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तालिबान का विरोध करने वाली महिलाओं का क्या हुआ?
17-Jun-2024 10:49 PM
तालिबान का विरोध करने वाली महिलाओं का क्या हुआ?

परवाना विदेशों में रहते हुए अपनी आवाुज़ उठाती रही हैं.

-महबूबा नवरूजी
महिलाओं की शिक्षा, नौकरी और सार्वजनिक जगहों पर जाने पर तालिबान ने प्रतिबंध लगाए उसके बाद कुछ महिलाओं ने शुरू में इन नए नियमों को तोड़ा और सडक़ों पर प्रदर्शन किए। लेकिन राजधानी काबुल और अन्य शहरों में खाना, काम और आज़ादी की मांग को लेकर जो महिलाएं सडक़ों पर उतरीं, उन्हें जल्द ही तालिबान की पूरी ताक़त का अहसास हुआ।

प्रदर्शनकारियों ने बीबीसी को बताया कि उन्हें पीटा गया, अपमानित किया गया, जेल में डाला गया और यहां तक कि पत्थर से मार-मार कर मार डालने की धमकी तक दी गई। हमने उन तीन महिलाओं से बात की जिन्होंने 15 अगस्त 2021 को तालिबान के कब्ज़े के बाद महिलाओं की आज़ादी पर लगाए गए प्रतिबंधों के ख़िलाफ़ तालिबान सरकार को चुनौती दी थी।
14 जून को तालिबान के उस फैसले के 1000 दिन पूरे हो गए हैं, जिसमें छह साल से अधिक उम्र की लड़कियों की शिक्षा पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।

काबुल में प्रदर्शन
जब 15 अगस्त 2021 को अफगानिस्तान पर तालिबान चरमपंथियों का कब्ज़ा हुआ। उसके बाद से ज़ाकिया की जि़ंदगी परेशानियों में घिरती गई। इससे पहले वो अपने परिवार का खर्च उठाती थीं, लेकिन कब्ज़े के तुरंत बाद उनकी नौकरी चली गई।

ज़ाकिया (बदला हुआ नाम) ने एक साल बाद दिसम्बर 2022 में एक प्रदर्शन में हिस्सा लिया। यह पहला मौका था जब नौकरी और शिक्षा का अधिकार छीने जाने पर उनका ग़ुस्सा बाहर आया।
प्रदर्शनकारी काबुल विश्वविद्यालय की ओर मार्च कर रहे थे। जगह का चुनाव प्रतीकात्मक महत्व वाला था लेकिन उन्हें वहां पहुंचने से पहले ही रोक दिया गया।
ज़ाकिया ज़ोर-ज़ोर से नारे लगा रही थीं, जब तालिबान की सशस्त्र पुलिस ने इस अल्पकालिक विद्रोह को दबा दिया।

वो याद करते हुए कहती हैं, ‘उनमें से एक ने सीधे मेरे मुंह पर बंदूक तान दी और धमकी दी कि अगर मैं चुप नहीं हुई तो वो मुझे वहीं मार देगा।’
ज़ाकिया ने देखा कि बाकी प्रदर्शनकारियों को एक गाड़ी में भर दिया गया था।

वो कहती हैं, ‘मैंने विरोध किया। वे मेरी बांह मरोड़ रहे थे। मुझे तालिबानी खींच रहे थे और अपनी गाड़ी में डालने की कोशिश कर रहे थे जबकि बाकी प्रदर्शनकारी मुझे उनके चंगुल से छुड़ाने की कोशिश कर रहे थे।’

अंत में, ज़ाकिया उनके चंगुल से छूटने में क़ामयाब रहीं लेकिन उस दिन जो कुछ भी उन्होंने देखा, उससे वो आगे के लिए भी डर गईं।

वो कहती हैं, ‘हिंसा बंद दरवाज़े के अंदर नहीं बल्कि यह राजधानी काबुल की सडक़ों पर खुलेआम हो रही थी।’

गिरफ़्तारी और पिटाई
मरियम (बदला हुआ नाम) और 23 साल की स्टूडेंट परवाना इब्राहिम खेल नजाराबी उन अफग़़ान प्रदर्शनकारियों में शामिल थीं, जिन्हें तालिबान के कब्ज़े के बाद गिरफ़्तार किया गया था।
मरियम विधवा हैं और अपने बच्चों के लिए एकमात्र कमाऊ सदस्य हैं।

जब तालिबान ने महिलाओं को काम पर जाने से प्रतिबंध लगाने के नियमों की घोषणा की तो मरियम डर गई थीं। उनके सामने सबसे बड़ा सवाल यही था कि वो अपने परिवार को अब कैसे पालेंगी।

दिसम्बर 2022 में हुए एक प्रदर्शन में उन्होंने हिस्सा लिया। जब उन्होंने देखा कि साथी प्रदर्शनकारियों को गिरफ़्तार किया जा रहा है तो उन्होंने वहां से भागने की कोशिश की लेकिन समय रहते वो ऐसा नहीं कर पाईं।

वो याद करते हुए कहती हैं, ‘मुझे टैक्सी से ज़बरदस्ती खींच कर बाहर निकाला गया। उन्होंने मेरे बैग की तलाशी ली और उन्हें मेरा फ़ोन मिला।’

मरियम कहती हैं कि जब तालिबान अधिकारी को उन्होंने अपना पासकोड देने से मना किया तो उनमें से एक ने उन्हें इतनी ज़ोर से थप्पड़ मारा कि उनका कान सुन्न हो गया। इसके बाद उन्होंने फ़ोन के अंदर जो वीडियो और तस्वीरें थीं, उनकी जांच की। वो कहती हैं, ‘वे गुस्सा हो गए। उन्होंने मेरे बाल पकडक़र मुझे घसीटा। उन्होंने मेरे पैर और हाथ पकड़े और अपनी रेंजर गाड़ी के पिछले हिस्से में फेंक दिया।’

मरियम बताती हैं, ‘वे बहुत हिंसक थे और लगातार मुझे अपमानित कर रहे थे। उन्होंने मुझे हथकड़ी लगाई और एक काला झोला मेरे सिर पर पहना दिया, मैं सांस भी नहीं ले पा रही थी।’
एक महीने बाद परवाना ने भी तालिबान के ख़िलाफ़ प्रदर्शन में शामिल होने का फैसला किया। उनकी साथी छात्राओं ने कई मार्च आयोजित किए थे। लेकिन उनको भी इसी तरह के बर्ताव का सामना करना पड़ा।

परवाना बताती हैं, ‘गिरफ़्तार करने के बाद ही उन्होंने मुझे टॉर्चर करना शुरू कर दिया।’ उन्हें दो हथियारबंद पुरुष गार्ड के बीच बैठाया गया।

वो कहती हैं, ‘मैंने बैठने से मना किया, तो उन्होंने मुझे आगे खिसका दिया और मेरे सिर पर कंबल डाल दिया और बंदूक तान कर बिल्कुल भी न हिलने को कहा।’
परवाना को लगा कि वो बहुत ‘कमज़ोर' हो गई हैं और भारी हथियारों से लैस पुरुषों के बीच वो 'जि़ंदा लाश’ की तरह चल रही थीं।

उन्होंने बताया, ‘मेरा चेहरा सूज गया था क्योंकि उन्होंने कई बार मेरे चेहरे पर थप्पड़ मारे थे। मैं इतनी डर गई थी कि मेरा पूरा शरीर कांप रहा था।’

जेल की जि़ंदगी
सार्वजनिक रूप से प्रदर्शन का क्या ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ सकता है इस बात का मरियम, परवाना और ज़ाकिया को पूरी तरह से एहसास था। परवाना कहती हैं कि उन्होंने तालिबान से उनके साथ इंसानों जैसा बर्ताव करने की कभी उम्मीद नहीं लगाई थी, लेकिन बावजूद इसके वे जिस तरह से अपमानजनक व्यवहार कर रहे थे, उससे मैं हैरान थी। जेल में सबसे पहले जो खाने को मिला उसे देखकर परेशानी और बढ़ गई। वो कहती हैं, ‘मुंह में मुझे कोई धारदार चीज़ महसूस हुई। जब मैंने देखा वो एक नाखून था। मैंने उसे फेंक दिया।’ इसके बाद जो खाना दिया गया उसमें बाल और पत्थर मिले।

परवाना कहती हैं कि उन्हें बताया गया था कि उन्हें पत्थर मार-मार कर मार डाला जाएगा। इसकी वजह से वह रातों को रोती थीं और सपने आते थे कि वो एक हेलमेट पहने हुए हैं और उन्हें पत्थरों से मारा जा रहा है। 23 साल की परवाना पर अनैतिकता, वेश्यावृत्ति और पश्चिमी संस्कृति फैलाने के आरोप लगाए गए थे। वो जेल में एक महीने तक रहीं।

मरियम को कई दिनों तक हाई सिक्योरिटी यूनिट में रखा गया जहां एक काला कपड़ा पहनाकर उनसे पूछताछ की जाती थी। वो याद करते हुए बताती हैं, ‘मैं कई लोगों की आवाज़ सुन सकती थी, एक उन्हें मारता और पूछता कि प्रदर्शन करने के लिए उन्हें किसने पैसे दिए थे। दूसरा घूसा मारता और पूछता तुम किसके लिए काम करती हो?’

मरियम कहती हैं कि उन्होंने पूछताछ करने वालों को बताया कि वो विधवा हैं और उन्हें अपने दो बच्चों को पालने के लिए काम की ज़रूरत है, लेकिन हर जवाब के साथ और हिंसा होती।
रिहाई आसान नहीं थी

परवाना विदेशों में रहते हुए अपनी आवाुज़ उठाती रही हैं। 

मानवाधिकार संगठनों और स्थानीय नेताओं की दख़ल के बाद परवाना और मरियम को अलग-अलग रिहा कर दिया गया और अब वे दोनों अफग़़ानिस्तान में नहीं रहती हैं।
दोनों ने कहा कि उन्हें अपराध स्वीकार करने और दोबारा तालिबान के ख़िलाफ़ प्रदर्शन में हिस्सा न लेने के एक बयान पर साइन करने को मजबूर किया गया।
उनके पुरुष रिश्तेदारों को भी इन क़ागज़ों पर हस्ताक्षर करने पड़े और वादा करना पड़ा कि महिलाएं अब और किसी प्रदर्शन में शामिल नहीं होंगी।

जब हमने तालिबान सरकार के वरिष्ठ प्रवक्ता जबीहुल्ला मुजाहिद से इन आरोपों को लेकर पूछा तो उन्होंने इन महिलाओं की गिरफ़्तारी की बात स्वीकार की लेकिन उनके साथ हुए बुरे बर्ताव से इनकार किया।

उन्होंने कहा, ‘गिरफ़्तार की गई कुछ महिलाएं ऐसी गतिविधियों में शामिल थीं जो सरकार और सार्वजनिक सुरक्षा के ख़िलाफ़ थीं।’

जबीहुल्ला ने महिलाओं के दावों और टॉर्चर का खंडन किया। उन्होंने कहा, ‘इस्लामिक अमीरात की जेलों में किसी की पिटाई नहीं होती और उनके खाने को हमारी मेडिकल टीमें चेक करती हैं।’

बुनियादी सुविधाओं की कमी
रिहाई के बाद कुछ प्रदर्शनकारियों का ह्यूमन राइट्स वॉच ने इंटरव्यू किया। इसमें भी प्रदर्शनकारी महिलाओं ने वैसी ही बातें कहीं, जो उन्होंने बीबीसी को बताई हैं।
ह्यूमन राइट्स वॉच के फ़रिश्ता अब्बासी ने कहा, ‘तालिबान हर तरह के टॉर्चर का इस्तेमाल करता है। वे इन प्रदर्शनों के लिए उनके परिवारों पर हर्जाना लगाते हैं। कभी कभी वे उन्हें उनके बच्चों के साथ बहुत बुरी हालत में जेल में बंद कर देते हैं।’

एमनेस्टी इंटरनेशनल रिसर्चर ज़मान सुल्तानी ने रिहाई के बाद कई प्रदर्शनकारियों से बात की थी। उन्होंने कहा कि जेल में बुनियादी ज़रूरत की सुविधाएं तक नहीं हैं।
सोल्तानी ने कहा, ‘सर्दियों में गरम करने की कोई सुविधा नहीं है, कैदियों को अच्छा या पर्याप्त खाना नहीं दिया जाता और स्वास्थ्य और सुरक्षा पर तो बिल्कुल भी ध्यान नहीं दिया जाता।’

सामान्य जि़ंदगी की याद
जब तालिबान ने कब्ज़ा किया तो उन्होंने कहा था कि महिलाएं काम करना जारी रख सकती हैं और स्कूल जा सकती हैं लेकिन इसके साथ ही एक शर्त भी लगा दी थी, यह केवल अफग़़ान संस्कृति और शरिया क़ानून के तहत ही हो सकता है।

वे लगातार कहते रहे कि छह साल से ऊपर की लड़कियों की पढ़ाई पर पाबंदी अस्थाई है लेकिन उन्होंने कभी भी लड़कियों के सेकेंडरी स्कूलों को खोलने के लिए ठोस प्रतिबद्धता नहीं जताई।
उधर अफग़़ानिस्तान में ज़ाकिया ने एक और कोशिश की। उन्होंने लड़कियों को शिक्षित करने के लिए घर में ट्यूशन शुरू की, लेकिन यह तरीका भी कामयाब नहीं हो पाया।

वो कहती हैं, ‘जब लड़कियां एक जगह नियमित रूप से इक_ी होती हैं तो उन्हें इससे ख़तरा महसूस होता है। तालिबान जो चाहते थे, करने में सफल रहे। मैं अपने घर में ही क़ैदी हूं।’ वो अभी भी अपने साथी एक्टिविस्टों से मिलती हैं लेकिन वे अब कोई प्रदर्शन की योजना नहीं बना रही हैं। वे छद्मनाम से सोशल मीडिया पर अक्सर बयान डालती रहती हैं। जब उनसे पछा गया कि अफग़़ानिस्तान को लेकर उनका क्या सपना है, उनकी आंखों में आंसू छलक आए। उन्होंने कहा, ‘मैं कुछ नहीं कर सकती। हमारा अब वजूद नहीं है, महिलाओं को सार्वजनिक जि़ंदगी से हटा दिया गया है। 12 साल की उम्र से ऊपर की लड़कियां अभी भी स्कूल नहीं जा सकतीं। बस हम अपने बुनियादी अधिकार चाहते हैं, क्या यह मांग बहुत ज़्यादा है?’ (bbc.com/hindi)

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