विचार / लेख

मालदीव का दूर होना भारत के लिए कितना बड़ा झटका?
12-Jan-2024 3:50 PM
मालदीव का दूर होना भारत के लिए कितना बड़ा झटका?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लक्षद्वीप में पर्यटन को बढ़ावा देने की पहल की तो यह सोशल मीडिया पर बहस विवाद के रूप में शुरू हो गई। इसका असर मालदीव से संबंधों पर सीधा पड़ा।

मालदीव में मोहम्मद मुइज़्ज़ू के राष्ट्रपति बनने के बाद से संबंधों में पहले से ही तनातनी थी।

पीएम मोदी को लेकर अपमानजनक टिप्पणी के कारण मालदीव में तीन मंत्रियों का निलंबन भी हुआ।

आज अंग्रेजी अखबार द हिन्दू का एक विश्लेषण पढि़ए।

भारत ने पूरे विवाद पर अपनी चिंता जताई और मालदीव में भारतीय पर्यटकों की बुकिंग्स रद्द होने की खबरें आने लगीं। सोशल मीडिया पर मालदीव का बहिष्कार ट्रेंड करने लगा।

मोहम्मद मुइज़्ज़ू ने मालदीव की सत्ता में आने से पहले चुनाव में ‘इंडिया आउट’ कैंपेन चलाया था।

हिन्द महासागर में मालदीव भारत का एक अहम समुद्री पड़ोसी देश है। मालदीव की भौगोलिक स्थिति भारत की रणनीति के लिहाज से काफी अहम है।

हिन्द महासागर में चीन की बढ़ती दिलचस्पी के कारण मालदीव की अहमियत भारत के लिए और बढ़ गई है। पिछले कई सालों से भारत और मालदीव के संबंध गहरे रहे हैं।

मालदीव में 2013 से 2018 के बीच अब्दुल्ला यामीन सरकार रही और इस सरकार की करीबी चीन से थी।

यामीन की सरकार के दौरान ही मालदीव चीन की महत्वाकांक्षी परियोजना बेल्ड एंड रोड इनिशिएटिव का हिस्सा बना था।

लेकिन 2018 में यामीन की सरकार गई और इब्राहिम मोहम्मद सोलिह के नेतृत्व में मालदीवियन डेमोक्रेटिक पार्टी (एमडीपी) की सरकार बनी तो भारत के साथ संबंधों में तेजी से सुधार हुआ।

इब्राहिम सोलिह ने अपनी विदेश नीति में भारत को तवज्जो देते हुए ‘इंडिया फस्र्ट’ की नीति अपनाई थी। सोलिह के नेतृत्व में मालदीव और भारत के बीच कई रक्षा और आर्थिक समझौते हुए।

सोलिह भारत के साथ गहरे संबंधों को लेकर प्रतिबद्ध रहे। लेकिन भारत के साथ बढ़ती करीबी को मालदीव के विपक्ष ने सोलिह सरकार के ख़िलाफ़ लोगों को गोलबंद करने का हथियार बनाया।

विपक्ष ने सोलिह की इंडिया फस्र्ट की नीति के खिलाफ इंडिया आउट कैंपेन चलाया।

सोलिह सरकार के आलोचकों ने कहना शुरू कर दिया कि भारत के साथ संबंधों में संप्रभुता को किनारे रखा जा रहा है और भारत के सैनिकों को मालदीव की जमीन पर रहने की अनुमति दी गई।

जब सोलिह सरकार ने भारत के साथ 2021 में उथुरु थिला फलहु (यूटीएफ) समझौते पर हस्ताक्षर किया तो विपक्ष और हमलावर हो गया। यह एक रक्षा समझौता था, जिसके तहत संयुक्त रूप से नेशनल डिफेंस फोर्स कोस्ट गार्ड हार्पर बनाना था।

मालदीव में पिछले साल राष्ट्रपति चुनाव हुआ और भारत विरोधी अभियान एक लोकप्रिय मुद्दा बन गया।

कुछ ही महीनों में मोहम्मद मुइज़्ज़ू विपक्ष के संयुक्त उम्मीदवार के रूप में उभरे क्योंकि कई मामलों के कारण पूर्व राष्ट्रपति यामीन चुनाव में हिस्सा नहीं ले सके। मुइज़्ज़ू राष्ट्रपति बनने से पहले मालदीव की राजधानी माले के मेयर थे।

मुइज़्ज़ू ने वोटरों को लुभाने के लिए ‘इंडिया आउट’ कैंपेन का नेतृत्व किया। मुइज़्ज़ू ने यह भी वादा किया था कि वह सत्ता में आएंगे तो मालदीव की जमीन से भारतीय सैनिकों को हटाएंगे और भारत से व्यापारिक रिश्तों को भी संतुलित करेंगे। ऐसा कहा जाता था कि सोलिह सरकार की ट्रेड पॉलिसी भारत की तरफ झुकी हुई थी।

मुइज़्ज़ू ने ख़ुद को चीन परस्त होने के आरोपों को ख़ारिज किया और खुद को मालदीव परस्त कहा। उन्होंने कहा कि उनकी सरकार मालदीव में भारत या चीन के अलावा किसी भी देश के सैनिकों की मौजूदगी की अनुमति नहीं देगी।

हालांकि चीन के साथ मजबूत संबंधों के संकेत वो दे चुके थे। मुइज़्ज़ू चाहते हैं कि उनकी सरकार को चीन से आर्थिक मदद का फायदा मिले।

पद पर आने के बाद मुइज़्ज़ू के फैसले

पिछले साल सितंबर में 54 फीसदी वोटों के साथ राष्ट्रपति चुनाव में मोहम्मद मुइज़्ज़ू को जीत मिली थी। नवंबर में मुइज़्ज़ू ने द्वीपीय देश मालदीव के आठवें राष्ट्रपति के रूप में शपथ ली थी।

मुइज़्ज़ू ने राष्ट्रपति बनते ही संकेत दे दिया कि उनकी विदेश नीति में भारत से दूरी बनाना प्राथमिकता में है। उन्होंने पहला विदेश दौरा तुर्की का किया। मुइज़्ज़ू ने एक परंपरा तोड़ी क्योंकि इससे पहले मालदीव का नया राष्ट्रपति पहला विदेशी दौरा भारत का करता था।

तुर्की के बाद मुइज़्ज़ू यूएई गए और अभी चीन के पाँच दिवसीय दौरे पर हैं। मुइज़्ज़ू ने चीन को अहम साझेदार बताया है और कई महत्वपूर्ण समझौते किए हैं।

मुइज़्ज़ू ने शपथ लेने के बाद राष्ट्र के नाम पहले संबोधन में मालदीव से भारतीय सैनिकों की वापसी की बात दोहराई। उन्होंने कहा कि मुल्क की स्वतंत्रता और संप्रभुता उनकी सरकार के लिए ज़्यादा जरूरी है।

मुइज़्ज़ू के संबोधन को भारत के मीडिया में हाथोंहाथ लिया गया। मुइज़्ज़ू के इस रुख के मायने निकाले गए कि उनकी सरकार इंडिया फस्र्ट की नीति छोड़ चुकी है और इंडिया आउट को लागू करने लगी है। भारत ने मालदीव की नई सरकार से कहा कि वह भारतीय सैनिकों की मौजूदगी को सही संदर्भ में देखे।

मोदी से पहली मुलाकात में उठाया मुद्दा

मुइज़्जू़ ने पिछले साल दिसंबर में यूएई में आयोजित कॉप-28 जलवायु सम्मेलन में पीएम मोदी से मुलाक़ात की थी। उन्होंने इस मुलाक़ात के बाद कहा था कि पीएम मोदी के सामने भारतीय सैनिकों की वापसी की बात उठाई थी और भारतीय प्रधानमंत्री उनकी बातों से सहमत थे। भारत सरकार का कहना है कि इस मुद्दे पर अभी बातचीत जारी है।

मालदीव की नई सरकार भारत के साथ किसी भी रक्षा सहयोग से अब बच रही है। मॉरिशस में पिछले महीने कोलंबो सिक्यॉरिटी कॉन्क्लेव आयोजित हुआ था और इसमें मालदीव ने अपने किसी भी प्रतिनिधि को नहीं भेजा था।

साल 2019 में मालदीव के समुद्री इलाक़े में सर्वे को लेकर भारत से समझौता हुआ था, जिसे मुइज्ज़़ू की सरकार ने खत्म कर दिया। इब्राहिम सोलिह के राष्ट्रपति रहते पीएम मोदी ने मालदीव का दौरा किया था, तभी हाइड्रोग्राफिक सर्वेइंग को लेकर एमओयू हुआ था। इसका मकसद समुद्री सुरक्षा में सहयोग बढ़ाना था। सोलिह सरकार इस समझौते को लेकर भी विपक्ष के निशाने पर रही थी। दिसंबर में मुइज़्ज़ू सरकार ने घोषणा कर दी कि यह समझौता अब आगे नहीं बढ़ेगा।

इन समझौते से अलग होने को मुइज़्ज़ू की चीन से बढ़ती कऱीबी के रूप में देखा जा रहा है। कहा जा रहा है कि मालदीव में जो रक्षा बढ़त भारत को सोलिह सरकार में मिली थी वो अब पूरी तरह से चीन के साथ शिफ़्ट हो गई है।

(द हिन्दू, और बीबीसी )

अन्य पोस्ट

Comments

chhattisgarh news

cg news

english newspaper in raipur

hindi newspaper in raipur
hindi news