विचार / लेख

राम नाम का दर्शन
13-Jan-2024 4:47 PM
राम नाम का दर्शन

समरेंद्र शर्मा

राम नाम की चर्चा कोई नई नहीं है। चर्चा भी होती रही है, राम नाम का जाप भी होता है, लेकिन राम नाम का जो दर्शन है, उसका अनुभव नहीं होता। क्योंकि हम राम नाम की चर्चा या जाप कर रहे हैं, तो हमारे जीवन में रामायण चलनी चाहिए। नहीं चल रही है, तो इसका आशय गोस्वामी जी बताते हैं कि अब भी बुद्धिरूपी अहिल्या पत्थर बनी हुई है। दुराशा की ताडक़ा मौजूद है और मन में मोह का रावण बना हुआ है।

धर्म-कर्म को लेकर भी असमंजस की स्थिति रहती है। दरअसल, जब हम अहंकारग्रस्त होकर धर्म के बारे में फैसला करते हैं, तो हम धर्म के केवल शब्दों को पकड़ते हैं और उसके भाव को भूल जाते हैं।

राम तो सदैव से हैं, लेकिन हमको कब पता कि राम हैं, जब राम जी प्रकट किए गए। उनकी लीलाओं का विस्तार हुआ और संसार की समस्याओं का समाधान हुआ। ऐसे ही जब तक हम राम जी को मन में प्रकट नहीं करेंगे। हमारे जीवन में रामायण सक्रिय नहीं हो सकती।

मौजूदा समय में राम नाम को लेकर सभी एकमत हैं। असल मतभेद एक-दूसरे से है। दोनों एक दूसरे की बात न सुनने तैयार हैं न ही समझने के लिए तैयार हैं। आवश्यकता ऐसे व्यक्ति की है, जो दोनों की बात को सुने, समझे और एक दूसरे को समझाए। राम नाम ही ऐसा माध्यम है, जो एक दूसरे को मिला सकता।

तुलसीदासजी और कबीरदासजी के ग्रंथों को पढऩे से लग सकता है कि दोनों की मान्यताएं एकदम अलग-अलग हैं, लेकिन राम नाम के संदर्भ में दोनों एक दिखाए पड़ते हैं। रूप और अरूप को लेकर विवाद हो सकता है, लेकिन नाम के जरिए दोनों को मिलाया जा सकता है।

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