गरियाबंद

विश्व जल दिवस विशेष: महानदी के अस्तित्व पर मंडरा रहा खतरा, करोड़ों खर्च के बाद भी कोई समाधान नहीं
22-Mar-2024 3:59 PM
विश्व जल दिवस विशेष: महानदी के अस्तित्व पर मंडरा रहा खतरा, करोड़ों खर्च के बाद भी कोई समाधान नहीं

‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजिम, 22 मार्च।
प्रतिवर्ष 22 मार्च को विश्व जल दिवस मनाया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य विश्व के सभी देशों में स्वच्छ एवं सुरक्षित जल की उपलब्धता सुनिश्चित करवाना है साथ ही जल संरक्षण के महत्व पर भी ध्यान केंद्रित करना है। लेकिन, नवापारा और राजिम के आसपास क्षेत्रों में महानदी की दुर्दशा देख हर व्यक्ति का मन व्यथित हो जाता है। नदी की दुर्दशा आने वाली पीढ़ी और भविष्य के लिए गहरा संकट है। नदी में जमी हुई गाद भविष्य में विकराल रूप लेकर नदी के अस्तित्व को ही समाप्त कर सकती है। हाल के ही दशकों में फले-फूले अवैध रेत खनन से नदी का यह स्वरूप और भी बिगड़ता जा रहा है।

बता दें कि महानदी का उद्गम सिहावा के पास महेंद्रगिरी पर्वत से होता है। जहां एक छोटे से कुंड से निकलकर इसका स्वरूप बढ़ता जाता है। यह धमतरी जिले में सिहावा से लोमष ऋषि आश्रम राजिम संगम स्थल तक लगभग 180 किलोमीटर बहती है। सिहावा की पहाडिय़ों पर, महेंद्रगिरि के नाम से प्रसिद्ध त्रेतायुग के प्रसिद्ध श्रृंगी ऋषि का आश्रम है। 

अस्तित्व बचाने को कर रही संघर्ष
महानदी का यह स्वरूप लगातार बिगड़ता जा रहा है। कलकल बहने वाली महानदी की धार अब सिमटते जा रही है। धार अब सूखने की कगार पर है। नदी पूरी तरह से मैदान के रूप मे नजर आने लगी है। नदी में भरी गाद इसके तबाही का कारण बनती जा रही है। नदी की व्यवस्था सुधारने को लेकर सरकार की स्पष्ट नीति के अभाव में अब यह हांफने लगी है।

गंदा पानी नदी में छोड़ा जा रहा
लोगों की श्रद्धा और आस्था का प्रतीक महानदी की दुर्दशा का आलम यह है कि पूरे नगर का सिवरेज पानी नाले के माध्यम से एनीकेट के पास नदी में मिल रहा है जिसके कारण पूरा पानी दूषित हो गया है। इतना ही नहीं कुछ राइस मिलों का गंदा पानी भी सीधे महानदी में मिल रहा है। इस ओर शासन प्रशासन बिलकुल भी ध्यान नहीं दे रहा है। नपा के अधिकारी और जनप्रतिनिधि भी मौन साधे बैठे हैं। नदी का पानी इतना गंदा है की ट्रीटमेंट के बावजूद इससे बदबू और गंदगी नहीं जा पा रही है। नगर के नलों में भी यही पानी आ रहा है।

करोड़ों खर्च पर समाधान नहीं

नगर का सिवरेज और राइस मिलों का गंदा पानी नदी से बाहर निकालने के लिए नाली का निर्माण किया गया है। लेकिन आगे जाकर यह एनिकेट के पास मिल रहा और कई जगहों पर बीच से सीपेज है, जो नदी के पानी को पूरी तरह प्रदूषित कर रहा है। इसके निर्माण मे कई तरह की खामी नजर आ रही है। एनिकेट का निर्माण भी निरर्थक नजर आता है। एनीकट में रोके गए पानी के लगातार रिसाव से पानी का ठहराव हो ही नहीं पा रहा। इस संबंध में जब गोबरा नवापारा नगर पालिका परिषद के मुख्य नगर पालिका अधिकारी प्रदीप शर्मा ने बता की गई, तो उन्होंने कहा कि मुझे सीएमओ का प्रभार लिए अभी दो दिन ही हुए हैं। अवलोकन करने के बाद ही कुछ बता पाऊंगा।

साफ सफाई के नाम पर खाना पूर्ति
लोगों की आस्था और श्रद्धा का केंद्र बिंदु महानदी और त्रिवेणी संगम है। परंतु वर्तमान स्थिति को देखकर इस पवित्र संगम क्षेत्र में श्रद्धालु आचमन करना भी पसंद नहीं कर रहे हैं। मेले का आयोजन नदी का सीना छलनी करते हुए कर दिया जाता है परंतु मेला समाप्ति के बाद साफ सफाई के लिए जिम्मेदार लोग आंखे मूंद लेते हैं। चारों ओर पसरी गंदगी, पानी से उठते बदबू से लोग परेशान हो गए हैं। नदी के पास खड़ा होना भी मुश्किल हो रहा है।

अस्थायी बने कुंड भी नहीं खोले गए हैं
मेला आयोजन के लिए साधुओं के शाही स्नान और आमजन के लिए बने कुंड को अभी तक खोला नहीं गया है। पानी का बहाव नहीं होने से पूरा पानी सड़ चुका है। बदबू भी उठने लगी है। नगर के सबसे पुराने नेहरू घाट जिसमे प्रतिदिन सैकड़ों लोग स्नान करते हैं। यहां स्थायी घाट बने होने के बावजूद कुंड का निर्माण समझ से परे है। इस मामले में संस्कृति विभाग के उप संचालक प्रताप पारख़ ने ईई वर्मन को निर्देशित कर कार्रवाई करवाने की बात कही।

अधिकारियों की लापरवाही और उदासीनता से स्थिति गंभीर
मेला आयोजन के समय अधिकारी इन निर्माण को लेकर मैदान में नजर आते हैं परंतु जैसे ही मेला संपन्न हो जाता है अधिकारी ऐसे गायब होते है। ये अधिकारी पलटकर देखना भी मुनासिब नहीं समझते। वाहवाही लेने के बाद छोड़ जाते हैं गंदगी, बीमारी और कई प्रकार के रोगों का प्रकोप जिसे स्थानीय निवासियों को भुगतना पड़ता है। 

क्या कहते हैं लोग
प्रतिदिन नदी में स्नान करने वाले स्थानीय अशोक श्रीवास, रिखी कंसारी, शिव कंसारी, हेमलाल पटेल, कमल कंसारी, संजय कंडरा, दिलीप साहू से जब हमारी टीम ने बात की तो उन्होंने बताया कि नदी का बहाव पूरी तरह से अवरूद्ध हो गया है। पानी बहुत गंदा और बदबूदार हो गया है। मजबूरीवश इस पानी में नहाने वालों को कई प्रकार के चर्म रोग हो रहे है। हम लोग रेत को हटाकर झिरिया बनाकर उस पानी से नहाते हैं।

 

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