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क्या वीके पांडियन की महत्वाकांक्षा की वजह से ढह गया नवीन पटनायक का क़िला?
11-Jun-2024 4:07 PM
क्या वीके पांडियन की महत्वाकांक्षा की वजह से ढह गया नवीन पटनायक का क़िला?

- संपद पटनायक

ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री नवीन पटनायक के बेहद ख़ास रहे वीके पांडियन ने रविवार को सक्रिय राजनीति को अलविदा कह दिया.

इस तरह उन्होंने ओडिशा में एक साथ हुए लोकसभा और विधानसभा चुनावों के दौरान प्रचार करते हुए किए गए अपने एक वायदे को पूरा किया.

सोशल मीडिया पर जारी किए गए अपने एक वीडियो क्लिप में पांडियन ने कहा, “राजनीति में आने की मेरी मंशा केवल नवीन बाबू को मदद करने की थी. अब मैंने सोच समझकर सक्रिय राजनीति से खुद को अलग करने का निर्णय लिया है. मैं माफ़ी चाहता हूं अगर मैंने इस यात्रा में किसी का दिल दुखाया हो.”

मुख्यमंत्री कार्यालय में एक आईएएस ऑफ़िसर के रूप में एक दशक तक सेवा देने के बाद पांडियन ने बीते नवंबर में ही अपनी नौकरी से इस्तीफ़ा दिया था और बीजू जनता दल में शामिल हुए थे. अब महज सात महीने में ही उन्होंने राजनीति को अलविदा भी कह दिया.

दरअसल पांडियन की विदाई को ओडिशा के चुनावी परिणामों के असर के रूप में ही देखना चाहिए., क्योंकि उन्होंने बीजेडी के प्रचार अभियान की कमान अपने हाथ में ले रखी थी.

उन्होंने पूरे ओडिशा का धुआंधार दौरा किया और चुनावी भाषण दिए. पांडियन ने विपक्षी पार्टियों के राजनेताओं के साथ तक़रार भी मोल ली और यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की टिप्पणियों पर जवाबी हमले भी किए.

ओडिशा में लोकसभा और विधानसभा दोनों चुनावों में बीजू जनता दल की करारी हार हुई है. बीजेपी ने 21 लोकसभा सीटों में से 20 पर जीत हासिल की. बीजेडी को एक सीट भी नहीं मिली जबकि 2019 में उसने 12 लोकसभा सीटें जीती थीं.

दूसरी ओर विधानसभा में बीजेपी ने 147 में से 78 सीटों पर जीत हासिल की और पहली बार वह ओडिशा में अकेले दम पर सरकार बनाने जा रही है.

बीजेडी के खाते में केवल 51 सीटें आईं और अब वो मुख्य विपक्षी पार्टी की भूमिका निभाने जा रही है. 2019 में बीजेडी ने 117 सीटें जीती थीं और भारी बहुमत के साथ शासन किया था.

आरोप और डैमेज कंट्रोल
नतीजों से लगा सदमा कम होने के बाद, ओडिशा में एक नैरेटिव को बहुत हवा मिली.

भारत के दूसरे सबसे लंबे समय तक सेवा करने वाले और देश के सबसे लोकप्रिय नेताओं में से एक के तौर पर भी जाने जाने वाले मुख्यमंत्री नवीन पटनायक की हार के लिए पांडियन को ज़िम्मेदार ठहराया जाने लगा.

विपक्ष पांडियन के उन चुनावी भाषणों और मीडिया साक्षात्कारों का तुरंत लेकर हाज़िर हो गया, जिसमें उन्होंने पहले ही जीत की घोषणा कर दी थी और राजनीतिक विरोधियों का मखौल उड़ाया था.

चुनाव प्रचार के दौरान पांडियन ने ओडिशा में मतदाताओं से वादा किया था कि अगर नवीन पटनायक छठी बार लगातार मुख्यमंत्री नहीं बन पाए तो वह “राजनीति से संन्यास” ले लेंगे.

असल में पांडियन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में ओडिशा में बीजेपी के प्रचार अभियान का जवाब दे रहे थे, जिसमें मोदी ने इसी महीने 24 साल पुरानी बीजेडी सरकार की 'एक्सपाइरी डेट' की घोषणा कर दी थी.

इसके जवाब में पांडियन ने नवीन पटनायक के शपथ ग्रहण समारोह की तारीख़ का एलान कर दिया था.

जीत को लेकर पांडियन इतने आत्मविश्वास में थे कि उन्होंने प्रेस के सामने ये भी एलान कर दिया कि विधानसभा चुनाव के तीन चरणों में ही बीजेडी ने साधारण बहुमत हासिल कर लिया, जबकि एक चरण की वोटिंग अभी बाकी ही थी.

हालांकि, चार जून को आए नतीजे के बाद कुछ दिनों तक पांडियन सार्वजनिक तौर पर नज़र नहीं आए.

वहीं पांडियन की पत्नी और राज्य में ताक़तवर आईएएस ऑफ़िसर सुजाता कार्तिकेयन ने चुपचाप छह महीने के लिए चाइल्ड केयर अवकाश का आवेदन दे दिया, जिसे सरकार ने स्वीकार कर लिया.

कार्तिकेयन खुद भी राजनीतिक हलचल में विवादों के घेरे में रहीं और उनपर चुनावों में बीजेडी की मदद करने के आरोप लगे थे.

चुनाव आयोग ने ओडिशा के चार चरणों के चुनावों के पहले ही उनका तबादला वित्त विभाग में कर दिया, जो कि एक ग़ैर सार्वजनिक कामकाज वाला विभाग है.

कार्तिकेयन सरकार के मिशन शक्ति डिपार्टमेंट की अगुवाई कर रही थीं, जो राज्य के क़रीब छह लाख सेल्फ़ हेल्प ग्रुप (एसएचजी) की निगरानी करता है. उन्हें ओड़िया भाषा, साहित्य और संस्कृति विभाग का अतिरिक्त कार्यभार भी सौंपा गया था.

पहले भी बीजेपी अक्सर बीजेडी पर एसएचजी सदस्यों को वोट बैंक की तरह और निचले अधिकारियों को पार्टी काडर की तरह इस्तेमाल करने के आरोप लगाती रही थी.

इस बीच, जैसे ही नतीजे आने लगे कि बीजेपी, बीजेडी को हरा रही है, स्थानीय टेलीविज़न चैनलों, बीजेपी की विरोधी पार्टियों के नेताओं और कई समाचार विश्लेषकों और टिप्पणीकारों ने मिलकर पांडियन के ख़िलाफ़ भावना को और हवा दी.

फिर कथित तौर पर दिल्ली की फ़्लाइट में बैठे पांडियन का एक वीडियो सामने आया तो पूरे राज्य में अफ़वाहें फैल गईं कि वे राज्य से बाहर निकलने की कोशिश कर रहे थे.

नौकरशाही से राजनीति में आगमन
र्दे के पीछे के रणनीतिकार से वीके पांडियन, 2019 में शुरू हुए नवीन पटनायक के पांचवें कार्यकाल में उनका प्रशासनिक का चेहरा बन गए थे.

चाहे सरकार की ओर से सभी अहम धार्मिक स्थलों के जीर्णोद्धार और सौंदर्यीकरण का काम हो या मेडिकल कॉलेजों और बस टर्मिनलों का नवीनीकरण हो, पांडियन इन सभी जगहों पर दौरा करते थे. अक्सर सुबह पांच बजे, वो भी बिना नोटिस दिए. उन्हें ‘5 ए.एम.’ अफ़सर और ‘5टी’ सेक्रेटरी के रूप में जाना जाता था.

वो स्थानीय प्रशासन के डरे हुए अधिकारिओं और प्रोजेक्ट में शामिल अन्य लोगों से घिरे हुए, कैमरे के सामने प्रगति की समीक्षा करते और आगे के लिए दिशानिर्देश देते.

साल 2019 में जब नवीन पटनायक ने पांचवीं बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली तो उन्होंने ‘5टी’ गवर्नेंस फ़्रेमवर्क (प्रशासनिक ढांचे) की घोषणा की थी, जिसका मतलब था, ट्रांसफर्मेशन, टाइम लिमिट, टेक्नोलॉजी, ट्रांसपैरेंसी और टीम वर्क.

पांडियन को 5टी सेक्रेटरी बनाया गया ताकि राज्य के सभी सरकारी विभागों और पहलकदमियों में इस सर्वोपरि प्रशासनिक ढांचे को स्थापित किया जाए.

हालांकि,सीएमओ के हाथों में अभूतपूर्व सत्ता के केंद्रित होने का 5टी उदाहरण बन गया. 5टी सेक्रेटरी के तौर पर पांडियन किसी भी सरकारी विभाग के मुख्य सचिव को दिशानिर्देश दे सकते थे, कोई भी फ़ाइल देख सकते थे और कोई भी फ़ैसला ले सकते थे, जिसपर सहमति की ज़रूरत नहीं होती थी.

5टी प्रशासनिक फ़्रेमवर्कः सत्ता का केंद्रीकरण
ओडिशा में 5टी प्रशासनिक फ्रेमवर्क में शायद टीम वर्क को सबसे अधिक नज़रअंदाज़ किया गया.

हालांकि सभी चिंताओं को दरकिनार कर दिया गया क्योंकि पांडियन कुछ मुख्य परियोजनाओं पर प्रत्यक्ष तौर पर अच्छा नतीजा दे रहे थे. उनके निर्देश में तय समय सीमा के अंदर बहुत सारे काम पूरे हो रहे थे.

राज्य सरकार ने पुरी के श्री जगन्नाथ मंदिर के चारों ओर एक हैरिटेज कॉरिडोर बनाने, ओडिशा के सभी महत्वपूर्ण मंदिरों, मस्जिदों और चर्चों के जीर्णोद्धार और सौंदर्यीकरण, भव्य बस टर्मिनल बनाने और सरकारी स्कूलों के पुराने क्लासरूम को अत्याधुनिक शिक्षण केंद्रों में तब्दील करने का फ़ैसला किया था.

हालांकि, इन परियोजनाओं को पूरा करने के लिए पांडियन को मिली अभूतपूर्व शक्ति का नेताओं, लोगों और यहां तक कि अन्य नौकरशाहों ने भी विरोध किया. लेकिन ये आलोचना सार्वजनिक तौर पर थोड़ी बहुत नाराज़गी तक ही सीमित थी.

ओडिशा की मुख्य धारा की मीडिया में उनकी ज़्यादा आलोचना नहीं थी.

हालांकि अधिकांश लोग ये भूल जाते हैं कि पांडियन का उभार मुख्यमंत्री के आशीर्वाद से ही हुआ था.

नवीन पटनायक ऐसे राजनेता रहे हैं, जो अपने आसपास किसी राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता की इजाज़त नहीं देते. उन्होंने हमेशा ही अपने प्रशासन के सार्वजनिक चेहरे के लिए नौकरशाहों पर भरोसा किया.

जब नवीन पटनायक पहली बार सत्ता में आए, तब उनके दाएं हाथ थे पूर्व नौकरशाह प्यारी मोहन मोहपात्रा, जिन्होंने 12 साल तक वफ़ादारी से सेवा करते हुए सीएम के ख़िलाफ़ तख़्तापलट की कोशिश की थी.

तख़्तापलट की कोशिश फ़ेल हो गई और नवीन पटनायक ने उन्हें राजनीतिक वनवास में भेज दिया.

ये देखते हुए कि राजनीति में आया ओड़िया नौकरशाह भी उनकी गद्दी छीनने की कोशिश कर सकता है, उन्होंने एक ग़ैर-ओड़िया आईएएस ऑफ़िसर वीके पांडियन को चुना.

इस फैसले ने छोटे-छोटे असंतोषों की शुरुआत की, जिसकी क़ीमत उनको अपना मुख्यमंत्री पद गंवाकर चुकानी पड़ी.

अंत की शुरुआत
पिछले एक दशक में सरकार और पार्टी में पांडियन का दबदबा बढ़ता रहा, जिसके कारण विपक्ष को ये कहने का मौका मिला कि वही प्रशासन के असली मुखिया हैं.

इस तरह की आलोचना से अप्रभावित पांडियन ने राजनीति में और सक्रिय भूमिका निभाने का फ़ैसला किया.

लंबे समय तक दबी यह इच्छा तब बाहर आई जब नौकरशाह के तौर पर उन्होंने अपना इस्तीफ़ा सौंपा, बीजेडी में शामिल हुए और सीधे पार्टी में दूसरे सबसे महत्वपूर्ण नेता बन गए.

बीजेडी के पुराने नेताओं ने इसका विरोध नहीं किया क्योंकि पांडियन को मुख्यमंत्री का समर्थन हासिल था.

समय के साथ पांडियन ने खुद और बीजेडी में अधिकांश लोगों ने इन घटनाक्रमों को सही ठहराने की कोशिश करना शुरू कर दिया कि वो सरकार की प्रमुख परियोजनाओं को पूरा कर रहे थे.

पिछले चुनाव प्रचार अभियान में जब पांडियन ने प्रमुख भूमिका अपनाई, उनसे पत्रकारों ने कई बार पूछा कि क्या वो नवीन पटनायक के उत्तराधिकारी होंगे.

बीजेडी की प्रतिद्वंद्वी पार्टियां ख़ासकर बीजेपी ने इस संभावना को लेकर प्रचार शुरू कर दिया और वोटरों से अपील की कि वे तमिलनाडु में जन्मे एक पूर्व नौकरशाह को मुख्यमंत्री के तौर पर नवीन पटनायक की जगह लेने न दें.

ओड़िया अस्मिता इन चुनावों में मुख्य थीम के रूप में उभर कर आई.

पांडियन ने खुद को राजनीतिक बहस के केंद्र में आने के ख़तरे को नज़रअंदाज़ ही नहीं किया बल्कि इसका वो आनंद लेते भी दिखे.

हालांकि वह उत्तराधिकार के सवालों पर जवाब देने से बचते रहे, लेकिन उन्होंने अपनी लोकप्रियता और प्रशासन में अपनी उपलब्धि का ज़िक्र किया.

संभवत: पांडियन ये मानने लगे थे कि उनकी महत्वाकांक्षा और कोशिशें राज्य के सबसे अहम राजनीतिक कार्यालय तक पहुंचने के लिए पर्याप्त थीं.

सत्ता के बाद, दर्द
जैसे ही बीजेपी ने ओडिशा में चुनाव जीता, पार्टी के कई जीते हुए उम्मीदवारों ने पांडियन के ख़िलाफ़ जांच की बात कही और कुछ ने तो ये भी अनुमान लगाया कि उनको सज़ा होगी और जेल भेजा जाएगा.

ये कहना मुश्किल है कि ओडिशा की नई राज्य सरकार या केंद्र सरकार इस मामले को आगे ले जाती है या नहीं.

ये भी माना जा रहा है कि बीजेपी के केंद्रीय नेताओ के साथ नवीन पटनायक के मधुर संबंध पांडियन के पक्ष में काम आ सकता है.

मीडिया में अपनी हालिया टिप्पणी में नवीन पटनायक ने स्पष्ट किया कि वो पांडियन को दोष नहीं देते.

उन्होंने राज्य में अच्छे कामों के लिए अपने सहयोगी की तारीफ़ की और उनके ख़िलाफ़ आलोचनाओं को ‘दुर्भाग्यपूर्ण’ बताया.

लेकिन क्या पटनायक का समर्थन पांडियन को क़ानून और जनता की नज़र में बचा पाएगा?

बिना लोकतांत्रिक तरीक़े या जवाबदेही के किसी तंत्र के, सत्ता पाने को लेकर सालों की कोशिशों के चलते पांडियन के ख़िलाफ़ असंतोष बढ़ रहा था.

पांडियन ने ठीक उसी तरह से राजनीति शुरू की जिस तरह से वह अपनी नौकरी कर रहे थे यानी वे खुद को केवल अपने राजनीतिक बॉस के प्रति जवाबदेह मान रहे थे. साथ ही उनकी अपनी महत्वाकांक्षा बढ़ती जा रही थी.

भविष्य में मुख्यमंत्री पद नहीं मांगने को लेकर स्पष्टीकरण देने से पहले वो इस बारे में कुछ भी कहने से बचते रहे.

पांडियन ने राजनीति को एक ऐसी परीक्षा के रूप में लिया जिसे उन्हें एक परीक्षक के मातहत पास करना था. लोगों की सहमति का उतना महत्व नहीं था.

शुरुआत में पांडियन को सिर्फ मुख्यमंत्री के प्रति जवाबदेह के रूप में देखा गया, जबकि उनके हाथ में पूरे राज्य का प्रशासन और पार्टी तंत्र था.

लेकिन चुनाव प्रचार में वो नवीन पटनायक को भी नियंत्रित करते दिखे.

इस बीच पांडियन के वीडियो क्लिप ने और आलोचनाओं और कांस्पिरेसी थ्योरी को जन्म दिया. कुछ लोगों का कहना है कि वीडियो में वह अपने कामों को गिना कर कम क्षमाप्रार्थी और खुद को अधिक बधाई देते दिखाई दिए.

कुछ अन्य लोगों ने कहा कि वीडियो क्लिप में पांडियन का अपनी एक आम पृष्ठभूमि और मामूली संपत्ति का हवाला देना सहानुभूति लेना और इंसाफ़ से बच निकलने की कोशिश का संकेत है.

हालांकि उन्होंने घोषणा की है कि वो राजनीति छोड़ देंगे लेकिन ओडिशा की राजनीति में वीके पांडियन को इतनी जल्दी भुलाया नहीं जा सकता. (bbc.com/hindi)

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