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14 में से 12 बरस छत्तीसगढ़ में गुजारे थे राम ने
22-Jan-2024 3:00 PM
14 में से 12 बरस छत्तीसगढ़ में गुजारे थे राम ने

 घनाराम साहू आचार्य

छत्तीसगढ़ में प्रचलित लोक आस्था के अनुसार श्रीराम 14 वर्ष के वनवास काल में से 12 वर्ष सरगुजा से बस्तर तक बिताए थे । श्रीराम की माता कौशल्या ही छत्तीसगढ़ याने दक्षिण कोसल के राजा भानुमंत की बेटी भानुमति थी।

श्रीराम के प्रसंग को लेकर आज स्व डॉ मन्नूलाल यदु जी का स्मरण हो रहा है जिन्होंने श्री श्याम बैस, स्व डॉ हेमू यदु प्रभृति विद्वान रामभक्तों के साथ छत्तीसगढ़ में प्रचलित सभी जनश्रुतियों को संकलित और प्रकाशित कर अविस्मरणीय कार्य किया है।

श्री संगम राजिम धाम क्षेत्र में प्रचलित किंवदंतियों के अनुसार श्रीराम यहां दो बार आए थे । प्रथम बार वनवास काल में लोमस ऋषि आश्रम में चौमासा बिताए थे तब माता सीता ने संगम में बालू से शिवलिंग बनाकर पूजन किया था । कहा जाता है कि उसी स्थान पर शिव जी का भव्य मंदिर कुलेश्वर/कोल्हेश्वर स्थापित है । दूसरी बार अयोध्या में राजतिलक होने के बाद अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा छुड़ाने आए थे । प्रचलित कहानी के अनुसार अश्वमेध यज्ञ का श्याम कर्ण घोड़ा की रक्षा के लिए शत्रुघ्न को तैनात किया गया था।

घोड़ा विचरण करते हुए महानदी के तट पर पहुंचा तब यहां के राजा राजीव लोचन /राजू लोचन ने उसे पकडक़र तपस्यारत कर्दम ऋषि आश्रम में बांध दिया था । घोड़ा को आश्रम में बंधा देख शत्रुघ्न की सेना ने ऋषि आश्रम में आक्रमण कर दिया । इससे ऋषि का ध्यान टूटा और क्रोधित होकर दिव्य शक्ति से शत्रुघ्न को सेना सहित भस्म कर दिया।

शत्रुघ्न के भस्म होने की सूचना अयोध्या पहुंची तब श्रीराम आए। राजा राजीव लोचन श्रीराम का शरणागत होकर अभयदान प्राप्त कर लिया। श्रीराम कर्दम ऋषि आश्रम जाकर ऋषि को प्रसन्न किए । ऋषि प्रसन्न होकर शत्रुघ्न को सेना सहित पुनर्जीवित कर दिए । श्रीराम अयोध्या लौटने के पूर्व राजा राजीव लोचन को आदेश दिए कि शिव जी और विष्णु जी के पवित्र संगम स्थली में उनका एक मंदिर का निर्माण करे और प्रतिवर्ष मकर संक्रांति के दिन सामूहिक भोज उत्सव का आयोजन करे। जो मंदिर बनेगा वह तुम्हारे नाम पर याने ‘राजीव लोचन मंदिर’ कहलाएगा। श्रीराम के आदेशानुसार राजा ने भव्य मंदिर का निर्माण किया और प्रतिवर्ष महाभोज का आयोजन होने लगा जिसमें बिना किसी भेदभाव के सभी वर्ण और जाति के लोग महाप्रसाद प्राप्त करने लगे । इतिहासकार डॉ रमेंद्रनाथ मिश्र यह परंपरा मराठा काल तक जारी रही और पुरी (ओडिशा) में शांति स्थापित होने के बाद वहां स्थानांतरित हुई थी ।

क्षेत्र में प्रचलित कहानी के अनुसार सिरपुर के निकट तुरतुरिया में महर्षि वाल्मीकि का आश्रम था जहां माता सीता को निर्वासन काल में आश्रय मिला और यहीं कुश और लव का जन्म हुआ था । कुश और लव ने यहीं अश्वमेध यज्ञ के घोड़ा को पकडक़र श्रीराम से युद्ध किया था ।

यद्यपि इतिहासकार और पुरातत्ववेत्ता इन कहानियों को खारिज करते हैं फिर भी लोकमानस में वनवासी श्रीराम की अविस्मरणीय छवि बसी हुई है । इसी तरह माता कौशल्या के जन्म स्थली के रूप में कोसला, केसला, कोसिर सहित चंदखुरी भी लोक मान्यता में स्थापित हो चुका है और सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ राम मय है ।

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