विचार / लेख

जांच एजेंसियों के चक्रव्यूह में फंसा विपक्ष
10-Jan-2024 3:58 PM
जांच एजेंसियों के चक्रव्यूह में फंसा विपक्ष

डॉ. आर.के. पालीवाल

कांग्रेस के प्रथम परिवार में अभी तक प्रियंका गांधी का नाम ही आर्थिक घोटाले के आरोपों से बचा हुआ था। हाल ही में प्रियंका गांधी का नाम भी पति रॉबर्ट वाड्रा के विवादित जायदाद मामले में चार्जशीट में शामिल होने के बाद अब नेहरू/ गांधी परिवार के राजनीति में सक्रिय तीनों सदस्य सोनिया गांधी, राहुल गांधी और प्रियंका गांधी किसी न किसी आपराधिक मामले में जांच एजेंसियों के चक्रव्यूह में फंस गए हैं। केंद्रीय जांच एजेंसियों के चक्रव्यूह में फंसने वाले बड़े नेता सिर्फ प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस के ही नहीं हैं। जांच एजेंसियों के निरंतर व्यापक होते चक्रव्यूह में इण्डिया गठबंधन में शामिल कई विपक्षी दलों के नेता या तो बुरी तरह फंस चुके हैं या निकट भविष्य में फंसने की कगार पर हैं। आम आदमी पार्टी, झारखंड मुक्ति मोर्चा, राष्ट्रीय जनता दल, तृणमूल कांग्रेस और शिव सेना आदि कई राजनीतिक दल के बड़े नेता केंद्रीय जांच एजेंसियों के निशाने पर सबसे ऊपर हैं।

इन दिनों सबसे ज्यादा मुसीबत दिल्ली और झारखंड के  मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और हेमंत सोरेन के सिर पर है जो प्रवर्तन निदेशालय के कई कई समन की तामील के बावजूद प्रवर्तन निदेशालय के कार्यालय में उपस्थित नहीं हो रहे हैं। उनके दल के लोग और वे खुद भी बार-बार यह आरोप लगा रहे हैं कि सत्ता पक्ष उन्हें विरोध की राजनीति को कुचलने के लिए षडय़ंत्र रचकर लोकसभा चुनाव से पहले जेल में बंद करना चाहता है ताकि बड़े नेता भाजपा के विरोध में चुनाव प्रचार न कर सकें। इन लोगों के आरोपों को पूरा सच तो नहीं माना जा सकता लेकिन इनमें अर्ध सत्य जरूर दिखता है क्योंकि भारतीय जनता पार्टी के किसी मुख्यमंत्री तो दूर किसी पूर्व मुख्यमंत्री या मंत्रियों के यहां भी केंद्रीय जांच एजेंसियों ने कोई नोटिस जारी नहीं किया है।जिन मुख्यमंत्रियों की छवि थोडी बेहतर है और जिनका राष्ट्रीय राजनीतिक कद काफी बड़ा है उनके मंत्रियों और परिजनों पर तड़ातड़ कार्यवाही हो रही हैं।

यह कहना उचित नहीं है कि जांच एजेंसियों की कार्यवाही पूरी तरह हवाई हैं। यह जरूर कह सकते हैं कि अधिकांश कार्यवाही चुनाव के पहले विरोधियों पर दबाव बढ़ाने के उद्देश्य से हो रही हैं। जिनके खिलाफ जांच एजेंसी कार्यवाही कर रही हैं निश्चित रूप से उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के सबूत हैं इसलिए जांच एजेंसियों पर केवल यही आरोप लगाया जा सकता है कि वे समभाव से कार्यवाही नहीं कर रही। भाजपा के वर्तमान और पूर्व मुख्यमंत्रियों और मंत्रियों पर भी विगत में संगीन आरोप लगते रहे हैं लेकिन उनके खिलाफ कोई जांच शुरू नहीं हुई। यहां तक कि सरकार से नजदीकी रखने वाले औद्योगिक घरानों यथा अडानी समूह पर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी गम्भीर आरोपों के बावजूद त्वरित जांच नहीं होना न केवल जांच एजेंसियों की कोताही दर्शाता है अपितु यह चिंता का विषय भी है। मध्य प्रदेश में विधान सभा चुनावों के दौरान तत्कालीन केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के पुत्र का भ्रष्टाचार का कथित वीडियो काफी चर्चित हुआ था लेकिन उस पर केंद्रीय जांच एजेंसियों की कोई कार्यवाही सामने नहीं आई। इसी तरह भाजपा के लंबे शासन के दौरान भ्रष्टाचार के बहुत से मामले चर्चित हुए लेकिन किसी मामले में केंद्रीय जांच एजेंसियों की तरफ से कोई कार्यवाही नहीं हुई। यहां तक कि असम के मुख्यमंत्री और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के खिलाफ खुद भाजपा संगीन आरोप लगाती थी लेकिन भाजपा से हाथ मिलाने के बाद उन पर कार्यवाही तो दूर किसी एजेंसी ने जांच के लिए समन तक नहीं भेजा। केंद्रीय जांच एजेंसियों का सत्ताधारी दल के विरोधियों के खिलाफ इकतरफा कार्यवाही करना नैतिक और संवैधानिक दृष्टि से बेहद गलत है। लोकतंत्र में जांच एजेंसियों की निष्पक्षता पर आंच आना सरकार की छवि को धूमिल करता है।

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