गरियाबंद
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजिम, 3 मार्च। यूंॅ तो राजिम को मंदिरों की नगरी कहें तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। यहां प्रसिद्ध श्री राजीव लोचन, श्री कुलेश्वरनाथ महादेव मंदिर के साथ प्रचीन कालीन चौरासी देवी-देवताओं के मंदिरों की जानकारी दी जाती है। यहां के सभी मंदिर अपने आप में अनेक पौराणिक महत्व को छिपाए हुए हैं। उनमें से दानदानेश्वर नाथ महादेव मंदिर के पीछे भाग पश्चिम दिशा की ओर राजिम भक्तिन तेलीन मंदिर है।
गर्भगृह में पूर्वाभिमुख कोल्हू युक्त शीलापट मौजूद है। यह इस बात को प्रामाणित कर रही है कि आठवीं शताब्दी में भगवान श्री राजीव लोचन का मंदिर रत्नपुर सामन्त जगपाल देव द्वारा बनाया गया। तब प्रतिमा के लिए राजा खुद चलकर राजिम तेलीन माता के पास हाथ जोडक़र विनय किया कि यह मूर्ति मुझे दे दीजिए। बदले में हीरे-जेवरात जो चाहिए वह ले लिजिए। राजिम उनके बात को सुकनर अवाक रह गई और कहा कि तुम प्रतिमा को ले जाना चाहते हों तो ले जाइए राजा ने भरपूर प्रयास किया लेकिन वह टस से मस नहीं हुआ। फिर थक हारकर प्रार्थना करते हुए मूर्ति ले जाने के लिए उपाय पूछा। इस पर राजिम कहने लगी हीरे-जेवरात के बदले तुलसी दल अर्पित कर दीजिए। ऐसा करने पर प्रतिमा उठ गया। इससे राजा प्रसन्न हुए और कहा कि मुझसे कुछ मांग लीजिए मैं सहर्ष देने के लिए तैयार हॅंू।
तेलीन माता ने कहा कि भगवान श्रीराजीव लोचन के साथ मेरा नाम जुड़ जाए तो बड़ी कृपा होगी। उस दिन से राजिम लोचन कहलाने लगा। प्रचलित लोककथानक के अनुसार राजिम तेलीन नामक सुशील व सुसंस्कारी महिला थी। वह प्रतिदिन नदी के उस पार तेल बेचने जाया करती थी। एक दिन बीच रास्ते पर किसी पत्थर से टकराकर गिर गई।
इससे पात्र में रखा तेल गिरकर बिखर गया। जिसे देखकर राजिम रोने लगी। उन्हें चिंता थी कि मेरे सास-ससुर इस घटना को सुनकर डॉंट-फटकार लगाएगें, लेकिन जैसे ही घर जाने के लिए उठकर पात्र को देखा तो वह तेल से लबालब भरा हुआ था। राजिम खुश हो गई और खुब घूम-घूमकर तेल बेचा। शाम को वापस घर पहुॅंची और उन्होंने सारा वृतान्त अपने सास-ससुर और पति को सुनाई।
दूसरे दिन उस पत्थर को लाने के उद्देश्य से वहां पहुंचा और उसे उलट कर देखा तो श्यामवर्णीय चर्तुभुज प्रतिमा दिखी। इस घटना से प्रसन्न तेलीन परिवार ने उसे लाकर कोल्हू के घूमावदार केन्द्र में रख दिया। प्रतिदिन पूजा-अर्चना होने से भक्तिमय निर्मित हुआ। करीब पॉंच फीट ऊंची शीलापट में कोल्हू युक्त बैल उत्कीर्ण हैं। यह दर्शनार्थियों कों राजिम भक्ति से घटित-घटना को यह ताजा करती हैं।
मंदिर आने वाले प्रत्येक श्रद्धालु इसका दर्शन करना नहीं भूलतेे हैं। इसी के नाम पर इस नगरी का नाम राजिम पड़ा। बताया जाता है कि यह अत्यंत प्राचीन नगरी हैं सतयुग में राजा रत्नाकार के समय से इस नगरी का अस्तित्व माना जाता हैं। कमलक्षेत्र, पद्मपुरी, छोटाकाशी, देवपुरी इत्यादि नाम से इनका उल्लेख मिलता हैं।