गरियाबंद
परंपरागत 175 वाद्ययंत्रों को सहेज कर मैत्री बाग गेट के समीप एक संग्रहालय बनाया गया
‘छत्तीसगढ़’ संवाददाता
राजिम, 5 मार्च। लगन हर मुश्किल को आसान बना देती है। बिना मेहनत के कोई भी कल्पना साकार नहीं होती है। एक लक्ष्य तैयार कर उसे प्राप्त करने के लिए प्रयासरत रहना ही सफलता की मूल सीढ़ी है। किसी कार्य के प्रति जुनून उसे ऊॅचाई के उच्च शिखर तक पहुँचाने में मदद करती है।
माघी पुन्नी मेला के पांचवें दिन मुख्यमंच पर छत्तीसगढ़ मेें संगीत के क्षेत्र में अपनी एक अलग ही पहचान बनाने वाले भिलाई के रिखी क्षत्री लोक रागिनी मंच ने आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र की रहन-सहन परंपराओं मनोंरजन वहॉ की बोली, भाषा की जीवंत झांकी प्रस्तुत किया। जिसे दर्शक वहॉ की संस्कृति को अपलक निहार रहे थे। एक के बाद एक नृत्य और गीत की प्रस्तुति में विभिन्न वाद्ययंत्रों के प्रयोग से वहॉ का दृश्य बहुत ही मनोरम हो गया।
कार्यक्रम प्रस्तुति के बाद मीडिया सेंटर में चर्चा के दौरान उन्होंने बताया की विभिन्न विधाओं के 175 वाद्ययंत्रों को सहेज कर मैत्री बाग गेट के समीप एक संग्रहालय मेरे द्वारा बनाया गया है, जिनके बहुत ही उपयोग है। शिकार करने के लिए, शिकार से बचने के लिए, लोकजीवन में वाद्ययंत्रों की आवश्यक्ता सभी को होती है बिना गीत-संगीत के जीवन अधूरा है। हमारी संस्कृति कैसी थी? यहॉ के पहनावा, रहन-सहन, बोली-भाषा के बारे में आने वाली पीढ़ी को जवाब देना पड़ेगा।
यह प्रदर्शनी शाला उन्हीं परंपरा को सामने लाने के लिए बनाया गया है। विवाह में 13 प्रकार रस्म होता है प्रत्येक रस्म में अलग-अलग संगीत होता है। वाद्ययंत्रों की धुन से पता चल जाता है कि अभी कौन-सा रस्म चल रहा है। मेरी सफलता के पीछे मेरे पिता जी का हाथ है जो एक संगीतकार थे। बचपन में वाद्ययंत्र ही मेरा खिलौना था जिसमें मेरी लगन बढ़ती गई और मैं उसी क्षेत्र में आगे बढ़ता गया। इस क्षेत्र में जुड़े मुझे 40 वर्ष हो गये। वाद्ययंत्रों के संग्रहण के लिए मुझे बहुत ही कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। शेर की आवाज निकालने वाले वाद्ययंत्र भुंमरा, हलसब्जी तैयार होने पर पालतु पशु फसल चौपट कर जाते थे तो भुंमरा वाद्ययंत्र जिसमें शेर की आवाज निकलती है। जिससे छोटे-छोटे जानवर डरकर भाग जाते थे। इस प्रकार खेतों की रखवाली हो जाती है। कुहकी मेढक़ की आवाज, सीसरी से तीतुर चिडिय़ा की आवाज आती है। हमने 100 से 200 वर्षों के इतिहास के वाद्ययंत्रों का संग्रहण किया है। आदिवासी सम्मेलन में स्टॉल भी लगाये थे। अब ये वाद्ययंत्र विलुप्ति के कगार पर है। राजपथ में जो झांकी निकलता है। उसके वाद्ययंत्र डिजाइन कंपोजन मैनें खुद किया था एवं उसमें प्रस्तुति भी दिया हूॅ। मुझें इस क्षेत्र में जानें की उत्सुकता थी तभी यह कार्य संभव हो पाया। नये कलाकारों को संदेष देते हुए बताया बदलाव लाना जरूरी है। अगर एक बार हमारी कला और संस्कृति नष्ट हों गई तो उन्हें पुन: वापिस लाना बहुत ही कठिन कार्य है। इसलिए इसका संरक्षण बहुत ही आवश्यक है। यहॉ की संस्कृति अथाह है जिसे सीख पाना संभव नहीं लेकिन जानना बहुत जरूरी है। दिल्ली में नाट्यशाला प्रतियोगिता में हमारी टीम को दूसरा स्थान मिला। प्रदेश की समृद्ध मांदरी नृत्य की प्रस्तुती दी गई। गोड़ी भाषा में हमने राजपथ में 7 बार वहॉ कार्यक्रम दे चुकें है। मेरे द्वारा वहॉ छत्तीसगढ़ का प्रतिनिधित्व किया गया। अब तक बस्तर, सरगुजा और विभिन्न बड़े-बड़े क्षेत्रों में हम जा चुके हैं। मीडिया सेंटर के संचालक श्रीकान्त साहू एवं टीम द्वारा गुलदस्ता भेंट कर सम्मानित किया।