राजपथ - जनपथ
पिछली सरकार में बड़ी संख्या में कॉलेज खोले गए, लेकिन बिल्डिंग -स्टाफ आदि की जरूरतों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया। हाल यह है कि 40 से अधिक कॉलेजों के पास खुद की बिल्डिंग नहीं है और वे स्कूल भवनों में संचालित हो रहे हैं। दिलचस्प बात यह है कि रमन सिंह सरकार में पे्रेमप्रकाश पाण्डेय के पास उच्च शिक्षा का दायित्व था जिन्हें काबिल मंत्री माना जाता रहा है।
अविभाजित मध्यप्रदेश में जब पैसों की बेहद तंगी रहती थी, तब कॉलेज बिल्डिंग-स्टाफ के लिए फंड जुटाने मंत्री काफी ताकत लगाते थे। एक बार ऐसा मौका आया जब मोतीलाल वोरा ने उच्च शिक्षा मंत्री रहते बस्तर में एक साथ आठ नए कॉलेज खोल दिए। उस वक्त बस्तर में मात्र दो कॉलेज संचालित थे। बाकी जिलों में भी कॉलेज खोल दिए गए। जब फंड की बात आई, तो तत्कालीन सीएम अर्जुन सिंह ने वोराजी से पूछ लिया, कि पैसा कहां से आएगा? इस पर वोराजी ने उन्हें कहा कि आप सिर्फ फाइल पर दस्तखत कर दीजिए, मैंने पैसे का इंतजाम कर लिया है। इस पर अर्जुन सिंह ने बिना कुछ कहे फाइल पर दस्तखत कर दिए।
वोराजी इसके बाद तत्कालीन वित्तमंत्री शिवभानु सोलंकी के पास पहुंचे। और उनसे कहा कि धार में एक बड़ा कॉलेज खोला जा रहा है। यहां हर विषय की पढ़ाई होगी। सोलंकी खुशी-खुशी इसके लिए तैयार हो गए। धार सोलंकी का अपना विधानसभा क्षेत्र था। और शैक्षणिक रूप से पिछड़ा भी। सोलंकी ने वोराजी के बाकी प्रस्तावों पर भी मुहर लगा दी। इसके बाद सालभर में नए कॉलेज खोले गए पहले कॉलेज स्कूल में संचालित होते रहे, लेकिन जल्द ही उनकी अपनी बिल्डिंग भी बन गई। इस तरह राजनीतिक कौशल का प्रयोग कर वोराजी ने उच्च शिक्षा के लिए काफी संसाधन जुटा लिए थे।
एक साथ बड़ेे पैमाने पर नए कॉलेज खोलने और इसके लिए जरूरी संसाधन जुटाने के वोराजी के प्रयासों की काफी सराहना भी हुई। उन्होंने पार्टी के बड़े नेताओं की इच्छा का भी ध्यान रखा। शंकर दयाल शर्मा, जो बाद में राष्ट्रपति बने, वे भोपाल के नजदीक एक कॉलेज खोलना चाहते थे। वोराजी ने तुरंत उनकी बात मान ली। इस तरह उच्च शिक्षा के क्षेत्र में काफी काम हुआ, लेकिन अब हालात काफी बदल गए हैं। अब उच्च शिक्षा को निजी क्षेत्र के भरोसे छोड़ दिया गया है और विभागीय अमला ट्रांसफर-पोस्टिंग में ज्यादा रूचि लेता है। आखिर कॉलेज शिक्षकों का वेतन भी काफी बढ़ गया है।
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