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इंसानों के अलावा अन्य जीवों में चेतना होती है, नए शोध क्या कहते हैं?
19-Jun-2024 7:55 PM
इंसानों के अलावा अन्य जीवों में चेतना होती है, नए शोध क्या कहते हैं?

- पल्लब घोष

इवोल्यूशन (क्रमिक विकास) के सिद्धांत के चलते चार्ल्स डार्विन की इज़्ज़त वैज्ञानिकों के बीच भगवान जैसी रही है.

लेकिन इंसानों की तरह जीवों में भी चेतना वाले उनके विचार को लंबे समय से कोई ख़ास तवज्जो नहीं मिली है.

डार्विन ने लिखा था, "सुख, दर्द, खुशी और दुख को महसूस करने की क्षमता में इंसानों और जीवों के बीच कोई बुनियादी अंतर नहीं है."

लेकिन जानवर सोचते और महसूस करते हैं उनके इस सुझाव को, अधिकांश एनिमल बिहैवियर एक्सपर्ट को छोड़कर, बहुत से लोगों के बीच विज्ञान से उलट माना जाता रहा.

उनकी प्रतिक्रियाओं के आधार पर चेतना को जीवों से जोड़ने को 'पाप' समझा जाता था.

तर्क ये दिया गया कि मानवीय गुणों और भावनाओं को जीवों पर लागू करने का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं था और न ही जीवों के दिमाग में क्या चल रहा है, इसकी जांच करने का कोई तरीका था.

लेकिन अगर, अपने आस पास के माहौल को महसूस करने और उसे समझने की जीवों की क्षमता के नए तथ्य सामने आएं तो क्या इसका मतलब होगा कि वो चेतनशील हैं?

हम जानते हैं कि मधुमक्खियां गिन सकती हैं, इंसानी चेहरे पहचान सकती हैं और कुछ तरीक़े इस्तेमाल कर सकती हैं.

लंदन की क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी में प्रोफ़ेसर, लार्स छिट्टका ने मधुमख्खियों की बुद्धिमत्ता पर कई बड़े अध्ययन किए हैं.

वो कहते हैं, "अगर मधुमक्खियां बुद्धिमान हैं, तो वे सोचने के साथ महसूस कर सकती हैं, जोकि चेतना की बुनियादी इकाई है."

प्रोफ़ेसर छिट्टका के प्रयोगों ने दिखाया है कि किसी सदमे वाली दुर्घटना के बाद मधु मक्खियां अपने व्यवहार में बदलाव लाती हैं और ऐसा लगा कि वो खेलने, लकड़ी के छोटे से गोले को रोल करने में सक्षम हैं. प्रोफ़ेसर का कहना है कि वे इसे एक एक्टिविटी के रूप में आनंद लेती दिखीं.

इन नतीजों ने एनिमल रिसर्च में जाने माने और रसूखदार वैज्ञानिक को और स्पष्टता से कुछ कहने को प्रेरित कि.

उन्होंने कहा, "सभी तथ्यों को देखते हुए यह बहुत संभव है कि मुधमक्खियां चेतनशील हों."

चेतना क्या है?
लंदन स्कूल ऑफ़ इकोनॉमिक्स के प्रोफ़ेसर जोनाथन बर्च कहते हैं, "हमारे पास ऐसे रिसर्चर हैं जो जीवों की चेतना को लेकर सवाल पूछने की हिम्मत करने लगे हैं और इस बारे में सोचने लगे हैं कि उनकी रिसर्च कैसे इस सवाल का जवाब दे सकती है."

हालांकि यह कोई नई चीज़ नहीं है, बल्कि कई सारे तथ्यों ने रिसर्चरों में इस विचार को बढ़ावा दिया.

जो कुछ पता चला है वो जीवों की चेतना का कोई ठोस सबूत तो नहीं है लेकिन अगर इन्हें एकसाथ मिलाया जाए तो, प्रो. बर्च के अनुसार, इसकी प्रबल संभावना बनती है कि जीवों में चेतनशीलता की क्षमता होती है.

यह बात सिर्फ वानरों और डॉल्फ़िन में ही नहीं होती, जोकि विकासक्रम में अधिक विकसित हैं. आगे के रिसर्च के लिए फंडिंग जुटाने की कोशिश कर रहे एक ग्रुप के अनुसार, यह सांप, ऑक्टोपस, केकड़ा, मधुमक्खी और संभवतः फ़्रूट फ्लाईज़ जैसे साधारण जीवों पर भी लागू होता है.

लेकिन चेतना क्या है, इस पर वैज्ञानिक एकमत नहीं हैं.

फ़्रांसीसी दार्शनिक रेने देकार्त ने 17वीं सदी में इसे समझने की कोशिश की थी.

उन्होंने कहा था: आई थिंक, देयरफ़ोर आइ एम यानी मैं सोचता हूं, इसलिए मैं हूं."

उन्होंने ये भी कहा था, "केवल भाषा ही शरीर में छिपे विचार का निश्चित संकेत है."

चेतना की परिभाषा पर अध्ययन करने वाले इंग्लैंड की ससेक्स यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर अनिल सेठ ने बीबीसी से कहा, "भाषा, बुद्धिमत्ता और चेतना की यह अपवित्र तिकड़ी देकार्त तक जाती है."

यह 'अपवित्र तिकड़ी' 20वीं सदी में सामने आए व्यवहारवाद आंदोलन के केंद्र में थी.

इसके अनुसार, विचार और अहसास को वैज्ञानिक तरीकों से नहीं मापा जा सकता और व्यवहार की पड़ताल करते समय इसे नज़रअंदाज़ किया जाना चाहिए.

अधिकांश एनिमल बिहैवियर एक्सपर्ट इसी विचार के हैं, लेकिन प्रोफ़ेसर सेठ के मुताबिक, यह कम मानव केंद्रित नज़रिये के लिए रास्ता बनाने की शुरुआत है.

वो कहते हैं, "क्योंकि हम चीजों को इंसानी चश्मे देखते हैं और चेतना को भाषा और बुद्धिमत्ता से जोड़ने की आदत होती है. चूंकि ये हममें एक साथ होती है, इसका ये मतलब नहीं कि आम तौर पर भी यह एक साथ हो."

अन्य जीवों में चेतना का स्तर
कुछ लोग चेतना शब्द के कुछ इस्तेमाल की तीखी आलोचना करते हैं.

क्यूबेक यूनिवर्सिटी के प्रोफ़ेसर स्टीवन हर्नाड कहते हैं, "यह ऐसा शब्द है जिसे बहुत सारे लोग बड़े आत्मविश्वास से इस्तेमाल करते हैं लेकिन सबका अलग अलग मतलब होता है. और इसलिए ये स्पष्ट नहीं है कि असल में इसका क्या मतलब है."

वो कहते हैं कि इसके लिए बेहतर शब्द है 'संवेदना' जोकि महसूस करने की क्षमता से ज़्यादा जुड़ी है.

प्रोफ़ेसर हर्नाड कहते हैं, "हर चीज़ अनुभव करना, चुटकी काटने, लाल रंग देखने, थका और भूखा महसूस करने से लेकर जो भी हम फ़ील करते हैं."

लेकिन कुछ व्यवहारवादी इससे सहमत नहीं हैं.

व्यवहारवादी पृष्ठभूमि से आने वाली ओरेगॉन स्टेट यूनिवर्सिटी की डॉ. मोनिक उडेल के अनुसार, "अगर हम अलग अलग व्यवहारों को देखें, उदाहरण के लिए जीवों की प्रजातियां एक मिरर में खुद को पहचान सकती हैं, उनमें से कितनी प्रजातियां अतीत में घटित चीजों को याद रख पाती हैं या पहले से योजना बना सकती हैं. प्रयोगों से हम इन सवालों को टेस्ट कर सकते हैं और डेटा पर आधारित अधिक सटीक नतीजे निकाल सकते हैं."

"और अगर हम चेतना को मापे जा सकने वाले व्यवहारों के जोड़ के तौर पर लेते हैं तो इस प्रयोग में जो जानवर सफल हुए उन्हें चेतनशील कहा जा सकता है."

कुछ लोगों का कहना है कि चेतनशीलता की जांच करने के लिए अधिक जीवों पर अध्ययन की ज़रूरत है.

टोरंटो में यॉर्क यूनिवर्सिटी में एनिमल माइंड्स पर विशेषज्ञता रखने वाले दर्शन शास्त्र के प्रोफ़ेसर क्रिस्टीन एंड्र्यूज़ कहते हैं, "अभी अधिकांश वैज्ञानिक प्रयोग इंसानों और बंदरों पर किए गए और हम इस काम को ज़रूरत से अधिक कठिन बना रहे हैं क्योंकि हम चेतना को इसके बुनियादी स्वरूप में नहीं जान पा रहे हैं."

प्रोफ़ेसर एंड्र्यूज़ और कई अन्य लोगों मानना है कि इंसान और बंदर पर रिसर्च उच्च स्तर की चेतना का अध्ययन है, जबकि ऑक्टोपस और सांप भी चेतना का कुछ बुनियादी स्वरूप रख सकते हैं, जिन्हें हम नज़रअंदाज़ करते हैं.

प्रोफ़ेसर एंड्र्यूज़ उन चंद लोगों में से है जिन्होंने जीवों में चेतना पर न्यूयॉर्क घोषणापत्र को आगे बढ़ाया था, जिस पर इसी साल हस्ताक्षर हुए हैं. अभी तक इस पर 286 शोधकर्ताओं ने हस्ताक्षर किए हैं.

संक्षेप में घोषणा के चार पैराग्राम में लिखा है कि जीवों की चेतनशीलता की संभावना को नज़रअंदाज़ करना “ग़ैरज़िम्मेदाराना” है.

जीवों पर प्रयोग करने वाली कंपनियों और रिसर्च संस्थाओं की ओर से समर्थित ब्रिटिश संस्था अंडरस्टैंडिंग एनिमल रिसर्च के क्रिस मैगी कहते हैं कि प्रयोगों की बात आती है तो हम पहले ही उन्हें चेतनशील मानकर चलते हैं.

और शोध की ज़रूरत
लेकिन हम केकड़े, लोबस्टर, क्रेफ़िश और झींगा के बारे में बहुत अधिक नहीं जानते.

2021 प्रोफ़ेसर बर्च के नेतृत्व में एक सरकारी रिव्यू में ऑक्टोपस, स्क्विड और कटलफ़िश जैसे जीवों पर 300 वैज्ञानिक अध्ययनों की पड़ताल की गई.

इसमें पाया गया कि इस बात के मजबूत तथ्य थे कि ये जीव दर्द, सुख, प्यास, भूख, गर्मी, खुशी, आराम, उत्तेजना को लेकर संवेदनशील थे.

इन नतीजों के बाद ही 2022 में इन जीवों को एनिमल वेलफ़ेयर (सैंटिएंस) एक्ट के तहत लाया गया.

प्रोफ़ेसर बर्च के अनुसार, "ऑक्टोपस और केकड़े की सुरक्षा को नज़अंदाज़ किया जाता रहा है. उभरते हुए विज्ञान को इन मुद्दों को अधिक गंभीरता से लेने के लिए जागरूकता फैलानी चाहिए."

जीवों की दसियों लाख प्रजातियां हैं जिनपर बहुत कम अध्ययन किया गया है.

मधुमक्खियों के बारे में हम जानते हैं और अन्य शोधकर्ताओं ने कॉकरोच और फ़्रूट फ्लाईज़ में चेतना के संकेत दिए हैं.

यॉर्क घोषणापत्र पर हस्ताक्षर करने वाले आधुनिक ज़माने के 'अधर्मियों' का दावा है कि यह एक अध्ययन का क्षेत्र है जिसे नज़रअंदाज़ किया गया और यहां तक कि इसका उपहास उड़ाया गया.

खुल कर बात करने का उनका नज़रिया कोई नई बात नहीं है.

जिस ज़माने में देकार्त ने कहा था कि 'मैं सोचता हूं इसलिए मैं हूं,' उसी दौर में ये कहने पर कि ब्रह्मांड का केंद्र पृथ्वी नहीं है, कैथोलिक चर्च ने इतालवी खगोलशास्त्री गैलीलियो गेलीली को अधर्मी क़रार दिया था. (bbc.com/hindi)

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