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कनक तिवारी लिखते हैं- संविधान सभा में हरि विष्णु कामथ का 5 नवंबर 1948 को दिया भाषण
13-Jul-2021 3:20 PM
कनक तिवारी लिखते हैं- संविधान सभा में हरि विष्णु कामथ का 5 नवंबर 1948 को दिया भाषण

कामथ ने उन भारतीय बुद्धिजीवियों की खिल्ली उड़ाई जो आजाद भारत की रचनात्मक बुनियाद में विदेशों से आयातित मूल्यों के प्रति अपनी  नतमस्तकता  का बौद्धिक  आडम्बर में  डूबकर  प्रचार  करते रहे। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ में भारतीय प्रतिनिधि श्रीमती विजय लक्ष्मी पण्डित के उस कथन का भी प्रतिवाद किया जिसके अनुसार श्रीमती पण्डित ने संयुक्त राष्ट्र संघ के सम्मेलन में गौरवान्वित होकर यह कहा था कि भारत स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व  के  आदर्शों  को फांस  से ग्रहण कर कृतज्ञ है। उन्होंने नये भारत के निर्माण की पृष्ठभूमि में सुविकसित भारतीय मूल्यों की पुष्टि का अहसास  तक  नहीं  कराया।             

कामथ ने कहा  कि अम्बेडकर आभिजात्य शहरी भद्रपुरुषों  की नकचढ़ी वृत्ति के प्रतीक हैं। यदि इस तरह के दृष्टिकोण से भारत के संविधान की रचना की गई तो इस देश का भगवान ही मालिक है । उन्होंने कहा कि गांधी ने पंचायत राज के आखिरी मंत्र के द्वारा इस देश की नई तवारीख लिखने का आह्वान हमसे किया है। कामथ ने आरोप लगाया कि संविधान लिखने की उपसमिति के सभी सदस्यों के कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी के अपवाद को छोडक़र भारतीय आज़ादी के सिपाही नहीं रहने के कारण उनकी आत्मा में देश के लिए वह गरमी ही नहीं रही है, जिस ऊष्मा ने गांधी का रूप धारण कर पूरे देश को अभिभूत किया है।                                  

कामथ ने अपने भाषण में अम्बेडकर से असहमति का इजहार किया। उन्होंने कहा- ‘‘मेरे विचार से उन्होंने यह कहने में गौरव समझा कि इस विधान में बहुत कुछ भारत शासन अधिनियम से लिया गया है और यथेष्ट मात्रा में ब्रिटेन, अमरीका, आस्ट्रेलिया के विधानों और कदाचित् कनाडा के विधान में से भी लिया गया है। मैं उनसे यह आशा करता था कि वे हमें यह बताते कि हमारे राजनैतिक अतीत से भारतीय जनता की अपूर्व राजनैतिक तथा आध्यात्मिक प्रतिभा से क्या लिया गया है। इस बारे में सम्पूर्ण भाषण में एक भी शब्द नहीं था।’’ ...एक बात में मैं डॉ. अम्बेडकर का विरोध करता हूं। उन्होंने गांवों का उल्लेख ‘‘स्थानीयता की गंदी नालियां तथा अज्ञानता, विचार संकीर्णता और साम्प्रदायिकता की कन्दराओं’’ के रूप में किया है और ग्रामीण जनता के लिए हमारे करुण विश्वास का श्रेय किसी मेटकाफ नाम के व्यक्ति को दिया है।              

मैं यह कहूंगा कि यह श्रेय मेटकाफ को नहीं है, वरन् उससे कहीं ज्यादा उस महान व्यक्ति को है जिसने अभी हमें हाल ही में स्वतंत्र कराया है। गांवों के लिये जो प्रेम हमारे हृदय में लहरा रहा है, वह तो हमारे पथप्रदर्शक तथा राष्ट्रपिता के कारण पैदा हुआ था। उन्हीं के कारण ग्राम जनतंत्र में तथा अपनी देहाती जनता में हमारा विश्वास बढ़ा और हमने अपने सम्पूर्ण हृदय से उसका पोषण किया। यह महात्मा गांधी के कारण है। यह आपके कारण है और यह सरदार पटेल, पंडित नेहरू और नेताजी बोस के कारण है कि हम अपने देहाती भाईयों को प्यार करने लगे हैं।‘‘

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