विचार / लेख
-संजय कुमार
भारत जैसे विशाल और विविध देश में वोटरों की पसंद, ख़ासकर युवाओं (25 साल के कम उम्र) की, एक ऐसा पिटारा है जिसे बहुत सावधानी से खोलने और समझने की ज़रूरत है।
कऱीबी मुकाबले वाली लड़ाई में उनके वोट निर्णायक हो सकते हैं, जिससे वे राजनीतिक पार्टियों के लिए प्रमुख लक्ष्य बन जाते हैं।
तो, इस बार युवाओं ने कैसे वोट किया?
इस बार की कहानी
साल 2019 में 20 प्रतिशत युवा वोटरों ने कांग्रेस का समर्थन किया था। यह आंकड़ा 2024 में महज एक प्रतिशत बढ़ा। यह कांग्रेस के लिए युवाओं की किसी भारी लामबंदी को नहीं दिखाता है।
इसके उलट 2019 में बीजेपी को अच्छे ख़ासे युवाओं का समर्थन मिला था, उन्हें 40 प्रतिशत युवा वोटरों का समर्थन मिला, जो एक अलग पैटर्न है। यह उन्हें बड़ी उम्र के वोटरों से अलग करता है।
2024 में बीजेपी के युवा समर्थकों में बहुत कम गिरावट दर्ज हुई। 25 से कम उम्र के वोटरों में महज एक प्रतिशत वोट और 26 से 35 साल के उम्र के वोटरों में दो प्रतिशत वोट की कमी आई। (टेबल 1)
यह सवाल खड़ा करता है कि कांग्रेस बीजेपी को चुनौती देने में कैसे सक्षम हुई और युवाओं ने इसमें क्या भूमिका निभाई?
2024 में लोकसभा चुनावों में 21 प्रतिशत युवा वोटरों ने कांग्रेस का समर्थन किया जबकि 39 प्रतिशत ने बीजेपी को वोट किया और कऱीब 7 प्रतिशत ने बीजेपी के सहयोगियों का समर्थन किया। एनडीए को युवाओं का कुल 46 प्रतिशत वोट शेयर हासिल हुआ।
हालांकि, इंडिया गठबंधन को फ़ायदा पहुंचा, वो था कांग्रेस के सहयोगियों को युवाओं का 12 प्रतिशत वोट मिलना, जो बीजेपी सहयोगियों (7%) से कहां ज़्यादा था और इसने एनडीए और इंडिया के बीच वोट साझेदारी के अंतर को कम करने में मदद की। (टेबल 2)
संक्षेप में, बीजेपी बिना किसी ख़ास नुकसान के अपने युवा समर्थन को बरकऱार रखने में कामयाब़ रही, जबकि कांग्रेस और उसके सहयोगियों ने युवा वोटरों के बीच ख़ासी बढ़त हासिल की। और सबसे महत्वपूर्ण ये कि, हालांकि अलग-अलग उम्र के वोटर समूहों के बीच कांग्रेस और इसके सहयोगियों की वोट साझेदारी सपाट बनी रही, बीजेपी के मामले में, अधिक उम्र के साथ समर्थन घटा। इसका मतलब ये हुआ कि अधिक उम्र के वोटरों की बजाय युवा वोटरों में बीजेपी का आकर्षण बरकऱार रहा।
2024 में महिला वोटों में विभाजन, कांग्रेस को मामूली बढ़त
ऐसा लगता है कि भारतीय चुनावों में महिला मतदाताओं की अहमियत को थोड़ा बढ़ा चढ़ा कर पेश किया गया है।
यह सच है कि हाल के सालों में भारतीय राजनीति में महिलाओं ने चर्चा में कहीं अधिक केंद्रीय जगह पाई।
लेकिन दूसरी तरफ़ इस बात के समर्थन में कोई तथ्य नहीं है कि पार्टी की 2019 में बड़ी जीत और 2024 में ठीक ठाक प्रदर्शन के बावजूद, बीजेपी के पक्ष में महिला वोटों का निर्णायक शिफ़्ट हुआ है।
निश्चित तौर पर पहले की तुलना में अभी महिलाएं बहुत अधिक संख्या में वोट करने के लिए निकल रही हैं।
महिलाओं के मतदान के शुरुआती आंकड़े (7वें चरण की वोटिंग को छोडक़र) दिखाते हैं कि महिलाओं और पुरुषों ने 2019 की तरह से एक जैसे अनुपात में वोट किया।
पाठकों को यह ध्यान दिलाना ज़रूरी है कि 2019 के लोकसभा चुनावों के दौरान, महिलाओं का मतदान पुरुषों के मतदान से महज 0.6% ही कम था, जो 1990 के दशक में 10% से अधिक हुआ करता था।
लेकिन तथ्य इस बात का समर्थन नहीं करते कि राष्ट्रीय स्तर पर बीजेपी के पक्ष में महिलाओं का वोट कोई निर्णायक रूप से शिफ़्ट हुआ है।
इस विषय पर लोकप्रिय लेखन से उलट, लोकनीति-सीएसडीएस चुनाव बाद सर्वे के आंकड़े संकेत देते हैं कि पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में बीजेपी को अधिक समर्थन नहीं मिलता। यह केवल 2024 के लोकसभा चुनावों के लिए ही सच नहीं है, बल्कि यह पिछले 2019 और 2014 के लोकसभा चुनावों के लिए भी सच है।
डेटा संकेत देते हैं कि हालिया संपन्न हुए चुनावों में 37% पुरुषों और 36% महिलाओं ने बीजेपी को वोट किया यानी पार्टी को मिले वोटों में महज एक प्रतिशत का जेंडर गैप है। जबकि दूसरी तरफ़ कांग्रेस ने पुरुषों की बजाय महिलाओं में लगातार अधिक समर्थन हासिल किया है।
एनईएस डेटा पर आधारित विश्लेषण से पता चलता है कि कांग्रेस के पक्ष में महिलाओं के बीच जेंडर गैप 1990 के दशक से ही धीरे-धीरे खत्म होता गया है। हालांकि 2024 में कांग्रेस को पुरुषों के मुकाबले महिलाओं से अधिक समर्थन मिला।
इससे पहले 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी की भारी जीत की कहानी को इसके लोकप्रिय कल्याणकारी योजनाओं, ख़ासकर महिला वोटरों को ध्यान में रख कर लाई गई उज्जवला योजना से जोडक़र देखा गया था।
लेकिन लोकनीति-सीएसडीएस के चुनाव बाद सर्वे डेटा से पता चलता है कि 2019 में भी बीजेपी सामान्य तौर पर महिलाओं के लिए कम पसंदीदा पार्टी बनी रही थी।
ऐसा प्रतीत होता है कि यही ट्रेड 2024 में बना रहा। महिलाओं के बीच बीजेपी के लगातार पिछडऩे को दो स्तर पर समझाया जा सकता है।
पहला, 2014 तक पार्टी का कुल वोट शेयर सीमित था और अगर हम उनकी कुल संख्या को जोड़ें तब भी, वास्तव में बहुत अधिक महिलाओं ने पार्टी को वोट नहीं किया था।
दूसरा- लंबे समय से बीजेपी को भारतीय समाज के सामाजिक रूप से अधिकार संपन्न वर्ग की पार्टी के रूप में जाना जाता था और इसलिए उसका सामाजिक आधार असमान था। ये दोनों फ़ैक्टर मिलकर, पार्टी के अब तक के जेंडर गैप के लिए एक संभावित स्पष्टीकरण प्रदान कर सकते हैं।
जैसा कि टेबल 2 दिखाता है, यह असमानता 2024 में भी साफ दिखाई देती है। विभिन्न सामाजिक ग्रुपों में महिलाओं की वोटिंग प्राथमिकता से पता चलता है कि अधिक पढ़ी लिखी महिलाओं के बीच बीजेपी को थोड़ी बढ़त है, लेकिन ग्रामीण और शहरी अंतर दिखाई नहीं देता।
दूसरे शब्दों में कहें तो 2024 में महिलाओं के वोट का डेटा, महिला वोटरों के बीच बीजेपी के कम प्रभाव के पुराने ट्रेंड की ही पुष्टि करता है, हालांकि पार्टी ने विभिन्न सामाजिक समुदायों, जैसे दलित, आदिवासी, ग्रामीण वोटरों के बीच अपने आधार को बढ़ाया है।
(लोकनीति-सीएसडीएस की ओर से 191 संसदीय क्षेत्रों में 776 स्थानों पर चुनाव बाद सर्वे कराया गया था। सर्वे का नमूना राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय वोटरों की सामाजिक प्रोफ़ाइल का प्रतिनिधि है। सभी सर्वे आमने-सामने साक्षात्कार की स्थिति में, अधिकांश मतदाताओं के घरों पर किए गए।) (bbc.com/hindi)