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![भारत जी-7 का सदस्य नहीं है फिर भी उसे बार-बार क्यों बुलाया जाता है? भारत जी-7 का सदस्य नहीं है फिर भी उसे बार-बार क्यों बुलाया जाता है?](https://dailychhattisgarh.com/uploads/article/1718380973mages.png)
13 से 15 जून के बीच इटली के पुलिया में जी7 शिखर सम्मेलन हो रहा है।
ये सम्मेलन ऐसे समय हो रहा है, जब दुनिया एक कठिन दौर से गुजर रही है।
गाजा से लेकर यूक्रेन तक में युद्ध चल रहा है। कई जी7 देश भी घरेलू चुनौतियों से जूझ रहे हैं।
अमेरिका, यूके और फ्रांस में इस इस साल चुनाव होना है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस सम्मेलन में हिस्सा लेने इटली पहुंचे हैं। बतौर प्रधानमंत्री अपना तीसरा कार्यकाल शुरू करने के बाद मोदी का ये पहला विदेश दौरा है।
इससे पहले जब साल 2023 में जापान के हिरोशिमा में जी7 का सम्मेलन हुआ था तो भी नरेंद्र मोदी उसमें शामिल हुए थे। 2019 में भी भारत को जी7 के लिए आमंत्रित किया गया था।
2020 में भी जो जी7 समिट अमेरिका में होने वाला था, उसके लिए भी भारत को बुलाया गया था। हालांकि कोविड 19 के कारण इसे कैंसिल करना पड़ा था।
इस साल भी भारत के साथ कई ऐसे देशों को न्योता दिया गया है, जो जी7 का हिस्सा नहीं हैं।
भारत को बुलाने के मायने
जी7 का भारत के साथ बातचीत करना उसके लिए कई कारणों से जरूरी है।
2.66 ट्रिलियन डॉलर की जीडीपी के साथ भारत की अर्थव्यवस्था जी-7 के तीन सदस्य देशों-फ्रांस, इटली और कनाडा से भी बड़ी है।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के अनुसार, भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढऩे वाली अर्थव्यवस्थाओं में से एक है। भारत की आर्थिक वृद्धि पश्चिमी देशों से अलग है, जहां अधिकतर देशों में विकास की संभावनाएं स्थिर हैं लेकिन भारत में ये संभावनाएं काफ़ी ज़्यादा हैं।
आईएमएफ की एशिया-पैसेफिक की उप निदेशक ऐनी-मैरी गुल्डे-वुल्फ ने बीते साल कहा था कि भारत दुनिया के लिए एक प्रमुख आर्थिक इंजन हो सकता है जो उपभोग, निवेश और व्यापार के ज़रिए वैश्विक विकास को गति देने में सक्षम है।
दुनिया की कई अर्थव्यवस्थाओं के बीच भारत बाजार क्षमता, कम लागत, व्यापार सुधार और अनुकूल औद्योगिक माहौल होने के कारण निवेशकों के लिए पसंदीदा जगह है।
भारत ने चीन को जनसंख्या के मामले में पीछे छोड़ दिया है।
देश में 68 प्रतिशत आबादी कामकाजी (15-64 वर्ष) है और 65 प्रतिशत आबादी 35 साल से कम की है। भारत में युवा, स्किल्ड और सेमी-स्किल्ड लोगों की अच्छी तादाद है।
दूसरा कारण ये है कि अमेरिका, जापान और यूरोपीय देश ऐसी नीतियां बना रहे हैं, जिनमें हिंद-प्रशांत क्षेत्र के साथ कऱीबी बढ़ाने की बात है।
पिछले कुछ सालों में ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी यानी यूरोप के जी-7 सदस्यों ने अपनी-अपनी इंडो-पैसिफिक रणनीतियां तैयार की हैं। इटली ने भी हाल ही में इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के साथ जुडऩे की इच्छा जताई है।
अमेरिका के वॉशिंगटन में स्थित थिंकटैंक हडसन इंस्टीट्यूट की एक रिपोर्ट कहती है कि ऐसा लगता है कि भारत हालिया सालों में जी7 का स्थायी मेहमान देश बन गया है।
जी-7 प्रभावशाली समूह है। ऐसे वक्त में जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) का प्रभाव कम होता जा रहा है तो ये संगठन और भी महत्वपूर्ण हो जाता है।
अमेरिका और चीन-रूस के बीच बिगड़ते रिश्तों के कारण यूएनएससी अब बहुत मजबूत फैसला लेने की स्थिति में नहीं है।
अगर यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध की बात करें तो यूएन सिक्यॉरिटी काउंसिल के मुक़ाबले जी7 ने रूस के खिलाफ ज़्यादा कड़ा रवैया अपनाया।
ये भी एक महत्वपूर्ण बात है कि बीते सालों में जी7 के प्रभाव में कमी आई है, ये उतना प्रभावशाली नहीं रहा, जितना पहले हुआ करता था।
एक वजह ये भी है कि 1980 के दशक में जी7 देशों की जीडीपी विश्व के कुल जीडीपी का लगभग 60 प्रतिशत था। अब यह घटकर लगभग 40 फीसदी हो गया है।
हडसन इंस्टीट्यूट की रिपोर्ट कहती है कि प्रभावशाली देश होने के वाबजूद भविष्य में इसके दबदबे में और कमी आने की संभावना है। ऐसे में भारत जी7 का नया सदस्य बन सकता है।
इसके सदस्य बनने को लेकर अटकलें दुनिया के गई वैश्विक राजनीतिक थिंक टैंक लगाते हैं और भारत के पक्ष में तर्क दिया जाता है कि रक्षा बजट के मामले में भारत दुनिया में तीसरे स्थान पर है।
भारत की जीडीपी ब्रिटेन के बराबर है और फ्रांस, इटली और कनाडा से ज़्यादा है। साथ ही, भारत एक लोकतांत्रिक देश है, इसलिए जी7 हर साल भारत को आमंत्रित करता है और उससे संवाद करना चाहता है।
इस बार जी7 के एजेंडे में क्या है?
इटली में होने वाले जी-7 शिखर सम्मेलन कई कारणों से महत्वपूर्ण है। सबसे पहले इसका उद्देश्य दुनिया में बढ़ती मंहगाई और व्यापार से जुड़ी चिंताओं के बीच वैश्विक अर्थव्यवस्था को स्थिर करने के लिए आर्थिक नीतियों को कोऑर्डिनेट करना है।
दूसरा, इस शिखर सम्मेलन में कार्बन उत्सर्जन को कम करने और सस्टेनेबेल एनर्जी को बढ़ावा देने की रणनीति होगी और जलवायु परिवर्तन से निपटने पर ध्यान फोकस किया जाएगा।
तीसरा मुद्दा होगा वैश्विक स्वास्थ्य व्यवस्था को बेहतर बनाना क्योंकि कोविड19 के बाद ये बात और साफ़ हुई की इस तरह के स्वास्थ्य आपातकाल के लिए सिस्टम को और बेहतर बनाना होगा। इसके अलावा सम्मेलन में भू-राजनीतिक तनावों, चीन और रूस सहित गाजा और यूक्रेन युद्ध भी चर्चा की जाएगी।
जी7 क्या है?
जी-7 यानी ‘ग्रुप ऑफ़ सेवेन’ दुनिया की सात ‘अत्याधुनिक’ अर्थव्यवस्थाओं का एक गुट है, जिसका ग्लोबल ट्रेड और अंतरराष्ट्रीय फ़ाइनेंशियल सिस्टम पर दबदबा है।
ये सात देश हैं - कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, ब्रिटेन और अमेरिका।
रूस को भी 1998 में इस गुट में शामिल किया गया था और तब इसका नाम जी-8 हो गया था पर साल 2014 में रूस के क्राइमिया पर कब्ज़े के बाद उसे इस गुट से निकाल दिया गया।
एक बड़ी इकॉनमी और दुनिया का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश होने के बावजूद चीन कभी भी इस गुट का हिस्सा नहीं रहा है।
चीन में प्रति व्यक्ति आय इन सात देशों की तुलना में बहुत कम है, इसलिए चीन को एक एडवांस इकॉनमी नहीं माना जाता। लेकिन चीन और अन्य विकासशील देश जी 20 समूह में हैं।
यूरोपीय संघ भी जी-7 का हिस्सा नहीं है लेकिन उसके अधिकारी जी-7 के वार्षिक शिखर सम्मेलनों में शामिल होते हैं।
पूरे साल जी-7 देशों के मंत्री और अधिकारी बैठकें करते हैं, समझौते तैयार करते हैं और वैश्विक घटनाओं पर साझे वक्तव्य जारी करते हैं।
विकासशील देशों के साथ कैसे काम करता है जी-7
इटली का कहना है कि जी-7 समिट के लिए ‘विकसित देशों और उभरती हुई अर्थव्यवस्थाओं के साथ रिश्ते एजेंडे के केंद्र में होंगे’ और वो ‘सहयोग और आपसी फायदे की साझीदारी पर आधारित मॉडल बनाने के लिए काम’ करेगा।
शिखर सम्मेलन के लिए इटली ने अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और भारत प्रशांत क्षेत्र के 12 विकासशील देशों के नेताओं को निमंत्रण दिया है।
जियोर्जिया मेलोनी की सरकार के ‘मैटेई प्लान’ के तहत इटली कई अफ्रीकी देशों को 5.5 अरब यूरो का कज़ऱ् और आर्थिक सहायता देने जा रहा है।
इटली की इस योजना का मकसद इन अफ्रीकी देशों की अर्थव्यवस्थाओं को आगे बढ़ाने में मदद देना है।
इस योजना से इटली को ऊर्जा सेक्टर में खुद को ऐसे महत्वपूर्ण देश के रूप से स्थापित करने में मदद मिलेगी जो अफ्रीका और यूरोप के बीच गैस और हाइड्रोजन की पाइपलाइन बना सकता है। हालांकि कई विश्लेषकों को ये संदेह भी है कि इटली ‘मैटेई प्लान’ की आड़ लेकर अफ्रीका से होने वाले प्रवासन को रोकने जा रहा है। इस योजना के लिए इटली अन्य देशों से भी वित्तीय योगदान देने की अपील कर रहा है।
(bbc.com/hindi)