विचार / लेख

बसवेश्वर की सीख नाम की
02-Aug-2021 4:16 PM
बसवेश्वर की सीख नाम की

-प्रकाश दुबे

जाति, उपजाति, अंधविश्वास, रूढिय़ों, कुरीतियों के विरोधी बसवेश्वर गुरु को मानने वालों का अलग पंथ बना। उनके नाम वाले बसवराज बोम्मई को कर्नाटक की कुर्सी जाति के कारण मिली। जातीय संतुलन बिठाने की खातिर दिल्ली में विराजमान महापंडितों ने दो गौड़ा (वोक्कालिगा) सांसद केन्द्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किए। येदियुरप्पा के अंदरूनी विरोधियों ने हंगामा मचाया कि एक दलबदलू है और दूसरी मुख्यमंत्री (अब भूतपूर्व) की सहेली। अब उपजाति विवाद रहरा गया। बोम्मई समेत येदियुरप्पा के चार-पांच सजातीय वारिस बनने की होड़ में शामिल थे। बसव संप्रदाय में सौ से अधिक उपजातियां हैं। सर्वाधिक आबादी वाली पंचमशाली उपजाति के बजाय बोम्मई को राज्य की कमान सौंपने से कई सजातीय कुपित हैं। कुछ नाखुश उपजातीय नेताओं ने मंत्रिमंडल में शामिल न होने की धमकी दी है।

उपजाति का अक्स
देश की राजधानी में कुछ फोटोग्राफरों की जीविका नेताओं के भरोसे चलती है। देश भर से आए लोग नेताओं के साथ तस्वीर खिंचवाते हैं। छाया चित्रकार कमाते हैं। सांसद और विधायक इस बीमारी से अछूते नहीं हैं। लोकसभा सदस्य डा थिरुमावलन का नाम भी इस चपेट में आ गया। थिरु यानी माननीय। चिदंबरम लोकसभा क्षेत्र से विजयी सांसद विज्ञान में शिक्षित भी हैं और अपनी पार्टी वीसीके के एकछत्र नेता भी। अपराध विज्ञान का अध्ययन किया है। लाड़ भरे नाम थोल से संबोधित किए जाते हैं। जाति आधारित भेदभाव का विरोध करने के कारण केन्द्र में मंत्री रह चुके अन्बुमणि रामदास की पीएमके पार्टी के साथ कई बार टकराव हुआ। झड़पें और हिंसा हुई। संवैधानिक पद पर विराजमान व्यक्ति को थोल ज्ञापन देने गए। सांसद की शिकायत है कि हमारे साथ तस्वीर नहीं खिंचवाई। दूसरी शिकायत-केन्द्र में सत्ताधारी दल के पदाधिकारी नेता के साथ तस्वीर खिंचा ली। पदाधिकारी सजातीय है। ज्ञापन किस बात के लिए था? अपनी उपजाति के व्यक्ति को शिक्षा क्षेत्र में बड़ा पद देने की मांग की गई थी। 

बहुमत बिरादरी
लोकसभा हो या राज्यसभा। इस बिरादरी का दबदबा कायम हैं। जिस संसद ने उनके विरुद्ध संविधान में संशोधन करवा दिया, उसमें उनकी मंत्रिमंडल से लेकर हर जगह तूती बोलती है। यहां तक कि बड़े-बड़े मुद्दों पर बहस नहीं हो पाती। उनकी तरफ से रखे विधेयक पर कोई विरोध नहीं होता। उन्होंने बोलना तक नहीं पड़ता। इस हफ्ते पशुपति कुमार ले सार्वजनिक आपूर्ति पर बिना मुंह खोले विधेयक पारित करा लिया। भाई रामविलास के जीते जी वे राम के शत्रुघ्न तक की हैसियत नहीं रखते थे। दो और नाम गिना देते हैं। एक ने बहुत पहले असम गण परिषद से त्यागपत्र दिया। मुख्यमंत्री रहा। जहाज का पंछी पुनि जहाज पर आकर केन्द्रीय मंत्री बना। दूसरे ने दलबदल कर राज्य सरकार गिरवा दी। हवाई अड्डों से संबंधित विधेयक पर मंत्री को संसद में मीठी वाणी में भाषण करने की जरूरत नहीं पड़ी। सदन में गुहार लगाता दुखियारा सांसद नहीं हैं। सत्तादल और विपक्ष मत तलाश करो। जासूसी कांड, किसान आंदोलन, महंगाई पर बहस का अवसर देने का बार बार अनुरोध करने वाले दुखी जीव राज्यसभा के सभापति वेंकय्या नायडू हैं।

 जाति देख गुर्रायं

धर्म, पंथ, जाति, उपजाति, भाषा, क्षेत्र, पहनावे के आधार पर किसी से भेदभाव नहीं किया जा सकता-ऐसा भारत के संविधान में लिखा है। आजाद देश के कुछ अधिक आजाद नागरिक इसे मानें या न मानें। संविधान की इस धारा का पालन करने और न करने में जिस बिरादरी ने नाम कमाया और गंवाया है, वह है पत्रकारों की बिरादरी। अमेरिका के गृह सचिव को संपादकों और वरिष्ठ पत्रकारों की संस्था इंटरनेशनल प्रेस इंस्टीट्यूट यानी आइपीआइ ने पत्र लिखा-भारत दौरे में पत्रकारिता की स्वतंत्रता के बारे में बातचीत जरूर करना।

भारतीय पत्रकारों के एक वर्ग ने इसे अमेरिका की दखलंदाजी माना। गृह सचिव ने इस बारे में बात की या नहीं? कौन जाने। अंतरराष्ट्रीय संस्था की मांग पर कसीदे पढ़ डाले। आइपीआइ का मुख्यालय अमेरिका में नहीं है। पत्रकार जगत के कुछ लोगों के लिए हर परदेसी फिरंगी है। तरक्की पाने के बाद सूचना-प्रसारण मंत्रालय का दायित्व संभालने वाले ठाकुर जानते हैं कि किस किस पत्रकार का वित्त और मंत्रालय से कितना अनुराग है? उनके मन की बात औरों के मुख और कलम से झरती है। वसुधैव कुटुम्बकम।
  (लेखक दैनिक भास्कर नागपुर के समूह संपादक हैं)

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