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मोदी की इस बार कैबिनेट चलाने की नई चुनौतियां
10-Jun-2024 7:35 PM
मोदी की इस बार कैबिनेट चलाने की नई चुनौतियां

-दिलनवाज पाशा
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 72 सदस्यों वाली मंत्री परिषद में 30 कैबिनेट मंत्री, 5 राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) और 36 राज्य मंत्री शामिल किए गए हैं।

भारतीय जनता पार्टी के पास अब अकेले अपने दम पर बहुमत नहीं है। गठबंधन सरकार में तेलुगू देशम पार्टी, जनता दल युनाइटेड, शिवसेना (शिंदे गुट), लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास),जनता दल सेक्यूलर, राष्ट्रीय लोक दल, हिंदुस्तानी अवामी मोर्चा (हम), द रिपब्लिकन पार्टी ऑफ़ इंडिया को मिलाकर कुल 11 मंत्री भी हैं।

पिछली सरकार के तीन चर्चित चेहरे स्मृति ईरानी, अनुराग ठाकुर और राजीव चंद्रशेखर इस बार सरकार से बाहर हैं।

वहीं हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर, मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी को कैबिनेट में शामिल किया गया है। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी को भी कैबिनेट में जगह दी गई है।

राजनाथ सिंह, अमित शाह, जेपी नड्डा, निर्मला सीतारमण, एस जयशंकर, नितिन गडकरी और पीयूष गोयल उन 19 मंत्रियों में शामिल हैं जिन्हें मोदी की तीसरी सरकार में भी जगह मिली है। इस बार बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने भी कैबिनेट मंत्री की शपथ ली है।

पीयूष गोयल, धर्मेंद्र प्रधान, भूपेंद्र यादव और ज्योतिरादित्य सिंधिया को भी लोकसभा सीट जीतने के बाद मंत्री बनाया गया है। ये सभी राज्यसभा के सदस्य थे।

कुल 33 मंत्री ऐसे हैं जो पहली बार मंत्री बने हैं जबकि देश के छह राजनीतिक परिवारों को भी मंत्री परिषद में जगह मिली है।

राजनीतिक परिवारों के कौन लोग हैं जो बने मंत्री

पहली बार मंत्री बने सात राजनेता बीजेपी की गठबंधन सहयोगी पार्टियों से हैं।

मंत्री बने जयंत चौधरी पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के पोते हैं, चिराग पासवान बिहार के सबसे बड़े नेताओं में शामिल रहे दिवंगत रामविलास पासवान के बेटे हैं।

वहीं बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर के बेटे और जदयू के सांसद रामनाथ ठाकुर को भी मंत्री बनाया गया है।

कांग्रेस से बीजेपी में आए और अपनी सीट हारने वाले रवनीत सिंह बिट्टू पंजाब में ख़ालिस्तानियों के हाथों मारे गए पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के पोते हैं।

वहीं महाराष्ट्र के वरिष्ठ नेता एकनाथ खडसे की बहू रक्षा खडसे को भी सरकार में जगह दी गई है।

2021 में कांग्रेस छोडक़र बीजेपी में आए जितिन प्रसाद को भी मंत्री बनाया गया है। जितिन प्रसाद मनमोहन सरकार में भी मंत्री रहे हैं। जितिन प्रसाद कांग्रेस नेता जितेंद्र प्रसाद के बेटे हैं।
वहीं केरल में पहली बार बीजेपी के लिए लोकसभा सीट जीतने वाले अभिनेता सुरेश गोपी को भी मंत्री बनाया गया है।

नई सरकार में 27 मंत्री अन्य पिछड़ा वर्ग, 10 मंत्री अनुसूचित जातियों, 5 अनुसूचित जनजातियों और 5 अल्पसंख्यक समूहों से हैं। हालांकि भारत के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समूह यानी मुसलमानों का प्रतिनिधित्व सरकार में नहीं है। नई सरकार में एक भी मुसलमान मंत्री नहीं है।

शपथ समारोह में सात देशों के नेताओं के अलावा पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े और फि़ल्म और उद्योग जगत समेत अलग-अलग क्षेत्रों की कई हस्तियां मौजूद रहीं। भारत के चीफ़ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ भी समारोह में मौजूद रहे।

गठबंधन सहयोगी टीडीपी के नेता चंद्रबाबू नायडु, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे, एनसीपी नेता अजीत पवार और जनसेना पार्टी के नेता पवन कल्याण भी शपथ ग्रहण समारोह में उपस्थित रहे।

मंत्रालयों का अभी नहीं हुआ है बंटवारा
केंद्र सरकार के मंत्रियों ने अभी सिफऱ् शपथ ली है, उन्हें पोर्टफ़ोलियो नहीं दिए गए हैं। आमतौर पर शपथ ग्रहण के 48 घंटों के भीतर विभाग बांट दिए जाते हैं।

इस बार बीजेपी के पास अपने दम पर बहुमत नहीं है और वह सरकार चलाने के लिए गठबंधन सहयोगियों पर निर्भर है, ऐसे में माना जा रहा है कि गठबंधन सहयोगी अपनी पसंद के विभाग लेने के लिए बीजेपी पर दबाव बना सकते हैं।

राजनीतिक विश्लेषक मान रहे हैं कि सबसे अहम यही है कि सरकार में किस पार्टी को क्या विभाग मिलता है।

वरिष्ठ पत्रकार अदिति फणनीस कहती हैं, ‘अधिकतर गठबंधन सहयोगी यही देख रहे हैं कि हमें क्या मिलेगा। चूंकि ये सरकार गठबंधन सहयोगियों पर निर्भर है और उनकी मदद के बिना सरकार गिर जाएगी, ऐसे में अब बीजेपी में मंथन इसी बात पर हो रहा होगा कि किस पार्टी को क्या विभाग दिए जाएं।’

हालांकि ये माना जा रहा है कि गृह, रक्षा, वित्त और विदेश जैसे अहम मंत्रालय भाजपा अपने पास ही रखेगी।

सरकार में प्रधानमंत्री समेत कुल 72 मंत्री होंगे। ऐसे में बहुत संभावना है कि अगले 2-3 साल तक मंत्री परिषद में विस्तार शायद ना हो पाए।

वरिष्ठ पत्रकार हेमंत अत्री कहते हैं, ‘अभी शपथ ग्रहण ही हुआ है, मंत्री पद नहीं बंटे हैं। बीजेपी के सामने अपने गठबंधन सहयोगियों को संतुष्ट करने की चुनौती हैं। प्रधानमंत्री सत्ता का केंद्रीकरण करके सरकार चलाने के आदी हैं, गठबंधन सहयोगियों को वह कैसे साधेंगे, ये अभी देखना बाक़ी है। किस पार्टी को क्या विभाग मिलता है, ये तय करेगा कि सरकार कितनी सहजता से चल पाएगी।’ भाजपा को सभी सहयोगी दलों को संतुष्ट करना है, ऐसे में अभी विभागों के बंटवारे में समय भी लग सकता है।

महाराष्ट्र से एनसीपी (अजीत पवार गुट) एनडीए का हिस्सा है लेकिन एनसीपी के किसी मंत्री ने शपथ नहीं ली है। प्रफुल्ल पटेल यूपीए सरकार में कैबिनेट मंत्री रहे हैं, उन्होंने शपथ नहीं ली।

अदिति फडणीस कहती हैं, ‘एनसीपी को मंत्रीपद का प्रस्ताव दिया गया था, लेकिन शायद एनसीपी राज्य मंत्री के पद पर सहमत नहीं हुई, बीजेपी एनसीपी को कैबिनेट में जगह देगी, इसकी भी संभावना कम ही है। अगर एनसीपी और बीजेपी के बीच तनातनी हुई तो आगे चलकर महाराष्ट्र की राजनीति पर इसका असर हो सकता है।’
राज्यों को क्या मिला?

हरियाणा में अगले कुछ महीनों में विधानसभा चुनाव होने हैं। पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के अलावा राव इंद्रजीत सिंह और कृष्णपाल गुर्जर को भी मंत्री बनाया गया है।
दस लोकसभा सीट वाले इस राज्य में बीजेपी ने इस बार पांच सीटें गंवाई हैं। वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक अदिति फडणीस मानती हैं कि आगामी विधानसभा चुनावों को देखते हुए, मंत्री परिषद में हरियाणा को तवज्जो दी गई है।

उत्तर प्रदेश में बीजेपी को इस बार लोकसभा चुनाव में निराशा मिली है।

अदिति फडणीस कहती हैं, ‘यूपी से राजनाथ सिंह और जितिन प्रसाद जैसे पुराने नेताओं के अलावा नए चेहरों को भी जगह दी गई है। यूपी से अनुप्रिया पटेल, कीर्ति वर्धन सिंह, कमलेश पासवान, बीएल वर्मा, पंकज चौधरी, हरदीप सिंह पुरी और एसपी बघेल समेत कुल दस मंत्री बनाए गए हैं।’

वहीं केरल जहां बीजेपी को सिफऱ् एक ही सीट मिली है, वहां से तीन मंत्री बनाए गए हैं।

राजस्थान, जहां बीजेपी ने 14 सीटें जीती हैं, वहां से भी गजेंद्र सिंह शेखावत, अर्जुन राम मेघवाल और भूपेंद्र यादव को मंत्री बनाया गया है, यानी कुल तीन मंत्री राजस्थान से हैं।
वहीं मध्य प्रदेश जहां, बीजेपी ने सभी 29 सीटें जीती हैं, वहां से कुल चार मंत्री बनाए गए हैं जिनमें शिवराज सिंह चौहान, ज्योतिरादित्य सिंधिया के अलावा सावित्री ठाकुर और वीरेंद्र वर्मा शामिल हैं।

बिहार में बीजेपी जनता दल यूनाइटेड और अन्य दलों के साथ मिलकर सरकार चला रही है। 40 सीटों वाले बिहार से कुल आठ मंत्री हैं।

वहीं महाराष्ट्र, जहां इसी साल चुनाव होने हैं और जहां एनडीए को भारी नुकसान हुआ है, वहां से कुल 5 मंत्री हैं। रामदास अठावले को भी मंत्री परिषद में जगह दी गई है।
तमिलनाडु जहां बीजेपी ने एक भी सीट नहीं जीती है, वहां से कुल तीन मंत्री बनाए गए हैं। वहीं कर्नाटक से सरकार में कुल पांच मंत्री हैं। आंध्र प्रदेश से तीन मंत्री हैं जिनमें टीडीपी के मंत्री भी शामिल हैं, तेलंगाना से कुल दो मंत्री हैं। यानी दक्षिण से कुल 14 मंत्री सरकार में हैं।

क्या अस्थिर रहेगी सरकार?
नरेंद्र मोदी की ये नई सरकार गठबंधन सहयोगियों पर टिकी है, जिसे सदन में मजबूत विपक्ष का भी सामना करना है। कयास लगाए जा रहे हैं कि ये सरकार अस्थिर रहेगी।
हालांकि अदिति फडणीस मानती हैं कि अगर राजनीतिक नजरिये से देखा जाए तो शायद ही ऐसा हो।

फडणीस कहती हैं, ‘दो सबसे बड़े गठबंधन सहयोगियों टीडीपी और जेडीयू का अपना हित भी इसमें हैं कि वो भरोसे के लायक नहीं हैं। अगर जेडीयू गड़बड़ करती है तो बिहार में उसकी सरकार गिर जाएगी। हालांकि टीडीपी राज्य में सरकार चलाने के लिए बीजेपी पर निर्भर नहीं है, लेकिन टीडीपी को लोगों के सामने ये सिद्ध करना है कि हम वाकई विकास चाहते हैं और एक नया राज्य, जिसकी अभी कोई राजधानी भी नहीं है, उसे बनाने के लिए सब कुछ करेंगे। जिस अस्थिरता का डर बार-बार जाहिर किया जा रहा है, वो इतना वास्तविक नहीं है।’ हालांकि वरिष्ठ पत्रकार हेमंत अत्री की राय इससे थोड़ा अलग है। हेमंत अत्री मानते हैं कि गठबंधन सरकार चलाने के लिए जो अनुभव चाहिए, वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास नहीं है।

हेमंत अत्री कहते हैं, ‘नरेंद्र मोदी एकाधिकार का शासन चलाते रहे हैं और एकतरफ़ा फ़ैसले लेते रहे हैं, देखना यह होगा कि मोदी गठबंधन सहयोगियों के साथ कितने सहज रहते हैं। पूर्ण बहुमत की सरकार और गठबंधन सरकार के चरित्र में फर्क होता है। बीजेपी के सामने सभी सहयोगियों को जगह देने की मजबूरी है। विभागों के बंटवारे से ही स्पष्ट होगा कि सरकार कितनी स्थिर रहेगी।’

पिछली सरकारों के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी जैसे कई बड़े फैसले लिए। विश्लेषक मानते हैं कि अपनी मर्जी से सरकार चलाते रहे नरेंद्र मोदी ख़ुद को गठबंधन की निर्भरता के हिसाब से ढाल पाएंगे या नहीं, यही सबसे अहम है।

हेमंत अत्री कहते हैं, ‘मोदी का गुजरात से लेकर दिल्ली तक का राजनीतिक सफर ‘एकला चलो’ की नीति पर रहा है। इस सरकार में मनमर्जी नहीं चल पाएगी, अब सवाल यही है कि क्या मोदी अपनी मर्जी चलाये बिना सरकार चला पाएंगे?’

पीएम मोदी की सबसे बड़ी चुनौती

नई सरकार में पिछली सरकार के अधिकतर वरिष्ठ मंत्रियों और गठबंधन सहयोगियों को शामिल किया गया है। सरकार में मंत्रियों की संख्या 81 तक हो सकती है। यानी अभी आगे भी मंत्री परिषद में विस्तार की गुंजाइश है।

पिछली सरकार में कुल 24 कैबिनेट मंत्री थे। अब ये संख्या तीस है। यानी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार में अब अन्य राजनेताओं का अधिक दखल होगा।

अब तक नरेंद्र मोदी की सरकारों में बाक़ी मंत्री उनके कहे पर चलते थे। लेकिन विश्लेषक मान रहे हैं कि अब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को गठबंधन सहयोगियों के दखल के साथ भी तालमेल बिठाना पड़ेगा।
प्रधानमंत्री मोदी की छवि एक सशक्त नेता की रही है, वो अपनी नीतियों को लागू करवाने के लिए जाने जाते हैं।
पीएम मोदी ने भारत के लोगों से कई बड़े वादे भी किए हैं। उन्होंने हर साल दो करोड़ युवाओं को नौकरी देने और किसानों की आय दोगुनी करने जैसे बड़े वादे किए थे, जो पिछली सरकार में पूरे नहीं हो सके।

विश्लेषक मान रहे हैं कि पीएम मोदी की सबसे बड़ी चुनौती यही होगी कि अब उन्हें अपने वादों का हिसाब देना पड़ सकता है।

हेमंत अत्री कहते हैं, ‘प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के पास अब ना संख्या बल है और ना नैतिक बल है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बड़ी-बड़ी बातें करते रहे हैं, उन्होंने चार सौ पार का नारा दिया जो पूरा नहीं हो सका। सभी जानते हैं कि मोदी जी अच्छे वक्ता हैं। 2014 और 2019 में यही मोदी की सबसे बड़ी ताक़त थी, लेकिन इस नई सरकार में यही उनकी सबसे बड़ी कमज़ोरी साबित होगी।’
‘अब मंच से जो भी वो बोलेंगे उसे ज़मीनी वास्तविकता की कसौटी पर परखा जाएगा, वादों का हिसाब मांगा जाएगा। अपनी कही बातों पर खरा उतरना ही उनकी सबसे बड़ी चुनौती होगी।’ (bbc.com/hindi)

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