विचार / लेख
गोकुल सोनी
एक दिन हमारे प्रेस में एक आदमी आया। उसके हाथ में एक तस्वीर थी। उस समय के हमारे सिटी चीफ (मुख्य नगर प्रतिनिधि) को वह फ़ोटो दिखाकर बताने लगा कि देखो मैंने अपने कैमरे से एक भूत की तस्वीर ली है। अति उत्साही सिटी चीफ महोदय ने दूसरे दिन अखबार में छाप दिया कि रायपुर कलेक्टोरेट परिसर में जो पानी टंकी है उसमें एक आदमी की लाश है। लाश भूत बनकर पानी टंकी के अंदर ही लेटा हुआ है। तस्वीर भी कुछ इसी तरह की थी कि टंकी में पानी भी भरा है और उसके अंदर एक लाश भी चित्त अवस्था में है। कलेक्टर आफिस में खलबली मच गई, लोग घबराने लगे, इतना डर कि कोई टंकी की ओर जाता भी नहीं था।
समाचार छपने के बाद संपादक जी ने मुझे बुलाया और उस फोटो के बारे में मेरी राय जाननी चाही। मैंने कहा -भूत होता है या नहीं ये तो मैं नहीं जानता लेकिन किसी कैमरे से इस तरह भूत की फोटो खींचना संभव नहीं है। फिर मैंने उस तकनीक के बारे में बताया। फोटोग्राफर या फोटोग्राफी को समझने वाले जानते हैं कि पहले फिल्म वाले कैमरे में एक फोटो खींच लेने के बाद दूसरी फ़ोटो खींचने के लिए फि़ल्म को आगे बढ़ाया जाता था। ऐसा करने के लिए कैमरे के ऊपर लगे एक लिवर को दांयें हाथ के अंगूठे से घूमाना पड़ता था। कभी-कभी कैमरे के अंदर का गेयर स्लिप करने से फिल्म आगे नहीं बढ़ती थी। हम जो पहले फोटो खींचे होते थे उसी के उपर दूसरी फ़ोटो भी खिंच जाती थी। फोटोग्राफी की भाषा में इसे डबल एक्सपोज, ओवरलेप या कुछ लोग सैंडिवज भी कहते हैं। उस फोटो खींचने वाले के साथ भी ऐसा ही हुआ था। पहले उसने उस कैमरे से किसी लाश की फोटो खींची रही होगी। फिल्म आगे नहीं बढ़ी और उसी के ऊपर टंकी की फोटो खींच ली । जब फिल्म से प्रिंट बनवाया तो दोनों फोटो मिलाकर ऐसा दिख रहा था मानो टंकी के अंदर किसी की लाश पड़ी हो।
पूरी बात समझकर संपादक जी खूब हंसे। अपनी ही गलती थी इसलिए खंडन छापना उचित नहीं था। मामला वहीं शांत भी हो गया। यहां फेसबुक के मित्रों को बता दूं कि अब डिजिटल कैमरे में एक नहीं अनेक ओवरलेप फोटो खींचने की सुविधा होती है। इसे मल्टी एक्सपोजर के नाम से जाना जाता है। खैर, क्या आप कभी भूत देखे हैं और उसकी फोटो खीचें हैं।