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अयोध्या के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह से पहले पीएम मोदी का दक्षिण भारत दौरा, क्या है वजह
21-Jan-2024 9:18 PM
अयोध्या के प्राण-प्रतिष्ठा समारोह से पहले पीएम मोदी का दक्षिण भारत दौरा, क्या है वजह

-इमरान कुरैशी


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस वक्त पांच दक्षिणी राज्यों के मंदिरों में पूजा-पाठ और बैठकें कर रहे हैं, जिसे लेकर कई सवाल पूछे जा रहे हैं।

सबसे बड़ा सवाल इसमें यह है कि जब पूरा देश अयोध्या में राम मंदिर और वहां होने वाली प्राण प्रतिष्ठा की तरफ देख रहा है तो ऐसे समय में प्रधानमंत्री दक्षिण भारत में क्या कर रहे हैं?

प्रधानमंत्री ने दो हफ्ते के अंदर दो बार केरल का दौरा किया है। इस दौरान उन्होंने मंदिरों में पूजा-पाठ किया। इसके अलावा उन्होंने महिलाओं की सबसे बड़ी सभा में से एक को संबोधित किया और पार्टी के कार्यकर्ताओं को यह समझाया कि वे केंद्रीय योजनाओं का लाभ लेने वाले लोगों के बीच ‘मोदी गारंटी’ का प्रचार किस तरह करें और उसे लोकप्रिय कैसे बनाएं।

उन्होंने केरल दौरे में गुरुवयूर और त्रिप्रयार श्री रामास्वामी मंदिर और आंध्र प्रदेश दौरे के समय लेपाक्षी मंदिर में पूजा-पाठ किया।

लेपाक्षी मंदिर को लेकर मान्यता है कि जब पौराणिक पक्षी जटायु पर रावण ने हमला किया था, तो वह यहां गिर गया था।

वीकेंड पर पीएम मोदी ने प्रभु श्री राम के पूर्वज माने जाने वाले श्री रंगनाथस्वामी के श्रीरंगम मंदिर में पूजा-अर्चना की। इसके बाद वे धनुषकोडी के श्री कोथंड्रामा स्वामी मंदिर और प्रभु श्रीराम के पैरों के निशान को समर्पित रामनाथस्वामी मंदिर और रामर पथम मंदिर में पूजा करेंगे।

इसके बाद वे अरिचल मुनाई जाएंगे, पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जहां राम सेतु बनाया गया था। पीएम मोदी उस जगह पर डुबकी भी लगाएंगे, जहां बंगाल की खाड़ी और हिंद महासागर का मिलन होता है।

सोमवार, 22 जनवरी को अयोध्या में निर्माणाधीन राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा से 11 दिन पहले से पीएम मोदी उपवास रख रहे हैं।

उपवास रखने के बाद से पीएम मोदी जो कर रहे हैं, उस पर उनकी पार्टी, विपक्षी नेता और राजनीतिक पंडित बहुत बारीक नजर रख रहे हैं। राजनीतिक हलकों में इसे अलग-अलग नजरिए से देखा जा रहा है।

पीएम मोदी ने पहले ही 2024 का लोकसभा अभियान शुरू कर दिया है। जानकारों की राय है कि बीजेपी उत्तरी राज्यों में चुनाव परिणाम को लेकर आशंकित है। पार्टी के सामने कर्नाटक की 28 में से 25 सीटें और तेलंगाना में चार सीटें बरकरार रखने की चुनौती है।

बीजेपी ने साल 2019 के लोकसभा चुनाव में तेलंगाना की 17 सीटों में से चार पर जीत हासिल की थी। पार्टी, कर्नाटक और तेलंगाना के अलावा केरल और तमिलनाडु जैसे दक्षिणी राज्यों में अपना आधार मजबूत करना चाहती है।

बात अगर आंध्र प्रदेश की हो, तो यहां बीजेपी के सामने कोई बड़ी चुनौती नहीं है। पिछले लोकसभा चुनाव में एक प्रतिशत से भी कम वोट पाने वाली बीजेपी को राज्य के दोनों मुख्य क्षेत्रीय दल अपने पक्ष में रखने के लिए प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं।

पिछले दशक के अनुभव के आधार पर मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस सरकार और न ही उसके कट्टर प्रतिद्वंद्वी टीडीपी के नेता चंद्रबाबू नायडू, बीजेपी के सामने कोई मुश्किल खड़ी कर रहे हैं।

विंध्याचल पहाड़ पार करने की चुनौती
जिस तरीके से प्रधानमंत्री, केरल में अपने पसंदीदा उम्मीदवार और अभिनेता सुरेश गोपी की बेटी की शादी में शामिल हुए और प्रभु श्रीराम से जुड़े मंदिरों में पूजा-पाठ किया, उसे लेकर राजनीतिक विश्लेषक इस तरफ इशारा कर रहे हैं कि बीजेपी दो बार की सत्ता विरोधी लहर को भेदने की कोशिश कर रही है।

राजनीतिक विश्लेषक डॉ. संदीप शास्त्री ने बीबीसी हिंदी से कहा, ‘हिंदी भाषी क्षेत्र में अयोध्या को लेकर जिस तरीके की लहर पैदा करने की उम्मीद वे लोग कर रहे हैं उसे देखकर ऐसा लगता है कि पार्टी और प्रधानमंत्री को यह अहसास हो गया है कि भावनात्मक रूप से विंध्याचल काफी ऊंचा पहाड़ है जिसे पार करना आसान नहीं हैं।’
कर्नाटक जैसे राज्य में बीजेपी, लिंगायतों, अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) और अनुसूचित जाति के एक वर्ग को अपने साथ लेकर आगे बढऩे में सक्षम रही है।

बीजेपी ने साल 2019 के लोकसभा चुनाव में तेलंगाना में चार सीटें जीतकर सभी को हैरान कर दिया था, लेकिन मई में हुए विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने कांग्रेस के हाथों अपनी जमीन गंवा दी। इस चुनाव में बीजेपी को भारत राष्ट्र समिति (तेलंगाना राष्ट्र समिति) का मुख्य प्रतिद्वंद्वी माना जा रहा था।

चलेगी ‘मोदी गारंटी’ ?
केरल के राजनीतिक विश्लेषक एमजी राधाकृष्णन ने बीबीसी हिंदी से कहा, ‘यह बहुत साफ है कि वे चाहते हैं कि दक्षिण भारत भी मोदी मैजिक और मोदी गारंटी से आकर्षित हो।’

‘केरल जैसे राज्य में एक सीट भी अगर बीजेपी को मिलती है, तो इसका मतलब है कि भाजपा अब भारत के इस हिस्से में अछूत नहीं है। यह एक हताशा से भरा कदम है, क्योंकि सबरीमाला जैसे मामले को लेकर भी पार्टी का लोगों के बीच कोई प्रभाव नहीं पड़ा।’ लेकिन चेन्नई में रहने वाले राजनीतिक विश्लेषक सुरेश कुमार, दक्षिणी राज्यों पर पीएम मोदी के फोकस को अलग नजरिए से देखते हैं।

वे कहते हैं, ‘उत्तर में यह साफ है कि इससे फायदा हुआ है। उन्हें राम मंदिर निर्माण के अलावा कुछ करने की जरूरत नहीं है, लेकिन दक्षिण में कर्नाटक को छोडक़र राम मंदिर आंदोलन और दक्षिण के बीच कोई संबंध नहीं है।’

उन्होंने कहा, ‘आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, केरल और तमिलनाडु जैसे अन्य राज्यों में इसे लेकर लोगों का बहुत कम जुड़ाव है।’

दक्षिण भारत में प्रभु श्रीराम को कैसे देखा जाता है?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस अभियान के कई अन्य पहलू भी हैं। इनमें सबसे अहम यह है कि प्रभु श्रीराम को उत्तरी राज्यों की तुलना में दक्षिण राज्यों में किस तरह देखा जाता है।

राजनीतिक विश्लेषक नागराज गली कहते हैं, ‘इसमें कोई शक नहीं है कि भगवान राम, दक्षिण में भी पूजनीय हैं, लेकिन उन्हें देखने के तरीके में फर्क है।’

वे कहते हैं, ‘दक्षिण राज्यों में भगवान राम अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि के लिए जाने जाते हैं।’

नागराज, गोलकुंडा में कुतुब शाही राजवंश के अबुल हसन कुतुब शाह उर्फ ताना शाह की कहानी सुनाते हैं।

उनके एक रेवेन्यू इंस्पेक्टर भद्राचल रामदासु को 1662 ई। में भगवान राम के लिए एक मंदिर बनाने के लिए लोगों से धन इक_ा करने के लिए जेल में डाल दिया गया था।
कुछ सालों के बाद रामदासु को ताना शाह ने जेल से रिहा कर दिया, क्योंकि भगवान राम ने सपने में आकर उनसे कहा था कि रामदासु ने उनके (भगवान राम) के प्रति आस्था के कारण सार्वजनिक तौर पर धन जमा किया था। इस सपने के बाद ताना शाह ने रामदासु को तुरंत रिहा कर दिया और भद्राचलम राम मंदिर बनाने में उनकी मदद की।

नागराज कहते हैं, ‘तिरुपति के बालाजी मंदिर के मामले में भी मुस्लिम समुदाय के साथ ऐसा ही जुड़ाव है। उनकी तीसरी पत्नी एक मुस्लिम महिला थी।’ (बाकी पेज 8 पर)

बीजेपी का क्या है लक्ष्य?
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक बीजेपी के सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि जातीय पहचान, धार्मिक पहचान को चैलेंज कर रही है।

नागराज कहते हैं, ‘यही कारण है कि भाजपा के लिए दक्षिण में बड़ी सफलता हासिल करना मुश्किल होगा, हालांकि हम इस संभावना से इनकार नहीं कर सकते कि इस बार तेलंगाना में भाजपा को फायदा होगा।’

वे कहते हैं, ‘मुकाबला सबसे ज्यादा कांग्रेस और भाजपा के बीच होने की संभावना है क्योंकि विधानसभा चुनावों में हार के बाद बीआरएस की स्थिति कमजोर हो रही है।’
सुरेश कुमार कहते हैं, ‘उनका लक्ष्य आगामी लोकसभा चुनाव नहीं हैं। उनकी नजर 2026 के विधानसभा चुनाव पर है, लेकिन हाल के हफ्ते में डीएमके ने जो कदम बढ़ाएं हैं उससे चीजें बदल गई हैं।’

वे कहते हैं, ‘अब वह ये कह रही है कि वो हिंदुओं और भगवान राम की पूजा के खिलाफ नहीं है। भाजपा का मकसद एडप्पादी पलानीस्वामी के नेतृत्व वाली एआईएडीएमके के सपोर्ट बेस पर कब्जा करना है, जो राज्य में अपनी स्थिति मजबूत नहीं कर पा रहे हैं।’ उनका कहना है, ‘अहम पहलू यह है कि भाजपा को टीटीवी दिनाकरन के साथ भी गठबंधन करने में कोई झिझक नहीं है, जो प्रवर्तन निदेशालय के मामलों का सामना कर रहे हैं।’

दलित इंटेलक्चुअल कलेक्टिव, चेन्नई के संयोजक प्रोफ़ेसर सी। लक्ष्मणन कहते हैं, ‘उनको (प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी) इस बात का भरोसा नहीं है कि अकेले यूपी चुनाव में बीजेपी को बहुत ज्यादा बढ़त बनाने में मदद करेगा। अयोध्या में राममंदिर की प्राण प्रतिष्ठा के बाद भी बीजेपी और आरएसएस को और ज्यादा समर्थन की जरूरत पड़ेगी क्योंकि इस बार उन्हें एकजुट विपक्ष का सामना करना होगा। पिछले दो चुनावों में उनका इस तरह के विपक्ष से सामना नहीं हुआ था। प्रधानमंत्री धार्मिक आधार पर लोगों की गोलबंदी की पूरी कोशिश करेंगे।’

मोदी फैक्टर
पिछले दो हफ्तों में प्रधानमंत्री के केरल दौरा का फोकस त्रिशूर पर था। राजनीतिक विश्लेषक राधाकृष्णन कहते हैं, ‘यह एक बहुत ही योजनाबद्ध अभियान है। त्रिशूर (लोकसभा क्षेत्र) ईसाई समुदाय का गढ़ है। यहां पर भगवान राम का नाम लेने की जरूरत नहीं है। यह मोदी फैक्टर है, जो सोने पर सुहागे का काम करेगा।’

वे कहते हैं, ‘मोदी फैक्टर के जरिए अतिरिक्त धक्का देने की कोशिश की जा रही है। त्रिशूर में बीजेपी के लिए फायदा यह है कि इस्लामोफोबिक अभियान के कारण ईसाई समुदाय बंटा हुआ है। दूसरी तरफ हाल के सालों में मुसलमानों के समर्थन के कारण सीपीएम तेजी से बढ़ी है। बेशक हिंदू सीपीएम का समर्थन करते हैं। हालांकि भाजपा की सफलता से केरल में राजनीतिक समीकरण नहीं बदलेंगे।’

कर्नाटक में 2019 के चुनाव में बीजेपी ने कांग्रेस को महज एक सीट पर समेट दिया और अपने चरम पर पहुंच गई। पार्टी एक बार फिर मोदी की अपील पर निर्भर रहेगी लेकिन डॉ. शास्त्री के अनुसार सीटों की मात्रा कुछ कारकों पर निर्भर करेगी।

वे कहते हैं कि इसके लिए चार कारण अहम हैं। वे बताते हैं, ‘यह इस बात पर निर्भर करता है कि कांग्रेस अपनी गारंटी पूरा किए जाने को कितनी अच्छी तरह से लोगों तक पहुंचा पाती है। महिला मतदाताओं की धारणा, मुफ्त बस यात्रा और परिवार की महिला मुखिया को पैसे मिलने से जुड़ी हुई है।’ उनका कहना हैं, ‘यह जरूरी है कि कांग्रेस कैसे एकजुट होकर प्रदर्शन करती है और भाजपा कैसे अपने आंतरिक विरोधाभासों को दूर करती है और क्या मोदी फैक्टर भाजपा की आंतरिक कलह को दूर कर सकता है।’

डॉ. शास्त्री सीएसडीएस-लोकनीति के साल 2014 लोकसभा चुनाव के अध्ययन का जिक्र करते हैं, जो विधानसभा चुनाव के एक साल बाद हुआ था।

वे कहते हैं, ‘हमने लोगों से पूछा कि वे सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली सरकार के बारे में क्या महसूस करते हैं? 90 प्रतिशत लोगों ने कहा कि उन्होंने अच्छा प्रदर्शन किया है। कई राज्यों में बीजेपी को वोट देने वालों में से कई अधिक प्रतिशत लोगों ने कहा कि अगर मोदी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नहीं होते तो वे बीजेपी को वोट नहीं करते।’
उन्होंने कहा, ‘कर्नाटक में भाजपा को वोट देने वाले 10 में से 6 लोगों ने कहा कि अगर मोदी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार नहीं होते तो वे पार्टी को लेकर अपनी पसंद बदल देते।’

इस बार फिर विधानसभा चुनाव के बाद लोकसभा चुनाव होना है, जिसे कांग्रेस ने भारी बहुमत से जीता है। क्या इस बार चीजें बदलेंगी। यह भी एक बड़ा सवाल है। (bbc.com/hindi)

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