राजपथ - जनपथ
गाडिय़ों पर आतंकी तख्तियां
राजस्थान सरकार ने अभी तय किया है कि गाडिय़ों पर किसी धर्म के निशान, किसी संगठन या ओहदे का नाम लिखने पर चालान किया जाएगा। अब छत्तीसगढ़ में अगर देखें, तो सत्तारूढ़ पार्टी के आधे से अधिक पदाधिकारियों की गाडिय़ों का चालान हो जाएगा, और पिछले सत्तारूढ़ पार्टी के भी एक चौथाई पदाधिकारी तो अब तक पुरानी तख्तियों को ढो ही रहे हैं। फिर सरकारी विभागों में एक बार जिसने टैक्सी चला ली, वे लोग अपनी गाडिय़ों पर स्थायी रूप से ऑन गवर्नमेंट ड्यूटी लिखवाकर चल रहे हैं। लेकिन सबसे बड़ा और महान तबका पत्रकारों का है। प्रेस लिखाकर चलने वाले प्रदेश की राजधानी में इतने अधिक हैं कि लगता है कि मीडिया में काम करने वाले पत्रकारों के अलावा कपड़े प्रेस करने वाले, और बदन प्रेस करने वाले भी अपनी गाडिय़ों पर प्रेस लिखाकर चल रहे हैं। अभी तो राज्य सरकारें देश के नए ट्रैफिक जुर्माना-सजा कानून से जूझ रही हैं कि लोगों पर कैसे इतना बोझा डाला जाए, या न डाला जाए तो कब तक न डाला जाए, ऐसे में तख्तियों और संगठन या पदनाम पर चालान का बवाल कौन खड़ा करे। राज्य में विधानसभा सदस्यों, सांसदों, या पंचायत-म्युनिसिपल के पदाधिकारियों की तख्तियां तो नंबर प्लेट की जगह लगी रहती हैं जो रियायत पूरे राज्य में सिर्फ राज्यपाल को हासिल है। इसके बावजूद किसी का कुछ नहीं बिगड़ता, किसी का चालान नहीं होता, और आम जनता जुर्माना पटाती रहती है। विधानसभा अध्यक्ष को भी चाहिए कि अपने सदस्यों को गाडिय़ों पर नंबर प्लेट की जगह विधायक लिखने से मना करें क्योंकि इससे विधानसभा की गरिमा कम होती है कि कानून बनाने वाले लोग इस तरह धड़ल्ले से कानून तोड़ते हैं।
जर्नलिस्ट बनने का शौक
पता नहीं जर्नलिस्ट के काम में ऐसा क्या आकर्षक है कि तमाम किस्म के लोग पत्रकार होने का कार्ड रखना चाहते हैं, कहीं-कहीं से बनवा लेते हैं, और एक्टिविस्ट रहते हुए भी अपने आपको जर्नलिस्ट जाहिर करते रहते हैं। नतीजा यह होता है कि एक्टिविज्म का नफा होता है, और जर्नलिज्म का नुकसान। दरअसल जब कभी जर्नलिस्ट किसी और काम में शामिल हो जाते हैं, तो अपने पेशे का सीधा-सीधा नुकसान करते हैं, और जब दूसरे पेशों के लोग जर्नलिस्ट की खाल भी ओढ़ लेते हैं, तो भी नुकसान जर्नलिज्म का ही होता है। इन दिनों गाडिय़ों पर ऐसे स्टिकर दिखना आम हैं जिनमें लोग राजनीतिक दल का झंडा या पदनाम भी लगाए होते हैं, और प्रेस या पत्रकार का लेबल भी।
बारिश और टाटा स्काई
अभी जब जमकर बारिश हो रही है तो टाटा स्काई जैसे डिश एंटीना पर सिग्नल आने तुरंत बंद हो गए हैं। लोगों का तजुर्बा है कि कोई छत पर जाकर इस एंटीना के बगल में इतना फुसफुसा भर दे कि पानी गिर रहा है, तो यह काम करना बंद कर देता है।
कब मिलेंगे ऐसे सांसद-विधायक?
ब्रिटिश पार्लियामेंट में अभी एक सिक्ख सांसद ने प्रधानमंत्री पर इतना तीखा हमला किया कि पूरा सदन तालियों से गूंजते रहा। उसने प्रधानमंत्री को याद दिलाया कि किस तरह उन्होंने बुर्का पहनी महिलाओं को एटीएम मशीनों जैसा दिखने वाला लिखा था और उससे किस तरह नस्लीय नफरत बढ़ी थी। डेढ़-दो मिनट के इस बयान की दुनिया भर में जमकर तारीफ हो रही है, और सोशल मीडिया पर उस वीडियो को बार-बार पोस्ट किया जा रहा है। इसे देखते हुए एक सज्जन ने कहा कि हिन्दुस्तान की पार्लियामेंट में इतने कम शब्दों में इतना तीखा और इतना जायज, और इतना हौसलेमंद बयान देने वाले जाने कब होंगे। अभी हाल में तृणमूल कांग्रेस से सांसद बनी, और पहले कार्पोरेट सेक्टर में काम कर चुकीं एक महिला ने अंग्रेजी में जब इसी किस्म का धुआंधार हमला बोला था, तब भी लोगों ने लिखा था कि हिन्दी में बोलने वाले ऐसे लोग भी संसद में चाहिए जिनकी बात हिन्दीभाषी लोग समझ सकें, और प्रभावित हो सकें। फिलहाल सांसदों और विधायकों को इस सिक्ख ब्रिटिश सांसद का छोटा सा बयान जरूर सुनना चाहिए कि शब्दों की एक टोकरा बर्बादी के बिना भी अखबारी सुर्खी की तरह छरहरा हमला कैसे किया जा सकता है जिस पर प्रधानमंत्री तक की बोलती बंद हो जाए।
सजा के बीच मजा
हिन्दुस्तानी लोग तकलीफों के बीच भी मजा लेने से नहीं चूकते। दर्द से कराहते रहते हैं, और लतीफे बनाते रहते हैं। अभी ट्रैफिक चालान के खतरों के बीच जीते हुए लोग बैंकों के विलय पर एक लतीफा लिख रहे हैं- जिस तरह बैंकों का विलय हो गया, उसी तरह एक ही किस्म का डिंडोरा पीटने वाले टीवी समाचार चैनलों का भी विलय हो जाना चाहिए ताकि जनता चैनल बदले बिना एक साथ सभी का मिलाजुला प्रचार बैंक की एक ब्रांच की तरह पा सके। इससे रिमोट की बैटरी भी बचेगी।
हिन्दुस्तान में इन दिनों सोशल मीडिया पर लोगों के हास्य और व्यंग्य की एक नई ऊंचाई देखने मिल रही है। जो लोग गंदगी फैला रहे हैं वो तो अलग हैं, लेकिन उनसे परे बहुत से लोग हैं जो कि बड़े कल्पनाशील तरीके से पैनी बातें लिख रहे हैं।
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घोटाले के तनाव से हार्टअटैक
दवा खरीदी घोटाले में उलझे आईएफएस अफसर वी रामाराव हार्टअटैक आया है और वे एक निजी अस्पताल में भर्ती हैं। उनकी हालत गंभीर बनी हुई है। वैसे तो रामाराव को हार्ट प्रॉब्लम था, लेकिन बीमारी को अनदेखा किया। बाद में बीमारी बढ़ गई। सुनते हैं कि दवा निगम में एमडी रहते उन्होंने पिछली सरकार के प्रभावशाली लोगों के दबाव-सिफारिश पर सैकड़ों करोड़ की दवा खरीदी की थी, जिसमें अनियमितता की शिकायत सामने आई।
स्वास्थ्य मंत्री टीएस सिंहदेव ने इन शिकायतों में प्रारंभिक दौर पर अनियमितता की पुष्टि होने पर जांच के लिए प्रकरण ईओडब्ल्यू को सौंप दिया। इन सबके चलते रामाराव टेंशन में चल रहे थे। एमडी पद से हटने के बाद अपने मूल वनविभाग में आने के बाद साथी अफसरों ने उनके तनाव को दूर करने की पूरी कोशिश की। उनके साधन सुविधाओं में कमी न हो, इसका भी ध्यान रख रहे थे। उन्हें पात्रता के मुताबिक वाहन और अन्य सुविधाएं तुरंत मुहैय्या भी कराई। अब जब वे बीमार हैं, तो विभाग के अफसर लगातार चिकित्सकों के संपर्क में हैं और उनका कुशल क्षेम पूछ रहे हैं। वैसे भी आईएफएस अफसर अन्य कैडरों के बाकी अफसरों की तुलना में अपने साथियों के लिए ज्यादा संवेदनशील रहते हैं।
सीपीआई से कांग्रेस को राहत
आखिरकार दंतेवाड़ा में सीपीआई ने भीमसेन मंडावी को प्रत्याशी घोषित कर दिया। भीमसेन को प्रत्याशी घोषित करने से कांग्रेस ने थोड़ी राहत की सांस ली है। दरअसल, यहां से पूर्व विधायक मनीष कुंजाम भी टिकट के दावेदार थे। वर्ष-2008 के चुनाव में कुंजाम यहां दूसरे स्थान पर रहे और उनकी वजह से दिग्गज नेता महेन्द्र कर्मा तीसरे स्थान पर चले गए थे। कुंजाम को काफी मजबूत माना जाता रहा है। पिछला चुनाव उन्होंने कोंटा सीट से लड़ा था जहां उन्हें हार का सामना करना पड़ा। लेकिन भीमा मंडावी की हत्या के बाद उपचुनाव की स्थिति बनी, तो दंतेवाड़ा में काफी सक्रिय दिख रहे थे।
सुनते हैं कि सीपीआई की राज्य इकाई मनीष और भीमसेन में से प्रत्याशी तय नहीं कर पा रही थी और दोनों को ही नामांकन भरने के लिए कह दिया था, लेकिन आखिरी क्षणों में मनीष खुद ही पीछे हट गए और भीमसेन के नाम पर राजी हो गए। भीमसेन जिला इकाई के सदस्य हैं। मनीष के चुनाव नहीं लडऩे से कांग्रेस नेता अब फायदे की उम्मीद लगाए बैठे हैं। मनीष को अंदरूनी इलाकों में अच्छा समर्थन मिल सकता था, लेकिन अब उनके चुनाव मैदान में नहीं रहने से सीपीआई उम्मीदवार को उतना समर्थन मिल पाएगा, इसकी उम्मीद कम है।
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केंद्र के कैंपा में तैनाती
भारतीय वन सेवा के अफसर संजय कुमार ओझा की केंद्र सरकार में पोस्टिंग हो गई है। वे कैम्पा में ज्वाइंट सीईओ बनाए गए हैं। वर्ष-89 बैच के अफसर संजय कुमार ओझा पिछले कुछ समय से प्रतिनियुक्ति पर जाने के लिए प्रयासरत थे, लेकिन राज्य सरकार से अनुमति नहीं मिल पा रही थी। उनकी प्रतिनियुक्ति की फाइल एक टेबल से दूसरे टेबल पर सरकती रही। अब केंद्र सरकार में पोस्टिंग की जानकारी आ गई है। ऐसे में अब उन्हें जल्द ही रिलीव किया जा सकता है। वैसे भी जिस कैम्पा के सीईओ के पद पर उनकी पोस्टिंग हो रही है, उसमें वे राज्य का काफी कुछ भला कर सकते हैं। एक तरह से उन्हें भेजना राज्य के लिए फायदेमंद भी है। अभी चार दिन पहले ही राज्य के वन विभाग ने मुख्यमंत्री को पांच हजार 9 सौ करोड़ का एक चेक सौंपा है जो कि केंद्र से राज्य को मुआवजा-वृक्षारोपण के लिए मिला है। इतनी बड़ी रकम देखते ही सरकार में कई लोग खुश हो गए हैं कि कैंपा योजना के तहत कौन-कौन से काम फिट किए जा सकते हैं।
पुनिया का बेटा फिर मैदान में...
छत्तीसगढ़ कांग्रेस के प्रभारी पीएल पुनिया के पुत्र तनुज पुनिया उत्तरप्रदेश में विधानसभा उपचुनाव लड़ रहे हैं। वे लोकसभा चुनाव मैदान में भी उतरे थे, लेकिन अपनी जमानत नहीं बचा पाए, यद्यपि तनुज के प्रचार के लिए सीएम भूपेश बघेल सहित कई नेता गए थे। जब राहुल गांधी ही चुनाव हार गए, तो तनुज की हार कोई बड़ी बात नहीं रही। यूपी में कांग्रेस की हालत पतली है। यह जानते हुए भी पुनिया अपने पुत्र तनुज को जैदपुर सीट से उपचुनाव लड़ा रहे हैं। दंतेवाड़ा उपचुनाव के ही दिन, जैदपुर में भी 23 तारीख को वोट डाले जाएंगे। चूंकि दंतेवाड़ा उपचुनाव में प्रचार जोखिम भरा है। ऐसे में रायपुर-बिलासपुर के कांग्रेस नेताओं को जैदपुर में प्रचार के लिए जाना ज्यादा बेहतर लग रहा है। तनुज को साधन-संसाधनों की कमी नहीं होगी। क्योंकि कई लोग यहां बहुत कुछ झोंकने के लिए तैयार भी बैठे हैं। वैसे भी, अभी निगम मंडलों में पद बंटने में समय है।
जगहें भरी हुई हैं...
भारतीय प्रशासनिक सेवा के अफसर सोनमणि बोरा को अध्ययन अवकाश से लौटने के बाद कोई काम नहीं मिला है। वे पिछले 15 दिनों से अपनी पोस्टिंग का इंतजार कर रहे हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार उन्हें कोई काम नहीं देना चाहती। उनके पहले भी सी.के. खेतान से लेकर गौरव द्विवेदी तक जब बाहर से लौटकर छत्तीसगढ़ आए, तो उनके लिए जगह निकालने में सरकार को वक्त लगा क्योंकि बड़े अफसरों के काम में फेरबदल करने से कई लोगों में फेरबदल करना होता है।
सोनमणि बोरा पिछली सरकार में समाज कल्याण और जल संसाधन सचिव रह चुके हैं। सुनते हैं कि बोरा कोई बड़ी जिम्मेदारी चाहते हैं। कई प्रभावशाली लोगों ने भी उन्हें अच्छा अफसर बताया है और निर्माण विभागों के लिए सिफारिश की है। मगर दिक्कत यह है कि सरकार पंचायत और पीडब्ल्यूडी में कोई परिवर्तन नहीं चाहती है। खुद इन विभागों के मंत्री भी किसी तरह के बदलाव के पक्ष में नहीं हैं। अब जल संसाधन विभाग बच जाता है, जहां अविनाश चंपावत के काम से विभागीय मंत्री रविन्द्र चौबे संतुष्ट हैं। ऐसे में यहां भी कोई बदलाव की गुंजाइश नहीं दिख रही है। फिर भी संकेत है कि उन्हें कोई अहम दायित्व सौंपा जा सकता है।
यादें ताजा करने के मौके
अभी देश के राष्ट्रीय धनवान मुकेश अंबानी के घर पर गणेश विराजे, तो फिल्मी दुनिया के तमाम लोग वहां भीड़ की शक्ल में इक_ा हो गए। मीडिया को एक सुर्खी मिली और उसने वहां पहुंचे दो लोगों की अलग-अलग खींची तस्वीरें अगल-बगल लगाकर लिखा कि अमिताभ और रेखा दोनों पहुंचे। खैर, फिल्मी दुनिया के इतिहास में सबसे अधिक चर्चित पे्रम प्रसंगों में से एक, अमिताभ और रेखा का नाम एक साथ आते ही लोगों की यादों में जाने कितनी ही फिल्में आ जाती हैं, और कितनी ही अफवाहें भी। लेकिन छत्तीसगढ़ में तीज के मौके पर जब बहुत सी महिलाएं मायके लौटती हैं, तो पुराने परिचय जिंदा हो जाते हैं, और लोग एक-दूसरे को देखकर सोचने लगते हैं कि कितना बदल गया है, या कितनी बदल गई है। पुरानी यादें जब जहां ताजा होती हैं, बहुत सा दर्द और शायद कुछ खुशी भी दे जाती हैं। मुंबई में अंबानी के गणेश, और छत्तीसगढ़ में तीजा से ऐसा मौका आते रहता है।
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रमन के अफसर काम से लगे...
रमन सचिवालय में संविदा में काम कर रहे अफसर काम-धंधे में लग गए हैं। अमन सिंह पहले ही प्राइवेट कंपनी ज्वाइन कर चुके हैं। बाकी भी एक-एक कर लाइन में लग गए हैं। विक्रम सिसोदिया और ओपी गुप्ता अभी भी पूर्व सीएम के साथ हैं। गुप्ता पूर्व सीएम का पॉलिटिकल मैनेजमेंट देख रहे हैं और बिजनेस भी शुरू करने जा रहे हैं। सुनते हैं कि गुप्ता विधानसभा मार्ग पर एक भव्य विवाह भवन बना रहे हैं। शादी-ब्याह के सीजन में लोगों को उपयुक्त भवन की तलाश रहती है। ऐसे में गुप्ता का बिजनेस भी चल निकलने की उम्मीद है।
इसी तरह रमन सचिवालय में सचिव के पद पर संविदा पर रहे एमके त्यागी भी वकालत के पेशे में उतर आए हैं। त्यागी ने बिलासपुर हाईकोर्ट में वकालत भी शुरू कर दी है। भाप्रसे के अफसर त्यागी का काम बहुतों को नहीं सुहाता था, फिर भी वे रमन सिंह के उपयोगी माने जाते थे। उस वक्त यह भी चर्चा रहती थी कि जिस फाइल को नहीं करना हो, उसे त्यागी के पास भेज दो। त्यागी इतने नुक्स निकालेंगे कि उस फाइल को करना मुश्किल हो जाएगा। ऐसा माना जाता था कि त्यागी के ऊपर के कुछ अफसर उनकी इसी क्षमता का इस्तेमाल करने के लिए उन्हें सीएम हाऊस में बनाए रखते थे, और अपनी नापसंद फाईलों पर अडंग़े लगाने के लिए उन्हें इशारा कर देते थे।
संजीवनी और मुख्यमंत्री सहायता कोष की फाइलें भी रमन सिंह के दस्तखत के बाद भी कई बार अटक जाती थी। सरकार बदलते ही सबसे पहले त्यागी की ही संविदा अवधि खत्म कर उन्हें रवाना किया गया, जबकि उन्हें टीएस सिंहदेव से अपने संबंधों के चलते कार्यकाल पूरा होने का भरोसा था। एमके त्यागी रामानुजगंज में एसडीएम रह चुके हैं, तब से सिंहदेव से उनकी पुरानी जान-पहचान है। रमन के एक और ओएसडी अरूण बिसेन का पूर्व सीएम के यहां आना-जाना लगा रहता है। कंसोल आदि से वे अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े रहे हैं। इस कंपनी को रमन सरकार में करोड़ों का काम मिला था, जिसकी जांच-पड़ताल चल रही है। बिसेन को लेकर यह चर्चा है कि उन्हें आगे कुछ करने की जरूरत भी नहीं है।
रमन सिंह के मुख्य सचिव रहने के बाद विद्युत मंडल के अध्यक्ष बनाए गए शिवराज सिंह मुख्यमंत्री के औपचारिक सलाहकार के पद पर भी थे। उनका कामकाज किसी जांच की आंच में नहीं आया। वे दिल्ली में बसे हुए हैं और भारत सरकार के पेट्रोलियम मंत्रालय के उनके तजुर्बे को जानने वाले लोग उनका परामर्श लेने उनसे संपर्क करते रहते हैं। फिलहाल वे साल में एक-दो महीने रायपुर में भी रह रहे हैं क्योंकि दिल्ली के कुछ महीने बड़े खराब मौसम के रहते हैं।
जीडीपी छत्तीसगढ़ में बना डीजीपी
अंगे्रजी के कुछ शब्दों का हिन्दी में बड़े धड़ल्ले से बेजा इस्तेमाल होता है। अभी देश की अर्थव्यवस्था को लेकर चारों तरफ सकल घरेलू उत्पाद के लिए ग्रास डोमेस्टिक प्रोडक्शन की चर्चा चल रही है। अर्थव्यवस्था को आंकने के लिए यह एक बड़ा पैमाना है जो दुनिया भर में लंबे समय से इस्तेमाल होता है। बोलचाल में इसे जीडीपी कहते हैं।
अब छत्तीसगढ़ में डीजीपी रैंक के अफसर इतने अधिक खबरों में हैं कि यहां पर बोलचाल में जीडीपी की जगह डीजीपी कहने लगे हैं, और जानकार इसकी तरफ उनका ध्यान में नहीं दिलाते क्योंकि उन्हें मालूम है कि ऐसे लोगों पर खबरें छाई हुई हैं।
लेकिन खबरों के असर का यह अकेला मामला नहीं है। इमरजेंसी में जब चारों तरफ बीस सूत्रीय कार्यक्रम सुर्खियों में रहता था, एक-एक दिन के अखबार में दस-दस बार ऐसी हैडिंग लगती थी, तब रेलगाड़ी से कटकर एक नौजवान मर गया। उसकी उम्र के मुताबिक हैडिंग बननी थी, और बनी- बीस सूत्रीय युवक रेलगाड़ी से कटकर मरा।
हिंदी में एक और अंगे्रजी शब्द का धड़ल्ले से इस्तेमाल होता है, अंगे्रजी के पब्लिसिटी को आमतौर पर बहुत से लोग पब्लिकसिटी कह बैठते हैं, जो कि एक हिसाब से मतलब को बेहतर तरीके से समझाने वाला शब्द है। पब्लिसिटी का मकसद पब्लिक तब पहुंचना ही होता है।
कई लोग अंगे्रजी शब्दों के बहुवचन का भी बहुवचन बना देते हैं, और लेडीज की जगह लेडिजों कहने लगते हैं।
एक वक्त रायपुर शहर के मेयर रह चुके तरूण चटर्जी गुजर चुके हैं, लेकिन उनके दो अंगे्रजी शब्द लोगों को याद हैं। उनके मेयर रहते जो लोग उनका विरोध करते थे, उनके लिए वे प्रोटेस्ट बोलते-बोलते प्रोस्टेट बोल जाते थे। इसी तरह वे शराब दुकानों के बाहर उस वक्त लगने वाले ठंडी बीयर के बोर्ड पर अंगे्रजी में चिल्ड बीयर को चाईल्ड बीयर पढ़ बैठते थे। फिर पता नहीं कि वे गलती से ऐसा करते थे या मजाक में।
अश्लील धार्मिक शोर...
गणेशोत्सव पर हर बरस यह दिक्कत आती है कि प्रतिमाओं को स्थापना के लिए लेकर जाते हुए, और दस दिन बाद उन्हें विसर्जन के लिए ले जाते हुए नौजवानों और लड़कों की अराजक भीड़ जिस तरह से सड़कों पर उपद्रव करती है, और अश्लील गाने बजाती है, वैसा किसी और त्योहार में सामने नहीं आता। अभी रायपुर में कान फोड़ देने वाले स्पीकरों पर गाने बज रहे थे, नायक नहीं खलनायक है तू..., और ...चोली के पीछे क्या है।
धर्म के नाम पर डंडे-झंडे लेकर खड़े हो जाने वाले लोगों को भी न तो दिल दहलाने वाले ऐसे शोरगुल से कोई दिक्कत है, और न ही ऐसे गानों से जिनके अर्थ अश्लील ही रहते हैं। यह सिलसिला गणेशजी के आने-जाने के अलावा सजावट वाले पंडाल से भी ऐसा ही शोर उंडेला जाएगा। ([email protected])
लोग गाडिय़ों के नंबर प्लेट पर अपने देश के निशान लगा लेते हैं, जिनकी जरूरत देश के बाहर जाने पर ही पड़ती है। देश के भीतर देश के संक्षिप्त नाम या झंडे के रंग किसी काम के नहीं रहते। ऐसे में छत्तीसगढ़ की एक गाड़ी की नंबर प्लेट पर जर्मनी का निशान बना हुआ है। और किसी गैरहिन्दी-गैरअंगे्रजी लिपि में कुछ लिखा हुआ भी दिख रहा है। अब जेम्स बाँड जैसे नंबर वाली गाड़ी पर कई देशों का हक हो सकता है। तस्वीर / छत्तीसगढ़
पांच दिग्गज जगहों पर यहां रहे अफसर
दिल्ली में छत्तीसगढ़ अचानक ही एक महत्वपूर्ण जगह बन गया है। छत्तीसगढ़ से पुलिस-प्रशिक्षण शुरू करने वाले ऋषि कुमार शुक्ला आज सीबीआई के डायरेक्टर हैं। वे रायपुर में एएसपी थे, फिर यहीं कोतवाली में सीएसपी बने, और फिर दुर्ग में एडिशनल एसपी। बाद में वे मध्यप्रदेश काडर में रह गए। मध्यप्रदेश के अलावा ऋषि शुक्ला ने इंटेलिजेंस ब्यूरो में भी दो बार काम किया, एक बार वे सिक्किम में तैनात रहे, जहां पर छत्तीसगढ़ के जस्टिस के.एम. अग्रवाल उस वक्त चीफ जस्टिस थे। बाद में ऋषि शुक्ला भोपाल में भी इंटेलिजेंस ब्यूरो के मध्यप्रदेश प्रभारी रहे। मध्यप्रदेश के डीजीपी रहते हुए कमलनाथ सरकार ने आते ही उन्हें इस कुर्सी से हटाया, तो शायद एक हफ्ते के भीतर ही वे सीबीआई के डायरेक्टर चुन लिए गए। बड़ी ऊंची साख और काबिलीयत वाले ऋषि शुक्ला ने सीबीआई उस वक्त संभाली है जब उसके घर के बर्तनों की टकराहट रोजाना सुप्रीम कोर्ट में गूंज रही थी।
छत्तीसगढ़ के रायपुर में रह चुके आईपीएस विवेक कुमार जौहरी कल सीमा सुरक्षा बल के डीजी बने हैं। वे भी छत्तीसगढ़ में काम करने के बाद मध्यप्रदेश काडर में रह गए थे। ऋषि शुक्ला 1983 बैच के आईपीएस हैं, और विवेक कुमार जौहरी 1984 बैच के। हिन्दुस्तान के आज के हालात में ये दोनों ही एजेंसियां बहुत महत्वपूर्ण हैं। बीएसएफ के जिम्मे पाकिस्तान और बांग्लादेश दोनों की सरहदें हैं, और एक तरफ हमले चल ही रहे हैं, दूसरी तरफ असम की नागरिकता के विवाद के चलते सरहद पर नया तनाव हो सकता है।
एक तीसरी बड़ी तैनाती देश की एक सबसे बड़ी सार्वजनिक कंपनी कोल इंडिया के मुखिया की है जिस पर छत्तीसगढ़-मध्यप्रदेश के 1991 बैच के आईएएस अफसर प्रमोद अग्रवाल को चेयरमैन नियुक्त किया गया है। वे भी पहले छत्तीसगढ़ में रह चुके हैं, और 1998 के आसपास महासमुंद में कलेक्टर थे। बाद में वे मध्यप्रदेश काडर में चले गए, और अब कोल इंडिया के चेयरमैन-एमडी बनाए गए हैं। वे छत्तीसगढ़ के मौजूदा एसीएस सी.के. खेतान के एकदम करीबी रिश्तेदार भी हैं।
इन सबसे पहले छत्तीसगढ़ के एसीएस रहे एन.बैजेन्द्र कुमार देश की सबसे बड़ी खनन कंपनी एनएमडीसी के चेयरमैन-एमडी बनाए गए थे जो कि कुछ महीनों से वहीं काम भी कर रहे हैं। दिलचस्प बात यह भी है कि एनएमडीसी के काम का सबसे बड़ा हिस्सा छत्तीसगढ़ में है क्योंकि लोहा खदानें सबसे अधिक यहीं पर हैं। कोल इंडिया के काम का एक बड़ा हिस्सा छत्तीसगढ़ में है क्योंकि कोयला खदानें यहां पर सबसे अधिक हैं। छत्तीसगढ़ से गए विवेक जौहरी की बीएसएफ के भी कुछ सैनिक छत्तीसगढ़ के नक्सल मोर्चे पर तैनात रहते आए हैं। लेकिन ऋषि शुक्ला की सीबीआई का दाखिला छत्तीसगढ़ सरकार ने नए मामलों के लिए बंद कर दिया है, और पुराने मामलों की ही जांच जारी है।
लेकिन इन सबसे अधिक चर्चा में इन दिनों कश्मीर है जिसके मुख्य सचिव के पद पर पिछले बरस छत्तीसगढ़ के आईएएस अफसर बी.वी.आर. सुब्रमण्यम को भेजा गया। उन्होंने पहले कभी कश्मीर में काम नहीं किया था, लेकिन वे मनमोहन सिंह के समय से प्रधानमंत्री दफ्तर में लंबा कार्यकाल गुजार चुके थे, और किन्हीं वजहों से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी उन्हें अच्छी तरह जानते भी थे। इसलिए जब कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लगाया गया, और राज्यपाल प्रदेश चला रहे थे, तो उस वक्त सुब्रमण्यम को वहां मुख्य सचिव बनाकर भेजा गया था जो कि आज कश्मीर के ऐसे ऐतिहासिक दौर के वक्त भी प्रशासनिक प्रमुख हैं। ([email protected])
वक्त श्रीचंद पर भारी है...
पूर्व विधायक श्रीचंद सुंदरानी इन दिनों गोवा में सैर-सपाटे के लिए गए हैं। ये अलग बात है कि उनके नाम से रोजाना भाजपा बयान जारी करती है। वे पार्टी के प्रवक्ता भी हैं। ऐसे में उनके नाम से बयान जारी होना गलत भी नहीं है। सुंदरानी धर्म-कर्म और ज्योतिष पर बहुत विश्वास करते हंै। सुनते हैं कि एक ज्योतिष ने उन्हें साल भर ज्यादा सक्रियता नहीं दिखाने की सलाह दी है, इससे उन्हें राजनीतिक फायदा कम, नुकसान ज्यादा हो सकता है।
हुआ भी कुछ ऐसा कि पिछले दिनों उन्होंने एक्सप्रेस-वे का जबरिया उद्घाटन कर लोगों के लिए खोल दिया। इस तमाशेबाजी में उनके खिलाफ प्रकरण तो दर्ज हुआ ही, इस निर्माण में एक बड़े घोटाले का पर्दाफाश भी हो गया। वे श्रेय लेने के चक्कर में अपनी ही सरकार को कटघरे में खड़ा कर गए। सरकार एक्सप्रेस वे के निर्माण कार्यों में गड़बड़ी की उच्चस्तरीय जांच करा रही है। यही वजह है कि उन्होंने ज्योतिष की सलाह पर पार्टी के सदस्यता अभियान में ज्यादा रूचि नहीं ली। एक तरह से लाग-बुक भरकर गोवा निकल लिए।
नेताम की लड़ाई नतीजे पर पहुंची
अजीत जोगी को राजनीतिक तौर पर बड़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। जाति प्रमाण पत्र फर्जी घोषित होने के बाद उनकी विधायकी भी जा सकती है। उनकी जाति को फर्जी बताने में संतकुमार नेताम की अहम भूमिका रही है। पेशे से इंजीनियर संतकुमार नेताम पिछले 18 साल से उनके खिलाफ लड़ाई लड़ रहे हैं। संतकुमार नेताम पहले भाजपा में थे और नंदकुमार साय के करीबी रहे हैं। कांग्रेस शासनकाल में जोगी की जाति का मामला उठाने पर उन्हें काफी प्रताडऩा भी झेलनी पड़ी। लगातार मिल रही धमकियों की वजह से जोगी शासनकाल के आखिरी के तीन महीने वे नंदकुमार साय के जेल रोड स्थित सरकारी बंगले में रहे।
प्रदेश में भाजपा की सरकार बनने के बाद उन्हें कोई अहम दायित्व मिलने की उम्मीद थी। वे भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य भी रहे, लेकिन सरकार में कोई जिम्मेदारी नहीं दी गई। बाद में जोगी के खिलाफ आवाज बुलंद की, तो रमन सरकार के कुछ लोगों को अच्छा नहीं लगा। संतकुमार नेताम ने सार्वजनिक बयान दिया था कि तत्कालीन मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के निजी स्टाफ में रहे ओपी गुप्ता ने उन्हें बुलाकर डांटा और फिर एक लाख का पैकेट देकर मुंह बंद करने के लिए कहा। बाद मेें वे कांग्रेस में शामिल हो गए। अब जब जोगी का जाति प्रमाण पत्र निरस्त कर दिया गया है, तो एक बार फिर संतकुमार नेताम सुर्खियों में आ गए हैं।
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धार्मिक भावनाओं के चलते...
छत्तीसगढ़ में जगह-जगह हाथियों का इंसानों के साथ टकराव चल रहा है। इंसान जंगल में घुस गए हैं, और इसलिए हाथी गांवों और कस्बों में चले आए हैं। चूंकि दोनों की ताकत का कोई मुकाबला नहीं है, इसलिए इंसान ही मारे जा रहे हैं। ऐसे में एक-दो हाथी इतने अधिक नुकसान पहुंचाने वाले हो गए हैं कि उन्हें बाड़े में कैद करके रखना तय किया गया है। लेकिन यह बात कहना आसान है, करना बड़ा मुश्किल। अब गणेशोत्सव शुरू हो रहा है, और भगवान गणेश को हाथी से जोड़कर देखा जाता है। ऐसे में हाथी को कौन हाथ लगाए? और छत्तीसगढ़ के कोरबा के इलाके में सबसे अधिक जनहानि पहुंचाने वाले हाथी का तो नाम ही गणेश है। इसलिए वन विभाग ने तय किया है कि गणेशोत्सव निपट जाने के बाद ही उसे कैद करने की कोशिश शुरू की जाए ताकि लोगों की धार्मिक भावनाएं आहत न हों। एक जानकार ने यह भी बताया कि बारिश के समय जब सारे तालाब-डबरे लबालब रहते हैं, तब हाथी को बेहोश करने में एक दिक्कत यह रहती है कि वह अगर बेहोशी में पानी के भीतर चले गया, या भीतर जाकर बेहोश हुआ, तो वह डूबकर ही मर जाएगा। इसलिए सोच-समझकर पूरी सावधानी बरतकर ही गणेशोत्सव के बाद गणेश को छूने की कोशिश की जाएगी।
छोटी कर्मचारी का बड़ा हौसला
आज राज्य में तबादले का मौसम चल रहा है, और लोग तबादले रद्द करवाने के लिए अपनी अर्जियों में अपनी सेहत से लेकर अपने परिवार की सेहत तक के बहुत से तर्क देते हुए नापसंद जगह पर जाने से बच रहे हैं। ऐसे में छत्तीसगढ़ की एक आईएएस अधिकारी, और स्वास्थ्य विभाग में काम देख रहीं प्रियंका शुक्ला ने ट्विटर पर एक स्वास्थ्य कार्यकर्ता के बारे में लिखा है। उन्होंने बताया कि पुष्पा तिग्गा नाम की यह स्वास्थ्य कार्यकर्ता, एएनएम, कैंसर पीडि़त हैं, फिर भी बस्तर के सुकमा जिले के घोर नक्सल प्रभावित इलाके कुन्ना में लगातार काम कर रही है। वे पिछले 11 बरस से वहां पदस्थ हैं, और जिम्मेदारी से अपना काम कर रही हैं। हालांकि जैसा कि उनके नाम से जाहिर है, वे उत्तर छत्तीसगढ़ के सरगुजा के जशपुर इलाके की हैं, और सैकड़ों मील दूर दक्षिण छत्तीसगढ़ में बस्तर में काम कर रही हैं, लेकिन वे इसी इलाके में काम करना चाहती हैं क्योंकि यहां के लोग भी उन्हें चाहते हैं। अब कैंसर के साथ शहरी इलाकों से इतनी दूर, घोर नक्सल इलाके में काम करने का हौसला छोटा नहीं होता, और तबादले रद्द करवाने को घूम रहे अफसरों और कर्मचारियों को इस कर्मचारी से कुछ सीखना भी चाहिए। उसके समर्पण को देखने वाली एक बड़ी अफसर ने कहा कि इसकी कहानी मंत्रियों को अपने दफ्तर में लगाकर रखनी चाहिए ताकि वे मामूली बीमारियों की वजह से तबादला रद्द करवाने पहुंचती भीड़ को उसे पढ़वा सकें।
सिंहदेव की बेकाबू रफ्तार
छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनने के समय मुख्यमंत्री पद के लिए सबसे पहले दावा करने वाले टी.एस. सिंहदेव बहुत रफ्तार से काम कर रहे हैं। अस्पतालों का मामला हो, या अफसरों को हटाने का मामला हो, उनके खिलाफ जांच का मामला हो, नियम-कायदों को जब तक उनके मातहत पढ़कर उन्हें बता सकें, तब तक वे अपनी जिम्मेदारी पर कार्रवाई शुरू करवा देते हैं, और अफसरों के बीच इसे लेकर अब कुछ दुविधा भी हो रही है कि शुरू की गई कार्रवाई किनारे कैसे पहुंचाई जाएगी।
इसी तरह अभी-अभी पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी को लेकर उन्होंने बहुत रफ्तार से एक बयान दे दिया कि जोगी के पिता सतनामी थे, और वे अपने को आदिवासी कैसे कह सकते थे? जवाब में जोगी ने सार्वजनिक चेतावनी भेजी कि उनके पिता सतनामी नहीं थे, और वे मानहानि का आपराधिक मुकदमा दायर करेंगे। इस पर आनन-फानन सिंहदेव को दुख जाहिर करना पड़ा, लेकिन उन्होंने तकनीकी रूप से न तो क्षमायाचना की, और न ही खेद व्यक्त किया है। ऐसी किसी भी चि_ी में किंतु-परंतु के साथ लिखी गई बातों का कोई मतलब होता नहीं है, इसलिए सिंहदेव यह कह रहे हैं कि उन्होंने माफी नहीं मांगी और जोगी भी अड़े हुए हैं कि साफ-साफ नहीं मांगी तो अदालत जाना तय है।
सरकार और सत्ता के जानकार लोगों का कहना है कि सिंहदेव कुछ अधिक रफ्तार से काम कर रहे हैं जिसकी अच्छी और बुरी दोनों किस्म की बातों को निभाना मुश्किल पड़ता है।
भाजपा सांसदों की निराशा...
प्रदेश के ज्यादातर भाजपा सांसद राज्य सरकार से निराश हैं। वजह यह है कि छोटे-छोटे काम में प्रशासनिक अड़चनें आ रही है, जिसे दूर करने के लिए सांसदों की तरफ से सीएम को गुहार लगाई गई है।
राजनांदगांव सांसद संतोष पाण्डेय तो प्रशासन के राजनीतिकरण और भाजपा के जनप्रतिनिधियों के पक्षपातपूर्ण व्यवहार का आरोप खुले तौर पर लगा चुके हैं। उनका कहना है कि जनप्रतिनिधि किसी भी दल का हो वो सबका होता है। यहां पक्षपात किया जा रहा है। प्रोटोकॉल में सांसद आगे होता है, लेकिन योग दिवस के कार्यक्रम में विधायक का नाम कार्ड में सबसे आगे छपा था। जांजगीर के सांसद गुहाराम अजगले को छोड़कर बाकी पहली बार सांसद बने हैं। और वे अपने-अपने क्षेत्र में ज्यादा से ज्यादा विकास योजनाएं शुरू कराने की दिशा में प्रयासरत दिखते हैं।
ये लोग दिल्ली प्रवास के दौरान केन्द्रीय मंत्रियों से मेल-मुलाकात भी करते हैं। ताकि छत्तीसगढ़ को ज्यादा से ज्यादा फायदा पहुंच सके। खुद सांसद सुनील सोनी सार्वजनिक मंच पर सीएम के सामने यह कह चुके हैं कि केन्द्र की सभी योजनाएं छत्तीसगढ़ में आए, इसके लिए उनका पूरा प्रयास रहेगा। उन्हें राज्य सरकार के मंत्रियों-अफसरों के साथ केन्द्रीय मंत्रियों से मिलने में भी कोई संकोच नहीं है। यानी भाजपा सांसद विकास योजनाओं के लिए दलीय राजनीति से उपर उठकर काम करने पर जोर दे रहे हैं। मोहन मंडावी जैसे भाजपा सांसद तो सरकार की कुछ योजनाओं से इतने खुश हैं कि उन्होंने सीएम की सार्वजनिक मंच से तारीफ भी कर दी। परन्तु छोटी-छोटी समस्याओं को लेकर प्रशासनिक अडग़ेबाजी या उदासीनता से ज्यादातर निराश भी हैं।
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अब बस करिए श्रीमंत
सांसद सुनील सोनी लोकसभा में भले ही आखिरी बैंच पर बैठते हैं, लेकिन काम कराने के मामले में कई पुराने सांसदों से वजनदार प्रतीत हो रहे हैं। सांसदों का अपने संसदीय क्षेत्र के सेंट्रल स्कूलों में कोटा तय है। हर सांसद अपने कोटे से 10 विद्यार्थियों को सेंट्रल स्कूल में प्रवेश दिला सकते हैं। चूंकि सेंट्रल स्कूल में पढ़ाई अच्छी होती है और फीस भी बेहद कम है। ऐसे में यहां दाखिले के लिए भारी मारामारी रहती है। इस बार भी सांसद कोटे से दाखिले के लिए बड़ी संख्या में आवेदन आए थे।
सुनील सोनी ने गरीब विद्यार्थियों को प्रवेश दिलाने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगाया और केन्द्रीय मानव संसाधन मंत्री रमेश पोखरियाल से विशेष अनुमति लेकर 28 विद्यार्थियों को सेंट्रल स्कूल में दाखिला दिलाया। इससे पहले किसी भी सांसद ने इतनी संख्या में विद्यार्थियों को प्रवेश नहीं दिलाया था। सुनते हैं कि रमेश पोखरियाल भी पहली बार केन्द्रीय मंत्री बने हैं। उन्होंने सुनील सोनी के आवेदनों को मंजूरी देने में कंजूसी नहीं की, लेकिन जब पता चला कि सुनील सोनी पात्रता से दोगुने से अधिक विद्यार्थियों को प्रवेश दिला चुके हैं, तो वे खुद भी चकित रह गए। इसके बाद कुुछ और सिफारिश लेकर गए, तो पोखरियाल ने हाथ जोड़कर सुनील सोनी से कहा-श्रीमंत, बस अब हो चुका...
सक्रियता में कमी
भाजपा में सक्रिय सदस्य बनाने के लिए अभियान चल रहा है। प्रदेशभर में कुल 72 हजार सक्रिय सदस्य थे, जिनमें 20 फीसदी की बढ़ाने का लक्ष्य है। यह अभियान खत्म होने में दो दिन बाकी रह गए हैं, लेकिन दिक्कत यह है कि सक्रिय सदस्य बढ़ाने में काफी मुश्किल आ रही है। पार्टी के रणनीतिकार इस बात से ज्यादा चिंतित हैं कि अनुसूचित जाति-जनजाति वर्ग से सक्रिय सदस्य नहीं बन रहे हैं। यानी इस वर्ग के कार्यकर्ता सक्रिय सदस्य बनने में रूचि नहीं ले रहे हैं। कुछ नेताओं के बीच इसको लेकर चर्चा भी हुई है, जबकि लोकसभा चुनाव में भाजपा का प्रदर्शन बहुत अच्छा रहा। पार्टी के कुछ लोगों का कहना है कि ऐसी ही स्थिति रही, तो आगामी चुनावों में पार्टी को नुकसान उठाना पड़ सकता है, क्योंकि लोकसभा के चुनाव तो राष्ट्रीय मुद्दों पर आधारित रहते हैं, स्थानीय चुनाव जीतने के लिए स्थानीय कार्यकर्ताओं का पार्टी के प्रति समर्पण जरूरी है, जिसमें फिलहाल कमी दिख रही है।
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बोतल को मना करें...
इन दिनों सरकारी या गैरसरकारी, बड़े लोगों के यहां जाने पर पीने के पानी की छोटी-छोटी सीलबंद बोतलें पेश कर दी जाती हैं। ये दिखने में अच्छी लगती हैं, बड़े ब्रांड का लेबल लगा होने से ऐसा भरोसा होता है कि पानी साफ होगा, और एक ग्लास से भी कम पानी वाली यह बोतल एक बार इस्तेमाल के बाद कचरे की टोकरी में चली जाती है। दुनिया भर में वैज्ञानिकों ने यह पाया है कि प्लास्टिक की बोतलों में कुछ न कुछ कण प्लास्टिक के ऐसे रह जाते हैं जो कि पानी के साथ बदन में जाते हैं। कुछ अधिक समझदार लोगों ने अब घर के फ्रिज या गाड़ी में भी स्टील, तांबे, या कांच की बोतलें रखना शुरू कर दिया है क्योंकि गाडिय़ां धूप में खड़ी रहती हैं, और प्लास्टिक की बोतलों में गर्म हो जाने वाले पानी में कुछ रासायनिक क्रिया भी होने की खबरें हैं जिनसे सेहत को नुकसान पहुंचता है।
ऐसे में लोग खुद होकर दूसरों के घरों में, या दफ्तरों में प्लास्टिक की सीलबंद बोतल का इस्तेमाल करने से मना भी कर सकते हैं, और साफ पानी ग्लास में मांगकर एक जागरूकता भी फैला सकते हैं। सिर्फ एक बार इस्तेमाल होकर कचरे में चले जाने वाला प्लास्टिक दुनिया पर सबसे बड़ा बोझ बन गया है, और जो लोग ऐसा खर्च कर भी सकते हैं, उन्हें अपनी आने वाली पीढिय़ों को ऐसे प्लास्टिकतले अभी से दफन नहीं करना चाहिए। ऐसी किसी भी बोतल का इस्तेमाल करने के साथ यह सोचना चाहिए कि वह आपकी आने वाली पीढिय़ों का दम किस तरह घोटेगी, ऐसा सोचने पर शायद लोग एक बार फिर फिल्टर किए हुए साफ पानी की तरफ लौट सकेंगे।
सिंहदेव को पड़ोस का जिम्मा
झारखंड विधानसभा चुनाव के चलते सरगुजा राजघराने के मुखिया टीएस सिंहदेव की पूछपरख बढ़ गई है। कांग्रेस हाईकमान ने उन्हें वहां प्रत्याशी चयन की जिम्मेदारी सौंपी है। पार्टी ने सिंहदेव को प्रत्याशी चयन के लिए गठित छानबीन समिति का अध्यक्ष बनाया है। झारखण्ड, सरगुजा से सटा हुआ है। सरगुजा की आदिवासी संस्कृति झारखण्ड से मिलती जुलती भी है। छत्तीसगढ़ के मंत्री सिंहदेव झारखण्ड की भौगोलिक स्थिति से पूरी तरह वाकिफ हैं। ऐसे में पार्टी को लगता है कि सिंहदेव झारखण्ड में पार्टी की नैय्या पार कराने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सरगुजा की सारी सीटें जीतने में सफल रही। इसका श्रेय काफी हद तक सिंहदेव को जाता है, हालांकि ओडिशा में लोकसभा चुनाव के दौरान भी सिंहदेव को जिम्मेदारी दी गई थी, लेकिन वहां वे सफल नहीं रहे। अब देखना है कि झारखण्ड में अपनी जिम्मेदारियों को सिंहदेव कैसे निभा पाते हैं।
झांसे के फोन काटना काफी नहीं...
इन दिनों तकरीबन हर किसी के पास टेलीफोन पर बैंक या क्रेडिट कार्ड का फ्रॉड करने वाले लोगों के फोन आते हैं, और बहुत से पढ़े-लिखे, कामयाब, सरकारी अफसर भी इनके झांसे में आकर कभी अपने एटीएम का नंबर बता देते हैं, तो कभी ओटीपी बता देते हैं। नतीजा यह होता है कि रफ्तार से खाते से पैसे निकल जाते हैं। ऐसे में अभी फेसबुक पर रायपुर के एक नौजवान ने एक मोबाइल नंबर पोस्ट किया कि इस नंबर से ऐसी धोखाधड़ी का फोन आया। यह एक अच्छा तरीका हो सकता है कि ऐसा नंबर देखने वाले लोग उसे अपने फोन की फोनबुक में फ्रॉड के नाम से दर्ज कर लें, ताकि वे खुद तो बचें ही, साथ-साथ दूसरे लोगों को भी उससे मदद मिले। इन दिनों बहुत से लोग मोबाइल पर ट्रू-कॉलर एप्लीकेशन का इस्तेमाल करते हैं जो आपकी फोनबुक तक पहुंच देने पर ही शुरू होता है। और आपकी फोनबुक पर जो नंबर फ्रॉड की तरह दर्ज हैं, वे ट्रू-कॉलर बाकी लोगों को भी फ्रॉड की तरह दिखा देता है। इससे लोग सावधान हो सकते हैं। तो कुल मिलाकर झांसे और जालसाजी के आने वाले फोन के नंबर को सोशल मीडिया पर भी डाल सकते हैं ताकि जिन्हें आप पर भरोसा हो वे अपने फोन में भी उसे दर्ज कर लें। दूसरी तरफ आप अपने फोन पर भी उसे फ्रॉड दर्ज कर लें, ताकि ट्रू-कॉलर औरों को सावधान कर सके।
बदनामी की कई वजहें...
अभी छत्तीसगढ़ के एक म्युनिसिपल नेता का कहा जाने वाला एक वीडियो चारों तरफ फैला जिसमें वे एक राजनीतिक दल की कही जाने वाली युवती के साथ दिख रहे हैं ऐसी चर्चा हुई। हकीकत चाहे जो हो, इसमें कोई जुर्म बनता हो या नहीं, लेकिन इससे दो लोगों की बदनामी तो हुई होगी, इसके साथ-साथ एक दूसरी चीज और हुई। कुछ बड़े शोधकर्ताओं ने इस सेक्स के सेकंड गिने, और इसे घोर निराशाजनक बताया। अब कुछ लोगों का कहना है कि चेहरे से अधिक बदनामी हुई है, या ऐसे प्रदर्शन से, यह कहना अधिक मुश्किल है। कुल मिलाकर इससे नसीहत यही निकलती है कि ऐसी नौबत से दूर रहें, शौक में भी ऐसा वीडियो बनाने से बचें, क्योंकि उसके बाद बदनामी की कई वजहें हो सकती हैं। ([email protected])
जंगल-दफ्तर में नई टीम
अरण्य भवन में नई टीम का गठन हुआ है। कांग्रेस सरकार बनने के बाद पहली बार एक साथ 58 आईएफएस अफसरों के तबादले किए गए। फेरबदल में कुछ को अच्छा काम भी मिल गया है। पिछले 8 महीने से खाली बैठे एपीसीसीएफ संजय शुक्ला को लघु वनोपज सहकारी संघ में भेजा गया है। उन्हें संघ में अहम जिम्मेदारी दी गई है। वर्तमान में पीसीसीएफ राकेश चतुर्वेदी के पास संघ के एमडी का अतिरिक्त प्रभार भी है।
संजय शुक्ला पिछली सरकार में अहम पदों पर रहे हैं। लेकिन सरकार बदलते ही उन्हें हटाकर मूल विभाग में भेज दिया गया जहां उनके पास कोई काम नहीं था अब चूंकि सरकार लघु वनोपज से जुड़ी इकाईयां लगाने पर जोर दे रही है, ऐसे में संजय शुक्ला को खुद को साबित करने का बढिय़ा मौका भी है। पिछले एक-दो बरस में वे लगातार कई अप्रिय चर्चाओं से भी घिरे रहे, और अब उनसे भी उबरने का एक मौका उन्हें मिला है। उन्हें पिछली सरकार के सबसे ताकतवर अफसर अमन सिंह ने प्रमुख सचिव के पद पर पदोन्नत करके तमाम आईएएस और आईएफएस को एकमुश्त खफा कर दिया था, लेकिन अफसरों के वॉट्सऐप गु्रप में इसके खिलाफ लंबी-चौड़ी बहस तो चली, लेकिन अमन सिंह के खिलाफ कोई अफसर जाकर मुख्यमंत्री या मुख्य सचिव से मिले नहीं।
इससे परे सुनील मिश्रा की पोस्टिंग की भी जमकर चर्चा है। सीसीएफ स्तर के अफसर सुनील मिश्रा को भू-प्रबंध का अहम दायित्व सौंपा गया है। खास बात यह है कि इससे पहले तक एपीसीसीएफ स्तर के अफसर को ही भू-प्रबंध का दायित्व सौंपा जाता रहा है। पहली बार सीसीएफ स्तर के अफसर को यह जिम्मेदारी दी गई है। फॉरेस्ट दफ्तर में भू-प्रबंध को असरदार माना जाता है। भू-प्रबंध की अहमियत का अंदाजा सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछली सरकार में पीसीसीएफ के पद पर पदोन्नत होने के बाद भी काफी समय तक भू-प्रबंध का दायित्व मुदित कुमार सिंह के पास ही रहा है। सुनील मिश्रा को इस सरकार में प्रदूषण निवारण मंडल के सचिव पद से हटाया गया था क्योंकि वे बरसों अमन सिंह के साथ काम कर चुके थे। लेकिन वक्त के साथ अब सरकार की सोच बदली हुई दिखती है।
इसी तरह एसएसडी बडग़ैया को रायपुर का सीसीएफ बनाया गया है, जो कि काफी अहम जिम्मेदारी है। बडग़ैया को नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक का करीबी माना जाता है, लेकिन वे इस सरकार में भी अपना रूतबा कायम रखने में सफल रहे। रायपुर आईजी आनंद छाबड़ा की पत्नी शालिनी रैना को प्रभारी सीसीएफ दुर्ग के पद पर पदस्थ किया गया है। वैसे भी रायपुर और दुर्ग के बीच ज्यादा दूरी नहीं है।
दीवालिया कंपनी और नया रायपुर
आईएलएण्डएफएस कंपनी अब दिवालिया होने के कगार पर है। कंपनी से जुड़े घोटाले में महाराष्ट्र के नेता राज ठाकरे और कई अन्य फंसे हैं। इन नेताओं से ईडी पूछताछ कर रही है। आईएलएण्डएफएस की सेवाएं नया रायपुर में भी ली गई थीं। इसको लेकर भारी विवाद भी हुआ। यह पूरा विवाद रमन सरकार के पहले कार्यकाल में हुआ था। बिना टेंडर के आईएलएण्डएफएस को काम देने के मामले की लोक आयोग में शिकायत हुई थी और विधानसभा में भी मामला उठा था।
तब एनआरडीए बोर्ड के चेयरमैन पी जॉय ओमेन थे। सुनते हैं कि तत्कालीन आवास एवं पर्यावरण मंत्री गणेशराम भगत भी बिना किसी टेंडर या ऑफर के आईएलएण्डएफएस को काम देने के खिलाफ थे। विधानसभा में सवाल आया तो जवाब तैयार करने के लिए भगत ने अफसरों की बैठक ली। ब्रीफिंग में ओमेन इस बात पर अड़े रहे कि कहीं कोई गलती नहीं हुई है। आईएलएण्डएफएस में सरकार का शेयर होता है और इसमें आईएएस अफसर पदस्थ होते हैं।
उन्होंने यह भी तर्क दिया कि देश की विभिन्न राज्य सरकारों और अर्धशासकीय एजेंसियां आईएलएण्डएफएस से कसल्टेंसी सेवाएं ले रही है। यह सुनते ही गणेशराम भगत भड़क गए थे। उन्होंने पूछा था कि क्या ऐसा कोई नियम है कि जिस संस्थान में आईएएस अफसर पदस्थ हो, तो उसे बिना टेंडर के काम दिया जा सकता है? यह सुनकर ओमेन खामोश रह गए। बाद में प्रक्रिया पूरी बदली गई। फिर भी एनआरडीए में बड़े पैमाने पर सलाहकार नियुक्त किए गए, जिसकी मौजूदा सरकार जांच करा रही है। ([email protected])
शिक्षामंत्री और सत्तारूढ़ विधायक
छत्तीसगढ़ के स्कूल शिक्षा विभाग में तबादलों को लेकर अभी जो बवाल हुआ, वैसा इस राज्य के बनने के बाद से कभी भी किसी विभाग में नहीं हुआ था। सत्तारूढ़ पार्टी के आधा दर्जन से अधिक विधायक सीधे शिक्षामंत्री के बंगले पर पहुंचे, और तबादलों की जो लंबी लिस्ट निकली है, उसमें खुले भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए मंत्री पर भारी नाराजगी दिखाई। इनमें से कुछ विधायक विधानसभा अध्यक्ष के बंगले पर जाकर विरोध दर्ज करना चाहते थे, लेकिन उन्होंने फोन पर ही मना कर दिया था कि मंत्री उनके मातहत नहीं है, और वे इस बारे में कुछ भी नहीं बोलेंगे, जो बात करनी है मंत्री से करें। मंत्री पर नाराजगी के बाद विधायक मुख्यमंत्री तक पहुंचे, और लेनदेन के बहुत से मामले बताए। स्कूल शिक्षा विभाग राज्य सरकार का सबसे बड़ा विभाग है और इसके कर्मचारी तमाम सरकारी कर्मचारियों का बहुत बड़ा हिस्सा होते हैं। ऐसे में सारे विधायकों, और विधायकों से भी बड़े-बड़े बहुत से कांग्रेस नेताओं, मंत्रियों की तबादला सिफारिशों को स्कूल शिक्षा मंत्री के बंगले पर रद्दी में डाल दिया गया, और बंगले पर काम करने वाले लोगों के मार्फत ही तबादले के सौदे हुए।
सत्तारूढ़ कांग्रेस के विधायकों ने इसके बारे में अफसरों के नाम गिनाए हैं कि कौन से अफसर तबादला उद्योग चला रहे हैं, और इनके नाम लेकर मुख्यमंत्री को और संगठन के केन्द्रीय नेताओं को बताया गया है कि किस तरह आरएसएस और भाजपा के करीबी रहे अफसर लेन-देन करके तबादला लिस्ट बनाते रहे, और प्रदेश सरकार के कुछ सबसे बड़े लोगों के दिए हुए एक-दो नाम भी सैकड़ों की लिस्ट में नहीं आ पाए। पिछली भाजपा सरकार के समय स्कूल शिक्षा विभाग में जो दलाल अलग-अलग स्कूल शिक्षा मंत्रियों के इर्द-गिर्द सक्रिय रहे, उनके स्टाफ में रहे, वे लोग भी अभी पर्दे के पीछे से मोलभाव में लगे रहे, और उनके करवाए काम बड़े भरोसे के साथ हो गए।
बैटरी की तरह फूले पुल गिरे तो ?
राज्य के सबसे बड़े निर्माण विभाग पीडब्ल्यूडी का भ्रष्टाचार दिन में दो की रफ्तार से सामने आ रहा है। इस विभाग के बनवाए हुए राजधानी के ही महंगे निर्माणों में घटिया काम, घटिया सामान, और तकनीकी खतरे इतने सामने आ चुके हैं कि किसी दिन शहर के बीच किसी बड़े पुल की दीवार गिरे, और सैकड़ों लोग दबकर मर जाएं, तो भी हैरानी नहीं होगी। पिछली सरकार के भ्रष्टाचार और उसकी मनमानी की एक सबसे बड़ी मिसाल राजधानी के बीच बनाया गया स्काईवॉक है जो भूपेश सरकार के गले में फंसी हड्डी बन गया है जिसे न उगलते बन रहा है, न निगलते बन रहा है। सरकार जो भी फैसला करेगी, वह आलोचना ही लाएगा। लेकिन सरकार और सरकार के बाहर के जानकार लोग इस बात को लेकर हैरान हैं कि इस विभाग के बड़े-बड़े अफसर इतने घोटालों, इतनी गड़बडिय़ों, और इतने भ्रष्टाचार के बावजूद ज्यों के त्यों बने हुए हैं। कुछ लोगों का अंदाज है कि नई सरकार में मंत्री कमाई के जमे-जमाए ढांचे और उसे चलाने वाले अफसरों का रेडी-टू-यूज इस्तेमाल कर ले रहे हैं, बजाय नए ढांचे को खड़ा करने के। इस विभाग को लेकर इतने किस्म की अप्रिय चर्चाएं सरकार में चल रही हैं कि बदनामी विभागीय मंत्री से परे भी पहुंच रही है, और किसी भी सरकार को ऐसी बदनामी के असर का पता तुरंत नहीं चलता है, लेकिन पन्द्रह बरस की रमन सरकार के जाने में जनता के वोटों का जितना हाथ था, उसका बड़ा हिस्सा इस किस्म की बदनामी से ही आया था।
सुनते हैं कि पीडब्ल्यूडी की कमाई को लेकर नेता और अफसर इस विभाग में बने रहने के लिए अपना दायां हाथ भी दान देने के लिए तैयार हो जाते हैं। अभी ताजा खबर राजधानी के सैकड़ों करोड़ से बने एक्सप्रेस हाईवे की है जिसकी दीवार जगह-जगह उसी तरह फूली हुई दिख रही है जिस तरह घटिया मोबाइल फोन की बैटरी फूल जाती है। अब इसके किनारे से सारे वक्त लोग निकलते रहते हैं, और अगर दीवार गिरी तो फिर नुकसान का अंदाज भी नहीं लग सकता।
भाजपाई अफसरों के मजे
राज्य सरकार के कई विभागों में पिछली भाजपा सरकार के वक्त पार्टी कार्यकर्ता की तरह काम करने वाले अफसरों में से कई ऐसे हैं जिनके इस सरकार में भी उसी रफ्तार से उतने ही मजे चल रहे हैं। सरकार में किनारे पड़े हुए कई लोग यह नजारा देखकर हैरान हैं कि भाजपा सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाने वाले लोग आज मंत्री हैं, और उन्हीं मातहत लोगों को आज भी सिर पर बिठाकर रखा हुआ है। ([email protected])
सेक्स-वीडियो आते-जाते रहते हैं...
बिलासपुर संभाग के एक नगर पालिका अध्यक्ष का सेक्स वीडियो वायरल हुआ है। नगर पालिका अध्यक्ष महोदय भी भाजपा से ही जुड़े हैं। और एक पूर्व मंत्री के रिश्तेदार भी हैं। सेक्स-वीडियो वायरल होने के बाद अध्यक्ष महोदय खुद तो सामने नहीं आ रहे हैं, लेकिन उनके समर्थक यह जरूर कहते घूम रहे हैं कि नगरीय निकाय चुनाव नजदीक हैं ऐसे में विरोधी, अध्यक्ष की लोकप्रियता से घबराकर छवि धूमिल करने की कोशिश में लगे हैं।
दिलचस्प बात यह है कि कोई सेक्स-वीडियो को फर्जी नहीं बता रहा है। चर्चा तो यह भी है कि खुद मौज-मस्ती के लिए नगर पालिका अध्यक्ष महोदय ने बनवाई थी। अब वीडियो फैला, तो उन्हें जवाब देना भी मुश्किल हो गया है। सुनते हैं कि सेक्स-वीडियो की खबर भाजपा संगठन के प्रमुख नेताओं को भी है। भाजपा के शुद्धतावादी नेताओं को वीडियो देखकर जरूर बुरा लग रहा है, लेकिन वे इसको निजी मामला बताकर किसी तरह की कार्रवाई करने से बच रहे हैं। उन्हें लगता है कि थोड़े दिन बाद सबकुछ शांत हो जाएगा। हिमाचल से लेकर उज्जैन और अन्य जगहों में भाजपा नेताओं के सेक्स-वीडियो चर्चा में रहे हैं। कुछ दिन की चर्चा के बाद सबकुछ सामान्य हो गया और वीडियो में दिखाई देने वाले नेता काम धंधे में लग गए। हिंदुस्तानी लोग वैसे तो नैतिकता की बातें बहुत बढ़-चढ़कर करते हैं, लेकिन नैतिक कमजोरियों को यह कहकर तेजी से भुला भी देते हैं कि देवी-देवता भी कई बार कमजोर होते रहे हैं, हम लोग तो इंसान हैं। सेक्स-वीडियो में पकड़ाए गए लोग भी बड़ी रफ्तार से माननीय और आदरणीय हो जाते हैं। ऐसे में इनका मोटा इस्तेमाल कुछ समय के लिए नुकसान पहुंचाना रह जाता है, उससे अधिक कुछ नहीं होता, और नैतिकता की बातें करने वाले बड़बोले हिंदुस्तानी अनैतिक बातों को भुलाकर आगे बढ़ जाते हैं।
भूपेश की तारीफ करते भाजपाई
कांकेर के भाजपा सांसद मोहन मंडावी ने पिछले दिनों एक कार्यक्रम में खुले तौर पर सीएम भूपेश बघेल की तारीफ कर पार्टी नेताओं की नाराजगी मोल ले ली है। बघेल की मौजूदगी में मोहन मंडावी ने उन्हें जननायक बताया और कहा कि उनका (भूपेश बघेल) जन्मदिन जन्माष्टमी पर पड़ता है इसलिए वे भगवान कृष्ण से कम नहीं हैं। मंडावी ने आगे यह भी कहा कि सीएम भूपेश बघेल छत्तीसगढ़ की परम्परा और संस्कृति को समझते हैं और वे छत्तीसगढ़वासियों के हित में काम कर रहे हैं। मोहन मंडावी की टिप्पणी को पार्टी संगठन ने काफी गंभीरता से लिया है। सुनते हैं कि कुछ नेताओं ने उन्हें फोन कर हिदायत भी दी है। पूर्व केन्द्रीय मंत्री अरूण जेटली की अंत्येष्टि में शामिल होने पार्टी के बड़े नेता दिल्ली गए हैं। लौटने के बाद मंडावी को बुलाकर उन्हें हिंदी में समझाइश दी जा सकती है। लेकिन मुख्यमंत्री बनने के बाद भाजपा नेताओं की तारीफ पाने का भूपेश बघेल का यह पहला मौका नहीं है, ननकीराम कंवर से लेकर नंद कुमार साय तक कई लोग पहले भी भूपेश की तारीफ कर चुके हैं, और ननकीराम ने तो भूपेश बघेल से मेल-मुलाकात पर पार्टी की आपत्ति पर यह तक कह दिया है कि पार्टी चाहे तो उन्हें निकाल दे, वे तो भ्रष्टाचार और जुर्मों की शिकायत करने के लिए भूपेश बघेल से मिलते रहेंगे जिन्होंने तुरंत जांच के आदेश दिए हैं। ननकीराम रमन सिंह के पसंदीदा और अविश्वसनीय रूप से ताकतवर हो चुके अफसरों के खिलाफ दस बरस से जांच की मांग कर रहे थे, लेकिन उनकी शिकायतें रद्दी की टोकरी से होते हुए कागज कारखाने में लुग्दी बनकर फिर उन्हीं अफसरों के कुकर्म छापने के लिए अखबारी कागज बनकर लौटती रही थी, और अपनी ही पार्टी सरकार में ननकीराम हाशिए पर थे। अब भूपेश बघेल उनकी सुन रहे हैं, तो वे भी भूपेश बघेल की तारीफ कर रहे हैं।
अब रावण का जिम्मा...
डब्ल्यूआरएस मैदान में प्रदेश के सबसे बड़े रावण दहन कार्यक्रम की कमान अब रायपुर उत्तर के विधायक कुलदीप जुनेजा संभालेंगे। साथ ही विकास उपाध्याय उनका सहयोग करेंगे। इससे पहले तक पिछले 15 साल से राजेश मूणत ही इस आयोजन के कर्ता-धर्ता रहे हैं। अब भाजपा की सरकार नहीं रह गई है। ऐसे में अब आयोजनकर्ता भी बदल गए हैं। सुनते हैं कि खुद सीएम भूपेश बघेल ने कुलदीप और विकास को इस कार्यक्रम को बहुत अच्छे से करने के लिए कहा है। इसके बाद कुलदीप और विकास अपनी टीम के साथ सबसे बड़े रावण दहन कार्यक्रम को पिछले वर्षों से ज्यादा भव्य और आकर्षक बनाने की तैयारी में जुट गए हैं। ([email protected])
शिक्षाकर्मी, जितनी संख्या, उतने किस्से
कुछ शिक्षाकर्मी नेताओं के तबादले से सोशल मीडिया में कोहराम मचा है। कई शिक्षाकर्मी सरकार को भला-बुरा कह रहे हैं। सर्वाधिक चर्चा वीरेंद्र दुबे की हो रही है, जो कि शिक्षाकर्मी संघ के एक बड़े धड़े के प्रदेश अध्यक्ष हैं। वे मुख्यमंत्री के विधानसभा क्षेत्र पाटन के एक स्कूल में पदस्थ थे, जिन्हें बेमेतरा जिले में भेजा गया है। वैसे तो शिक्षाकर्मी नेताओं को स्कूल में कभी पढ़ाते नहीं देखा गया, वे ज्यादातर समय टीवी डिबेट पर या फिर अपने संगठन को मजबूत करने में ही लगे रहते हैं।
शिक्षाकर्मियों की संख्या भी पौने दो लाख से अधिक हो गई है। ऐसे में संगठन के पास अच्छा-खासा चंदा भी इक_ा हो जाता है। शिक्षाकर्मियों में एकजुटता भी है और नियमितीकरण की मांग को लेकर पिछली सरकार को हिलाकर रख दिया था। ऐसे में शिक्षाकर्मी नेताओं पर कभी कार्रवाई नहीं हो पाती। हड़ताल के वक्त कई बार शिक्षाकर्मी नेताओं को बर्खास्त भी किया गया, लेकिन जल्द ही उन्हें बहाल भी कर दिया गया।
हाल यह है कि वीरेंद्र दुबे जैसे अन्य शिक्षाकर्मी नेता महंगी गाडिय़ों में देखे जा सकते हैं। और चुनाव के वक्त राजनीतिक दल के लोग उनसे समर्थन जुटाने की कोशिश में रहते हैं। कांग्रेस ने शिक्षाकर्मियों का समर्थन हासिल करने के लिए वीरेंद्र दुबे गुट के शिक्षाकर्मी चंद्रदेव राय को कांग्रेस ने टिकट भी दी थी और वे बिलाईगढ़ से अच्छे मतों से चुनाव भी जीते, मगर वीरेंद्र दुबे का जुड़ाव कांग्रेस के बजाए भाजपा से रहा है।
चर्चा हैं कि शिक्षाकर्मी नेताओं को भाजपा के पाले में लाने में पूर्व कलेक्टर ओपी चौधरी की अहम भूमिका रही है। वे प्रशासनिक सेवा में आने से पहले शिक्षाकर्मी रह चुके हैं। शिक्षाकर्मी नेताओं के समर्थन के बावजूद प्रदेश में भाजपा सरकार नहीं बन पाई। अलबत्ता, खुले तौर पर प्रचार करने वाले नेता कांग्रेस सरकार के निशाने पर आ गए हैं।
पिछले दिनों एक टीवी चैनल के कार्यक्रम में वीरेंद्र दुबे ने सीएम भूपेश बघेल से पूछ लिया कि सरकार शिक्षकों के लिए क्या कर रही है? इस पर सीएम ने कहा कि शिक्षकों के लिए बहुत कुछ किया है। रमन सरकार ने संविलियन की सिर्फ घोषणा की थी, लेकिन हमने उसे पूरा किया और 11 सौ करोड़ रुपये बजट में प्रावधान भी किया। साथ ही उन्होंने मंच से ही वीरेंद्र दुबे से कहा कि आपसे अलग से यह जरूर जानना चाहूंगा कि पिछली सरकार में शिक्षाकर्मियों का आंदोलन हुआ था, तो आप एक बजे रात को रहस्यमय तरीके से जेल से निकलकर किससे मिलने के लिए गए थे? फिर अगले दिन आंदोलन खत्म भी हो गया। सीएम की बात सुनकर हड़बड़ाए वीरेंद्र दुबे चुपचाप खिसक लिए।
बाद में खबर छनकर आई कि उस वक्त के कलेक्टर ओपी चौधरी, वीरेंद्र दुबे और एक-दो अन्य नेताओं को चुपचाप जेल से अमन सिंह से मिलाने ले गए थे। कुछ डील भी हुई और शिक्षाकर्मियों का आंदोलन खत्म हो गया, लेकिन शिक्षाकर्मियों का विश्वास अपने नेताओं पर से उठ गया और उन्होंने विधानसभा चुनाव में रमन सरकार के खिलाफ माहौल तैयार करने में अहम भूमिका निभाई।
तबादलों के सौदों का मौसम
ट्रांसफर का सीजन चल रहा है। सरकार कोई भी हो, ट्रांसफर-पोस्टिंग लेन-देन की खबरें चर्चा में रहती हैं। इस बार भी छोटे-बड़े नेता और दलाल सक्रिय दिख रहे हैं। कई विभाग ऐसे हैं, जहां बिना लेन-देन के ट्रांसफर मुश्किल सा दिखता है। इनमें परिवहन और आबकारी विभाग हैं। ये दोनों विभाग बेहद कमाऊ माने जाते हैं। कुछ पुराने परिवहन अफसर याद करते हैं कि अविभाजित मध्यप्रदेश में सिर्फ एक बार ही लेन-देन नहीं हुआ था, वह भी राष्ट्रपति शासन का दौर था। उस वक्त राज्यपाल कुंवर मेहमूदअली खान ने बड़े पैमाने पर परिवहन अफसरों के तबादले किए। तब छत्तीसगढ़ के रिटायर्ड मुख्य सचिव शिवराज सिंह ट्रांसपोर्ट कमिश्नर के पद पर थे।
शिवराज सिंह के प्रस्तावों को कुंवर मेहमूदअली खान ने जस के तस मंजूरी दे दी। बिना पैसे के भारी भरकम तबादले की उन दिनों काफी चर्चा रही। छत्तीसगढ़ बनने के बाद विशेषकर परिवहन और आबकारी में तो सीएम हाउस तक का दखल रहा है। सीएम रमन सिंह भी उस वक्त विवादों में घिर गए जब उनके रिश्तेदार संजय सिंह की परिवहन में पोस्टिंग हुई और उनके खिलाफ भारी भ्रष्टाचार की शिकायतें आई। बाद में खुद रमन सिंह को इस मामले में सफाई देनी पड़ी। बाद में संजय सिंह को वापस पर्यटन बोर्ड भेज दिया गया। मगर, इस बार ट्रांसफर सीजन में कमाऊ विभागों से ज्यादा स्कूल शिक्षा विभाग में लेन-देन की खबरें चर्चा में है। खुद स्कूल शिक्षा मंत्री ने एक प्रकरण को पुलिस को जांच के लिए सौंपा है।
स्कूल शिक्षा मंत्री के दावे के बावजूद उनके विभाग में लेन-देन की चर्चा थम नहीं रही है। रायपुर के सबसे पुराने स्कूल के प्राचार्य का तबादला रूकवाने के लिए एक विधायक और कांग्रेस पार्षद, मंत्री बंगले पहुंच गए। सुनते हैं कि प्राचार्य पिछले चार सालों से वहां हैं और वे पिछली सरकार के एक प्रभावशाली मंत्री के करीबी भी रहे हैं। सरकार बदलने के बाद जब उनके तबादले के प्रस्ताव पर चर्चा हुई, तो कांग्रेस विधायक और पार्षद, प्राचार्य का तबादला रोकने के लिए अड़ गए। इसमें भी लेन-देन की चर्चा है। कुछ सूची तो छोटे-बड़े नेताओं की आपसी खींचतान के चलते जारी नहीं हो पा रही है।
अब जंगल में मंगल
राज्य बनने के बाद पीसीसीएफ (मुख्यालय) को डीजीपी की तरह अधिकार दिया जा रहा है। यानी पीसीसीएफ (मुख्यालय) रेंजर तक के तबादले कर सकेंगे। इसके लिए फाइल शासन को भेजने की जरूरत नहीं है। यह सब विभागीय मंत्री मोहम्मद अकबर की पहल पर हो रहा है।
वैसे तो, पिछले 15 साल में वन विभाग ट्रांसफर-पोस्टिंग के लिए कुख्यात रहा है। दागी-बागी टाइप अफसर मलाईदार जगहों पर रहे हैं। लेकिन इस बार कुछ व्यवस्था बदली है। सिर्फ जरूरी तबादले ही हो रहे हैं और उन अफसरों को आगे लाया जा रहा है, जो कि बरसों से लूप लाइन पर रहे हैं, उन्हें काम करने का बेहतर अवसर दिया जा रहा है। इस अवसर का फायदा उठाकर कुछ बेहतर किया तो ठीक, अन्यथा हटाने में देर नहीं लगेगी।
सुबोध दिल्ली की ओर
श्रम सचिव सुबोध सिंह जल्द ही केंद्र सरकार में प्रतिनियुक्ति पर जा सकते हैं। पहले भी उन्होंने प्रतिनियुक्ति पर जाने के लिए आवेदन दिया था, लेकिन अनुमति नहीं मिल पाई थी। सुनते हैं कि उन्होंने दोबारा आवेदन देकर प्रतिनियुक्ति जाने की इच्छा जताई है। वे केंद्र सरकार में संयुक्त सचिव पद के लिए इम्पैनल हो चुके हैं। राज्य सरकार भी उनके कॅरियर को देखकर कोई ज्यादा रोकने के मूड में नहीं है। वैसे भी सोनमणि बोरा विदेश प्रवास से लौट आए हैं। ऐसे में संभावना है कि सुबोध सिंह को केंद्र में जाने की अनुमति मिल जाएगी। वर्तमान में केंद्र सरकार में आधा दर्जन अफसर पदस्थ हैं। ये सभी पिछली सरकार के रहते ही वहां चले गए थे।
वर्तमान में अमित अग्रवाल, निधि छिब्बर, विकासशील केंद्र सरकार में संयुक्त सचिव के पद पर हैं। रोहित यादव भी संयुक्त सचिव पद के लिए इम्पैनल हो चुके हैं। यादव केंद्र सरकार में पहले से ही पदस्थ हैं और वे वहां संयुक्त सचिव के पद पर प्रमोट हो जाएंगे। यहां खाद्य सचिव डॉ. कमलप्रीत सिंह भी संयुक्त सचिव पद के लिए इम्पैनल हो चुके हैं।
लैंडयूज बदल सकेंगे?
एक तरफ तो देश भर के हर राज्य में निर्माण में मनमानी रोकने के लिए बिल्डरों और कॉलोनाईजरों पर लगाम लगाने रेरा नाम की संस्था बनाई गई है। दूसरी तरफ सरकार को ऐसा लगता है कि वह अपनी कॉलोनियों में अपने खुद के नियम चला सकती है जबकि वहां रहने वाले, वहां मकान और प्लॉट खरीदने वाले भी ऐसे फैसलों के खिलाफ रेरा जा सकते हैं।
छत्तीसगढ़ में राजधानी के रायपुर विकास प्राधिकरण को पिछली सरकार के चलते जो लंबा-चौड़ा घाटा हुआ है उससे उबरने के लिए इस संस्था के विभागीय मंत्री मोहम्मद अकबर ने कहा है कि कमल विहार के भू-उपयोग को बदलकर उसे महंगे दाम पर बेचकर घाटा पूरा किया जाएगा। लेकिन लोगों को याद होगा कि आरडीए को भी नगर एवं ग्राम निवेश से अपनी कॉलोनी का नक्शा पास करवाना पड़ता है जिसमें हर तरह का भू-उपयोग दर्ज रहता है। ऐसे में अगर कोई फेरबदल होता है, किसी जमीन को महंगे भू-उपयोग का बनाकर बेचा जाता है, तो यह उस कॉलोनी के लोगों के अधिकारों के खिलाफ रहेगा, और वे रेरा भी जा सकते हैं, और अदालत भी जा सकते हैं क्योंकि कमल विहार का मामला सुप्रीम कोर्ट तक जाकर वहां तय हुआ है।
छत्तीसगढ़ में रेरा ने पिछले महीनों कॉलोनियों और रिहायशी इमारतों में बिल्डर-कॉलोनाईजर द्वारा किए गए फेरबदल या वहां वायदे पूरे न करने पर उनके खिलाफ फैसले दिए गए हैं। यह देखना दिलचस्प होगा कि आरडीए किस तरह यह काम करके बच सकता है।
बस्तर में इज्जत दांव पर
प्रदेश की विधानसभा की खाली दो सीटों, दंतेवाड़ा और चित्रकोट में उपचुनाव अक्टूबर में हो सकते हंै। ये उपचुनाव भूपेश सरकार के लिए परीक्षा की घड़ी होंगे। कांग्रेस दोनों को जीतने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रही है। यहां कांग्रेस की कमान अप्रत्यक्ष रूप से उद्योग मंत्री कवासी लखमा और सांसद दीपक बैज संभाल रहे हैं। जबकि भाजपा ने स्थानीय नेताओं के बजाए बाहर के नेताओं को चुनाव का जिम्मा दिया है। दंतेवाड़ा का प्रभारी शिवरतन शर्मा, तो नारायण चंदेल को चित्रकोट का प्रभार दिया गया है। शिवरतन शर्मा के साथ पूर्व मंत्री केदार कश्यप और चंदेल के साथ महेश गागड़ा को सहप्रभारी बनाया गया है।
भाजपा हाईकमान ने दोनों सीटों को जीतने के लिए हर संभव कोशिश करने की नसीहत प्रदेश संगठन को दी है। वर्तमान में दंतेवाड़ा भाजपा, तो चित्रकोट सीट कांग्रेस के पास रही है। सुनते हैं कि भाजपा कोर ग्रुप की बैठक में उपचुनाव की रणनीति पर काफी चर्चा हुई। सौदान सिंह और अन्य नेता, बृजमोहन अग्रवाल को ही कम से कम एक सीट का प्रभारी बनाना चाहते थे। राज्य बनने के बाद जितने भी उपचुनाव हुए हैं, उनमें से ज्यादातर के प्रभारी बृजमोहन ही रहे और उन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी जीत दिलाई। मगर, इस बार उन्होंने चुनाव प्रभारी बनने से मना कर दिया। उन्होंने कहा कि परिवार के मांगलिक कार्यक्रमों के सिलसिले में उन्हें ज्यादातर समय बाहर रहना पड़ सकता है। इसके बाद कुछ और नेताओं के नाम पर भी चर्चा हुई। राजेश मूणत कोई भी बड़ी जिम्मेदारी लेने से पहले ही मना कर चुके हैं। उनकी बिटिया का विवाह नवम्बर-दिसंबर में होना है। दूसरी तरफ, केदार कश्यप और उनके भाई दिनेश कश्यप बस्तर भाजपा के सबसे बड़े नेता हैं, लेकिन पार्टी के भीतर दोनों के खिलाफ नाराजगी भी है, जो कि पिछले चुनावों में खुलकर सामने आ चुकी है। यही वजह है कि पार्टी ने किसी तरह के असंतोष को रोकने के लिए बस्तर के बाहर के नेताओं को प्रभारी बनाया है।
कर्ज देना भी खतरनाक
भाजपा के एक कारोबारी नेता कर्ज देकर मुश्किल में फंस गए हैं। नेताजी को ब्याज से बहुत मोह रहा है और उन्होंने अपने एक परिचित कारोबारी को ऊंचे ब्याज दर पर 10 करोड़ उधार दिए। शुरूआत में कारोबारी ने ब्याज दिया, लेकिन बाद में देना बंद कर दिया। उसने मंदी का हवाला देकर मूल राशि भी लौटाने में असमर्थता जता दी।
सुनते हंै कि दस करोड़ में से सिर्फ 5 लाख रुपये की ही लिखा-पढ़ी हुई है। बाकी रकम कच्चे में दी गई थी। अब हाल यह है कि 9 करोड़ 95 लाख के लिए भाजपा नेता कोर्ट कचहरी जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे हैं। उन्होंने सामाजिक और कुछ अन्य लोगों के जरिए रकम वापसी के लिए दबाव बनाया। ब्याज छोडऩे के लिए तैयार भी हंै, लेकिन कारोबारी ने नगद राशि देने में असमर्थता जता दी है। काफी अनुनय-विनय के बाद कारोबारी ने भाजपा नेता को नगद राशि के बदले में कुछ जमीन देने की पेशकश की है। भाजपा नेता की मुश्किल यह है कि कारोबारी जिस जमीन को देने के लिए तैयार है, उसका बाजार दर से दोगुना भाव रखा है। हाल यह है कि भाजपा नेता पेशकश स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं।
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सोनिया और शिलान्यास की चर्चा...
नया रायपुर में सोनिया गांधी द्वारा किए गए शिलान्यास के पत्थर की जगह आईआईएम को आबंटित करने के आरोप में राज्य सरकार ने प्रदेश के एक अच्छे आईएफएस अफसर एस.एस. बजाज को निलंबित कर दिया है। इसे लेकर एक वक्त कई बरस तक बजाज के सीनियर रहे राज्य के पूर्व मुख्य सचिव जॉय ओमेन विचलित हैं, और उनका भेजा संदेश मीडिया में चारों तरफ छपा भी है। लेकिन अब खबर यह है कि पूर्व केन्द्रीय मंत्री और सोनिया गांधी के करीबी लोगों में से एक, जयराम रमेश भी इसे लेकर हैरान-परेशान हैं। यूपीए सरकार के वक्त उनका जॉय ओमेन से वास्ता पड़ता था, और दोनों जाहिर तौर पर केरल के हैं। इसी तरह केरल के दो और लोग छत्तीसगढ़ में बड़े अफसर रहे हैं, वे दोनों भी राज्य सरकार के इस फैसले से हक्का-बक्का हैं। पूर्व मुख्य सचिव सुनिल कुमार और पूर्व अतिरिक्त मुख्य सचिव एन.बैजेन्द्र कुमार। इस तरह एक छत्तीसगढ़ी माटीपुत्र एस.एस. बजाज के काम को करीब से देखने वाले तीन मलयाली अफसर सरकार के इस फैसले से असहमत बताए जा रहे हैं, और दिल्ली में जयराम रमेश की असहमति इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि इस मामले में निलंबन के पीछे सोनिया गांधी के नाम के पत्थर को वजह बताया गया है, और सोनिया का नाम इस अप्रिय विवाद में बिना उनकी जानकारी के उलझ गया है।
किस्मत ने फिर साथ कर दिया...
बस्तर के सुकमा जिले के एसपी रहते हुए जितेन्द्र शुक्ला ने सीधे मंत्री कवासी लखमा को चि_ी लिख दी थी जिसे शासकीय नियम-कायदे के खिलाफ मानकर उनका वहां से ट्रांसफर कर दिया गया था। अब सरकार ने कुछ जिलों के एसपी बदले तो जितेन्द्र शुक्ला को महासमुंद का एसपी बनाया गया, और मजे की बात यह है कि वहां कवासी लखमा ही प्रभारी मंत्री हैं। चि_ी-पत्री की बात दोनों में से कोई भूले नहीं होंगे क्योंकि वह ताजा-ताजा मामला है।
कुछ जिलों से जब अफसरों के हटने की चर्चा होने लगती है तो वे राजधानी तक अपने खुद के बारे में कुछ सही-गलत खबरें भिजवाने लगते हैं। ऊपर जहां से तबादला तय होना है, वहां तक बात चली जाती है कि फलां अफसर या फलां नेता जिले से उस अफसर को हटाने पर आमादा हैं। अब राजधानी के लोग अपने हिसाब से तय करते हैं कि उन्हें नापसंद लोग अगर हटाना चाहते हैं, तो फिर उन्हें वहीं रहने देना चाहिए। आत्मरक्षा खरीदने के कई तरीके रहते हैं, यह उनमें से एक है।
ऐसे नाम कोई पिए तो कैसे पिए...
आबकारी कमिश्नर ने अभी कुछ दिन पहले शराबखाने चलाने वालों की एक बैठक बुलाई थी। उसमें लोगों ने अफसर को बताया कि देश के किसी भी प्रदेश में बार पर इतनी बड़ी लाईसेंस फीस नहीं है, इस तरह की बेतुकी और कड़ी शर्तें नहीं हैं। इन सबसे बढ़कर आज राज्य सरकार की दारू खरीदी नीति की वजह से बहुत ही घटिया शराब ब्रांड दुकानों पर भी हैं, और बार को भी सरकार से ही खरीदकर दारू बेचनी होती है। कुल मिलाकर ऐसे-ऐसे ब्रांड छत्तीसगढ़ में चल रहे हैं जिनके नाम भी किसी ने कभी सुने नहीं थे। पिस्टल, रिवाल्वर, रायफल, ये सब शराब के ब्रांड हैं जिनके बारे में किसी ने पहले न देखा-सुना था, न किसी को लगता था कि ऐसे ब्रांड की भी दारू बन सकती है, चल सकती है। ([email protected])
लालबत्ती नेता कहां हैं?
छत्तीसगढ़ में भाजपा का सदस्यता अभियान चल रहा है तो राजधानी रायपुर में कई सवाल खड़े हो रहे हैं। एक बैठक में कार्यकर्ताओं ने पूछा कि उनके इलाके के जिन भाजपा नेताओं को पांच-दस साल लालबत्ती मिली हुई थी, वे अब पार्टी की सरकार जाने के बाद कहां हैं? उनमें से कुछ लालबत्तियों में तो पार्टी दफ्तर से सदस्यता की किताब भी नहीं ली है, यानी दिखावा भी शुरू नहीं किया है। ऐसी एक बैठक में एक कार्यकर्ता ने आठ-नौ लालबत्तियों के नाम गिनाते हुए कहा कि वे भी कुछ जिम्मेदारी लें। पार्टी के रणनीतिकारों की दिक्कत यह है कि पार्टी हाईकमान सदस्यता अभियान को लेकर गंभीर है और किसी तरह का फर्जीवाड़ा न हो, इसकी मानिटरिंग हो रही है। पिछली बार तो जितने सदस्य बनाए गए थे उतने वोट भी विधानसभा चुनाव में नहीं मिले।
छोटे नेता गए काम से...
इससे परे भाजपा के जिला स्तर के कार्यक्रमों में अब तक जिले के नेताओं को बोलने का मौका मिलता था, उससे उनकी हसरत भी पूरी होती थी, और वे बातों को सामने रख भी पाते थे। अब हालत यह है कि जिला स्तर के कार्यक्रम में भी भाजपा के प्रदेश स्तर के बड़े-बड़े नेता पहुंच जा रहे हैं, और डॉ. रमन सिंह, बृजमोहन अग्रवाल, विक्रम उसेंडी के रहते हुए मंच पर भी वही रहते हैं, और माईक पर भी। छोटी-छोटी हसरतें मुंह लटकाए बैठी रहती हैं, और घर चली जाती हैं। पार्टी के कुछ लोग इस बात को लेकर फिक्रमंद हैं कि बड़े-बड़े नेताओं को बहुत छोटे-छोटे कार्यक्रम में नहीं जाना चाहिए।
एसोसिएशन में सुगबुगाहट...
नया रायपुर में शिलान्यास पत्थर की उपेक्षा के आरोप में आईएफएस एस.एस. बजाज को निलंबित किया गया, तो सभी लोग हक्का-बक्का रह गए। ऐसे में जब दूर केरल में बैठे हुए प्रदेश के पूर्व मुख्य सचिव और नया रायपुर के प्रभारी रहे जॉय ओमेन ने जब संदेश भेजकर इस पत्थर वाली जगह को आईआईएम को देने की जिम्मेदारी खुद ली, और बजाज को उस मामले में निर्णायक न होना बताया, तो सरकार में एक परेशानी खड़ी हो गई। बरसों पहले रिटायर हो चुके जॉय ओमेन पर तो इस मामले को लेकर कोई कार्रवाई हो नहीं सकती, और उनके बयान के बाद बजाज के खिलाफ मामला पता नहीं कितना मजबूत बचेगा। इस मामले को लेकर आईएफएस एसोसिएशन में कुछ सुगबुगाहट हुई, लेकिन फिर मंत्री-मुख्यमंत्री के तेवर देखकर अभी तक तो बात आगे बढ़ी नहीं है।
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फेरबदल सबके लिए अच्छा...
पर्यटन मंडल में एमडी बनाए गए भीमसिंह ने शायद दो-चार दिन ही वहां काम किया, और वहां से निकल लिए। वे हाऊसिंग बोर्ड चले गए जो कि बहुत अच्छी हालत में तो नहीं है, लेकिन पर्यटन मंडल जैसी बुरी हालत में भी नहीं है। आज 17 तारीख हो गई है, और इस मंडल में अभी तक कर्मचारियों की तनख्वाह भी नहीं बंटी है। पिछले एमडी दूसरे मदों के पैसे तनख्वाह में डाल देते थे, और बाद में तनख्वाह के पैसे आने पर उन मदों की भरपाई कर दी जाती थी। भीमसिंह ने फाईल पर ही लिख दिया कि किसी दूसरे मद का पैसा वेतन पर खर्च न किया जाए। खुद तो चले गए, लेकिन यह हुक्म छोड़ गए। लेकिन इन तबादलों से एक बात अच्छी हुई कि हाऊसिंग बोर्ड में प्रबंध संचालक शम्मी आबिदी मार्कफेड चली गईं जहां काम अधिक है। भीमसिंह पर्यटन मंडल के मुकाबले अधिक काम वाले, चाहे ठप्प पड़े हुए, हाऊसिंग बोर्ड चले गए। और नई आईएएस बनीं इफ्फत आरा को पहली बार पर्यटन बोर्ड का प्रबंध संचालक बनने का मौका मिल गया। उनकी साख काफी अच्छी है। ऐसे में पर्यटन मंडल को उबारने का कठिन दायित्व उन पर है। इन दोनों मंडलों की दुर्दशा के लिए पिछली सरकार की नीतियों को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है।
यह बात किसी से छिपी नहीं है कि पर्यटन क्षेत्र को विकसित किए बिना होटल-मोटल निर्माण के नाम पर करोड़ों फूंक दिए गए। हाल यह है कि होटल-मोटल जीर्ण-शीर्ण अवस्था में पड़े हैं। निगम पर करोड़ों का बोझ पड़ा सो अलग। ऐसे में निगम का बंठाधार तो होना ही था। कुछ इसी तरह की कहानी हाउसिंग बोर्ड की भी है। बोर्ड का पुनर्गठन हुआ, तो अपनी लोक लुभावन स्कीम के चलते बोर्ड जल्द ही फायदे में आ गई। बोर्ड की पोस्टिंग को मलाईदार माना जाने लगा। लेकिन पिछले पांच सालों में अंधाधुंध मकान-काम्पलेक्स बनाए गए। ग्राहक तो नहीं मिले, अलबत्ता निर्माण के एवज में जमकर कमीशनखोरी हुई। हाल यह है कि नवा रायपुर में हजारोंं मकान खाली पड़े हैं और खरीददार नहीं मिल रहे हैं। बोर्ड कर्ज के भंवरजाल में फंस गया है। यहां तैनात रहे पदाधिकारियों और अफसरों के खिलाफ भ्रष्टाचार के ठोस प्रमाण भी मिले हैं और इसकी जांच ईओडब्ल्यू कर रही है। चर्चा है कि जांच ठीक से हुई तो, नेता प्रतिपक्ष भी तकलीफ में आ सकते हैं।
दारू की गड़बड़ी को बचाने...
प्रदेश के सबसे अधिक मंत्रियों, और मुख्यमंत्री वाले जिले दुर्ग की एक सरकारी शराब दुकान में प्लेसमेंट एजेंसी के कर्मचारी को दाम से काफी अधिक पर शराब बेचते हुए इलाके के लोगों ने घेर लिया, और उसकी पिटाई की तैयारी चल रही थी। प्रदेश की अधिकतर सरकारी दुकानों में ओवररेट पर दारू बिक रही है, और चूंकि पीने वालों के लिए किसी की हमदर्दी नहीं रहती, उनकी दिक्कत पर किसी का ध्यान नहीं जा रहा। ऐसे में जब एक कर्मचारी के पिटने की नौबत आ गई, तो पुलिस ने मौके पर पहुंचकर उस दुकान से कर्मचारी को निकाला, और उसकी हिफाजत के लिए उसे थाने ले जाकर बिठा दिया। पिटाई से बचाने के लिए की गई यह कार्रवाई आबकारी विभाग को ऐसा परेशान कर गई कि उस कर्मचारी को पुलिस थाने से निकालने के लिए विभाग के कुछ सबसे बड़े अफसर फोन पर जुट गए। एक तरफ तो कागजों पर यह चेतावनी जारी होती है कि अधिक रेट पर शराब बेचते कोई मिले तो उसके खिलाफ पुलिस रिपोर्ट की जाए, दूसरी तरफ जब कोई अधिक रेट पर बेचते ऐसे घिर गया, तो प्लेसमेंट एजेंसी के कर्मचारी को छुड़ाने के लिए सरकार और विभाग के दिग्गज जुट गए। अब ऐसे हाल में दारू अंधाधुंध मनमाने रेट पर नहीं बिकेगी, तो क्या होगा? यह भी सुनाई पड़ता है कि इस विभाग के एक बड़े अफसर ने अपने परिवार को पहले ही यूरोप में बसा दिया है, ताकि यहां मामला ज्यादा गर्म हो तो छोडक़र जाने में अधिक समय न लगे। भाजपा के लोग इस सरकार की आबकारी-गड़बडिय़ों को पकडऩे के लिए पिछली सरकार के आबकारी मंत्री अमर अग्रवाल की तरफ देखते हैं जिन्हें इस धंधे की समझ दारू ठेकेदारों से बढक़र थी। लेकिन उनका मुंह इसलिए नहीं खुल रहा है कि उनके वक्त की फाईलों का समुद्र आज की सरकार के पास, और एसीबी में है जहां पर खरीदी की गड़बड़ी 1500 करोड़ रूपए आंकी गई है। अब ऐसी फाईलों के जखीरे के सामने अमर अग्रवाल का मुंह खुले भी तो कैसे खुले?
बजाज के साथ आए ओमेन
आखिरकार आईएफएस अफसर एसएस बजाज को निलंबित कर दिया गया। बजाज के निलंबन से प्रशासनिक महकमा सकते में है। उन पर नवा रायपुर के पौंता-चेरिया में नई राजधानी के शिलान्यास स्थल को आईआईएम को बेचने का आरोप है। बजाज की साख अच्छी रही है, ऐसे में कई पूर्व और वर्तमान अफसर उनके पक्ष में खड़े दिख रहे हैं। बजाज के साथ लंबे समय तक काम कर चुके पूर्व मुख्य सचिव और एनआरडीए के चेयरमैन पी जॉय ओमेन ने आईएएस अफसरों के एक वॉट्सऐप ग्रुप में अपनी प्रतिक्रिया जाहिर की है और इस पूरे प्रकरण पर अपना रूख साफ किया है।
उन्होंने लिखा है-'मुझे यह सुनकर दुख हुआ कि एसएस बजाज को निलंबित कर दिया गया है। छत्तीसगढ़ के मेरे कार्यकाल में वे मेरे देखे हुए सबसे अच्छे अफसरों में से एक रहे। वे शांत रहकर, लेकिन बहुत काबिल तरीके से नया रायपुर के सीईओ और टाऊन एंड कंट्री प्लानिंग के संचाल के रूप में अपना योगदान देते रहे। आईआईएम रायपुर ने उस जगह की सुरक्षा और उसके रखरखाव पर सहमति दी थी जहां श्रीमती सोनिया गांधी ने शिलान्यास किया था। मेरा ख्याल है कि यह आईआईएम को जमीन आबंटन के समझौते में बहुत साफ-साफ दर्ज किया गया था कि शिलान्यास पत्थर की जगह को अलग से चिन्हित करके रखा जाएगा, और आईआईएम उसकी सुरक्षा करेगा। सच तो यह है कि आईआईएम को वह जगह आबंटित करने के पहले शिलान्यास स्थल की रक्षा करना बहुत मुश्किल था क्योंकि बहुत से लोग शिलान्यास को नुकसान पहुंचाने में लगे हुए थे।'
ओमेन से परे कई अफसर मानते हैं कि बजाज से कई बड़ी चूक हुई हैं। भले ही उनका इरादा किसी को फायदा पहुंचाने का नहीं था। इस प्रकरण से पहले कमल विहार परियोजना में भी सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को जमकर लताड़ लगाई थी, और डायरेक्टर टाऊन एंड कंट्री प्लानिंग को कटघरे में खड़ा किया था। बजाज उस समय डायरेक्टर टाउन एंड कंट्री प्लानिंग थे। बजाज के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने लिखा था कि उन्होंने आरडीए के सीईओ रहते हुए फाईलें भेजीं, और संचालक टाऊन प्लानिंग की हैसियत से उन्हें मंजूर किया। अब ऐसे दो पदों पर किसी एक अफसरों को रखने की यह गलती सरकार की थी, लेकिन उसकी वजह से सुप्रीम कोर्ट की आलोचना बजाज को झेलनी पड़ी। अदालती फैसले के बाद उन्हें वहां से हटाकर व्यापमं भेज दिया गया। एनआरडीए से जुड़े लोग बता रहे हैं कि जमीन आबंटन में अनियमितता के कुछ और प्रकरण हैं जिसके कारण भी मौजूदा सरकार बजाज को बख्शने के मूड में नहीं थी। पूर्व प्रदेश अध्यक्ष धनेन्द्र साहू तो हर हाल में कार्रवाई चाह रहे थे। अब जब सोनिया गांधी के शिलान्यास स्थल को किसी दूसरे को देने का मामला आया तो मामला संवेदनशील हो गया और एक झटके में बजाज के निलंबन की अनुशंसा कर दी गई। बजाज की सारी अच्छी साख के बीच भी यह बात उनके खिलाफ गई कि वे सरकार की मर्जी पर मना नहीं कर पाए।
राज्य शासन के जानकार लोगों का देखा हुआ है कि किस तरह पिछले लोकसभा चुनाव प्रचार के बीच भी एनआरडीए के प्रभारी मंत्री मोहम्मद अकबर अफसरों को फाईलों के साथ बुलाकर कई-कई घंटे उनमें छानबीन करते रहे। अब उस मेहनत पर फैसले हो रहे हैं।
कुछ और अफसर...
एसएस बजाज तो निपट गए, लेकिन कुछ अफसर गंभीर आरोपों के बाद भी सरकार का कोपभाजन बनने से बच गए। इन्हीं में से एक नए-नवेले आईएएस राजेन्द्र कटारा भी हैं। उन्हें जशपुर जिला पंचायत सीईओ के पद से हटाकर रायगढ़ में अपर कलेक्टर बनाया गया। सुनते हैं कि पिछले दिनों कटारा ने अपनी बेटी का जन्मदिन मनाने के लिए जशपुर के सरकारी स्वीमिंग पूल को बंद कर दिया था। रांची से खानसामे बुलाकर स्वीमिंग पूल में जोरदार तरीके से पार्टी मनाई। जशपुर में तैराकी का प्रशिक्षण देने के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर स्वीमिंग पूल बनाया गया है। बड़ी संख्या में तैराकी का प्रशिक्षण दिया जाता है। लेकिन, अफसर की बेटी की जन्मदिन पार्टी के कारण एक दिन स्वीमिंग पूल बंद रहा। इसको लेकर तीखी प्रतिक्रिया हुई थी और शिकायत सरकार से भी की गई। मगर, थोड़ी बहुत नाराजगी के बाद कटारा को अभयदान दे दिया गया।
मुन्नीबाई का क्या हुआ?
प्रदेश में ही एक आईएफएस अफसर राजेश चंदेले का नाम भी बस्तर में सरकारी बंगले के अहाते में सरकारी खर्च से बनवाए गए स्वीमिंग पूल के लिए खबरों में रहा, लेकिन उसका क्या हुआ यह किसी को ठीक उसी तरह मालूम नहीं है जिस तरह बस्तर के भाजपा मंत्री केदार कश्यप की पत्नी की जगह पत्नी की बहन के इम्तिहान देने के मामले का। उस वक्त केदार की पत्नी की जगह मुन्नी बाई बनकर इम्तिहान देने वाली सरकारी कर्मचारी, पत्नी की बहन, लंबे समय तक गायब रहीं, और फिर मामले का कफन-दफन कर दिया गया था। सरकारों में होता यही है, जिस मामले को निकालना हो, उसके कंकाल कब्र से निकल आते हैं, और जिन्हें अनदेखा करना हो, वे मामला सहूलियत से दफन हो जाते हैं।
सड़क पर चलेगी ट्रेन?
सीएम भूपेश बघेल भ्रष्टाचार के प्रकरणों को लेकर सख्त दिख रहे हैं। आरडीए की समीक्षा बैठक में यह बात उभरकर सामने आई कि कमल विहार की एक सड़क पर ही 30 करोड़ रूपए खर्च किए गए, तो सीएम आश्चर्यचकित रह गए। उन्होंने पूछ लिया कि क्या सड़क पर ट्रेन चलाने की योजना है? चर्चा में यह भी बात सामने आई कि आरडीए में सलाहकारों को लाखों रूपए प्रतिमाह भुगतान हो रहा है। सीएम ने कहा कि जब कोई योजनाएं नहीं चल रही हैं, तो सलाहकारों को रखा क्यों गया है। अफसरों ने बताया कि पिछली सरकार ने लंबे अनुबंध पर सलाहकार रखे थे ऐसे में उन्हें हटाया नहीं गया। सीएम गरम हो गए, उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि जिन्होंने ने भी अनाप-शनाप खर्च कर आरडीए को दिवालिया होने के कगार पर ला खड़ा किया है, ऐसे लोगों को बख्शा नहीं जाए।
कम से कम अपनी साख के लिए...
सोशल मीडिया पर आमतौर पर गंदगी अधिक फैलती है लेकिन कुछ अच्छी बातें भी इस पर तैरती हैं, और लोग अपने तजुर्बे को दूसरों से बांट सकते हैं, और कोई अच्छी पहल दूर तक जा सकती है। अभी किसी ने वॉट्सऐप पर एक तस्वीर भेजी है कि बारिश के वक्त बिजली के खंभों में कई जगह करंट आ जाता है। छोटे बच्चे नासमझी में ऐसे खंभों को छूते हैं, और हादसा हो जाता है। इससे बचने का एक सरल तरीका किसी ने निकाला है कि प्लास्टिक के पाईप को लंबाई में काट दिया जाए, और खंभों के इर्द-गिर्द उन्हें बांध दिया जाए। ऐसा करते हुए एक तस्वीर भी फैल रही है जिसे देखकर दूसरे लोग आसानी से ऐसा कर सकते हैं। जो लोग बड़ी लापरवाही से झूठ या गंदगी को आगे बढ़ाते हैं उन्हें अपने बारे में सोचना चाहिए और भली बातों को बढ़ाकर अपनी साख भी बेहतर करनी चाहिए।
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प्रमोशन मिला, ओहदा नहीं...
बड़े अफसरों के बीच अपनी बैच के साथी अफसरों के लिए अच्छी भावना प्रमोशन के दो मौकों के बीच बनी रहती है, लेकिन प्रमोशन के वक्त हर किसी को जंगल की जिंदगी की तरह अपनी खुद की परवाह करनी होती है। सरकार में ऊंचे ओहदों पर बैठे हुए लोग चाहे किसी भी विभाग के हैं, किसी भी सेवा में हों, जब प्रमोशन का मौका आता है तो उनके बीच गलाकाट मुकाबला खड़ा हो जाता है। पिछले कुछ बरसों में छत्तीसगढ़ में एक साथ तीन-तीन, या उससे भी अधिक लोगों के प्रमोशन का मौका आया, और लोग इस गलाकाट मुकाबले में बेचैन होते दिखे। फिलहाल सबसे ताजा मामला पुलिस में तीन नए बने एडीजी का है, जिन्हें ओहदा तो मिल गया है, लेकिन नई कुर्सियां नहीं मिली हैं। अब इतनी ऊंची कुर्सियां राज्य में हैं तो सही, खाली भी हैं, लेकिन सरकार भी फैसला लेने में खासा वक्त ले रही है, सबके सामने कुछ न कुछ चुनौतियां रखी गई हैं कि उन पर खरा उतरकर दिखाएं। सरकारी नौकरी में प्रमोशन तो आगे-पीछे हक से मिल सकता है, लेकिन उस दर्जे की किस कुर्सी पर बिठाना है, यह तो सरकार का विशेषाधिकार रहता है। फिलहाल पुलिस के तीनों लोग प्रमोशन के पहले की कुर्सियों पर ही बैठे हैं।
ओवैसी से सामना
संसद भवन में तेजतर्रार मुस्लिम सांसद असउद्दीन ओवैसी के साथ बातचीत में मशगूल पूर्व मंत्री प्रेमप्रकाश पांडेय, अजय चंद्राकर और शिवरतन शर्मा की हंसती-मुस्कुराती तस्वीर वायरल हुई, तो भाजपा के कई कार्यकर्ता नाराज हो गए और सोशल मीडिया में अपने नेताओं को जमकर कोसा था। लेकिन पिछले दिनों सांसद सुनील सोनी, असउद्दीन ओवैसी से भिड़ गए।
मौका था एनआईए विधेयक पर चर्चा का। ओवैसी ने लोकसभा में विधेयक पर चर्चा के दौरान हरेक प्रावधान का कड़ा विरोध किया और विधेयक को अल्पसंख्यक विरोधी तक करार दिया। उन्होंने कहा कि सरकार अगर आतंकवाद के खिलाफ गंभीर है तो फिर वे मक्का मस्जिद ब्लास्ट, समझौता ब्लास्ट और अजमेर ब्लास्ट के खिलाफ अपील क्यों नहीं करते। आरोप लगाया कि इनका अप्रोच उस समय सॉफ्ट होता है जब पीडि़त मुसलमान हो और आरोपी हिन्दू। आतंकी गतिविधियों की जांच के लिए एनआईए को और अधिकार दिए जाने के इस विधेयक पर उनके तर्क सुनील सोनी को बर्दाश्त नहीं हुए।
सुनते हैं कि बिल पास होने के बाद संसद भवन के सेंट्रल हॉल में जब ओवैसी बैठे थे, तो सुनील सोनी उनके पास पहुंचे और कहा कि आप जैसों के कारण आम देशभक्त मुसलमानों को कटघरे में खड़ा होना पड़ता है। इस पर ओवैसी भी भड़क गए और उन्होंने सुनील सोनी को तीखे स्वर में कहा कि आप मुझे समझाएंगे? इस पर सोनी ने उन्हें कहा कि वे समझा नहीं रहे हैं, बता रहे हैं। यह कहकर वहां सेे निकल गए।
कैमरे की चतुराई...
जो लोग मीडिया के काम बारीकी से नहीं देखते उन्हें यह अंदाज नहीं लगता कि किसी जगह पर भीड़ या जुलूस का आकार क्या है। मीडिया के कैमरे और उनके पीछे के लोग इस बात को जानते हैं कि जिन नजारों को वे कैमरों में कैद कर रहे हैं, वे अगर बड़े न दिखे, तो फिर मीडिया पर या मीडिया में दिखेंगे भी नहीं। इसलिए अपने काम की मौजूदगी दर्ज कराने के लिए उन्हें उस घटना को महत्वपूर्ण और बड़ा भी बताना होता है, जिसे दर्ज करने के लिए उन्होंने वक्त लगाया है, और दिन भर के अपने काम को दिखाने के लिए उन्हें यह छपने लायक या प्रसारित होने लायक भी साबित करना है। नतीजा यह होता है कि कैमरों के पीछे के चतुर लोग उसी भीड़ को अलग-अलग तरफ से दिखाकर उसे महत्वपूर्ण बता सकते हैं। जिस तस्वीर या वीडियो में कैमरा लोगों के सिर के नीचे की ऊंचाई पर रहे, वहां जान लीजिए कि भीड़ बहुत कम है, गिने-चुने सिर और गिने-चुने पोस्टर अधिक दिखाने के लिए कैमरे को नीचे रखा जाता है। और जब भीड़ सैलाब की तरह बड़ी हो तो फोटोग्राफर किसी इमारत की छत पर पहुंच जाते हैं और जनसैलाब को दिखाने लगते हैं। भीड़ कम तो कैमरे की ऊंचाई कम, और भीड़ अधिक तो कैमरे की ऊंचाई अधिक। अब उत्तरप्रदेश के बलात्कार-हत्या के आरोपी भाजपा विधायक कुलदीप सिंह सेंगर के समर्थकों ने अभी उन्नाव में अपने विधायक की बेकसूरी का दावा करते हुए एक जुलूस निकाला, तो कैमरे की ऊंचाई लोगों के कंधों से ऊपर नहीं जा पाई, मतलब यही कि भीड़ महज कुछ सिरों की थी, और पीछे का खाली हिस्सा दिखता तो भला कौन सा अखबार इस तस्वीर को जगह देता, या कौन सा चैनल ऐसे वीडियो को दिखाता। इसलिए फोटोग्राफर और कैमरापर्सन के अपने पापी पेट का सवाल रहता है, और वे इस छोटी सी तरकीब को इस धंधे में आते ही सीख लेते हैं।
पत्रकारिता विवि में संघीय राजनीति
कुशाभाई ठाकरे पत्रकारिता विवि में सरकार बदलने के बाद सब कुछ ठीक-ठाक नहीं चल रहा है। तभी तो कुलपति नप गए और अब कुलसचिव को निपटाने की जोर आजमाइश हो रही है। दरअसल, बीजेपी के राज में संघ से जुड़े शिक्षकों और कर्मचारियों ने खूब जलवा काटा, अब सरकार बदल गई तो उन्हें बदलने में समय तो लगेगा, लेकिन इतने बरस की भाई साहब वाली आदत आसानी से कहां छूटने वाली है। जहां भी अपनी बिरादरी का कोई दिखता है, प्रेम छलकने लगता है। इसी प्रेम ने वहां एक बार फिर संघ के विचारधारा वाले लोगों की एंट्री के लिए जोड़-तोड़ शुरू कर दिया। अब जब मामला खुल गया तो वहां के एक बड़े गुरुजी पूरा ठीकरा कुलसचिव पर फोडऩे की मुहिम में लग गए हैं। विवि के शिक्षकों का कहना है कि दरअसल बड़े गुरूजी कुलसचिव बनने की फिराक में है, इसलिए कुलसचिव को दांव पेंच में उलझाकर सरकार के सामने उनकी छवि खराब करना चाहते हैं, ताकि सरकार की नाराजगी के चलते उनकी रवानगी हो जाए। इसलिए वो उनके खिलाफ खबरें प्लांट करवाने में लगे रहते हैं। अब उनकी यह पोल भी खुलने लगी है। अब बेचारे बड़े गुरुजी अपने अरमानों का गला घुटते देख मुंह लटकाए घूम रहे हैं। पत्रकारिता पढ़ाने वाले बड़े गुरूजी की दाल नहीं गलने पर वहां के कर्मचारी भी खूब मजे ले रहे हैं। ([email protected])
माणिक मेहता का ताजा निशाना
छत्तीसगढ़ के ताजा हालात देखने वाले लोगों को माणिक मेहता का महत्व मालूम है। माणिक की बहन से प्रदेश के सबसे चर्चित और विवादास्पद पुलिस अफसर मुकेश गुप्ता ने शादी की थी, और मिकी मेहता की मौत के बाद माणिक लगातार मुकेश गुप्ता के खिलाफ सरकार से लेकर अदालत तक की लड़ाई लड़ रहे थे। मुकेश गुप्ता के शासनकाल में माणिक मेहता को सही-गलत कई किस्म के मामलों में गिरफ्तार करके जेल भी भेज दिया गया था, और वे अपनी माँ सहित प्रदेश के सबसे प्रताडि़त लोगों में से एक थे। अब जब भूपेश सरकार ने इस राज्य में पहली बार मुकेश गुप्ता पर कानूनी कार्रवाई शुरू की है, तो माणिक मेहता का महत्व एकदम से बढ़ गया है। बरसों पुरानी शिकायतें भी उनकी हैं, और वे सबसे बड़े गवाह भी हैं, और उनके पास कई सुबूत भी हैं। लोग मुकेश गुप्ता की आंधी चलने के दौर में माणिक से बात करने से भी कतराते थे क्योंकि माणिक और उनकी माँ के फोन पूरे वक्त टैप होते रहते थे। अब वे इस सरकार में एक आजाद नागरिक की तरह काम कर रहे हैं, और सरकार के कुछ लोगों के खिलाफ सोशल मीडिया पर लिख भी रहे हैं। कल ही उन्होंने राहुल गांधी और भारतीय राष्ट्रीय कांगे्रस के ट्विटर अकाउंट को टैग करते हुए छत्तीसगढ़ के सबसे बड़े पुलिस अफसर पर हमला बोला है।
डीजीपी डी.एम. अवस्थी के पुलिस हाउसिंग कार्पोरेशन के वक्त के हिसाब-किताब पर सीएजी की आपत्तियों को गिनाते हुए उन्होंने राहुल गांधी से पूछा है कि जिस भ्रष्टाचार में राज्य सरकार ने ईओडब्ल्यू-एसीबी को जांच के आदेश दे दिए हैं, उस जांच से डी.एम. अवस्थी का नाम क्यों हटा दिया गया है? कांगे्रस और राहुल से माणिक मेहता ने सवाल किया है कि क्या कांगे्रस भी छत्तीसगढ़ में डॉ. रमन सिंह सरकार के रास्ते पर चलेगी जिससे कि इस पार्टी का राज्य में शर्मनाक सफाया हो गया? राहुलजी, कब होगा न्याय?
माणिक ने पुलिस हाउसिंग कार्पोरेशन के हिसाब-किताब पर सीएजी की रिपोर्ट के पन्ने भी ट्विटर पर डाले हैं जो बड़ी आर्थिक अनियमितता के आंकड़ों के हैं। अब जानकार लोग माणिक के पीछे की ऐसी वर्दीधारी ताकतों के नाम की अटकलें लगा रहे हैं जिन्हें डी.एम. अवस्थी से कोई हिसाब चुकता करना है। डी.एम. अवस्थी का मानना है कि इस राज्य में अकेले माणिक मेहता को ही पुलिस हाउसिंग कार्पोरेशन के उनके कार्यकाल में भ्रष्टाचार दिखता है।
सूझा, मगर बहुत देर से...
सरकारी बंगलों के लिए खींचतान मची हुई है। कांग्रेस के कई विधायकों को बंगला आबंटित किया गया है। चूंकि मंत्री तो बनाया नहीं जा सकता था। वरिष्ठता देखकर बंगला ही दिया गया है। इसके बाद भी कई इंतजार में हैं। निगम-मंडल अध्यक्षों की घोषणा के बाद मारकाट और बढऩे वाली है। सुनते हैं कि जिला पंचायत अध्यक्ष शारदा वर्मा को उनके पांच साल के कार्यकाल के आखिरी बरस में, अभी कुछ महीने पहले सिविल लाइन में बंगला आबंटित किया गया था, वे उस बंगले में जाने ही वाली थीं कि उसे अब प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष मोहन मरकाम को दे दिया गया। जबकि शारदा वर्मा का कार्यकाल कुछ माह बाकी है। इससे परे पूर्व सांसद रमेश बैस त्रिपुरा के राज्यपाल बन गए हैं, लेकिन सरकारी बंगले पर उनका कब्जा बरकरार है।
सरकारी बंगले का मोह पालने वाले राजनेताओं को दिवंगत सुषमा स्वराज से सीख लेनी चाहिए। सुषमा मंत्री पद से हटते ही तीन घंटे के भीतर सरकारी बंगला खाली कर एक तीन कमरे के निजी फ्लैट में रहने चली गई थीं। सुनते हैं कि कई सांसदों ने उन्हें अपने नाम पर बंगला आबंटित कराकर उसमें ही रहने का आग्रह किया था। कई केन्द्रीय मंत्रियों ने भी उन्हें इसी तरह का सुझाव दिया था, लेकिन वे नहीं मानीं। सुषमा ने तो सरकारी बंगले में रहने के लिए दबाव बना रहे सांसद मनोज तिवारी को झिड़क तक दिया और कहा कि सभी पूर्व लोग सरकारी बंगले में रहेंगे, तो वर्तमान लोग कहां जाएंगे। उनका मानना था कि पद से हटने के बाद सरकारी सुविधाएं नहीं लेनी चाहिए।
दो दिन पहले रायपुर के भाजपा कार्यालय में सुषमा स्वराज की स्मृति में श्रद्धांजलि सभा हुई तो भाजपा नेता-कार्यकर्ता उमड़ पड़े। इस कार्यक्रम में पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह ने याद किया कि किस तरह सुषमा स्वराज ने तुरंत ही सरकारी बंगला खाली कर दिया था। वहां मौजूद भाजपा के एक नेता ने बाहर निकलकर एक अखबारनवीस से कहा कि डॉक्टर साहब को कुछ महीने पहले यह बात सूझ गई होती तो वे मुख्यमंत्री निवास में महीनों तक नहीं रहते जिसे लेकर नए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को भी बोलने का मौका मिला था। इन महीनों में भूपेश राज्य अतिथि गृह पहुना में रहकर काम कर रहे थे।
सोनिया से बड़ी उम्मीदें
सोनिया गांधी कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष चुन ली गईं। पार्टी के एक बुजुर्ग नेता मानते हैं कि राजीव गांधी के बाद सोनिया ही पार्टी की सबसे सफल अध्यक्ष रही हैं। राजीव के बाद नरसिम्ह राव और सीताराम केसरी पार्टी के अध्यक्ष पद पर रहे। मगर सोनिया के अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस की सत्ता में वापसी हुई। केन्द्र में कांग्रेस की 10 साल गठबंधन सरकार रही, 16 राज्यों में कांग्रेस-गठबंधन की सरकार रही, लेकिन राहुल के अध्यक्ष बनने के बाद कांग्रेस की सत्ता में वापसी नहीं हो पाई। सिर्फ चार राज्यों में ही सरकार रह गई है। ऐसे में सोनिया की वापसी से कांग्रेस उम्मीद से है। छत्तीसगढ़ के लोगों को यह भी लग रहा है कि सोनिया युग की इस दूसरी किस्त में पहली किस्त के सबसे करीबी रहे मोतीलाल वोरा का महत्व भी खासा बढ़ जाएगा, एक बार फिर से।
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हिंदुस्तानी लोगों की कचरा पैदा करने और उसे साफ-सुथरी जगह पर फैलाने की क्षमता दुनिया में सबसे अधिक है। लोगों के मन में अपनी इस कचरा-संस्कृति के लिए राष्ट्रवाद इतना मजबूत है कि अगर कुछ समय तक गंदगी न फैला सके तो उन्हें लगता है कि वे पाकिस्तानी हो गए हैं। ऐसे में हर कोई साफ जगह को गंदा करने में मुफ्त ओवरटाईम करने के लिए भी तैयार रहते हैं।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के अकेले संग्रहालय के अहाते में साज-सज्जा के लिए कुछ मूर्तियां लगाई गई हैं जिनमें से एक में एक महिला कुछ पढ़ते हुए दिखती है। अब प्रतिमा में बनी यह किताब एक सपाट सतह है, और अगर उस पर गंदगी न हो, तो यह लोगों के स्वाभिमान पर, उनके राष्ट्रवाद पर चोट करने वाली बात हो जाती है। इसलिए लोगों ने उसका इस्तेमाल कचरा लादने के लिए कर रखा है। आसपास कचरा डालने के लिए कई जगहें हैं, लेकिन उसमें कचरा डालने का भला क्या मजा? गंदगी में जीने में हिंदुस्तानियों ने एक महारत हासिल कर रखी है, और यह एक राष्ट्रीय गौरव की बात भी समझी जाती है।
डर्टी पिक्चर की जमकर चर्चा
छत्तीसगढ़ में डर्टी पिक्चर के विलेन सकपकाए हुए हैं। दरअसल, राज्य में सरकार बदलते ही इसकी जांच तेज होने की अटकलें लगाई जा रही थी, लेकिन इस बीच लोकसभा के चुनाव आ गए और जांच आगे बढ़ नहीं पाई, तो इस गोरखधंधे में शामिल लोगों ने राहत की सांस ली। अब फिर से उनकी सांस फूलने लगी है, क्योंकि सरकार ने अपने एजेंडे के मुताबिक डर्टी पिक्टर के निर्माता निर्देशकों की धरपकड़ और पूछताछ शुरू कर दी है। ऐसे ही एक नामीगिरामी और धन्ना सेठ को पुलिस ने नोटिस जारी किया। हालांकि वे शहर से बाहर होने के कारण पूछताछ के लिए पुलिस के समक्ष हाजिर नहीं हुए। उनके परिवार के लोगों ने भरोसा दिलाया है कि शहर में आते ही वे पुलिस के समक्ष उपस्थित हो जाएंगे। खैर, वे आते हैं या नहीं यह दीगर बात है, लेकिन उनके करीबी सूत्रों का कहना है कि पुलिस का सामना करने से पहले वे जुगाड़ तंत्र में लगे हुए हैं। यह बात भी जगजाहिर है कि उन्हें अपने नाथ और बाबा का सहारा मिलता रहा है। इस बार भी वे अपने नाथ और बाबा को पुकार रहे हैं। अब देखना यह है कि उन्हें कहां से कितना सहारा मिलता है, लेकिन इतना तो तय है कि डर्टी पिक्चर से प्रताडि़त लोग चुटकी ले रहे हैं कि अब तेरा क्या होगा।
लेकिन कुछ और डर्टी पिक्चरें पिछली सरकार के कार्यकाल में जनसंपर्क विभाग के पैसों से बनाने की चर्चा रही और उसका स्टिंग ऑपरेशन भी हवा में तैरता रहा। उस चर्चा के मुताबिक राज्य के दर्जन भर प्रमुख पत्रकारों का भी स्टिंग एक विदेशी सेक्स-पर्यटन केंद्र पर बनने की चर्चा रही, और लोग मजा लेकर उसका भी इंतजार करते रहे। फिलहाल भाजपा के भीतर सरकारी सेक्स-सीडी के स्टिंग को लेकर राजनीति चल रही है, और दिल्ली में बड़े नेताओं के सामने पिछली सरकार का यह कारनामा भाजपा के लोग ही पेश कर रहे हैं।
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