सामान्य ज्ञान
अग्निदेव के कितने नाम हैं?
19-May-2021 1:00 PM
अग्निदेवता यज्ञ के प्रधान अंग हैं। ये सर्वत्र प्रकाश करने वाले एवं सभी पुरुषार्थों को प्रदान करने वाले हैं। सभी रत्न अग्नि से उत्पन्न होते हैं और सभी रत्नों को यही धारण करते हैं।
वेदों में सर्वप्रथम ऋग्वेद का नाम आता है और उसमें प्रथम शब्द अग्नि ही प्राप्त होता है। अत: यह कहा जा सकता है कि विश्व-साहित्य का प्रथम शब्द अग्नि ही है। ऐतरेय ब्राह्मण आदि ब्राह्मण ग्रन्थों में यह बार-बार कहा गया है कि देवताओं में प्रथम स्थान अग्नि का है। पुराणों के अनुसार इनकी पत्नी स्वाहा हैं। ये सब देवताओं के मुख हैं और इनमें जो आहुति दी जाती है, वह इन्हीं के द्वारा देवताओं तक पहुंचती है। केवल ऋग्वेद में अग्नि के दो सौ सूक्त प्राप्त होते हैं। इसी प्रकार यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद में भी इनकी स्तुतियां प्राप्त होती हैं। अग्निदेव की सात जिह्वाएं बताई गयी हैं। उन जिह्वाओं के नाम हैं- काली, कराली, मनोजवा, सुलोहिता, धूम्रवर्णी, स्फुलिंगी तथा विश्वरूचि हैं।
अग्निदेव के अन्य नाम हैं- हर, वैश्वानर वह्नि,वीतिहोत्र,धनजंय, कृपीटयोनि ज्वलन, जातवेदस, तनूनपात् ,बर्हि, शुष्मन् ,कृष्णवर्त्मन् ,शोचिष्केश ,उषर्बुध,आश्रययाश,बृहभ्दानु ,कृशानु ,पावक,अनल ,लोहिताश्व ,वायुसख ,शिखावत, आशुशुक्षणि, हिरण्यरेतस्, हुतभुज् , दहन, हव्यवाहन, सप्तार्चिष्, दमुनस, शुक्र, चित्रभानु ,विभावसु ,शुचि और अप्पित्त।