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अरुंधति रॉय को ‘दमदार लेखन’ के लिए मिला साल 2024 का पेन पिंटर प्राइज
28-Jun-2024 9:24 PM
अरुंधति रॉय को ‘दमदार लेखन’ के लिए मिला साल 2024 का पेन पिंटर प्राइज

भारतीय लेखिका अरुंधति रॉय को साल 2024 के पेन पिंटर प्राइज़ से नवाज़ा जा रहा है। उन्होंने कहा है कि ये अवॉर्ड पा कर वह काफ़ी खुश हैं।

साल 2009 से ये अवॉर्ड नोबेल विजेता और प्ले राइटर हेरोल्ड पिंटर की याद में दिया जाता है। 10 अक्टूबर 2024 को अरुंधति रॉय ये अवॉर्ड दिया जाएगा।

ये अवॉर्ड हर साल ब्रिटेन और कॉमनवेल्थ देशों के नागरिक लेखकों को दिया जाता है जिनका दुनिया पर एक ‘अडिग’, ‘सहासी’ नजरिया हो और जिसके लेखन में ‘जीवन, समाज की वास्तविक सच्चाई को परिभाषित करने का बौद्धिक दृढ़ संकल्प झलकता हो।’

इस अवॉर्ड की इस साल की ज्यूरी में पेन संस्था की अध्यक्ष रूथ बॉर्थविक, अभिनेता खालिद अबदल्ला और लेखर रोजर रॉबिनसन थे।

ये अवॉर्ड अरुंधति को ऐसे समय दिया जा रहा है जब हाल ही में दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना ने उनके खिलाफ गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम यानी यूएपीए के तहत मुक़दमा चलाए जाने की अनुमति दे दी है। ये केस 14 साल पुराने एक भाषण को लेकर उन पर दर्ज किया गया था।

इंग्लिश पेन की अध्यक्ष रूथ बॉर्थविक ने अरुंधति रॉय की तारीफ करते हुए कहा कि उन्होंने ‘बहुत ही चुटीले अंदाज में सुंदरता के साथ अन्याय की जरूरी कहानियां’ सामने रखी हैं।

बोर्थविक ने कहा, ‘भारत फोकस में बना हुआ है, रॉय एक अंतरराष्ट्रीय विचारक हैं, और उनकी शक्तिशाली आवाज को दबाया नहीं जा सकता।’

62 साल की अरुंधति रॉय मोदी सरकार की खुलकर आलोचना करती रही हैं।

अपने लेखन, भाषण और विचार को लेकर कर वह दक्षिणपंथी समूहों के निशाने पर अक्सर रहती हैं।

ये अवॉर्ड अतीत में माइकल रोसेन, मैलोरी ब्लैकमैन, मार्गरेट एटवुड, सलमान रुश्दी, टॉम स्टॉपर्ड और कैरोल एन डफी जैसे लेखक पा चुके हैं।

ये सम्मान मिलने पर अरुंधति रॉय ने कहा, ‘काश, हेरोल्ड पिंटर आज हमारे बीच होते और दुनिया जिस समझ से परे मोड़ पर जा रही है, उसके बारे में लिखते। चूंकि वे अब हमारे बीच नहीं हैं, इसलिए हममें से कुछ लोगों को लिखना चाहिए।’

भारत में अरुंधति पर केस चलाने के आदेश
अपनी किताब ‘द गॉड ऑफ स्मॉल थिंग्स’ के लिए साल 1997 में बुकर पुरस्कार जीतने वाली अरुंधति ने कई उपन्यास और निबंध लिखे हैं। इस महीने ही दिल्ली के उपराज्यपाल की ओर से अरुंधति पर यूएपीए के तहत मुकदमा चलाए जाने की मंजूरी दी है।

ये साल 2010 का मामला है। जिसमें रॉय ने कथित तौर पर कहा था कि ‘कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा नहीं है।’

अरुंधति रॉय ने सात नॉन-फिक्शनल किताबें भी लिखी हैं। इनमें साल 1999 में आई ‘कॉस्ट ऑफ़ लिविंग’ भी शामिल है, जिसमें विवादास्पद नर्मदा बांध परियोजना और परमाणु परीक्षण कार्यक्रम के लिए सरकार की कड़ी आलोचना की गई है।

इसके अलावा उन्होंने साल 2001 में ‘पावर पॉलिटिक्स’ नाम की किताब लिखी, जो निबंधों का संकलन है। इसी साल उनकी ‘द अलजेब्रा ऑफ इनफिनाइट जस्टिस’ भी आई। इसके बाद साल 2004 में ‘द ऑर्डिनर पर्सस गाइड टू एम्पायर’ आई।

फिर साल 2009 में रॉय ‘इंडिया, लिसनिंग टू ग्रासहॉपर्स : फील्ड नोट्स ऑन डेमोक्रेसी’ नाम की किताब लेकर आईं। ये किताब ऐसे निबंधों और लेखों का संग्रह थीं, जो समकालीन भारत में लोकतंत्र के अंधेरे हिस्से की पड़ताल करते हों।

रॉय 90 के दशक में किए गए पोखरण परमाणु परीक्षण की भी मुखर विरोधी थीं। वह गुजरात में साल 2002 में हुए सांप्रदायिक दंगों के समय से ही नरेंद्र मोदी की सरकार के खिलाफ मुखर रही हैं।

रॉय ने भारत में नक्सल आंदोलन पर भी काफ़ी कुछ लिखा है।

वह अक्सर कहती रही हैं कि एक आदिवासी जिसे कुछ भी नहीं मिलता, वह सशस्त्र संघर्षों में शामिल होने के अलावा और क्या करेगा।

अरुंधति रॉय सत्ता के खिलाफ आलोचनात्मक रवैये को लेकर चर्चा में रहती हैं। (bbc.com/hindi)  

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