विचार / लेख
पुष्य मित्र
तस्य चैवंप्रभावस्य धर्मज्ञस्य महात्मन:।
सुतार्थं तप्यमानस्य नासीद् वंशकर: सुत:।।
कल जब पूरा देश रामजन्मभूमि कही जाने वाली अयोध्या में हो रहे राममंदिर के प्राण-प्रतिष्ठा के आयोजन में व्यस्त था, तब मैंने वाल्मिकी रचित रामायण पढऩा शुरू किया। मकसद सिफ$ इतना था कि जिस राम को सभी आदर्श और मर्यादा पुरुषोत्तम मानते हैं, उनके जीवन को जानना और समझना कि उनके जीवन की कथा से हम क्या सीख सकते हैं। और गीताप्रेस वाली वाल्मिकी रामायण में रामकथा की जब शुरुआत हुई तो यह श्लोक मिला।
नीचे इस श्लोक का हिंदी में अर्थ बताया गया था-सभी धर्मों को जानने वाले महात्मा राजा दशरथ प्रभावशाली होने के बावजूद पुत्र के लिए चिंतित रहते थे। उनके वंश को चलाने वाला कोई नहीं था।
आगे ऐसा ही एक श्लोक मिला, जिसमें लिखा था- वे सदा पुत्र के लिए विलाप करते रहते थे।
तो क्या तीन रानियों के पति दशरथ निस्संतान थे? सहज यह प्रश्न मेरे मन में उठा। अगले ही कुछ पन्नों में इसका उत्तर मिल गया। राजा दशरथ के सबसे करीबी मंत्री सुमंत ने उन्हें याद दिलाया कि राजा दशरथ की एक पुत्री थी शांता। जिसे उन्होंने अपने मित्र अंग नरेश रोमपाद को गोद दे दिया था। रोमपाद उनके साढ़ू भी थे, वे कौश्लया की बहन वर्षिणी के पति थे। वे निस्संतान थे, इसलिए दशरथ और कौशल्या ने अपनी पुत्री शांता को उन्हें गोद दे दिया था।
सहज ही शांता की कथा जानने की उत्कंठा मन में उठी। वाल्मिकी रामायण में इसका जिक्र नहीं था कि शांता का जन्म कैसे हुआ और वे कितने वर्ष तक दशरथ और कौशल्या के साथ रहीं। मगर दक्षिण के कुछ रामायणों में इसका जिक्र था कि शांता का जब जन्म हुआ तो कोशल के राज्य में भीषण अकाल था और यह अकाल लंबे समय तक रहा। राजा दशरथ को लगा कि उनकी इसी कन्या की वजह से अकाल पड़ा। इसलिए उन्होंने शांता को रोमपाद को गोद दे दिया।
शांता को एक विदुषी बालिका के रूप में वाल्मिकी रामायण में बताया गया है। वे वेदों की ज्ञाता थीं। मगर यह कथा भी वाल्मीकि रामायण में मिलती है कि जिस शांता को अकाल के भय से अयोध्या ने अंग देश भेज दिया था, उसी शांता ने अंग देश को अकाल से मुक्ति दिलाई। अंग देश में जब बारिश नहीं होने की वजह से सूखा पड़ा तो रोमपाद ने श्रृंगि ऋषि को अपने राज्य में आमंत्रित किया।
वाल्मीकि रामायण में श्रृंगि ऋषि को अंग देश में लाने की दिलचस्प कथा है। कभी स्त्रियों के संपर्क में नहीं आये ऋषि श्रृंगि को लाने के लिए उन्होंने वेश्याएं भेजीं। उन वेश्याओं के रूप से मोहित होकर श्रृंगि ऋषि अंग देश आये और वहां शांता को कहा गया कि वे उनसे विवाह कर लें। श्रृंगि ऋषि के अंग देश आने से वहां का सूखा खत्म हो गया।
यह तो राम की बड़ी बहन शांता की कहानी थी। इस कहानी को सुमंत दशरथ को बताते हैं और कहते हैं कि उनके जो दामाद हैं श्रृंगि ऋषि वे अगर अयोध्या आकर पुत्रेष्टि यज्ञ करायें तो उन्हें पुत्र(संतान नहीं पुत्र) की प्राप्ति हो सकती है।
यह जानकर जिस शांता को उन्होंने अपशकुनी मानकर राज्य से बाहर भेज दिया था, उसे उसके पति के साथ ससम्मान बुलाया और दोनों पति-पत्नी को पूरे सम्मान के साथ अयोध्या के राजमहल में रखा, तब तक, जब तक पुत्रष्टि यज्ञ न हो गया। फिर अच्छी विदाई देकर विदा भी किया। इसके बाद शांता अपने असल मायके कब आई इसका विवरण नहीं मिलता। राम के जन्म के वक्त, राम के विवाह के वक्त या फिर राम के राज्याभिषेक के वक्त ही आई हो। अगर किसी को पता हो तो जरूर बतायें। मुझे ऐसा कोई विवरण नहीं मिला।
बहरहाल कहानी आगे बढ़ती है। दशरथ पुत्र के लिए पहले अश्वमेध यज्ञ कराते हैं। फिर पुत्रेष्टि यज्ञ। इस कथा में अश्वमेध यज्ञ का पूरा विवरण है। पहले अश्व पूरी दुनिया में घूमता है। फिर जब लौट कर आता है तो ‘कौशल्या सुस्थिर चित्त से धर्मपालन की इच्छा करते हुए अश्व के निकट एक रात निवास करती हैं।’ फिर अश्व के गूदे को पकाया जाता है (जाहिर है अश्व की बलि के बाद) और फिर उसकी आहुति दी जाती है।
उसके बाद पुत्रेष्टि यज्ञ होता है। जिसमें एक देवपुरुष खीर की एक प्याली दशरथ को देते हैं और दशरथ उस खीर को अपनी रानियों को देते हैं। फिर रानियां गर्भवती हो जाती हैं।
पुत्र पाने के इस यज्ञ में पहले दशरथ अपना पूरा राज्य ऋषियों को बांट देते हैं, मगर ऋषि कहते हैं, हमें राजपाट से क्या लेना। आप हमें सामग्री दान करें। फिर दशरथ दस लाख गायें, दस करोड़ सोने की मुद्राएं और 40 करोड़ चांदी के सिक्के इन ब्राह्मणों को दान देते हैं। बेटे के लिए वे क्या नहीं करते हैं। यह वह कथा है जो राम के जन्म से जुड़ी है, वाल्मीकि रामायण के मुताबिक।
इस कथा ने मेरे मन में एक संशय जरूर उत्पन्न कर दिया। राम के जन्म की इस कथा से भारतीय समाज ने आखिर क्या सीखा होगा? यही न कि जीवन में पुत्र सबसे महत्वपूर्ण होता है। पुत्रियों का कोई अर्थ नहीं होता। उनका होना न होना बराबर है। हां, वे तभी महत्वपूर्ण हैं, जब उनसे अपना कोई मतलब सधता हो। मुझे लगता है कि भारतीय समाज में बेटे और बेटियों के बीच जो भेदभाव गहरे तक समाया है, उसमें राम के जन्म की इस कथा की बड़ी भूमिका रही होगी।
राम कथा को लेकर एक भाव हमेशा से मेरे मन में रही है। यह कहानी भारतीय समाज में पुरुषसत्ता या पितृसत्ता को मजबूत करने के लिए रची गयी होगी। और यह कथा इस बात को सही साबित करती है। हालांकि मैं इसे आगे और पढ़ूंगा। मैं चाहूंगा कि राम के चरित में मुझे वैसा आदर्श मिल जाये, जो मुझे बुद्ध और गांधी जैसे नायकों में कई बार मिल जाता है। अगर मिला तो वह भी लिखूंगा। फिलहाल तो निराश ही हूं।