विचार / लेख

दुनिया ही चली गई त्रेता में!
18-Jan-2024 6:56 PM
 दुनिया ही चली गई त्रेता में!

-स्मिता
लगता है आजकल मेरा रानीवास किसी पौराणिक नगरी में हो गया है। शाम 4 बजते ही पास के मंदिर के लाउडस्पीकर में पुजारी का पूजा पाठ , स्तुति अपने पूरे दमखम से सुनाई देने लगता है।

33 करोड़ देवी देवताओं में से 0.00000000001 प्रतिशत नाम की जयकार लगाना, आसपास जमा होने वाली भीड़ के आधार पर उसकी स्मृति तय करती है।

रात होते होते मेरे पड़ोसी के घर से किसी फिल्मी धुन में स्मार्ट तरीके से पिरोई गई धार्मिक शब्दावली के भजन हवा में लहराने लगती है।

लोकप्रिय गानों का उपयोग कर बाजार कैसे लोगो की धार्मिक भावनाओं को उद्वेलित कर सकता है, मैं यही पर फंस जाती हूं।

तब तक पड़ोसी का समूचा परिवार कैलाश पर्वत जाकर कैलाशपति की चरण वंदना कर चुका होता है उनके मानसिक तरंगों की गति 5 जी से भी अधिक स्पीड से चलती है।
देवों के देव के एक तथाकथित एजेंट की सरस वाणी हमारे ऑफिस में भी उनके भक्तजन अपने मोबाइल में गाहे बगाहे बजा देते है।

मुझ पापी के कान में भी उनके अद्भुत आख्यान सुनाई देते है । पुण्य कमाने की लालसा में गौर करती हूं तो अहिल्या का इंद्र के गौतम ऋषि के छद्म रूप के साथ संसर्ग की कहानी का प्रसंग चल रहा होता है।

कथावाचक इतने भाव-विभोर होकर रसमय तरीके से व्याख्यान दे रहे थे मानो उनकी आत्मा इंद्र के शरीर में प्रवेश कर गई हो।

इतने ज्ञान की बातें सुनकर मेरी वैतरणी पार होने ही वाली थी कि अचानक खबर पर नजर चले जाती है , कि बागेश्वर धाम की कलश यात्रा गुढिय़ारी में निकल पड़ी है। उनके मुखमंडल के तेज से मेरी आंखे चौंधियाने लगी है। अब उनके चरणों तक पहुंच कैसे पाऊं।

इतने पुण्यप्रताप आत्मा इतने शक्तिमान हैं कि उनके ओजस्वी वचन सुनकर जनता अमीर गरीबी की खाई , 75त्न प्रतिशत के संसाधन 1त्न के पास, बेरोजगारी, बढ़ते अपराध, जोशीमठ, आदिवासियों के प्रति हिंसा, पर्यावरण असंतुलन सब भूलकर भक्तिरस में सराबोर है।

बहुतों के स्टेटस में कलश लेकर चलने की होड़ लगी हुई है, मुझसे एक प्राणी 22 तारीख के लिए 5000 प्रसाद वितरण करने के नाम पर चंदा मांगते है। मैं मांडवाली करके 1000 में तय करती हूं। विशिष्टता बोध के लिए इतनी रकम काफी थी।

सब ओर तैयारी चल रही है दवाई दुकान वाले झंडा बेच रहे है नाश्ते वाले सुबह 5 बजे उठकर पोहा बनाने की तैयारी कर रहे हैं। कबीर के राम से इतर, राम बाजार है, राम अहंकार है, राम विशिष्ट होने का बोध है।

और मैं तुच्छ प्राणी क्रेडिट डेबिट, एटीएम आहरण, ऋण और डिपॉजिट का टारगेट, बोनस का भुगतान के बीच रखे दो भागवत कथा के कार्ड और एक अखंड रामायण के निमंत्रण के बीच अनिर्णय की स्थिति में बैठी हूं।

असमंजस में हलक सूख गया है, भृत्य को पानी के लिए आवाज लगाती हूं तो पता चलता है कि वह एकादशी उद्यापन के लिए जल्दी घर चली गई है।

कबीर ने कहा था-
सकल हंस में राम बिराजे ,
राम बिना कोई धाम नहीं।

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