सामान्य ज्ञान
जब इंसान के शरीर में किसी दुर्घटना या फिर किसी बीमारी के चलते खून की कमी हो जाए, तो उसे बाहर से रक्त चढ़ाया जाता है। आज यह काफी सरल प्रक्रिया हो गई है, लेकिन दुनिया में पहली बार 3जून सन 1667 ईसवी को मनुष्य के शरीर में बाहर से खून चढ़ाया गया।
फ्रांस के चिकित्सक जॉन बैपटेस्ट डेनिस ने पहली बार इस काम में सफलता प्राप्त की। रोगियों के शरीर में खून चढ़ाने का प्रयोग सफल हो जाने से चिकित्सा और उपचार के क्षेत्र में भारी प्रगति हुई। क्योंकि उससे पहले तक बहुत से लोग ख़ून बह जाने के बाद ख़ून की कमी के कारण मारे जाते थे। उक्त चिकित्सक ने अपने पहले प्रयोग में एक भेड़ का ख़ून मनुष्य के शरीर में चढ़ाया और बाद में फिर मानव शरीर में दूसरे मनुष्य का ख़ून चढ़ाने का सफल परीक्षण किया। इन प्रयोगों से स्पष्ट हुआ कि इंसानों में किसी जानवर का रक्त नहीं चढ़ाया जा सकता, वहीं उसे उसी रक्त ग्रुप का ही खून चढ़ाया जा सकता है। अन्य रक्त ग्रुप का खून यदि शरीर में डाला जाए, तो उसकी मौत हो जाती है। आज रक्तदान महादान बन चुका है।
ऐसा प्रत्येक पुरूष अथवा महिला जिसकी आयु 18 से 65 वर्ष के बीच हो, रक्त दान कर सकते हैं। वहीं जिसका वजन (100 पौंड) 48 किलों से अधिक हो, जो क्षय रोग, रतिरोग, पीलिया, मलेरिया, मधुमेह, एड्स आदि बीमारियों से पीडि़त नहीं हो, जिसने पिछले तीन माह से रक्तदान नहीं किया हो, रक्तदाता ने शराब अथवा कोई नशीली दवा न ली हो, वहीं गर्भावस्था तथा पूर्णावधि के प्रसव के पश्चात शिशु को दूध पिलाने की 6 माह की अवधि में किसी स्त्री से रक्तदान स्वीकार नहीं किया जाता है।
प्रतिदिन हमारे शरीर में पुराने रक्त का क्षय होता रहता है और प्रतिदिन नया रक्त बनता है रहता है।एकबार में 350 मिलीलीटर यानी डेढ़ पाव रक्त ही लिया जाता है (कुल रक्त का 20 वां भाग)। हमारा शरीर 24 घंटों में दिए गए रक्त के तरल भाग की पूर्ति कर लेता है। ब्लड बैंक रेफ्रिजरेटर में रक्त 4 - 5 सप्ताह तक सुरक्षित रखा जा सकता है।
टैलिन भाषा
टैलिन , लैटिन प्राचीन भारोपीय भाषा है जो रोम के आस पास के क्षेत्र में बोली जाती थी।
ईसा से कोई आठ सौ, नौ सौ साल पहले यह भाषा उत्तर के आप्रवासियों के साथ टाइबर नदी के इलाक़े में आई। इस पर कैल्टिक बोलियों, उत्तरी इटली और यूनानी भाषाओं का प्रभाव पड़ा। फिर रोमन साम्राज्य के विस्तार के साथ-साथ यह पूरे यूरोप में प्रयोग होने लगी। अठ्ठारहवीं शताब्दी में इसका स्थान फ्रांसीसी ने और उन्नीसवीं शताब्दी में अंग्रेज़ी ने ले लिया। हालांकि अब लैटिन एक मृत भाषा है लेकिन इसका कई भाषाओं पर भारी प्रभाव रहा है।