी चुनौती अभी बाकी है। बहुत से लोगों का यह तजुर्बा है कि बहुत से सड़क हादसे इसी वजह से होते हैं कि सड़कों पर जानवर रहते हैं या अचानक आ जाते हैं। अब सरकार ने खाने-पीने और डेरे की जगह तो बना दी है, लेकिन जानवरों को वहां न्यौता देना अभी बाकी है।
मुकेश गुप्ता और पुलिस...
राज्य सरकार के निशाने पर चल रहे प्रदेश के डीजी रैंक के निलंबित अफसर मुकेश गुप्ता को रहस्यमय और अदृश्य सहायता मिल रही है। और यह सहायता प्रदेश के गृहमंत्री, और मुख्यमंत्री के अपने जिले की पुलिस से हासिल हो रही है। राज्य सरकार के ही लोगों के पास इस बात की पुख्ता जानकारी है कि दुर्ग पुलिस के कुछ लोग लगातार मुकेश गुप्ता को पुलिस की तैयारी की जानकारी दे रहे थे। पुलिस जब मुकेश गुप्ता को ढूंढने की कवायद की नुमाइश कर रही थी, तभी उस बीच पुलिस की अच्छी खासी जानकारी में मुकेश गुप्ता दुर्ग-भिलाई आकर, रूककर अपने करीबी एक खेल संघ पदाधिकारी के फार्महाऊस की दावत में शामिल हुए, और बात सबको मालूम होने के बावजूद दुर्ग की पुलिस दिल्ली में उन्हें ढूंढने की मशक्कत दिखाती रही। हालत यह है कि दुर्ग के जिस सुपेला थाने में मुकेश गुप्ता के खिलाफ साडा की जमीन में गड़बड़ी करने का जुर्म दर्ज है, उस थाने को सोच-समझकर थाना प्रभारी के बिना रखा गया है, और एक सब इंस्पेक्टर को वहां का प्रभारी थानेदार बनाया गया है। इसी तरह दुर्ग के बहुत से पुराने और तजुर्बेकार अफसरों को छोड़कर एक बिल्कुल ही नए अफसर को मुकेश गुप्ता की गिरफ्तारी के लिए, या उस नाम पर, दिल्ली भेजा गया जो कि कमजोर तैयारी से गए, और जानकारी यह है कि वे बिना सर्चवारंट ही मुकेश गुप्ता के घर पहुंच गए थे, और खबरें छपी कि वे वहां से फटकार खाकर लौटे हैं।
यह बात अखबार पढऩे वाले हर किसी को मालूम है कि मुकेश गुप्ता को देश के कुछ सबसे महंगे वकीलों की सेवाएं हासिल हैं, और महेश जेठमलानी जैसे वकील उनके लिए अदालत में आकर खड़े होते हैं। ऐसे में पुलिस की ऐसी कमजोर तैयारी, और हलचल की अनदेखी कोई मासूम बात नहीं लगती है। एक जानकार का कहना है कि प्रदेश के जिन दो थानों में, रायपुर के सिविल लाईंस, और भिलाई के सुपेला थाने में, जहां कि मुकेश गुप्ता के खिलाफ कोई मामला दर्ज हो सकता था, उन दोनों थानों को मुकेश गुप्ता ने अपनी बादशाहत के चलते कभी भी अपने पसंदीदा लोगों के बिना नहीं रहने दिया था। वहां पर कुछ न कुछ लोग उनके खांटी वफादार रखे ही जाते थे, और आज भी उनमें से कुछ की वफादारी का फायदा उनको मिल रहा है। कहीं कागज कमजोर बन रहे हैं, तो कहीं पहले से पुलिस खबर करके फिर पहुंच रही है। इस बीच पुलिस महकमे के अलग-अलग अफसर उन्हें गिरफ्तार करने का बीड़ा इस रफ्तार से उठा रहे हैं कि मानो रोज पान खाने वाले पानठेले पर पान का बीड़ा उठा रहे हों। ([email protected])
अब इंस्पेक्टरों के लिए यही बच गया?
छत्तीसगढ़ सरकार में अलग-अलग बहुत से फैसले ऐसे लिए जाते हैं कि उनके पीछे कोई सोच नहीं है यह बात बड़े-बड़े अक्षरों में लिखी नजर आती है। राजधानी रायपुर में अचानक तय हुआ कि टै्रफिक का कोई भी चालान डीएसपी स्तर का अफसर ही करेगा और सड़क किनारे किसी चालान का भुगतान नहीं होगा, वह सिर्फ ट्रैफिक थाने में ही जाकर होगा। अब मानो ट्रैफिक थाने से 20 किलोमीटर दूर चालान हुआ है, तो उसके भुगतान में एक पूरा दिन बर्बाद हो जाएगा, और सरकार को तो मानो जनता के दिन बर्बाद होने से कोई लेना-देना ही नहीं है। फिर मानो गृहमंत्री की यह मुनादी काफी नहीं थी, तो डीजीपी की तरफ से कल एक और हुक्म जारी हुआ जो कहता है कि चालान तो इंस्पेक्टर और उसके ऊपर के स्तर के अफसर ही कर सकेंगे, और इसके कैशलेस भुगतान के लिए थानों में स्वाईप मशीन लगाई जाएगी जिसे ऑपरेट करने का अधिकारी इंस्पेक्टर रैंक के अफसर को ही होगा।
स्वाईप मशीन को भी मानो रिजर्व बैंक की तिजोरी मान लिया गया है। आज सड़क किनारे के एक-एक छोटे-छोटे ढाबे तक में अनपढ़ वेटर भी स्वाईप मशीन लिए घूमते हैं, पांच हजार तनख्वाह वाले लोग भी स्वाईप मशीन चलाना जानते हैं, चलाते हैं, और ऐसे में थानों में अब केवल इंस्पेक्टर इस मशीन को चलाएंगे मानो इससे भी छोटा पुलिस कर्मचारी घपला कर सकेगा। अगर सचमुच ही डिजिटल भुगतान में छत्तीसगढ़ पुलिस के छोटे कर्मचारी घपला कर सकेंगे, तो यह दुनिया में एक नई तकनीक ईजाद करने के लिए पेटेंट करवाने का मौका रहेगा। पुलिस विभाग के मुखिया इंस्पेक्टरों को हर थाने में स्वाईप मशीन देकर भुगतान लेने के लिए बिठाएंगे, तो मुकेश गुप्ता को पकडऩे के लिए दिल्ली जाने की नौबत ही नहीं आएगी। और पुलिस विभाग में कुछ लोग सच में ऐसा चाहते भी हैं कि पकडऩे का दिखावा होता चले, अपने नंबर बढ़ते चलें, और असर इम्तिहान कभी देना ही न पड़े।
छत्तीसगढ़ में सरकार हड़बड़ी में कई किस्म की मुनादी करती है, मंत्री अपने स्तर पर फैसलों की घोषणा करते हैं, और अफसर अपने स्तर पर। लेकिन जब इन पर अमल की बात आती है तो समझ आता है कि कई घोषणाएं बुनियादी तौर पर गलत ही थीं।
संत युधिष्ठिर लाल का योगदान...
पिछले दिनों पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिन्दुओं पर अत्याचार का मामला लोकसभा में गूंजा। इंदौर के सांसद शंकर लालवानी ने यह मामला उठाया और भारत सरकार से नेहरू-लियाकत समझौते पर अमल करने के लिए पाकिस्तान पर दबाव डालने का आग्रह किया। इस विषय की प्रतिक्रिया इतनी तेजी से हुई, कि पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को सफाई देनी पड़ी। सुनते हैं कि संसद में पाकिस्तान में हिन्दुओं पर अत्याचार का मामला उठाने के पीछे शदाणी दरबार के प्रमुख संत युधिष्ठिर लाल की प्रमुख भूमिका रही है।
संत युधिष्ठिर लाल पिछले दिनों दिल्ली गए थे और उन्होंने केन्द्रीय मंत्रियों-सांसदों से मुलाकात की थी। इन सबके बीच संत युधिष्ठिर लाल ने पाकिस्तान में अल्पसंख्यक हिन्दुओं का जबरिया धर्मान्तरण और उन पर अत्याचार की चर्चा की थी। हर साल पाकिस्तान से सैकड़ों की संख्या में सिंधी समाज के लोग शदाणी दरबार में मत्था टेकने छत्तीसगढ़ आते हैं। यहां से भी श्रद्धालुओं का जत्था पाकिस्तान के सिंध प्रांत में स्थित धर्म स्थलों के दर्शन के लिए जाता है। दोनों देशों के श्रद्धालुओं के बीच संत युधिष्ठिर लाल महत्वपूर्ण कड़ी हंै। वे पाकिस्तान में हिन्दुओं की स्थिति से वाकिफ रहते हैं और समय-समय पर उनकी समस्याओं से केन्द्र सरकार को अवगत कराते रहते हैं।
उन्होंने ही इकलौते सिंधी सांसद शंकर लालवानी को 1950 में हुए नेहरू-लियाकत समझौते की विस्तार से जानकारी दी थी। इस समझौते में दोनों देशों से शासन प्रमुखों ने एक-दूसरे के यहां अल्पसंख्यकों के जान-माल और हितों की रक्षा सुनिश्चित करने पर सहमति जताई थी। संत युधिष्ठिर लाल ने केन्द्र सरकार से देश में पाकिस्तान से आए हिन्दुओं को नागरिकता देने पर भी चर्चा की। छत्तीसगढ़ में भी बड़ी संख्या में पाकिस्तान से आए हिन्दू रह रहे हैं। केन्द्र सरकार भी मोटे तौर पर उनके रूख से सहमत दिख रही है।
मंत्री और विभाग के बीच लिस्ट
प्रदेश में तबादलों पर से रोक हटी तो मंत्रियों के करीबी लोगों को लग रहा था कि उनके अच्छे दिन आएंगे। कई मंत्री ऐसे हैं जिनकी बनाई हुई लिस्ट अफसरों की टेबिल पर धूल खा रही है, और खुद मंत्रियों को समझ नहीं आ रहा है कि उनके अच्छे दिन आखिर कब आएंगे, या फिर आएंगे ही नहीं। गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू ने जितने इंस्पेक्टरों के तबादले की लिस्ट पुलिस मुख्यालय भेजी थी, वह संग्रहालय में रख दी गई, और एक नई लिस्ट जारी हो गई। गृहमंत्री अपने गृह में बैठे रह गए। उनके एक समर्थक ने कहा है कि अब पुलिस मुख्यालय से मंत्री की मंजूरी के लिए कोई लिस्ट आए, तो उसे भी फ्रिज के भीतर फ्रीजर में रख देना चाहिए, तभी पीएचक्यू में उनकी गई हुई लिस्ट संग्रहालय से निकाली जाएगी।
लेकिन तबादलों के मौसम में कदम-कदम पर किस्से सुनाई पड़ते हैं। दुर्ग में म्युनिसिपल कमिश्नर दोपहर तक वीआईपी ड्यूटी पर थे, और शाम को उनका विकेट उखड़ गया। यह पता ही नहीं चल रहा है कि खेलने को कोई नया ग्राउंड मिलेगा या नहीं। अब अफसर सिर धुन रहा है कि मंत्रियों के आगे-पीछे घूमने का क्या फायदा हुआ?
([email protected])
साख की गलतफहमी
कई बार ऐसा होता है कि बड़े लोगों के झगड़े में छोटे पिस जाते हैं। और उन्हें काफी कुछ नुकसान उठाना पड़ता है। पुलिस में कुछ ऐसा ही हुआ है। पिछली सरकार में एक हवलदार को एक ताकतवर पुलिस अफसर ने खूब प्रताडि़त किया। हवलदार के भतीजे तक को सस्पेंड कर दिया। हवलदार को लेकर यह धारणा थी कि वह अफसर के विरोधी एक अन्य पुलिस अफसर का करीबी है। काफी अनुनय-विनय और कुछ राजनेताओं के हस्तक्षेप के बाद अफसर का गुस्सा शांत हुआ। हवलदार को ठीक-ठाक पोस्टिंग भी मिल गई। सब कुछ ठीक चल रहा था कि सरकार बदल गई।
सरकार बदलने के साथ ही हवलदार पर फिर आफत आन पड़ी। जिस पुलिस अफसर ने पहले हवलदार को प्रताडि़त किया था उसके बुरे दिन शुरू हो गए और अफसर के खिलाफ कई तरह की जांच शुरू हो गई। अब हवलदार को यह कहकर सुकमा भेज दिया गया कि वह जांच के घेरे में आए पुलिस अफसर का करीबी है। अब हवलदार यहां-वहां हाथ जोड़कर बताता फिर रहा है कि जिसका करीबी बताकर फिर उसे प्रताडि़त किया जा रहा है, उसकी प्रताडऩा का खुद पहले शिकार हो चुका है। मगर, अभी तक उसे राहत नहीं मिल पाई है।
साख का खेल
सहकारिता आयुक्त गणेश शंकर मिश्रा को तो हटा दिया गया, लेकिन उनके नजदीकी रिश्तेदार, पत्नी के चचेरे भाई विवेक रंजन तिवारी अतिरिक्त महाधिवक्ता बनाया गया है। विवेक रंजन बिलासपुर हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष रहे हैं और वे अविभाजित मप्र कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे दिवंगत रामगोपाल तिवारी के नाती हैं। गणेश शंकर मिश्रा के उलट विवेक रंजन की साख अच्छी है। यही वजह है कि उन्हें सतीशचंद्र वर्मा के महाधिवक्ता बनने के बाद रिक्त अतिरिक्त महाधिवक्ता का दायित्व सौंपा गया है।
विवेक रंजन से परे गणेश शंकर मिश्रा को हमेशा योग्यता से ज्यादा मिला। जबकि उनके खिलाफ विधानसभा की समिति ने अपराधिक प्रकरण दर्ज करने की अनुशंसा की थी। इन सबको दरकिनार कर उन्हें रिटायरमेंट के आखिरी दिन रमन सरकार ने प्रमुख सचिव बनाया। जबकि देश के अन्य राज्यों में उनके बैच के लोग प्रमुख सचिव नहीं बने थे। सुनते हैं कि पदोन्नति पाने के लिए रायपुर से लेकर राजनांदगांव तक के भाजपा नेताओं को तत्कालीन सीएम डॉ. रमन सिंह के पीछे लगा दिया था। तमाम नियमों-कानून को दरकिनार कर उन्हें पदोन्नति मिल गई। प्रदेश में सहकारिता क्षेत्र में भारी भ्रष्टाचार है और यहां चुनाव में भी पारदर्शिता की कमी रही है। यही वजह है कि सरकार ने गणेश शंकर की जगह साफ-सुथरी छवि के अफसर मनोज पिंगुआ को चुनाव आयुक्त की जिम्मेदारी देकर व्यवस्था ठीक करने मंशा जताई है।
होटल के सामानों का लालच
हिंदुस्तान से जब लोग बाहर जाते हैं, तो उनके बर्ताव को लेकर बहुत से लोगों को शिकायत रहती है। वे गुटखा, तंबाकू खाकर जगह-जगह थूकते हैं, और कई किस्म की गंदगी करते हैं, कतार तोड़ते हैं, और सामान चुराते हैं। अभी-अभी इंडोनेशिया के बाली में छुट्टियां मनाने गए एक हिंदुस्तानी परिवार का वीडियो चारों तरफ फैल रहा है जिनके सूटकेस-बैग खोल-खोलकर पुलिस के सामने होटल के कर्मचारी चुराया हुआ सामान निकाल रहे हैं। पहले तो यह परिवार कर्मचारियों पर चीख रहा है, लेकिन जैसे-जैसे सामान निकलता गया, वैसे-वैसे उसकी बोलती बंद होती गई, और परिवार ने कर्मचारियों के पांव पकड़ लिए।
कुछ लोग इसे हिंदुस्तान की नाक कटवाना मान रहे हैं, कुछ लोग मान रहे हैं कि किसी परिवार के गलत काम से देश की नाक नहीं कटती। जो भी हो, मामला बड़ा शर्मनाक है, और इन दिनों खुफिया कैमरों के रहते गलत काम करने के पहले सौ बार सोचना चाहिए, और फिर लोगों के बीच कुछ करते हुए ध्यान रखना चाहिए कि कई मोबाइल फोन रिकॉर्ड कर रहे होंगे।
लेकिन बहुत से सैलानियों को यह मालूम नहीं होता कि वे होटल से क्या-क्या सामान होटल के कमरे को छोड़ते हुए लेकर जा सकते हैं? इसके बारे में एक जानकार वेबसाईट बताती है कि होटल के बाथरूम में रखा गया साबुन, शैम्पू, कंघी, शॉवर कैप, डिस्पोजेबल स्लीपर के अलावा कमरे में रखे गए चाय, कॉफी, शक्कर, नमक के पैकेट ले जाए जा सकते हैं जिस पर होटल को कोई आपत्ति नहीं होती। ये सारी चीजें मुफ्त इस्तेमाल की रहती हैं जिन्हें मुफ्त ले जाया जा सकता है। दूसरी तरफ तौलिया, तकिया, चादर, नेपकिन, हेयरड्रायर, रिमोट की बैटरियां नहीं ले जाई जा सकतीं। इसी तरह अलमारी के हैंगर, चम्मच-छुरी, ग्लास-प्लेट को भी नहीं ले जाया जा सकता। अगर होटल जरा भी महंगी है, तो वहां ठहरने वाले साबुन-शैंपू की छोटी-छोटी बोतलें मांग भी सकते हैं, और साथ ला सकते हैं, उसमें होटल को कोई आपत्ति नहीं होती। लेकिन अभी जो भारतीय परिवार पकड़ाया है वह हाथ धोने के साबुन की बड़ी-बड़ी बोतलें भी सूटकेस में भरकर ले जा रहा था।
मध्यप्रदेश काडर के एक ऐसे बड़े इज्जतदार वरिष्ठ आईएएस अधिकारी थे जो आपसी चर्चा में बताते थे कि वे दुनिया भर में जिस होटल में ठहरे, वहां से कोई न कोई सामान जरूर लेकर आए। और वे कमरे में मुफ्त में रखे गए इस्तेमाल के सामानों से परे, कहीं से चम्मच, कहीं से कांटा-छुरी, तो कहीं से तौलिया लेकर आते थे।
([email protected])
स्थानीय और बाहरी का मुद्दा
प्रदेश के सबसे बड़े निजी अस्पताल रामकृष्ण केयर में डॉक्टरों और प्रबंधन के बीच झगड़ा खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है। कभी अस्पताल के सर्वेसर्वा रहे सर्जन डॉ. संदीप दवे की हिस्सेदारी बहुत कम रह गई है। अस्पताल प्रबंधन पूरी तरह टैक्सास की कंपनी के हाथों में हैं।
सुनते हैं कि विवाद के लिए कंपनी प्रबंधन के साथ-साथ स्थानीय डॉक्टर भी जिम्मेदार हैं। अस्पताल में मरीजों के साथ भारी भरकम राशि वसूलने और अव्यवस्था की शिकायत के चलते कंपनी ने दिल्ली से एक सीईओ बिठा दिया था। महिला सीईओ अस्पताल में गतिविधियों पर बारीक नजर रखे हुए थी। अस्पताल में वीआईपी मरीजों की देखरेख पर पूरी ताकत झोंक दी जाती थी, और बाकी मरीज भीड़ की शक्ल में बैठे रहते थे, महंगा बिल चुकाने के बावजूद।
अस्पताल में कई नामी डॉक्टर हैं, लेकिन दिक्कत यह है कि वे कभी अस्पताल में समय पर नहीं आते थे। दूर-दराज से आए मरीजों को काफी इंतजार करना पड़ रहा था। एक प्रतिष्ठित डॉक्टर ने तो यह तक कह दिया था कि ओपीडी में वे 15 मरीज से ज्यादा नहीं देखेंगे। प्रबंधन ने उनकी बात तुरंत मान ली और बाकी मरीजों के देखने के लिए उन्हीं के बराबर योग्यता वाले चिकित्सक को बाहर से बुलाकर नियुक्ति दे दी। कई और चिकित्सकों की नियुक्ति की गई। यही नहीं, अस्पताल में कई बीएएमएस डॉक्टर काम कर रहे थे, जिन्हें बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। कुल मिलाकर अब तक अस्पताल में एकाधिकार खत्म होने से स्थानीय और बाहरी डॉक्टरों का विवाद खड़ा करने की कोशिश भी हो रही है। मरीजों के लिए राहत की बात यह है कि कई बेहतर डॉक्टर आए हैं और इलाज भी समय पर हो रहा है। दूसरी तरफ जानकार गैरडॉक्टरों का कहना है कि यह पूरी तरह से एक कारोबारी झगड़ा है, जिसमें क्या स्थानीय और क्या बाहरी? बाबा रामदेव ने बहुराष्ट्रीय कंपनियों के सामानों के खिलाफ बवाल खड़ा किया था, और अपने सामानों को देशपे्रम से जोड़ दिया था, लेकिन भावनाओं के ठंडे होने के साथ-साथ अब रामदेव के सामानों का बाजार भी ठंडा हो चला है, और उनके इश्तहार टीवी से तकरीबन गायब ही हो चुके हैं। कुछ स्थानीय डॉक्टरों का कहना है कि राज्य के सबसे महंगे अस्पतालों के मालिक स्थानीय रहें, या बाहरी, इससे मरीज के बिल पर कोई फर्क पड़ता है क्या?
तबादला लिस्ट में नामी अफसर
सरकार बदलने के बाद सोमवार को 68 राज्य प्रशासनिक सेवा के अफसरों के तबादले की सूची जारी की गई। सूची में पहला नाम तीर्थराज अग्रवाल का है जिनके खिलाफ लारा एनटीपीसी मुआवजा घोटाले में अपराधिक प्रकरण दर्ज है और उन्हें निलंबित भी किया गया था। अग्रवाल एक बड़े भाजपा नेता के भांजे हैं। मामाजी बड़े पद पर थे, तो घोटाले पर पर्दा डाल तीर्थराज को जल्द बहाल कर अहम जिम्मेदारी भी दे दी गई। उन्हें भाटापारा-बलौदाबाजार जिले में पोस्टिंग मिल गई।
सरकार बदलते ही स्थानीय कांग्रेस नेताओं की शिकायत पर तुरंत उन्हें हटाकर बलरामपुर-रामानुजगंज जिले में पदस्थ किया गया। इसके बाद तीर्थराज को वहां से हटाकर जांजगीर-चांपा जिला पंचायत का सीईओ बना दिया गया। जो कि हर लिहाज से यह अहम पोस्टिंग मानी जाती है। सूची देखकर कांग्रेस नेता भी हैरान हैं कि आखिर ऐसे विवादित-दागदार अफसर को इतना अहम दायित्व कैसे मिल गया?
दूसरी तरफ रायपुर के तहसीलदार रहते हुए कई आरोप झेलने वाले पुलक भट्टाचार्य पिछली सरकार के परिवहन मंत्री राजेश मूणत की आंखों के तारे थे, वे पहले दुर्ग के आरटीओ रहे, फिर रायपुर के आरटीओ रहे। नई कांगे्रस सरकार ने भी पुलक भट्टाचार्य को आरटीओ तो बनाए ही रखा, उसके साथ-साथ स्टेट गैरेज का अतिरिक्त प्रभार भी दे दिया था। अब पुलक को आरटीओ से हटाया भी गया है तो राजधानी की म्युनिसिपल ने अपर आयुक्त बना दिया गया है। राज किसी का भी रहे, कुछ अफसरों का राज जारी रहता ही है। गांधी की कृपा सब पर बनी रहे।
विपक्षी से दरियादिली
सरकार के कई मंत्री विरोधी नेताओं का उदारतापूर्वक सहयोग कर रहे हैं। ऐसे ही एक भाजपा नेता, कुछ समय पहले एक मंत्री के पास पहुंचे और उन्हें अपनी जमीन से जुड़ी समस्याएं बताई। भाजपा नेता का दर्द यह था कि उनका काम, उन्हीं के सरकार के मंत्री राजेश मूणत ने रोक दिया था। नेताजी, अपने बेटे को लेकर साथ गए थे। और मंत्रीजी को बताया कि बेटे का बिजनेस खड़ा करना चाहते हैं। उन्होंने इसके लिए मंत्रीजी से मदद मांगी। मंत्रीजी ने यह जानते हुए कि भाजपा नेता ने उनके खिलाफ चुनाव संचालन किया था, बड़ा दिल दिखाते हुए उनका काम कर दिया।
([email protected])
छत्तीसगढ़ की नई राज्यपाल अनुसुईया उईके के बारे में छिंदवाड़ा के जानकार एक पत्रकार शिशिर सोनी ने एक संस्मरण आज अपने फेसबुक पेज पर लिखा है- अस्सी के दशक की बात होगी। अनुसुईया उइके समूचे छिंदवाड़ा में हीरो मजेस्टिक वाली अनु दीदी के नाम से ख्यात हो रही थी। तब किसी लड़की का शहर में मोपेड की सवारी तो दूर की बात अकेले निकलने पर भी रोकटोक थी। उनके बेखौफ अंदाज के कारण शहर की लड़कियाँ जुडऩे लगीं।
पहला सवाल हल करने को आया शहर से दूर कॉलेज जाने वाली लड़कियों के लिए बस की सुविधा तय करवाना। सभी से किराया वसूल कर बस वाले को देना। फिर सभी लड़कियों को कॉलेज के लिए घर से लेना फिर वापिस घर तक छोडऩा, छात्राओं की अनु दीदी का शगल हो गया।
कैंपस में मशहूर हुईं तो छात्रों की नेता हो गईं। कैंपस के कई चुनाव जीते। किसी आदिवासी महिला का छिंदवाड़ा में यूँ लोकप्रिय हो जाना मध्यप्रदेश के वर्तमान मुख्यमंत्री कमलनाथ को अच्छा लगा। उन्होंने तब उनसे पूछा चुनाव लड़ोगी? कांग्रेस से विधानसभा का टिकट मिला और 26 साल की नौजवान अनुसुईया उईके देखते ही देखते विधायक बन गई। मंत्री बनी। यहीं से शुरू हुआ राजनीतिक सफर। तब तक एमए, एलएलबी जैसी उच्च शिक्षा भी ग्रहण कर चुकी थी। इनका राजनीतिक कौशल अर्जुन सिंह जैसे पुरोधा ने तब परखा जब वे खरसिया (अब छत्तीसगढ़ में) से उपचुनाव लड़ रहे थे। सामने थे भाजपा के कद्दावर नेता दिलीप सिंह जूदेव। चुनाव का संचालन अनुसुईया उईके संभाल रही थी। संयुक्त मध्यप्रदेश के तब मुख्यमंत्री थे अर्जुन सिंह। उस वक्त मध्यप्रदेश के एक बड़े भाजपा नेता सुंदरलाल पटवा ने खरसिया उपचुनाव में एक सभा को संबोधित करते हुए महिलाओं पे कुछ टीका-टिप्पणी कर दी उस टिप्पणी को अनुसुईयाजी ने ऐसा राजनीतिक जामा पहनाया कि तीन दिनों में ही जीत रहे भाजपा के जूदेव डिफेंसिव हो गए। माहौल बदला और अर्जुन सिंह चुनाव जीत गए। उस चुनाव में जीत का श्रेय अर्जुन सिंह ने अनुसुईयाजी को दिया था।
1991 में किसी कारण कांग्रेस का साथ छोड़ भाजपा का दामन पकड़ा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कसौटी पर लगातार खरी उतरती गई। राज्यसभा की सदस्य बनीं। कार्यकाल पूरा हुआ तो जनजाति आयोग की उपाध्यक्ष बना दी गईं। वहाँ उन्होंने जमकर काम किया। आयोग से इस्तीफा देने वाले दिन तक केस निपटाती रहीं। झारखंड के रामगढ़ में टाटा के एक प्रोजेक्ट में चार आदिवासी परिवार बेघर हो रहे थे। सुनवाई के दौरान टाटा कंपनी को आदेश दिया की सभी चार परिवार को 25-25 लाख रुपया मुआवजा दो। कंपनी मान गई।
पिछले शुक्रवार को ही एक और केस था हिमांशु कुमार का। दिल्ली विश्वविद्यालय से एम टेक कर रहे इस आदिवासी छात्र की शिकायत थी कि उसने अच्छी परीक्षा दी है लेकिन उसे फेल किया गया उसकी कॉपी का पुनर्मूल्यांकन हो! केस की सुनवाई में एसटी आयोग में उपस्थित दिल्ली विश्वविद्यालय के अधिकारियों ने कहा कि टेक्निकल पढ़ाई की परीक्षा में पुनर्मूल्यांकन की नीति नहीं। आयोग के उपाध्यक्ष के नाते अनुसुईया जी ने इसे विशेष केस मानते हुए आदेश दिया कि पुनर्मूल्यांकन किया जाए। हिमांशु की खुशी का ठिकाना नहीं था।
शोषित, वंचित समाज के बीच बेहद प्रसिद्ध अनु दीदी, सोमवार को छत्तीसगढ़ की प्रथम आदिवासी महिला राज्यपाल के रूप में शपथ लेंगी।
सदस्यता से ज्यादा जरूरी ग्राहकी
देशभर में भाजपा का सदस्यता अभियान चल रहा है। मगर, छत्तीसगढ़ में पार्टी कार्यकर्ता नए सदस्य बनाने में रुचि नहीं ले रहे हैं। पार्टी के रणनीतिकार इसको लेकर परेशान हैं। पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर और अमर अग्रवाल ने अपने-अपने प्रभार वाले जिलों की बैठक में सदस्यता अभियान की धीमी रफ्तार पर जमकर नाराजगी जाहिर की, लेकिन कार्यकर्ताओं पर इसका कोई असर नहीं पड़ा। प्रदेश में सरकार नहीं रह गई है, ऐसे में कार्यकर्ता पार्टी कार्यक्रमों के बजाए काम-धंधे में ज्यादा व्यस्त दिख रहे हैं।
सुनते हैं कि सरकार के एक फैसले ने उनकी व्यस्तता और बढ़ा दी है। सरकार ने यह फैसला लिया है कि राशन दुकानों का संचालन अब सहकारी समितियां करेंगी। इसके बाद वार्ड स्तर के भाजपा नेता सहकारी समिति गठन कर राशन दूकान लेने की तैयारी में जुट गए हैं।
सरकार के पास यह जानकारी आई भी है कि भाजपा नेताओं ने बड़े पैमाने पर सहकारी समितियां बनाई हैं। यह साफ है कि जिसके पास राशन दुकान रहेगी, उसकी मोहल्ले में धमक रहेगी। वैसे भी सरकार हर परिवार को राशन मुहैय्या कराने जा रही है, आज के मुकाबले अनाज और बाकी सामान की आवाजाही काफी बढ़ेगी। ऐसे में पार्टी के कई नेताओं को राशन दुकान के लिए मेहनत करना गलत नहीं लग रहा है क्योंकि इससे पार्टी का ही जनाधार बढ़ेगा।
अमरजीत की एक और जीत
मंत्री बनने के बाद अमरजीत भगत का कद लगातार बढ़ रहा है। भगत की पसंद पर सीएम ने उनके करीबी पीडब्ल्यूडी अफसर एमएल उरांव को प्रभारी मुख्य अभियंता बनाने पर सहमति दे दी है। भगत ने अपनी नोटशीट में मुख्य अभियंता के एक पद को अजजा वर्ग के लिए स्वीकृत होना बताया था। खैर, इस पोस्टिंग से सरगुजा संभाग में वर्चस्व की लड़ाई शुरू हो सकती है। वजह यह है कि सरगुजा में ठेकेदारी बड़ा काम है, और कांग्रेस-भाजपा के प्रभावशाली नेता प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से इससे जुड़े हैं। अब भगत के करीबी अफसर की पोस्टिंग के बाद बड़े ठेकेदार स्वाभाविक तौर पर उनके आसपास मंडराते नजर आएंगे। ऐसे में भगत के बढ़ते कद से सरगुजा इलाके के सबसे बड़े कांग्रेस नेता कृषि मंत्री टीएस सिंहदेव के वर्चस्व को चुनौती देने की कोशिशों के रूप में देखा जा रहा है। इसमें एक दिलचस्प बात यह भी है कि पीडब्ल्यूडी के विभागीय मंत्री मुख्यमंत्री पद के एक और दावेदार ताम्रध्वज साहू हैं।
छिंदवाड़ा की अनुसुईया उईके छत्तीसगढ़ की राज्यपाल की शपथ लेने जा रही हैं। वे अविभाजित मध्यप्रदेश में विधायक रह चुकी हैं इसलिए छत्तीसगढ़ के बहुत से विधायकों से उनका घरोबा रहा है। चुनाव और विधानसभा के भीतर मतदान को छोड़ दें तो सभी पार्टियों के नेताओं के रिश्ते अमूमन अच्छे रहते हैं, और छत्तीसगढ़ के कांग्रेस, भाजपा, सभी के कई विधायकों से अनुसुईया उईके के अच्छे संबंध रहे हैं। इसके अलावा छत्तीसगढ़ के नंदकुमार साय ऐसे नेता हैं जिनके साथ अनुसुईया उईके ने राष्ट्रीय जनजाति आयोग में लंबे समय से काम किया है, और उनका फेसबुक पेज ऐसी तस्वीरों से भरा हुआ है। साय इस आयोग के अध्यक्ष हैं, और अनुसुईया इसकी उपाध्यक्ष। इसके अलावा हाल ही में केन्द्रीय मंत्री बनीं छत्तीसगढ़ की आदिवासी सांसद रेणुका सिंह के साथ भी अनुसुईया उईके के बहुत से फोटो फेसबुक पर हैं। वे अभी 17 जुलाई तक फेसबुक पर सक्रिय रही हैं, राज्यपाल मनोनीत होने के एक दिन बाद तक । उनका फेसबुक पेज बताता है कि वे राहुल गांधी और प्रियंका गांधी, इन दोनों के फेसबुक पेज भी लाईक करती हैं, और साथ ही भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का पेज भी। छत्तीसगढ़ से जुड़े जो पेज वे पसंद करती हैं, उनमें अमर अग्रवाल का पेज भी है, और गौरीशंकर अग्रवाल का भी। वे बृजमोहन अग्रवाल, डॉ. रमन सिंह, नंदकुमार साय, के पेज भी पसंद करती हैं। उनके फेसबुक दोस्तों में छत्तीसगढ़ के पीएचई के ईएनसी रहे रामनिवास गुप्ता भी हैं जो कि छिंदवाड़ा के इलाके में बरसों काम कर चुके हैं।
तोहफे का साइज!
प्रदेश में भले ही भाजपा की सरकार नहीं है, लेकिन पार्टी के कुछ सांसदों का इसका मलाल भी नहीं है। वजह यह है कि क्षेत्र के लोग उनकी सेवा-सत्कार में कमी नहीं होने दे रहे हैं। ऐसे ही एक नए नवेले सांसद को परिवहन कारोबारियों ने मिलकर फॉर्चूनर नाम की बड़ी सी गाड़ी गिफ्ट की है। क्षेत्र की सड़कें खराब है, ऐसे में आरामदेह सफर के लिए सांसद महोदय ने गिफ्ट लेने से परहेज नहीं किया, मगर पार्टी के भीतर इसको लेकर कानाफूसी हो रही है।
([email protected])
सांसद सुनील सोनी रायपुर में सरकारी बंगला चाहते हैं। उन्हें इसकी पात्रता भी है। उनकी नजर अपने पूर्ववर्ती सांसद रमेश बैस के आकाशवाणी से सटेसरकारी बंगले की तरफ गई। उन्होंने इसके लिए आवेदन भी भेज दिया। सुनील सोनी को उम्मीद थी कि त्रिपुरा का राज्यपाल बनने के बाद बैसजी बंगला खाली कर देंगे और यह उन्हें मिल जाएगा। मगर, ऐसा नहीं हो रहा है। बैसजी के नहीं रहने पर सरकारी बंगले में उनके समर्थकों की आवाजाही लगी रहेगी। बैसजी ने सरकार के प्रमुख लोगों से बात कर यह सुनिश्चित कर लिया है कि बंगला उन्हीं के कब्जे में रहेगा।
बैसजी का रायपुर में सरकारी बंगला रखना गलत भी नहीं है। वे सात बार सांसद रह चुके हैं। जब बृजमोहन अग्रवाल मंत्री न रहने के बावजूद मंत्री बंगले पर काबिज रह सकते हैं, तो बैसजी का हक बनता ही है। बृजमोहन की तरह बैसजी का सीएम और अन्य प्रमुख लोगों से मधुर संबंध है। ऐसे में उनसे बंगला खाली करवाना दूर की कौड़ी है। वैसे भी, साधन-सुविधाएं जुटाने के लिए सरकार से तालमेल बनाए रखना जरूरी होता है। ताम्रध्वज साहू जब सांसद थे तो उन्हें भी रायपुर में बंगले के लिए काफी पापड़ बेलने पड़े। तब यहां भाजपा की सरकार थी। आखिरकार उन्हें अपने प्रतिद्वंदी सरोज पांडेय से सिफारिश करानी पड़ी, तब कहीं जाकर उन्हें यहां सरकारी बंगला अलॉट हो पाया। सोनीजी को भी बृजमोहन-ताम्रध्वज के गुर सीखने पड़ेंगे।
कुछ और पर कार्रवाई...
सरकार की भ्रष्टाचार विरोधी जांच एजेंसियों की चर्चा आज खबरों में सिर्फ दो-तीन चर्चित मामलों को लेकर हो रही है। लेकिन वहां दर्ज शिकायतों में से बहुत सी शिकायतों पर तेज रफ्तार से काम चल रहा है ताकि आने वाले दिनों में कुछ और लोगों के खिलाफ कार्रवाई हो सके। अभी एसीबी-ईओडब्ल्यू में पहुंचने वाली शिकायतों में से पांच फीसदी में ही जांच हो पाती है, और शायद एक फीसदी मामले अदालतों तक पहुंचते हैं। अब इनके बीच जो चार फीसदी मामले हैं, उन पर तेजी से कार्रवाई चल रही है क्योंकि उनमें काफी कुछ जानकारियां जुट चुकी हैं। डीजीपी दर्जे के अफसर बी.के. सिंह के इस दफ्तर से हटने के बाद अब जी.पी.सिंह अकेले मुखिया रह गए हैं, और अब रफ्तार से कुछ जांच पूरी होने, और अदालत तक पहुंचने के आसार हैं। जिनकी जांच हुई है, वे लोग कुछ हड़बड़ाए हुए हैं।
मुकेश गुप्ता के खिलाफ निलंबन की कार्रवाई पर कैट ने रोक लगा दी है। गुप्ता की तरफ से तर्क दिया गया है कि उन्होंने नान-जल संसाधन घोटाले को उजागर किया था, इसलिए प्रभावशाली लोग उनके पीछे पड़े हैं और उन्हें निशाना बनाया जा रहा है। कैट ने इस प्रकरण पर सरकार के जवाब भी मांगा है। मुकेश गुप्ता के करीबियों को उम्मीद है कि जल्द ही उन्हें राहत मिल जाएगी। मगर, यह सबकुछ आसान नहीं है।
निलंबन खत्म भी हो जाएगा, तो भी मुकेश गुप्ता को ड्यूटी ज्वाइन करने में दिक्कत हो सकती है। वजह यह है कि ईओडब्ल्यू-एसीबी ने उनके खिलाफ जांच की कार्रवाई तकरीबन पूरी कर ली है और उनके खिलाफ चालान पेश कर सकती है। ऐसे में उन्हें गिरफ्तार किया जा सकता है। यही नहीं, मिक्की मेहता प्रकरण में भी उनके खिलाफ साक्ष्य पाए गए हैं और जल्द ही एक और जुर्म कायम हो सकता है। इसके अलावा भिलाई में साडा से प्लॉट आबंटन मामले में उनके खिलाफ एक प्रकरण और दर्ज है। यानी साफ है कि वे यहां आते हैं तो पुलिस के हत्थे चढ़ जाएंगे और निलंबन खत्म होने के बाद ड्यूटी ज्वाइन नहीं करते हैं तो एक बार और कार्रवाई हो सकती है। कुल मिलाकर मुकेश गुप्ता के लिए इधर कुंआ, उधर खाई वाली स्थिति है।
तबियत गड़बड़ाने की वजह
पिछले दिनों पूर्व सीएम डॉ. रमन सिंह के दिल्ली दौरे के बीच खबर उड़ी कि उन्हें मेदांता अस्पताल में भर्ती कराया गया है। बाद में पूर्व सीएम के करीबियों ने इसका खंडन किया और कहा कि वे रूटीन चेकअप के लिए गए थे। मगर, भाजपा के कई लोग बताते हैं कि वाकई रमन सिंह की तबियत बिगड़ गई थी। और वे इसके लिए लाभचंद बाफना को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं।
सुनते हैं कि रमन सिंह केन्द्रीय मंत्री-सांसदों से मिलने संसद भवन गए थे। उनके साथ लाभचंद बाफना भी हो लिए। वहां सेंट्रल हॉल में मेल मुलाकात के दौरान पकौड़ों का भी दौर चलता रहा। लाभचंद बाफना एक के बाद एक प्लेट में रमन सिंह के लिए पकौड़े मंगवाते रहे। वैसे तो, पूर्व सीएम खान-पान को लेकर काफी सतर्कता बरतते हैं, लेकिन लाभचंद की जिद के आगे उनकी नहीं चली और हरी चटनी के साथ तीन-चार प्लेट पकौड़े खा लिए। बाद में उन्हें तेज एसिडिटी और सीने में जलन होने लगी। इसके बाद उन्हें मेदांता अस्पताल ले जाया गया। वहां गैस्ट्रोएंटरोलॉजिस्ट ने उनका इलाज किया। तब कहीं जाकर थोड़ी देर बाद उन्हें राहत मिली फिर पूरा हेल्थ चेकअप कराकर ही लौटे।
जांच किसकी, और किसकी नहीं...
कल पुलिस मुख्यालय ने एक आदेश निकाला कि 2010 से 2015 के बीच जिन लोगों को आऊट ऑफ टर्न प्रमोशन दिए गए हैं, उनकी जांच की जाए। इसके लिए बड़े अफसरों की एक कमेटी भी बना दी गई है। लेकिन इस जांच में वे लोग भी घेरे में रहेंगे जो बिना पात्रता प्रमोशन पा चुके हैं। ऐसे कई लोग मुकेश गुप्ता के चढ़ाए हुए कई मंजिल ऊपर जा बैठे हैं, और चूंकि मामला अब कैट और अदालत तक गया हुआ है इसलिए शायद सरकार सावधानी से चल रही है, और चुनिंदा लोगों की जांच के बजाय इन पांच बरसों के ऐसे सभी मामलों की जांच की जा रही है। पीएचक्यू के एक जानकार आईपीएस ने कहा कि अब सरकार चाहे तो इन पांच बरसों में डीएसपी से प्रमोशन पाने वाले लोगों की जांच भी करवा सकती है जिन्होंने विभागीय परीक्षाएं पास नहीं की हैं, और प्रमोशन पाकर ऊपर पहुंच चुके हैं। विभागीय परीक्षा की शर्त से किन-किन लोगों को कैसे ढील दी गई, यह भी देखने लायक बात है।
एक दूसरे अफसर का कहना है कि सभी अफसरों के पासपोर्ट जांचे जाएं, तो यह पता चल जाएगा कि बिना इजाजत पुलिस के छोटे-छोटे अफसर भी किस तरह तफरीह के लिए विदेश जाते-आते हैं। ([email protected])
पिछली सरकार में बड़ी संख्या में कॉलेज खोले गए, लेकिन बिल्डिंग -स्टाफ आदि की जरूरतों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। हाल यह है कि 40 से अधिक कॉलेजों के पास खुद की बिल्डिंग नहीं है और वे स्कूल भवनों में संचालित हो रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि रमन सिंह सरकार में पे्रेमप्रकाश पाण्डेय के पास उच्च शिक्षा का दायित्व था जिन्हें काबिल मंत्री माना जाता रहा है।
अविभाजित मध्यप्रदेश में जब पैसों की बेहद तंगी रहती थी, तब कॉलेज बिल्डिंग-स्टाफ के लिए फंड जुटाने मंत्री काफी ताकत लगाते थे। एक बार ऐसा मौका आया जब मोतीलाल वोरा ने उच्च शिक्षा मंत्री रहते बस्तर में एक साथ आठ नए कॉलेज खोल दिए। उस वक्त बस्तर में मात्र दो कॉलेज संचालित थे। बाकी जिलों में भी कॉलेज खोल दिए गए। जब फंड की बात आई, तो तत्कालीन सीएम अर्जुन सिंह ने वोराजी से पूछ लिया, कि पैसा कहां से आएगा? इस पर वोराजी ने उन्हें कहा कि आप सिर्फ फाइल पर दस्तखत कर दीजिए, मैंने पैसे का इंतजाम कर लिया है। इस पर अर्जुन सिंह ने बिना कुछ कहे फाइल पर दस्तखत कर दिए।
वोराजी इसके बाद तत्कालीन वित्तमंत्री शिवभानु सोलंकी के पास पहुंचे। और उनसे कहा कि धार में एक बड़ा कॉलेज खोला जा रहा है। यहां हर विषय की पढ़ाई होगी। सोलंकी खुशी-खुशी इसके लिए तैयार हो गए। धार सोलंकी का अपना विधानसभा क्षेत्र था। और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा भी। सोलंकी ने वोराजी के बाकी प्रस्तावों पर भी मुहर लगा दी। इसके बाद सालभर में नए कॉलेज खोले गए पहले कॉलेज स्कूल में संचालित होते रहे, लेकिन जल्द ही उनकी अपनी बिल्डिंग भी बन गई। इस तरह राजनीतिक कौशल का प्रयोग कर वोराजी ने उच्च शिक्षा के लिए काफी संसाधन जुटा लिए थे।
एक साथ बड़ेे पैमाने पर नए कॉलेज खोलने और इसके लिए जरूरी संसाधन जुटाने के वोराजी के प्रयासों की काफी सराहना भी हुई। उन्होंने पार्टी के बड़े नेताओं की इच्छा का भी ध्यान रखा। शंकर दयाल शर्मा, जो बाद में राष्ट्रपति बने, वे भोपाल के नजदीक एक कॉलेज खोलना चाहते थे। वोराजी ने तुरंत उनकी बात मान ली। इस तरह उच्च शिक्षा के क्षेत्र में काफी काम हुआ, लेकिन अब हालात काफी बदल गए हैं। अब उच्च शिक्षा को निजी क्षेत्र के भरोसे छोड़ दिया गया है और विभागीय अमला ट्रांसफर-पोस्टिंग में ज्यादा रूचि लेता है। आखिर कॉलेज शिक्षकों का वेतन भी काफी बढ़ गया है।
([email protected])
छत्तीसगढ़ के मंत्रालय, और पुलिस मुख्यालय के अफसरों के बीच में इन दिनों एक लिस्ट की या तो तलाश चल रही है, या चर्चा। जिनकी दराज में लिस्ट रखी है वे भी किसी को इसे दिखाना नहीं चाहते, लेकिन बहुत से लोग हैं जो इसकी चर्चा करते टटोलना चाहते हैं कि उन्हें इसकी खबर है या नहीं, या वे इसके बारे में क्या सोचते हैं।
दरअसल नया रायपुर के इलाके में एक बड़ा सा गोल्फ कोर्स बनाने के लिए एक ऐसी योजना बनाई गई थी जिसमें प्रमोटर-बिल्डर को इस शर्त पर बहुत बड़ी जमीन एक रुपये दाम पर दी गई थी कि वह वहां पर गोल्फ कोर्स बनाए, और बगल में एक महंगी कॉलोनी बनाने की जमीन भी बाजार भाव पर दी गई थी, जिस पर बने बंगले डेढ़-दो करोड़ रुपये में लोगों को छांट-छांटकर दिए गए।
पिछली सरकार के वक्त जो अफसर ताकतवर थे, उनमें से बहुतों ने अपने नाम से या अपने किसी करीबी के नाम से यहां पर बंगले लिए। लेकिन नई सरकार आने के बाद जब यह चर्चा निकली कि खुद इस कॉलोनी में बंगला पाने के लिए कुछ लोगों ने इस पूरी योजना को तरह-तरह से इजाजतें दीं, तो कुछ हड़बड़ाहट पैदा हुई। पता लगा कि कुछ ऐसे अफसर भी थे जो नया रायपुर विकास प्राधिकरण में थे, या इस योजना के इजाजत देने वाली किसी कुर्सी पर थे, और उन्होंने साफ-साफ हितों के टकराव वाला यह काम किया है, जो आगे-पीछे लोकायुक्त तक पहुंचने का खतरा बन जाएगा। ऐसी हड़बड़ी के बीच कम से कम एक आईएफएस अफसर ने लिया हुआ ऐसा बंगला लौटा दिया है। जिन लोगों ने अपनी ताकत से बाहर होने की वजह से यहां पर बंगला नहीं लिया था, वे लोग मजे से नजारा देख रहे हैं। पता लगा है कि मुख्य सचिव और पर्यावरण मंत्री दोनों ने यह लिस्ट बुलाई है, अभी तो विधानसभा में इसके बारे में सवाल हुआ जरूर था लेकिन जवाब में उतनी जानकारी सामने नहीं आई जितनी की लोग उम्मीद कर रहे थे।
विधानसभा में आवास पर्यावरण मंत्री मोहम्मद अकबर ने यह बताया कि गोल्फ कोर्स के लिए 101 एकड़ जमीन एक रुपये वर्गमीटर में दी गई और आवासीय बंगलों के लिए 825 रुपये प्रतिवर्गमीटर से साढ़े 37 एकड़ जमीन दी गई है।
आने वाले दिनों में यह मामला कुछ नई सनसनीखेज जानकारी लेकर आएगा।
हाथियों की चुनौती...
हाथियों को लेकर छत्तीसगढ़ बड़ा परेशान है। जहां चाहे वहां हाथी जिसे चाहे उसे कुचल रहे हैं, फसल रौंद रहे हैं, घर तोड़ रहे हैं, और सरकार के हाथ कई रस्सियों से बंधे हुए हैं। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों से लेकर वन्य प्राणी अधिनियम तक सरकार को कड़ी कार्रवाई से रोकते हैं, और इस बीच जिस इलाके में हाथी लोगों को मार रहे हैं, वहां का दबाव भी सरकार पर रहता है। हाथियों के हक के लिए लडऩे वाले कुछ वन्य प्राणी प्रेमी भी सरकार को नोटिस देते रहते हैं, हाईकोर्ट तक दौड़ लगाते रहते हैं।
छत्तीसगढ़ में जंगली हाथियों के साथ-साथ पालतू हाथी भी एक समस्या बन गए हैं जिन्हें लेकर उनके महावत घूमते हैं, और घर-घर से कुछ मांगते हैं, बच्चों को हाथी पर घुमाकर भी कुछ कमाई कर लेते हैं। लेकिन कानून की नजर में उनका यह काम कानूनी नहीं है, इसलिए ऐसे तीन हाथी पिछले दिनों जब्त किए गए, और कई कारणों से उन्हें एक कानूनी प्रावधान के तहत फिर से उन्हीं महावतों के हवाले कर दिया गया।
इस बीच भूतपूर्व केन्द्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्री मेनका गांधी का अचानक छत्तीसगढ़ के जंगल विभाग पर हमला सा हो गया है। वे हर दिन कई बार फोन लगाकर हाथियों के बारे में पूछ रही हैं, और अफसरों को हुक्म भी दे रही हैं। वे अब सिर्फ एक सांसद रह गई हैं, इसलिए उनके हुक्म का कोई कानूनी वजन नहीं है, दूसरी तरफ वे इस राज्य में पकड़े गए पालतू हाथियों को मथुरा भेजने का हुक्म भी दे रही हैं जहां पर वे एक हाथी बचाव केन्द्र चलाती हैं। पालतू हाथी बचपन से ही अपने महावत के साथ रहने के आदी हो जाते हैं, और उनके बिना खाते-पीते भी नहीं हैं। ऐसे परस्पर संबंधों की वजह से जब छत्तीसगढ़ के वन विभाग ने ऐसे तीन हाथी जब्त किए तो उनके महावतों को भी साथ रखा गया ताकि हिरासत में भी हाथी भूखे न मर जाएं।
रायपुर के एक छोटे वन अफसर ने बताया कि यहां पर जिस हाथी को रखा गया था, उसके लिए खाने का इंतजाम करते-करते विभाग की हालत खराब हो गई थी क्योंकि उसके लिए कोई बजट तो था नहीं। उसके अलावा महावत का कहना था कि अगर रोज पांच किलोमीटर चलाया न जाए, तो हाथी बीमार हो जाएगा। इसलिए महावत और वन कर्मचारी दोनों साथ में चलते हुए हाथी को घुमाने ले जाते थे, धूल में खेलने ले जाते थे, उसके बाद महावत तालाब में उसे नहलाता था, और फिर एक पेट्रोल पंप के पीछे सुनसान जगह में जहां उसे ठहराया गया था, वहां दो वक्त उसके खाने का इंतजाम किया जाता था।
चूंकि जंगली या पालतू, दोनों ही किस्म के हाथियों की जिंदगी बचाना एक बड़ी जिम्मेदारी है, इसलिए बिगड़ैल और हिंसक हो गए जंगली हाथियों को सरगुजा के सरकारी हाथी बचाव केन्द्र में रखा जा रहा है, और पालतू हाथियों को सुपुर्दनामे कर महावत के हवाले कर दिया जा रहा है।
अब आज की सबसे बड़ी हाथी-दिक्कत कोरबा जिले में आई है जहां गणेश नाम का एक दंतैल हाथी बेकाबू है, और वह बहुत लंबे इलाके में घूम-घूमकर हिंसा कर रहा है। यह अब तक 15 लोगों को मार चुका है, और एक दिन तो इसने एक घंटे के भीतर 8 किलोमीटर दूरी पर दो अलग-अलग लोगों को मारा। अब इसे कल किसी तरह बेहोश किया गया है, और तरह-तरह के दबाव के बीच इसे एक दूसरे जंगल में ले जाकर छोड़ा जा रहा है क्योंकि वन्य प्राणी प्रेमियों ने इसे सरकारी बचाव केन्द्र में रखने का विरोध किया था। अब दूसरे जंगल के इलाके से वह फिर अपने इस इलाके में लौटता है या नहीं यह भी देखना होगा, और अगर इसने दूसरे जंगल में भी लोगों को मारा तो वहां के लोगों का विरोध सामने आएगा। फिलहाल उसे रेडियो-कॉलर लगाकर छोड़ा जा रहा है ताकि जीपीएस से उसकी लोकेशन का पता लगता रहे। इस रेडियो-कॉलर की बैटरी 8-10 बरस तक चलती है, और वन विभाग उस पर नजर रख सकेगा। फिलहाल मेनका गांधी सुबह से रात तक अफसरों को लगातार फोन कर रही हैं, और हाथियों को ठीक से रखना एक बड़ी चुनौती बन गई है। ([email protected])
सरकार में तबादले पर किचकिच चल रही है। एक-दो जगह तो पार्टी के पदाधिकारी, प्रभारी मंत्री के खिलाफ खुलकर आ गए हैं। वे इसकी शिकायत भी पार्टी संगठन में कर चुके हैं। सुनते हैं कि पूर्व केन्द्रीय राज्यमंत्री प्रदीप जैन पिछले दिनों प्रदेश दौरे पर आए थे। कांग्रेस के एक जिला अध्यक्ष, अपने कुछ सहयोगियों के साथ उनसे मिलने पहुंचे और सीधे-सीधे अपने जिले के प्रभारी मंत्री की शिकायत कर दी। मंत्रीजी को लेकर जिला अध्यक्ष की शिकायत यह थी कि तबादले में मनमर्जी कर रहे हैं, संगठन के नेताओं को भाव नहीं दे रहे हैं। प्रदीप जैन ने प्रभारी सचिव चंदन यादव को सारी जानकारी देने की सलाह दी है।
दरअसल, मंत्रीजी नियमों के जानकार माने जाते हैं और तबादले को लेकर भी एकदम पारदर्शी रहते हैं, जबकि जिले के नेता तबादले के लिए लंबा-चौड़ा हिसाब लेकर बैठे थे। जब उन्हें महत्व नहीं मिला, तो मंत्रीजी की ही शिकायत करते घूम रहे हैं। रायपुर जिले में तो अलग तरह की स्थिति पैदा हो गई है। यहां जिले के कांग्रेस विधायक एकमत होकर स्कूलों में लंबे समय तक तैनात शिक्षकों का तबादला चाह रहे थे, लेकिन एक विधायक ने अचानक रूख बदल दिया। उन्होंने कुछ पुराने लोगों की सिफारिश कर दी। विधायकों में एकमत न होने से प्रभारी मंत्री भी परेशान हैं।
लेकिन जैसा कि किसी भी पार्टी की सरकार में किसी भी प्रदेश में होता है, तबादला उद्योग बिना लेन-देन चल नहीं रहा है, और बदनामी हो रही है। लेकिन कांगे्रस पहले ही लंबे समय तक सरकार चलाने का तजुर्बा रखने वाली पार्टी है, इसलिए बदनामी को लेकर जरूरत से ज्यादा संवेदनशील भी नहीं है। एक कांगे्रस नेता ने कहा कि नक्सल हिंसा और भ्रष्टाचार इन दो को लेकर अधिक फिक्र नहीं करनी चाहिए, ये दोनों 22वीं सदी में भी जारी रहेंगे।
भविष्य भयानक है...
मोबाइल पर इन दिनों फेसऐप नाम का एक ऐसा रूसी ऐप आया है जो लोगों की तस्वीरों में उम्र जोड़ या घटाकर उनकी एक काल्पनिक तस्वीर बना देता है। लोग बीस-तीस बरस उम्र घटाकर अपनी आज की तस्वीर को देख सकते हैं, या बीस-पच्चीस बरस बढ़ाकर भी। कोई अगर इसके इस्तेमाल के आंकड़े देख सके, तो लोग अपनी किसी एक तस्वीर को ही बूढ़ा बनाकर देखते होंगे, और फिर दहशत में आकर बुढ़ापे में झांकना बंद कर देते होंगे। इसके बाद लोग अपनी जवानी, और उसके भी पहले की तस्वीरों में लग जाते होंगे। इस ऐप के बारे में एक अमरीकी सांसद ने फिक्र जाहिर की है कि इसके रास्ते रूसी खुफिया एजेंसियां लोगों के फोन तक घुसपैठ कर ले रही हैं, और अमरीका में इस पर रोक लगाने की मांग की है। हकीकत यह है कि न सिर्फ यह ऐप, बल्कि दुनिया भर में अरबों दूसरे ऐप भी फोन तक घुसपैठ का हक मांगते हैं, तभी काम शुरू करते हैं। और तो और हिन्दुस्तान में नमोऐप और छत्तीसगढ़ सरकार का भुइयांऐप भी फोन तक पूरी घुसपैठ मांगते हैं, तभी काम करते हैं। अब छत्तीसगढ़ सरकार के जमीन रिकॉर्ड दिखाने वाले भुइयांऐप को लोगों की फोनबुक, उनके फोटो फोल्डर, उनके माइक्रोफोन तक पहुंच मांगने की क्या जरूरत रहती है? लेकिन सरकार भी लोगों को मुफ्त में कुछ देना नहीं चाहती है, और उसके एवज में घुसपैठ मांगती है। अब यह लोगों को तय करना है कि वे किस-किस एप्लीकेशन के इस्तेमाल के लिए अनजानी कंपनियों के सामने अपना तौलिया उतारकर खड़े होना चाहते हैं।
जिन्हें पानी जैसा रहना चाहिए, वे ठर्रा जैसे...
देश-प्रदेश में राजनीतिक दलों के प्रवक्ता कई बार अपने दल की बात करने के बजाय अपनी बात करने और अपने आपको महिमामंडित करने के काम में ऐसे जुट जाते हैं कि लगता है कि वे पार्टी हैं, और पार्टी उनकी प्रवक्ता है। यह बात तय है कि जब प्रवक्ता अपनी पार्टी से बड़े होने लगते हैं, अपने आपको चबूतरे पर चढ़ी प्रतिमा की तरह स्थापित करने में लग जाते हैं, तो पार्टी पर बुरे दिनों का खतरा मंडराने लगता है। एक पार्टी के जिम्मेदार प्रवक्ता रहने के लिए लोगों को पानी की तरह रहना चाहिए जो कि चाय से लेकर शरबत तक, और दारू से लेकर दाल तक, काम तो आए, लेकिन न अलग से दिखे, न अलग से उसका कोई स्वाद हो। आज हालत यह है कि राजनीतिक दलों के प्रवक्ता, या मंत्रियों और दूसरे नेताओं के मीडिया प्रभारी पार्टी और नेता से अधिक अपनी तस्वीरों को फैलाते हैं, और पार्टी के जिक्र को एक सीढ़ी की तरह इस्तेमाल करते हैं। राष्ट्रीय स्तर पर भी एक दिक्कत यह रहती है कि बड़े-बड़े धाकड़ वकीलों को बड़ी पार्टियां प्रवक्ता बनाती हैं, और वे पार्टी की सोच को सामने रखने के बजाय अपने तर्कों को पेश करते हुए मानो अपनी वकालत के प्रचार में लगे रहते हैं। समझदार राजनीतिक दल वे होते हैं जो महत्वाकांक्षी नेताओं को पार्टी प्रवक्ता नहीं बनाते। ([email protected])
रिंकू खनूजा आत्महत्या प्रकरण में सीएम रमन सिंह के ओएसडी रहे अरूण बिसेन की मुश्किलें बढ़ सकती है। बिसेन से पुलिस एक बार पूछताछ कर चुकी है। जल्द ही उन्हें दोबारा पूछताछ के लिए बुलाया जा सकता है। खास बात यह है कि अरूण बिसेन के बचाव के लिए कोई आगे नहीं आ रहा है। कोई यह नहीं कह रहा है कि बदलापुर की राजनीति हो रही है। अफसर और भाजपा के लोग भी उनसे काफी नाराज रहते थे। वजह यह है कि उनका सीएम सचिवालय में रहते मुलाकातियों-अफसरों से व्यवहार अच्छा नहीं रहा। जिन लोगों के रमन सिंह से अच्छे संबंध थे, वैसे भी बहुत से लोगों के फोन नंबर बिसेन ने अपने हैंडसेट पर ब्लॉक कर रखेे थे।
सरकार जाने के बाद जब उनके खिलाफ शिकायतों पर जांच बिठाई गई, तो लोगों को उनके कारनामों का पता चला। अरूण बिसेन ने एनआरडीए में काम कर रही एक एजेंसी में अपनी पत्नी को नौकरी पर लगवा लिया था। सरकार बदलने के बाद जब नियुक्ति का प्रकरण सुर्खियों में आया, तो खुद रमन सिंह हैरान रह गए। सुनते हैं कि उन्होंने पत्नी को नौकरी पर रखने की जानकारी रमन सिंह को नहीं दी थी। अरूण बिसेन, रमन सिंह के पुत्र अभिषेक सिंह के सहपाठी रहे हैं और इस वजह से उन्हें सीएम हाऊस में एंट्री मिल गई। देखते ही देखते उनकी हैसियत काफी बढ़ गई। चर्चा है कि रिंकू खनूजा-सीडी कांड की जांच में जुटी पुलिस ने उनसे सीडी देखने के लिए मुंबई जाने और वहां के महंगे पांच सितारा सहारा होटल में रूकने और मानस साहू से संबंधों को लेकर पूछताछ की।
चर्चा तो यह है कि सीडी से जुड़े किसी भी सवाल का उन्होंने कोई ठोस जवाब नहीं दिया। अरूण बिसेन की संपत्ति की भी जानकारी जुटाई जा रही है। उन्होंने आईआईएम से एजूकेटिव एमबीए किया है, इस पर लाखों खर्च होते हैं। यह राशि कहां से आई, इसकी भी जानकारी जुटाई जा रही है। अभी स्वर्णभूमि में एक बड़े बंगले का पता चला है। कोई इस मामले में अभी कुछ कहने के लिए तैयार नहीं है, लेकिन जैसे-जैसे जांच आगे बढ़ेगी, बिसेन की मुश्किलें बढ़ सकती है। दूसरी तरफ रमन सिंह के एक वक्त सबसे करीबी रहे ओएसडी विक्रम सिसोदिया आखिरी पांच बरसों में ऐसे किनारे कर दिए गए थे कि किसी गलत काम से उनका नाम जुड़ा हुआ मिला ही नहीं है क्योंकि सारे कामों से उन्हें अलग ही रखा गया था। उस वक्त की उपेक्षा आज फायदे की साबित हो रही है क्योंकि सेक्स-सीडी देखने अगर उन्हें भेजा गया होता तो आज वे गवाही देते खड़े रहते।
भाजपा के दिग्गज हावी
सदन में पूर्व मंत्री अजय चंद्राकर, शिवरतन शर्मा, नारायण चंदेल और धर्मजीत सिंह न हों, तो सत्ता पक्ष के लिए मैदान एकदम खाली रहेगा। कम से कम अब तक के दो सत्रों में तो यही दिखा है। सदन में भाजपा के मात्र 14 सदस्य हैं और सत्ता पक्ष के 67। खासकर मानसून सत्र में सत्ता पक्ष के आगे विपक्ष असहाय दिखा। अंडा प्रकरण में जब सत्ता पक्ष सदस्य एक साथ पिल पड़े, तो गुस्साए भाजपा सदस्य विपक्ष की आवाज दबाई जा रही है यह कहते सदन से बाहर निकलने मजबूर हो गए।
नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक की भूमिका बेहद सीमित रही है। एक-दो मौके पर तो बगल में बैठे रमन सिंह उनके कानों में फुसफुसाते देखे गए, तब कहीं जाकर वे बोलने के लिए खड़े हुए। जोगी सरकार में बृजमोहन अग्रवाल काफी मुखर रहते थे, लेकिन इस बार ऐसा नहीं दिखा। इसका अंदाजा सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है कि बैलाडीला के नंदीराज पर्वत पर खनन को लेकर उनका सवाल लगा था और वे सदन में लेट पहुंचे, जिसके कारण इस पर चर्चा नहीं हो पाई। जबकि इस मामले को लेकर पूरा बस्तर आंदोलित रहा है। विपक्ष के नाम पर चारों ही ज्यादा मुखर रहे हैं। सौरभ सिंह की भी आवाज सुनाई जरूर देती है। अजय ही ज्यादातर मौकों पर विपक्ष को लीड करते नजर आए। महाधिवक्ता प्रकरण पर विपक्ष ने भूपेश कैबिनेट के खिलाफ सदन में निंदा प्रस्ताव लाया। खास बात यह है कि राज्य बनने के बाद पहली बार कैबिनेट के खिलाफ निंदा प्रस्ताव आया। ये अलग बात है कि प्रस्ताव अग्राह्य हो गया। मगर, अजय, नारायण और शिवरतन कम संख्याबल की कमी के बावजूद अपने संसदीय ज्ञान के बूते सत्ता पक्ष को परेशान करते नजर आए।
शब्दों के बदलते मायने...
एक समय जब म्युनिसिपल के नलों में कोई पंप लगाकर गैरकानूनी तरीके से उसका पानी खींचते थे, तो उसके खिलाफ जारी नोटिस में टुल्लू पंप लिखा जाता था। अब टुल्लू तो एक ब्रांड था, लेकिन हर चोर पंप को टुल्लू मान लिया गया था। ठीक इसी तरह वनस्पति घी की जगह डालडा शब्द ऐसा चल निकला था कि वह ब्रांड न हो, हर किस्म के घी का नाम है।
अब यह सेल्फी का युग चल रहा है। हिन्दुस्तान में सबसे ज्यादा देखा जाने वाला कॉमेडी शो देखें, तो उसमें कपिल शर्मा अर्चना पूरन सिंह से सेल्फी लेने को कहते दिखते हैं जबकि वे दूर से महज फोटो लेती हैं जिसमें वे खुद नहीं रहतीं। यानी अपनी किसी भी तरह की तस्वीर हो, खुद लें, या कोई और, उसे सेल्फी कह दिया जाता है।
बातचीत के कुछ और अटपटे शब्दों को देखें तो डेनिम के कपड़े को लोग जींस कहने लगे हैं। डेनिम के शर्ट को लोग जींस का शर्ट, और डेनिम की जैकेट को जींस का जैकेट कहते हैं। डेनिम का हाल किसी गैरटुल्लू पंप सरीखा हो गया है, जिसका कोई अस्तित्व ही नहीं रह गया। वक्त के साथ-साथ कुछ शब्द मायने खो बैठते हैं, और कुछ दूसरे शब्द नए मायने पा लेते हैं। ([email protected])
भारतीय वन सेवा के अफसर एसएस बजाज के खिलाफ बिना अनुमति सिंगापुर यात्रा की पड़ताल चल रही है। बजाज सबसे ज्यादा समय तक नया रायपुर विकास प्राधिकरण के सीईओ पद पर रहे। एक तरह से नया रायपुर में जो भी कुछ डेवलपमेंट हुआ है, कुछ हद तक उन्हें ही श्रेय जाता है। उनकी साख भी अच्छी रही है। परंतु विधानसभा में उनके खिलाफ मामला उठने पर आईएफएस अफसरों में हलचल है।
सुनते हैं कि बजाज ने अपने खर्चें से विदेश यात्रा पर जाने के लिए दो महीने पहले विधिवत विभाग से अनुमति मांगी थी। उनका पूरा परिवार सिंगापुर में एकत्र होने वाला था। इसी बीच विभाग के सचिव बदल गए। अनुमति की फाइल इधर-उधर घूमती रही। न तो आवेदन निरस्त किया गया और न ही स्वीकृति दी गई। यह भी कहा जा रहा है कि बजाज ने विदेश जाने से पहले अपर मुख्य सचिव (वन) को फोन से सूचित भी किया था। विदेश यात्रा के लिए 21 दिन पहले अनुमति लेनी होती है। यदि आवेदन निरस्त नहीं किया जाता है तो अनुमति स्वयमेव मान लिया जाता है। ऐसे में बजाज विदेश यात्रा पर निकल पड़े। लौटकर आए तो उनके खिलाफ जांच खड़ी हो गई। हालांकि विभागीय मंत्री मो. अकबर को नियम-कायदे के मुताबिक काम करने वाला माना जाता है। ऐसे में बजाज से जुड़े लोगों को उम्मीद है कि हकीकत जानने पर उन्हें राहत मिल जाएगी। वन विभाग में कम ही लोग इतनी अच्छी साख वाले हैं, और उनकी फजीहत होते देखकर कई ऐसे आईएफएस खुश हो रहे हैं, जिनकी जगह जंगल में नहीं जेल में होनी चाहिए थी।
रायपुर से अगरतला
रायपुर के 7 बार सांसद रहे रमेश बैस पूरे ही समय पान-मसाला और तंबाकू चबाते रहते हैं। लेकिन वे जिस त्रिपुरा में राज्यपाल बनकर जा रहे हैं, वहां उन्हें कोई सांस्कृतिक दिक्कत नहीं होगी क्योंकि उस राज्य में सुपारी पैदा होती है, और खूब चबाई जाती है। त्रिपुरा का राजभवन एक पुराना महल है, और जिस तरह लखनऊ वगैरह के पुराने महलों में पीकदान का चलन रहता था, वैसा ही चलन रमेश बैस के वहां पहुंचने पर फिर शुरू हो जाएगा। छत्तीसगढ़ के पहले राज्यपाल दिनेश नंदन सहाय यहां से त्रिपुरा के गवर्नर बनाकर भेजे गए थे, और उनके परिचित लोगों को हर वर्ष दीवाली पर उनका जो कार्ड मिलता था उस पर राजभवन की तस्वीर ही छपी रहती थी। छत्तीसगढ़ी लोगों को ऐसे विशाल राजभवन में राज्यपाल का मेहमान बनकर ठहरने का अब खूब मौका मिलेगा, और लगे हाथों उत्तर-पूर्व के बाकी राज्यों को भी छत्तीसगढ़ी सैलानी मिलने लगेंगे। ([email protected])
पूरे छत्तीसगढ़ में चिटफंड को लेकर पुलिस की कार्रवाई बड़ी तेज चल रही है। सरगुजा के कुछ थानों में राजनांदगांव के भूतपूर्व सांसद अभिषेक सिंह के खिलाफ भी रिपोर्ट लिखाई गई है, और यह किसी शिकायतकर्ता के किए नहीं हुआ है, अदालत के आदेश से हुआ है। ऐसे में प्रदेश के एक जिले के एक थाने में राज्य सरकार में हड़कम्प मचा दिया है। वहां पर चिटफंड कंपनियों के खिलाफ जो रिपोर्ट लिखाई गई है, उसमें प्रदेश के आधा दर्जन आईएएस, और आईपीएस अफसरों का नाम भी लिखा गया है। राज्य सरकार के लोग यह देखकर हक्का-बक्का हैं कि क्या इस राज्य के थाने की पुलिस को प्रदेश के इतने आईएएस-आईपीएस लोगों के नाम एफआईआर में दर्ज करते हुए यह समझ नहीं आया कि इसके बारे में किसी बड़े अफसर से भी पूछ लिया जाए? अब पता चल रहा है कि एक ही थाने की ऐसी कम से कम दो एफआईआर को वेबसाइट से भी हटा दिया गया है, और थाने से उसके बारे में कोई जानकारी भी नहीं दी जा रही। खैर, कुछ लोगों ने दस्तावेजी सुबूत जुटा रखे हैं, और ये सुबूत पुलिस के बड़े अफसरों के लिए खासी दिक्कत खड़ी करेंगे। वेबसाइट पर एफआईआर डालना सुप्रीम कोर्ट ने शुरू करवाया है, और किसी बहुत ही संवेदनशील मामले में उसे बड़े अफसर की मर्जी से हटाया जा सकता है, लेकिन इसके लिए मामले का संवेदनशील होना जरूरी है, महज बड़े अफसरों का नाम आ जाने से मामला संवेदनशील नहीं हो जाता। जिन अफसरों के नाम चिटफंड घोटाले में एफआईआर में दर्ज हैं, वे सचिव स्तर के आईएएस हैं, और डीआईजी स्तर के आईपीएस हैं। कुछ मंत्रालय में हैं, कुछ आईजी रेंज में हैं, और कोई दिल्ली में पोस्ट है।
इन्हें मौत पर भरोसा है...
कल एक सड़क हादसे में छत्तीसगढ़ में एक ऐसा व्यक्ति मारा गया जो मोटरसाइकिल पर था, जिसके पास हेलमेट भी था, लेकिन उसे पहनने के बजाय उसे हैंडिल पर टांगकर रखा था। अब मौत ऐसे हेलमेट के रोके रूकती नहीं है। ऐसे ही अगर मौत पर असर होता, तो उन गाडिय़ों के हादसों में तो कोई मरते ही नहीं जिन्होंने सामने नींबू और मिर्च टांग रखे थे। उन घरों में कोई गम ही नहीं होता जो सामने काली हंडी टांगकर उस पर चेहरा बनाकर घर को नजर से बचाते हैं। हेलमेट कोई तिलस्मी ताबीज नहीं है, और वह जब सिर पर ठीक से बंधा हो, तो ही वह मौत को रोक सकता है। हेलमेट इस्तेमाल करने वाले गिने-चुने लोगों में से भी अधिकतर लोग हेलमेट को सिर पर रखकर बिना बेल्ट बांधे चलते हैं। इनका कोई हादसा हो तो सबसे पहले हेलमेट ही दूर जाकर गिरता है। कुछ ऐसा ही हाल सीट बेल्ट का भी है। कारों में सीट बेल्ट की वजह से उनके दाम कम से कम दस हजार रूपए बढ़ते हैं, लेकिन महंगी कार लेने वाले लोग भी उसे तेज रफ्तार तो चलाते हैं, लेकिन सीट बेल्ट नहीं लगाते। उन्हें खुद को हासिल हिफाजत के इस्तेमाल से, सीट बेल्ट से, अधिक भरोसा मौत की रहमदिली पर होता है कि मौत उन्हें छोड़कर चलेगी। जब लोग मरने पर इतने आमादा हैं, तो उन्हें क्या तो पुलिस बचा लेगी, और क्या बिना इस्तेमाल किए हुए हेलमेट-सीट बेल्ट ! ([email protected])
कॉलेज शिक्षक के रूप में काम कर चुकीं छत्तीसगढ़ की नई राज्यपाल अनसुईया उईके के कांग्रेस के पुराने नेताओं से अच्छे संबंध रहे हैं। वे कांग्रेस दिग्गज बसंतराव उईके की पुत्री हैं, जो कि 70 के दशक में अविभाजित मध्यप्रदेश में कांग्रेस के बड़े नेता थे। वे श्यामाचरण शुक्ल के करीबी थे।
बहुत कम लोगों को मालूम है कि वरिष्ठ नेता मोतीलाल वोरा ने अनसुईया को कॉलेज शिक्षक की नौकरी दिलाने में मदद की थी। बात वर्ष 82-83 की है, जब अविभाजित मध्यप्रदेश की अर्जुन सिंह सरकार में मोतीलाल वोरा उच्चशिक्षा मंत्री थे। उस समय नए कॉलेज खोले जा रहे थे। वोराजी ने उच्च शिक्षा मंत्री रहते सौ नए कॉलेज खोल दिए थे। शिक्षकों की कमी को पूरा करने के लिए उन्होंने नया रास्ता निकाला और कॉलेज शिक्षकों की भर्ती प्रक्रिया को पीएससी के दायरे से निकालकर मेरिट के आधार पर करने का फैसला लिया। इस तरह करीब 22 सौ शिक्षक एडहॉक भर्ती किए गए थे।
बताते हैं कि भर्ती प्रक्रिया के दौरान अनसुईया उईके वोराजी से मिली थीं। योग्यता तो थी ही, वोराजी की सिफारिश पर अनसुईया उईके को पसंदीदा जगह पर कॉलेज शिक्षक के रूप में नियुक्ति मिल गई। बाद में यूजीसी ने कॉलेज शिक्षकों की भर्ती के लिए मापदंड बदल दिया। कई शिक्षक यूजीसी के मापदण्डों पर खरा नहीं उतर पा रहे थे उन्हें कॉलेज छोडऩा पड़ा। ऐसे शिक्षकों के लिए वोराजी ने फिर रास्ता बनाया और ये शिक्षक हाईस्कूल में नियुक्त कर दिए गए। बाकी योग्य शिक्षक जल्द स्थाई भी हो गए, जिनमें अनसुईया उईके भी रहीं, जो कि बाद में नौकरी छोड़कर सक्रिय राजनीति में आईं और विधायक-मंत्री, राज्यसभा सदस्य होते हुए अब छत्तीसगढ़ की राज्यपाल नियुक्त हुईं हैं।
मरणोपरांत भी सेवक चाहिए...
मिस्र के पुराने इतिहास को पढ़ें, तो उसमें राजा-रानियों के साथ उनके दास-दासियों को भी दफन करने की परंपरा पता लगती है, उसके अलावा रोज के उनके इस्तेमाल के सामान भी दफन कर दिए जाते थे, और यह माना जाता था कि मृत्यु के बाद भी उन्हें रोज के सामानों और सेवकों की जरूरत पड़ती रहेगी।
कुछ इसी किस्म का हाल आज के अफसरों का होता है। जो जितने बड़े अफसर होते हैं, उनके साथ उतने ही निष्ठावान सेवक दफन कर दिए जाते हैं। छत्तीसगढ़ में अब अभी-अभी एक मामला सामने आया जिसमें सरकार के एक सबसे ऊंचे ओहदे से रिटायर होकर एक लंबा पुनर्वास प्राप्त कर चुके अफसर ने अपने एक पुराने सेवक से सरकार को एक अर्जी भिजवाई। यह सेवक सरकारी अमले का था, और पिछले बीस बरस से मिस्र के इसी राजा की सेवा कर रहा था। अब जब राजा रिटायर हुआ तब भी सेवक की नौकरी जारी थी, और जैसा कि सरकार में आम इंतजाम चलता है, इस सेवक की तैनाती भूतपूर्व राजा के बंगले पर ही थी। अब जब सेवक रिटायर हो गया, तो उसकी तनख्वाह कौन दे? ऐसे में सेवक ने संविदा नियुक्ति के लिए अपने विभाग में अर्जी लगा दी है कि उसे संविदा पर आगे भी रखा जाए। मतलब यह कि बीस बरस के बाद भी वह बंधुआ मजदूर की तरह बंगला ड्यूटी करता रहे।
लेकिन ऐसी चर्चा है कि विभाग ने संविदा की अर्जी खारिज कर दी है कि इस ओहदे पर पहले से विभाग में जरूरत से ज्यादा लोग काम कर रहे हैं, और इस पर संविदा का कोई न्यायसंगत तर्क नहीं बनता।
लोगों ने अभी-अभी दुर्ग जिला अदालत से निकली एक खबर पढ़ी है कि किस तरह वहां की एक महिला जज ने अदालत के एक कर्मचारी द्वारा जज-बंगले पर ड्यूटी करने से मना कर दिया तो जज ने उसे दिन भर अपनी अदालत के दरवाजे पर खड़ा रहने की सजा दी। इस पर जब खड़े-खड़े वह चतुर्थ वर्ग गरीब कर्मचारी चक्कर खाकर गिर गया तो अदालत के कर्मचारियों ने उसे अस्पताल पहुंचाया, और उस महिला जज के खिलाफ मोर्चा खोला। लेकिन सरकार में तकरीबन हर अफसर अपने बंगले पर ऐसी बेगारी लेने के आदी रहते हैं, और उसी वजह से दुर्ग अदालत का यह मामला सबकी सहूलियत के लिए दफन कर दिया गया।
अब रायपुर में राज्य स्तर की बेगारी का यह मामला फाईलों पर तो एक छोटे कर्मचारी की संविदा अर्जी की शक्ल में आया है, लेकिन इसके पीछे के राजा का नाम भी सबको मालूम है। अब स्टिंग ऑपरेशन करने के शौकीन पत्रकार अगर बड़े नेताओं और अफसरों के बंगलों पर काम करने के लिए रोज जाने वाले कर्मचारियों के वीडियो बनाएं, और पता लगाएं कि वे किस-किस विभाग में क्या-क्या काम करते हुए बताए जाते हैं, तो अकेले राजधानी रायपुर में हजारों कर्मचारी अमानवीय बेगारी करने से बच जाएंगे। आज तो हालत यह है कि मौजूदा और भूतपूर्व नेता और अफसर अपने साथ-साथ अपने रिश्तेदारों के लिए भी सरकारी कर्मचारियों का बंधुआ मजदूर की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं, और किसी कर्मचारी संघ को भी यह मामला उठाना चाहिए। जब पुलिस-परिवार आंदोलन कर सकते हैं, तो खुद कर्मचारी तो बंगला ड्यूटी के खिलाफ खड़े हो ही सकते हैं। दुर्ग की अदालत में एक छोटे से कर्मचारी ने विरोध करने का हौसला दिखाया है, और रायपुर में ऐसे अरबपति भूतपूर्व राजाओं के खिलाफ भी कुछ लोगों को तो मेहनत करनी ही चाहिए।
([email protected])
आखिरकार नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने अपने करीबी धोखाधड़ी-छेड़छाड़ के आरोपी प्रकाश बजाज से खुद को अलग कर लिया है। सुनते हैं कि बजाज के परिजनों ने पिछले दिनों कौशिक से मुलाकात की थी और पुलिस की गिरफ्त से बचने के लिए इधर-उधर फिर रहे प्रकाश बजाज का सहयोग करने का आग्रह किया। कौशिक इस पर भड़क गए और कहा कि बजाज का सहयोग करने के कारण ही राजनीतिक रूप से नुकसान उठाना पड़ा है।
पहले कौशिक के कहने पर पूरी भाजपा प्रकाश बजाज के पक्ष में खड़ी दिखाई दे रही थी और पार्टी नेता, एसपी को ज्ञापन देने भी गए थे। पर कई नेताओं ने महिला के साथ धोखाधड़ी के प्रकरण की निजी स्तर पड़ताल की, तो पता चला कि प्रकाश बजाज ने वाकई महिला के साथ धोखाधड़ी की है। इसके बाद एक-एक कर पार्टी नेता बजाज से किनारा करते गए। यह बात कौशिक तक पहुंची, तब तक काफी किरकिरी हो चुकी थी।
प्रकाश बजाज से धोखाधड़ी की शिकार महिला कौशिक पर भी छेड़छाड़ का आरोप लगा चुकी है। कौशिक ने कानूनी कार्रवाई की धमकी दी थी, लेकिन आगे इसका हौसला नहीं जुटा पाए। कौशिक के लिए होम करते हाथ जलने जैसी स्थिति पैदा हो गई थी। इससे छुटकारा पाने के लिए कौशिक ने प्रकाश बजाज-परिजनों को घर से बाहर का रास्ता दिखा दिया।
नाजायज प्रतिबंधों का नतीजा
नया रायपुर के मरघटी सन्नाटे को देखकर लौट रहे शहरी योजना के कुछ विशेषज्ञों ने इस बात पर हैरानी जाहिर की कि शहर से 25 किलोमीटर दूर मंत्रालय बनाकर उसके बाद बीच की पूरी जगह को भरने की उम्मीद रमन सरकार का मुंगेरीलाल का हसीन सपना था। एक तो सरकार यह सोच रही थी कि नया रायपुर में योजना के तहत प्रतिबंधों से लाद दी गई हजारों एकड़ जमीन पर लोग बसेंगे, दूसरी तरफ उसने निजी जमीनों पर इस कदर प्रतिबंध लगाए थे कि कोई कुछ बना ही न सके। नतीजा यह हुआ कि न तो बीच का हिस्सा भर पाया, न नया रायपुर की खुद की सरकारी जमीन बिक पाई। निवाला इतना बड़ा ले लिया गया था कि न उसे खाते बना, और न निगलते। नया रायपुर का ढांचा इतना बड़ा बना दिया गया कि उसका रखरखाव हाथी पालने जैसा हो गया है। अब भूपेश सरकार, और उसके एक तेज-तर्रार मंत्री मोहम्मद अकबर यह नहीं समझ पा रहे हैं कि देश के सबसे बड़े कब्रिस्तान बनने का खतरा झेल रहे नया रायपुर का क्या किया जाए? जिस तरह केंद्र सरकार घाटे की एयर इंडिया को सब्सिडी से उड़ा रही है, क्या उस तरह की सब्सिडी से नया रायपुर में बसें चलाएं, झाड़ू लगवाएं, और रखरखाव करवाएं, या फिर इसके लिए भी रायपुर शहर के स्काईवॉक की तरह जनता और जानकारों की राय मंगवाएं। शहरी योजना के विशेषज्ञों का यह मानना है कि नया रायपुर में सरकार की अपनी योजना जितनी जगह छोड़कर बाकी निजी जमीनों पर लादी गई नाजायज शर्तों को खत्म करना चाहिए, ताकि बाजार सामान्य नियमों के तहत उस तरफ दिलचस्पी ले सके। नया रायपुर को तानाशाही का एक टापू बनाने के चक्कर में हजारों एकड़ निजी जमीनों पर प्रतिबंधों का इतना बड़ा टोकरा लाद दिया गया कि लोग शहर के दूसरे इलाकों में ही कमाने-खाने के लिए बने रहे, और इधर देखा भी नहीं। इसका हाल यह रहा कि किसी श्मशान में अंतिम संस्कार के लिए सिर्फ चंदन की लकडिय़ां बेचने को रखी गईं, तो लोग दूसरी जगह मुर्दे जलाने लगे।
आज हालत यह है कि अंधेरा होने के बाद नया रायपुर के इलाके में किसी की गाड़ी खराब हो जाए, तो हो सकता है कि कई घंटे कोई मदद करने वाले वहां से गुजरें ही नहीं। छत्तीसगढ़ी में ऐसे हालत के लिए कहते हैं-मरे रोवइया न मिले...
गांधीजी की चलती है...
विधानसभा में श्रम विभाग के सवालों पर चर्चा के दौरान हास-परिहास के बीच भाजपा सदस्य शिवरतन शर्मा ने भ्रष्टाचार की तरफ इशारा करते हुए कह दिया कि डहरियाजी के विभाग में 'गांधीजीÓ की चलती है। इस पर श्रम मंत्री डॉ. शिवकुमार डहरिया ने भी तपाक से जवाब दिया कि गांधीजी की देश-विदेश, हर जगह चलती है। उन्होंने भाजपा सदस्य को सलाह दी कि हर रोज गांधीजी को प्रणाम किया करें। ([email protected])
भाजपा में नए सदस्य बनाने का काम चल रहा है। बाकी राज्यों में तो यह अभियान जोर-शोर से चल रहा है, लेकिन छत्तीसगढ़ में पार्टी नेता रूचि नहीं ले रहे हैं। राजनांदगांव के सांसद संतोष पाण्डेय प्रदेश में सदस्यता अभियान के प्रभारी हैं। अभियान से जुड़े लोग दावा कर रहे हैं कि नए सदस्यों की संख्या बढ़ रही है। मगर, पार्टी के अंदरूनी सूत्र इसको नकार रहे हैं। पिछली बार मिस्डकॉल के जरिए 50 लाख सदस्य बनाने का दावा किया गया था, लेकिन विधानसभा चुनाव में कुल मिलाकर 47 लाख वोट ही मिले।
सुनते हैं कि चुनाव नतीजे आने के बाद अमित शाह ने संगठन के प्रमुख नेताओं को जमकर फटकार लगाई थी। उनका स्पष्ट मानना था कि सदस्यता अभियान के नाम पर फर्जीवाड़ा हुआ है। यदि वास्तव में 50 लाख सदस्य बनाए गए होते, तो पार्टी चौथी बार सरकार बनाने में कामयाब रहती। इस बार के सदस्यता अभियान पर पार्टी हाईकमान की निगाह टिकी हैं।
बी.सतीश और सौदान
भाजपा के शीर्ष स्तर पर संगठन में बड़ा फेरबदल हुआ है। पार्टी के महामंत्री (संगठन) की जिम्मेदारी रामलाल की जगह फिलहाल बी सतीश को दी गई है। भाजपा में महामंत्री (संगठन) की हैसियत काफी ऊंची होती है और वे राज्यों में संगठन के गुटीय समीकरण को प्रभावित करते हैं। बी सतीश और सौदान सिंह, दोनों बराबरी के पद थे। पर अब सतीश का कद एक कदम बढ़ा है।
बी सतीश, कभी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष कुशाभाऊ ठाकरे के सचिव रह चुके हैं। उनकी संभावित नियुक्ति के बाद पार्टी के भीतर सवाल उठ रहे हैं कि सौदान सिंह का क्या होगा? सौदान सिंह के हिसाब से प्रदेश भाजपा संगठन की गतिविधियां चलती रही है। लखीराम अग्रवाल, बलीराम कश्यप, दिलीप सिंह जूदेव जैसे नेताओं के गुजरने के बाद सौदान सिंह की ताकत काफी बढ़ी। इन नेताओं के रहते सौदान सिंह कभी भी मनमानी नहीं कर पाए। सौदान के खिलाफ पार्टी के कई नेताओं ने मोर्चा खोल रखा था।
सुनते हैं कि इन नेताओं ने रामलाल से शिकायत भी की थी। रामलाल भी सौदान सिंह को ज्यादा पसंद नहीं करते थे। मगर, बी सतीश के आने के बाद सौदान सिंह की हैसियत में कोई कमी आएगी, ऐसा लगता नहीं है। कई नेता बताते हैं कि बी सतीश से सौदान के बहुत अच्छे रिश्ते हैं। ऐसे में सौदान की ताकत और बढ़ सकती है। मगर, कुछ लोग याद दिलाते हैं कि बी सतीश के पास लंबे समय तक गुजरात का प्रभार रहा है। उस वक्त नरेन्द्र मोदी गुजरात के सीएम थे। ऐसे में यह भी माना जा रहा है कि मोदी-शाह जो चाहेंगे, वही होगा। यानी कुछ लोग अभी भी सौदान का पॉवर घटने की उम्मीद से है।
भारत के विश्वकप क्रिकेट से बाहर हो जाने के बाद भी क्रिकेट के शौकीन लोगों की दिलचस्पी खत्म हुई नहीं है। किसे, कब बैटिंग के लिए क्यों बुलाया गया, अब लोग उस पर बहस कर रहे हैं। लेकिन इसके साथ-साथ क्रिकेट के रिकॉर्ड को लेकर हमेशा से लोग हिसाब करते रहते हैं कि कौन सा रिकॉर्ड टूटा। ऐसे में अभी वॉट्सऐप पर एक विश्लेषण घूम रहा है जिसके मुताबिक- भारत अपनी लीग में टॉप पर था, लेकिन सेमीफाइनल में हार गया। इसी तरह ऑस्ट्रेलिया भी अपनी लीग में टॉप पर था, और सेमीफाइनल हार गया। दोनों ही देशों के नाम के अंग्रेजी हिज्जे के आखिर में आईए आता है। और फाईनल में जो दो टीमें लैंड की हैं, उन दोनों के नाम में लैंड आता है, न्यूजीलैंड और इंग्लैंड। भारत ने आखिरी मैच में तीन विकेट शुरू में ही जल्दी खो दिए थे, और ऑस्ट्रेलिया ने भी तीन विकेट उसी तरह जल्दी खोए। भारत 49वें ओवर में ऑलआऊट हो गया था, और ऑस्ट्रेलिया भी 49वें ओवर में ऑलआऊट हुआ। भारत के धोनी रनआऊट हुए, और अगले ही दिन ऑस्ट्रेलिया के स्मिथ उसी तरह आऊट हुए। धोनी जब रनआऊट हुए भारत 216/8 था, और स्मिथ जब रनआऊट हुए ऑस्ट्रेलिया 217/8 था। भारत के सात बल्लेबाजों ने ईकाई तक स्कोर सीमित रखा था, और चार बल्लेबाज दहाई स्कोर तक पहुंचे थे। ऑस्ट्रेलिया के भी सात बल्लेबाजों ने ईकाई स्कोर किया, और चार ने दहाई स्कोर बनाया था।
अब इसकी सारी जानकारी सही है या नहीं यह तो क्रिकेट के स्कोर चार्ट बारीकी से देखने वाले बता सकेंगे, लेकिन क्रिकेट के रिकॉर्ड में दिलचस्पी लेने वाले कभी कम न होंगे।
और पाकिस्तान का रिकॉर्ड...
पाकिस्तान का रिकॉर्ड भी लोग लेकर बैठे हैं कि 1992 और 2019 के विश्वकप में कैसे उसका हाल एकदम एक सरीखा हुआ। इन दोनों ही टूर्नामेंटों में वे पहले मैच हारे थे, दूसरे मैच जीते थे, तीसरे मैच बेनतीजा रहे, चौथे मैच हारे, पांचवें मैच हारे, छठवें मैच जीते, सातवें मैच जीते, लेकिन इसके बाद पाकिस्तान 2019 में 1992 की तरह जीत नहीं पाया। मेलबोर्न में 1992 में पाकिस्तान चैंपियन बना था, लेकिन इस बार वह लीग मैच में ही बाहर हो गया।
बला से छूटकर जिले पहुंचीं
आखिरकार स्वास्थ्य बीमा योजना के झमेले में उलझी शिखा राजपूत तिवारी हेल्थ डायरेक्टर के पद से मुक्त हो गई। सरकार ने उनका मान रखा और बेमेतरा कलेक्टर बना दिया। शिखा ने स्वास्थ्य बीमा योजना के एडिशनल सीईओ डॉ. विजेन्द्र कटरे के खिलाफ शिकायतों की पड़ताल की थी। उन्होंने अपनी जांच में डॉ. कटरे के खिलाफ शिकायतों को सही पाया था। खैर, डॉ. कटरे भी पहुंच वाले निकले और अपना कार्यकाल खत्म होने तक पद पर बने रहने की अनुमति हासिल कर ली। इससे जुड़े एक आदेश को लेकर विभागीय मंत्री टीएस सिंहदेव, शिखा राजपूत तिवारी से नाराज चल रहे थे।
सिंहदेव की नाराजगी को देखकर शिखा को हेल्थ डायरेक्टर के प्रभार से मुक्त कर दिया गया। सुनते हंै कि शिखा के खिलाफ कई और शिकायतें भी हुई थी, लेकिन पहली नजर में सभी शिकायतें निराधार पाई गईं। चूंकि पिछली सरकार ने भी उन्हें लूप-लाइन में रखा था। इसलिए उन्हें अब जिले की जिम्मेदारी देकर बेहतर परफार्मेंस का मौका दिया है।
गलियारों तक में रईसी...
छत्तीसगढ़ की राजधानी नया रायपुर के मंत्रालय की इमारत में जाएं, तो समझ आता है कि इस राज्य में बिजली की न तो कोई कमी है, और न ही कोई इज्जत। जब देश के बहुत बड़े हिस्से में बच्चों को पढऩे के लिए एक बल्ब की बिजली नसीब नहीं होती, मंत्रालय की दानवाकार इमारत के गलियारे भी एयरकंडीशंड हैं, और उनमें चारों तरफ खुली जगहें हैं जहां से बीच के अहाते में आना-जाना होता है, चारों तरफ खिड़कियां खुली हैं ताकि कर्मचारी और आवाजाही वाले लोग थूकने की स्वतंत्रता का उपभोग कर सकें। यह देखकर हैरानी होती है कि कई किलोमीटर लंबे गलियारों में एयरकंडीशनिंग इतनी बेदर्दी से बर्बाद की जाती है। इसके लिए मशीन लगाने में भी करोड़ों रूपए अतिरिक्त लगे होंगे, और अब दसियों लाख रूपए की बिजली तो हर महीने महज गलियारों में बर्बाद हो रही है। सरकार के पास जब तक तनख्वाह देने के पैसे रहते हैं, तब तक किसी तरह की किफायत किसी को नहीं सूझती। इस प्रदेश के अस्पतालों में गंभीर मरीजों के लिए भी जब एयरकंडीशनिंग नहीं है, तब मंत्रालय के गलियारे भी चारों तरफ खुली हवा में एयरकंडीशनिंग बर्बाद करते रहते हैं।
([email protected])
आईएफएस अफसर एसएस बजाज को बिना अनुमति के विदेश यात्रा करने पर नोटिस थमा दिया गया। बजाज खुद के खर्चे पर सिंगापुर गए थे। उन्होंने लौटने के बाद विभाग को इसकी सूचना दी। बिना अनुमति के विदेश यात्रा को सर्विस रूल का उल्लंघन माना गया। वैसे बजाज अकेले अफसर नहीं हैं, जिन्हें इस तरह का नोटिस मिला है। पिछली सरकार में तो बड़ी संख्या में अफसर विदेश गए, लेकिन कई ने अनुमति तक नहीं ली।
ऐसे अफसरों में आईएएस अफसर आर प्रसन्ना का नाम प्रमुखता से लिया जाता है। प्रसन्ना भी अनुमति लिए बिना विदेश गए थे। लौटकर आने के बाद अनुमति के लिए आवेदन दिया। उन्हें तत्कालीन सीएस ने जमकर फटकार लगाई थी। नोटिस भी जारी किया गया था। लेकिन अफसरों की विदेश यात्राओं को लेकर पिछली सरकार काफी उदार रही है और इस तरह के प्रकरणों पर चेतावनी देकर छोड़ दिया जाता था। मगर, सरकार बदलने के बाद अफसरों की यात्राओं पर तिरछी निगाह है। संकेत साफ है कि इस तरह के प्रकरणों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।
लोगों को आज के सूचना आयुक्त एम.के. राऊत का बरसों पहले का वह मामला याद है जिसमें तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने उन्हें लंदन में घूमते हुए अचानक ही आमने-सामने देखा, तब पता लगा कि राऊत विदेश में हैं। इस घटना को लेकर एक किस्सा फैला था, जो सच था या नहीं वह पता नहीं। रमन सिंह अपने साथ गए अफसरों के साथ लंदन में मैडम त्रुसां की प्रतिमाओं की गैलरी देखने गए थे, और वहां उनके ओएसडी विक्रम सिसोदिया ने चौंकते हुए उन्हें कहा- देखिए सर यहां तो राऊत साहब की भी प्रतिमा लगाई गई है।
दरअसल राऊत किसी प्रतिमा को देखते हुए खड़े थे, और उसी वक्त छत्तीसगढ़ से पहुंची टीम भी वहीं थी। इसके बाद उन्हें यह जवाब देने में खासी मुश्किल हुई कि वे निजी प्रवास पर भी बिना इजाजत कैसे विदेश चले गए थे जिसके लिए इजाजत जरूरी है।
संपत्ति की तरह पासपोर्ट...
राज्य सरकार जिस तरह अपने सारे अफसरों-कर्मचारियों से हर बरस संपत्ति का ब्यौरा लेती है, उसी तरह हर बरस उनके परिवारों के इन्हीं लोगों के पासपोर्ट की कॉपी भी लेनी चाहिए कि घर का कौन-कौन आश्रित सदस्य या जीवनसाथी विदेश होकर आए हैं। अभी तो हालत यह है कि छोटे-छोटे से अफसर भी खरीदी के लिए चीन, और मस्ती के लिए बैंकाक इसी तरह जाते-आते हैं जैसे मुंबई-दिल्ली गए हों। पासपोर्ट की जांच हो जाए, तो सैकड़ों लोग सस्पेंड होंगे जिन्होंने विदेश यात्रा के बाद भी सरकार से कोई इजाजत नहीं ली है।
राज्य सरकार में यह चर्चा आम रहती है कि जिन अफसरों को विदेश यात्रा की इजाजत देनी होती है, वे इसी बात पर कुढ़ते रहते हैं कि वे यहीं बैठे हैं, और दूसरे लोग विदेश जा रहे हैं, इसलिए कई बार समय रहते इजाजत दी नहीं जाती है, हवाई टिकट आखिरी वक्त पर बहुत महंगी हो जाती है। जब विश्वरंजन डीजीपी थे, और अमरीका के बर्कले विश्वविद्यालय में उन्हें एक सेमिनार में नक्सल हालात पर बोलने के लिए आमंत्रित किया था, तो सरकार पर कोई आर्थिक बोझ नहीं आ रहा था क्योंकि अमरीकी विश्वविद्यालय पूरा खर्च उठा रहा था। लेकिन इसके बावजूद उनकी फाईल आखिरी वक्त पर मुख्य सचिव से बड़ी मुश्किल से मंजूर हुई थी, और महंगी टिकट लेकर उन्हें जाना पड़ा था।
सरकार बदली तो पार्किंग छिनी...
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के बीच बसे हुए महंत घासीदास संग्रहालय का चेहरा वक्त के साथ बदलते रहता है। पन्द्रह बरस भाजपा की सरकार रही, तो एक सबसे ताकतवर मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के छोटे भाई योगेश अग्रवाल छत्तीसगढ़ी फिल्मों को लेकर संग्रहालय के पूरे कैम्पस पर हावी रहे, और फिल्म से जुड़े लोगों की होली भी इस सरकारी संग्रहालय के कैम्पस में होती रही। फिर कुछ दूसरे लोगों की ताकत काम आई तो इस कैम्पस का बहुत बड़ा हिस्सा छत्तीसगढ़ी रेस्त्रां, गढ़कलेवा, के नाम पर दे दिया गया, और किसी को समझ नहीं आया कि शहर का यह सबसे बड़ा खुला रेस्त्रां सरकारी पार्किंग सहित कैसे किसी के कब्जे में आ गया। अब सरकार बदली तो वहां कुछ दूसरे लोगों की मर्जी काम आ रही है, और गढ़कलेवा को मिली हुई बहुत बड़ी पार्किंग बैरियर लगाकर बंद कर दी गई, और वहां तक जाने के लिए अब हाईवे का ही रास्ता बचा है। सत्ता की मेहरबानी से चलने वाले काम-धंधे इसी तरह कभी ऊपर उठते हैं, कभी नीचे आते हैं। वैसे इसी संग्रहालय से सरकार का संस्कृति विभाग काम करते आया है जिसमें मर्जी के कलाकारों को छांट-छांटकर उपकृत करने के आरोप लगते रहे हैं, और कमीशनखोरी के भी। कुल मिलाकर बात यह दिखती है कि सरकार का दखल न तो कारोबार में रहना चाहिए, और न ही कला में।
आखिरी वक्त निकल जाने के बाद
आखिरी वक्त पर मंजूरी की बात करें, तो राज्य सरकार के तबादले के मौसम का अटपटापन सामने आता है। अब जब जुलाई शुरू हो गई है, और पूरे प्रदेश में स्कूल-कॉलेज के दाखिले खत्म हो रहे हैं, स्कूलों में पढ़ाई शुरू हो चुकी है तब सरकारी अमले के तबादले शुरू हो रहे हैं, और ये तबादले अगस्त के महीने तक चलने वाले हैं। ऐसे में जाहिर है कि शहर बदलने की वजह से बच्चों के स्कूल-कॉलेज भी बदलेंगे, स्कूल यूनीफॉर्म भी बदलेगी, किताबें भी बदल जाएंगी, और बारिश के वक्त एक शहर से दूसरे शहर आते-जाते सामान भी भीगकर बर्बाद होने का खतरा रहेगा। लेकिन जो काम सरकार वित्त वर्ष समाप्त होने के बाद बिना किसी दिक्कत कर सकती थी, और गर्मियों में लोग शहर बदल सकते थे, उसे स्कूल-कॉलेज शुरू होने के बाद किया जा रहा है। सरकार को स्कूलों का वक्त तय करना हो, गर्मी या दीवाली की छुट्टी तय करनी हो, इन सबमें ऐसी ही बेरहमी दिखाई जाती है। पता नहीं क्यों कर्मचारियों और अधिकारियों के संगठन भी सरकार के सामने इस दिक्कत के खिलाफ क्यों नहीं बोलते हैं।
([email protected])
प्रदेश में सत्ता हाथ से जाने के बाद भाजपा के नेता-विधायक काम धंधे मेें लग गए हैं। पिछले दिनों बड़े पैमाने पर पेट्रोल पंप का आबंटन हुआ, इसमें सबसे ज्यादा भाजपा या भाजपा से जुड़े लोगों की लॉटरी निकली। ऐसा नहीं है कि आबंटन में कोई गड़बड़ी हुई है। अभी तक प्रदेश में डेढ़ सौ से अधिक पंपों के लिए आबंटन की प्रक्रिया पूरी हो चुकी है। पूरी प्रक्रिया पारदर्शी रही और आबंटन लॉटरी के जरिए हुआ।
सुनते हैं कि नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक की किस्मत थोड़ी खराब रही। वे भी अपने परिजनों के नाम से पेट्रोल पंप लेने के लिए प्रयासरत थे, लेकिन लॉटरी में परिजनों का नाम नहीं निकला। पूर्व मंत्री लता उसेंडी को बस्तर के बेहतर लोकेशन में पेट्रोल पंप आबंटित होने की खबर है। कुछ पूर्व मंत्रियों और एक-दो विधायकों को भी पेट्रोल पंप मिल गया है। चर्चा तो यह भी है कि कुछ नेताओं ने पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान के जरिए जुगाड़ लगाने की कोशिश भी की, लेकिन उन्हें फटकार मिली।
वैसे पेट्रोल पंप में निवेश जोखिम बहुत कम रहता है और आय नियमित होती है। यही वजह है कि पेट्रोल पंप लेेने के लिए राजनेता ज्यादा उत्सुक रहते हैं। पूर्व सीएम अजीत जोगी, अमितेश शुक्ल, लाभचंद बाफना सहित कई नेताओं-परिजनों को पेट्रोल पंप आबंटित हुआ था। कई साल पहले दिग्गज राजनेता विद्याचरण शुक्ल ने अनौपचारिक चर्चा में माना था कि उन्होंने सौ से अधिक लोगों को पेट्रोल पंप दिलवाए हैं। खुद उनके परिवार के पास 5 पेट्रोल पंप रहे हैं। छत्तीसगढ़ राज्य बनने से पहले कांग्रेस के लोगों का पेट्रोल पंप व्यवसाय में दबदबा रहा है, लेकिन अब भाजपा के लोगों ने कांग्रेसियों को काफी पीछे छोड़ दिया है। वैसे भी भाजपा के ज्यादातर बड़े नेता व्यवसाय से राजनीति में आए हैं और जोखिमों से बचने के लिए पेट्रोल पंप में निवेश को बेहतर मानते हैं।
ऐसे में कांग्रेस नेता सुभाष धुप्पड़ शायद अकेले ऐसे नेता रहे जिन्होंने बहुत मेहनत करके अपने चलते हुए दो पंपों को कंपनी को वापिस किया, कंपनी लेना नहीं चाहती थी, और उनके पीछे लगी रही कि वे इसे चलाएं, लेकिन वे अड़े रहे, और आखिर में पंप से छुटकारा पाए। वैसे कांग्रेस के कुछ दूसरे नेताओं के नाम यह तोहमत भी दर्ज है कि उन्होंने अनुसूचित जाति, जनजाति के लोगों को मिले हुए पेट्रोल पंपों को लेकर खुद चलाया।
...और पेट्रोल पंपों से पहले...
पेट्रोल पंप से पहले कांग्रेस के नेता राशन दुकानें चलाया करते थे, और उन्हें उस वक्त के पैमाने से कमाई का धंधा माना जाता था। फिर जब अजीत जोगी रायपुर के कलेक्टर थे, उन्होंने अधिकतर छात्र नेताओं को गिट्टी क्रशर का काम खुलवा दिया, और जीप-टैक्सी का परमिट दे दिया। ये दोनों ही काम सरकार जब चाहे दबोच सकती थी, और इस तरह छात्र नेताओं पर कलेक्टर का कब्जा बने रहा, धीरे-धीरे छात्र राजनीति बड़ी कमाई का जरिया बन गया, और छात्र आंदोलन खत्म हो गए।
कांग्रेस के नेताओं ने अविभाजित मध्यप्रदेश के समय से एक और धंधे पर अपना एकाधिकार बना रखा था, सहकारी संस्थाओं का। मंडी से लेकर बैंक तक, और हाऊसिंग सोसाइटियों तक सत्यनारायण शर्मा, राधेश्याम शर्मा, गुरूमुख सिंह होरा, मोहम्मद अकबर जैसे कांग्रेस नेताओं का कब्जा रहा, और कांग्रेस की राजनीति इनके सहारे च
पूर्व केन्द्रीय मंत्री रमेश बैस को संसद भवन के सेंट्रल हॉल में अक्सर देखा जा सकता है। वे पूर्व सांसदों और पार्टी नेताओं के साथ गपियाते नजर आते हैं। भाजपा की गुटीय राजनीति में वे लालकृष्ण आडवाणी और सुषमा स्वराज के करीबी रहे हैं। आडवाणी-सुषमा खेमे का एक तरह से सफाया हो गया है। ऐसे में बैस का भी किनारे लगना स्वाभाविक था। अब वे भले ही सांसद नहीं रह गए हैं, लेकिन वे कोई अहम जिम्मेदारी संभालने के उत्सुक हैं। सात बार के इस सांसद के करीबी लोगों को उम्मीद है कि उन्हें किसी प्रदेश का राज्यपाल बनाया जाएगा। सेंट्रल हॉल में उनकी सक्रियता को इसी रूप में देखा जा रहा है।
हालांकि पैसे लेकर सवाल पूछने के आरोप में बर्खास्त सांसद प्रदीप गांधी भी अक्सर सेंट्रल हॉल में देखे जाते हैं। कुछ समय पहले प्रदीप गांधी, राहुल गांधी के साथ बतियाते दिखे थे। लोकसभा चुनाव के दौरान अटकलें लगाई जा रही थीं कि प्रदीप गांधी कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं। मगर कांग्रेस उन्हें लेने के इच्छुक नजर नहीं आई। भाजपा ने भी उनकी कोई परवाह नहीं की। ऐसे में राहुल गांधी के संग फोटो खिंचाकर प्रदीप गांधी चर्चा में जरूर आ गए। जब प्रदीप गांधी संसद में सवाल पूछने के लिए रिश्वत मांगते वीडियो में कैद हुए थे, और उनकी सदस्यता बर्खास्त हुई थी, तो उन्होंने अपने गायत्री परिवार का साहित्य लेकर संसद के हर कार्यक्रम में जाना शुरू किया था और भूतपूर्व सदस्य होने के नाते कोई उन्हें मना भी नहीं कर सकते थे। इस तरह वे खबरों में बने रहे थे। ऐसे किसी विवाद में फंसे बिना भी रमेश बैस संसद भवन में बैठकर चर्चा में तो बने हुए हैं ही।
शत्रुओं पर विजय के लिए?
रायपुर उत्तर के पूर्व विधायक श्रीचंद सुंदरानी कामाख्या देवी के दर्शन के लिए असम गए हैं। कामाख्या पीठ तंत्र साधना के लिए मशहूर है। राजनेता शत्रुओं पर विजय के लिए यहां तंत्र साधना कराते हैं। सुंदरानी भी यहां परिवार के साथ पूजा-पाठ में लगे हैं। विधानसभा चुनाव में बुरी हार के बाद पार्टी में उनकी स्थिति अच्छी नहीं रह गई है। उनकी पहचान सबसे बड़े व्यापारी नेता के रूप में रही है और एक तरह से चेम्बर ऑफ कॉमर्स की राजनीति उनके इर्द-गिर्द ही घूमती रही है। मगर, अध्यक्ष जितेन्द्र बरलोटा के आगे वे कमजोर दिखने लगे हैं।
पार्टी के भीतर हाल यह है कि नगरीय निकाय चुनाव में उन्हें तगड़ी चुनौती मिलने वाली है। रायपुर उत्तर से टिकट के दावेदार रहे आरडीए के पूर्व अध्यक्ष संजय श्रीवास्तव, छगन मुंदड़ा और राजीव अग्रवाल जैसे नेता रायपुर उत्तर के ज्यादा से ज्यादा वार्डों में अपने समर्थकों को टिकट दिलाने के लिए अभी से व्यूह रचना तैयार कर रहे हैं ताकि विधानसभा चुनाव के लिए उनकी जमीन तैयार हो सके। यहां सांसद सुनील सोनी का दखल तो रहेगा ही, ऐसे में श्रीचंद के लिए आगे की राजनीति आसान नहीं रह गई है। पिछले दिनों उन्होंने बलपूर्वक ओवरब्रिज का उद्घाटन कर अपनी ताकत दिखाने की कोशिश भी की, लेकिन इसमें वे नाकाम रहे। इस प्रदर्शन में भाजपा कार्यकर्ताओं से ज्यादा मीडिया के लोग थे। ऐसे में पार्टी के भीतर और बाहर अपने विरोधियों पर जीत हासिल करने के लिए अदृश्य ताकतों की जरूरत होगी। ऐसे में कामाख्या देवी के दर्शन से उनकी इच्छापूर्ति होती है या नहीं, देखना है।
खाने की बर्बादी रोकने
सोशल मीडिया पर इन दिनों एक ऐसा वीडियो तैर रहा है जिसमें किसी दावत के बीच जूठी प्लेट रखने की जगह पर एक आदमी खड़ा है और वह लोगों को खाना जूठा छोडऩे से रोक रहा है, और जिद कर रहा है कि वे खाना खत्म करें। ऐसे में जाहिर है कि लोग अगली बार अधिक खाना लेकर जूठा छोडऩा भूल ही जाएंगे। इस बीच एक बर्तन निर्माता ने एक ऐसी थाली सामने रखी है जिसमें हिज्जे की एक मामूली गलती से परे बाकी बात एक अच्छी नसीहत है। अब इस थाली की फोटो सोशल मीडिया पर तैर रही है और अगर यह चलन में आती है, तो देखना है कि इसका असर लोगों पर होता है, या नहीं। लेकिन थाली से परे चीनी मिट्टी या प्लास्टिक जैसी प्लेटों पर भी अगर ऐसा ही लिखा हो, तो खाने की बर्बादी खासी रूक सकती है।
([email protected])