विचार / लेख
घनाराम साहू
राजिम धाम के इतिहास में सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्थान रतनपुर के कलचुरी सामंत एवं दुर्ग के राजा जगपाल देव का है, जिसने 3 जनवरी सन 1145 माघ शुक्ल अष्टमी दिन बुधवार कलचुरि संवत 896 को भगवान रामचन्द्र का मंदिर बनवा कर लोकार्पित किया था । रतनपुर के कलचुरी राजाओं में 10 वीं सदी के राजा कमल राज (ईसवी सन 1020 से 1045) प्रतापी थे जिसने त्रिपुरी के राजा गांगेय देव के उत्कल विजय अभियान में सहयोग किया था ।
गांगेय देव और कमल राज ने उत्कल के सोमवंशी राजा धर्मरथ को पराजित किया था। इसी युद्ध अभियान में राजा कमल राज को साहिल्ल नामक योद्धा मिला जो युद्ध उपरांत उसके साथ रतनपुर (तुम्मान) आ गया था । साहिल्ल बघेलखंड (मिर्जापुर) के बड़हर नामक स्थान का निवासी था । राजिम धाम से राजा जगपाल देव के शिलालेख के अनुसार वह राजमाल कुल गोत्र का था । उसका एक भाई वासुदेव और तीन पुत्र भायिल, देसल और स्वामिन थे । स्वामिन के पुत्र जयदेव एवं देवसिंह हुए । ठाकुराज्ञी उदया देवी (पति का नाम उल्लेख नहीं है) का पुत्र जगपाल देव हुआ, जिसने जगपालपुर नगर बसाया । इस वंश ने रतनपुर के कलचुरी राजाओं के लिए भट्टविल, विहरा, कोमोमंडल, डंडोर, मायूरिक, सातवंतों, तमनाल, राठ, तरण, तलहारी, सरहरागढ़, मचका, सिहावा, भ्रमरदेश, कांतार, कुसुमभोग, कांदाडोंगर, काकरय को जीता था ।
रतनपुर के राजा रत्नदेव द्वितीय एवं उत्कल के चोडग़ंग राजा अनंतदेव वर्मन के बीच शिवरीनारायण के निकट तलहारी मंडल में हुए युद्ध में जगपाल देव ने अद्भुत शौर्य का प्रदर्शन किया था । युद्ध भूमि में उसका शरीर रक्त बूंदों से सिंदूर के समान लाल हो गया था । उसकी वीरता के कारण वह जगत सिंह के नाम से प्रसिद्ध हुआ । राजा रत्नदेव द्वितीय के पुत्र राजा पृथ्वीदेव द्वितीय ने जगपाल देव की वीरता से प्रभावित होकर दुर्ग क्षेत्र के 700 गांवों का स्वामी बना दिया तब जगपाल देव राजा कहलाने लगे । राजा जगपाल देव निसंतान थे इसलिए इनका वंश वृक्ष यहीं समाप्त हो जाता है ।
कुछ इतिहासकारों के मतानुसार साहिल्ल के वंश के राजमाल गोत्र के नाम पर राजमालपुर बसाया गया । कालांतर में यह नाम छोटा होकर राजम और इसका अपभ्रंश होकर राजिम हुआ । इतिहासकार यह भी मानते हैं कि राजा (सामंत) जगपाल देव का शिलालेख जो राजीव लोचन मंदिर के भित्ति में मिला, वह वास्तव में इस मंदिर से कुछ दूरी पर स्थित रामचंद्र मंदिर का है क्योंकि शिलालेख के अनुसार उसने भगवान रामचन्द्र का मंदिर बनवाया था । एक अन्य ऐतिहासिक प्रसंग के अनुसार अंग्रेज काल में रायपुर के मालगुजार गोविंद लाल बनिया ने सिरपुर से सामग्री लाकर राजिम के मंदिरों का जीर्णोद्धार कराया था ।
फोटो में दिया गया यह प्रतिमा राजिम के मुख्य मंदिर प्रांगण में स्थापित है जिस पर राजा जगतपाल का नाम पट्टिका भी लगा है लेकिन इतिहासकार इसे गौतम बुद्ध की प्रतिमा बताते हैं ।